द्वारका: अतिक्रमण हटाने से लोगों में निराशा और परेशानी

Written by sabrang india | Published on: January 25, 2025
गुजरात के द्वारका में हाल ही में ढांचों को तोड़ फोड़ कर गिराने की घटना विवाद का केंद्र बिंदु रही है। अधिकारियों ने दावा किया है कि ये ढांच अवैध थे और किसी भी तरह के तोड़ फोड़ से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था। हालांकि, स्थानीय लोगों ने चिंता जताई है कि इस तोड़ फोड़ अभियान में खासकर मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और इसके लिए कोई उचित सूचना नहीं दी गई।



गुजरात के द्वारका में जिला प्रशासन, वन विभाग और पुलिस द्वारा बड़े पैमाने पर तोड़ फोड़ अभियान चलाया गया है जिसके तहत समुद्री क्षेत्रों की सुरक्षा के उद्देश्य से द्वारका के आसपास 20 से अधिक आइलैंड पर स्थित अवैध ढांचों को ध्वस्त कर दिया गया है। प्रशासन द्वारा बेयट द्वारका, ओखा और पिरोटन द्वीपों पर इस तोड़ फोड़ अभियान के तहत कई घर, व्यावसायिक संरचना और धार्मिक स्थल गिराए गए हैं। इस तोड़ फोड़ अभियान में इलाके के 21 द्वीप को निशाना बनाया गया है, जिनमें से सात को पूरी तरह से साफ कर दिया गया है।

करीब 250 घरों, एक दरगाह और नौ मजारों जैसी संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया गया है। द्वारका के पुलिस अधीक्षक नितेश पांडे के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, ये निर्माण मुख्य रूप से “धार्मिक” या “व्यावसायिक” थे। द्वारका में चल रहे विध्वंस अभियान के तहत द्वारका जिले के सात से ज्यादा द्वीपों को अवैध अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है।

गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए तोड़ फोड़ अभियान की सफलता की घोषणा की। उन्होंने 7 द्वीपों पर अतिक्रमण से 100 प्रतिशत मुक्त भूमि की विध्वंस के बाद की स्थिति को साझा करते हुए हवाई फुटेज भी साझा की। उन्होंने विध्वंस अभियान में प्रशासन और कानून प्रवर्तन अधिकारियों के समन्वित प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि “देवभूमि द्वारका में ऐतिहासिक बुलडोजर अभियान ने महत्वपूर्ण परिणाम दिए हैं।”

अवैध अतिक्रमण हटाने के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा

हालांकि अवैध अतिक्रमण हटाने का अभियान शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है, लेकिन इस बात की चिंता जताई जा रही है कि इस इलाके के मुस्लिम अल्पसंख्यकों को गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है और अतिक्रमण हटाने में कानून की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। गुजरात अल्पसंख्यक समन्वय समिति ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया है कि वे “समुदाय के खिलाफ भेदभाव” को रोकें। अल्पसंख्यक समन्वय समिति के संयोजक मुजाहिद नफीस द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में यह भी कहा गया है कि “अतिक्रमण हटाने में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।”

जामनगर के पुलिस अधीक्षक प्रेमसुख डेलू ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पिरोटन द्वीप अपने स्थान के कारण बहुत संवेदनशील है। इंडिया टुडे के रिपोर्ट अनुसार, उन्होंने दावा किया कि “राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से, यह द्वीप अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र के नजदीक होने के कारण अहम है। रिलायंस इंडस्ट्रीज, गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड और नयारा एनर्जी की उत्पादन परिसर जामनगर में स्थित हैं, इसके अलावा वायुसेना और नौसेना के बेस स्टेशन भी हैं।” उन्होंने आगे कहा कि "अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र से यहां मादक पदार्थों के आने को लेकर चिंता है।"

तोड़ फोड़ से पहले नोटिस जारी करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन

स्थानीय अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया है कि अनधिकृत निर्माणों को तोड़ फोड़ करने से पहले उचित और समय पर नोटिस जारी किए गए थे। उन्होंने दावा किया है कि कानूनी कार्रवाई समय सीमा समाप्त होने के बाद ही शुरू की गई।

हालांकि अधिकारियों ने दावा किया है कि नियमों और विनियमों के अनुसार तोड़ फोड़ अभियान चलाया गया है, स्थानीय लोगों ने कहा है कि उन्हें अपनी संपत्तियों के दस्तावेज पेश करने के लिए पहला नोटिस 3 जनवरी को जारी किया गया था और दूसरा नोटिस 7 जनवरी को जारी किया गया था। 8 और 9 जनवरी को सार्वजनिक सुनवाई की गई और 10 जनवरी को तोड़ फोड़ शुरू हुआ। उन्होंने कहा है कि इन प्रोपर्टीज पर रहने वाले लोगों को अपने दस्तावेज पेश करने और अपना मामला पेश करने के लिए दिया गया समय बहुत कम है।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इन संरचनाओं के तोड़ फोड़ के संबंध में दिशा-निर्देश तय किए, जिसके तहत न्यायालय ने आदेश दिया कि बिना नोटिस दिए और स्थानीय नगरपालिका कानूनों द्वारा निर्धारित समय या उक्त नोटिस की तारीख से 15 दिनों की अवधि के भीतर कोई भी तोड़ फोड़ नहीं किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि “यदि कार्यपालिका न्यायाधीश की भूमिका निभाती है और कानून की प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी घर को तोड़ फोड़ करने का आदेश देती है, तो यह कानून के शासन का उल्लंघन है। राज्य कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना आरोपी या दोषी के खिलाफ मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकता।”

यहां देखा जा सकता है कि स्थानीय अधिकारियों ने लोगों को अपना मामला पेश करने और विध्वंस को चुनौती देने या विध्वंस होने से पहले अपने मामलों का प्रबंधन करने के लिए उचित नोटिस और समय दिए बिना अतिक्रमणों को ध्वस्त कर दिया है।

स्थानीय लोगों को विस्थापित कर परेशानी में छोड़ दिया गया

हालांकि अधिकारियों ने दावा किया है कि उचित नोटिस जारी किए गए थे, कई स्थानीय लोगों ने कहा है कि उन्हें तोड़ फोड़ होने से न के बराबर या कोई चेतावनी नहीं मिली थी। लोग परेशान दिखे क्योंकि उनके घर बर्बाद हो रहे थे और वे अपना सामान बचाने की कोशिश कर रहे थे।

कश्मीर मीडिया सर्विस न्यूज के अनुसार, कई आलोचकों ने यह भी दावा किया है कि गुजरात के द्वारका में तोड़फोड़ अभियान के पीछे असली मकसद पर्यावरण संरक्षण की आड़ में मुस्लिम समुदाय को हटाने का प्रयास लगता है। जबकि सरकार ने विस्थापित परिवारों को मुआवजा देने का दावा किया है, कई स्थानीय लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने इस तोड़ फोड़ अभियान को लेकर कहा कि, "यह कहने की कोई जरूरत नहीं है कि मुस्लिम पूजा स्थल और मुस्लिम स्मारकों को निशाना बनाया गया है।"

द्वारका में तोड़फोड़ अभियान: गुजरात भर में बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ का हिस्सा

अक्टूबर, 2022 में शुरू हुई इसी तरह की कार्रवाइयों में गुजरात के द्वारका में तोड़फोड़ अभियान हालिया मामला है। 2020 के आखिर में गिर सोमनाथ मंदिर के आसपास के तटीय क्षेत्रों में अवैध आवास, 9 मस्जिदें और धार्मिक स्थल को निशाना बनाया गया। जूनागढ़ में, सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वाली कथित एक दरगाह और एक मंदिर को मार्च, 2024 में ध्वस्त कर दिया गया। कच्छ और पोरबंदर में भी इसी तरह के अभियान चलाए गए, ताकि कथित तौर पर तटीय क्षेत्रों को अवैध संरचनाओं से मुक्त किया जा सके और पुलिस को राष्ट्रीय सुरक्षा और हाल ही में मादक पदार्थों के व्यापार में वृद्धि के लिए क्षेत्र में अनधिकृत आवाजाही को नियंत्रित करने की इजाजत मिल सके।

इस तरह के विध्वंस अभियानों की वृद्धि और अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी के प्रति उनके कथित लक्ष्य ऐसे अभियानों के पीछे के वास्तविक इरादे और राष्ट्रीय सुरक्षा व राष्ट्रीय हितों की रक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा करते हैं। जबकि अधिकारियों ने दावा किया है कि द्वारका में अतिक्रमणों को कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से हटाया गया है, स्थानीय लोगों को अपना मामला पेश करने का उचित अवसर नहीं दिया गया है और विस्थापित परिवारों और लोगों के पुनर्वास या मुआवजे के लिए सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई है। ये मनमानी कार्रवाई लोगों के मानवाधिकारों का भारी उल्लंघन करती है।

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