"संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि दुनिया भर में करीब पांच करोड़ लोग आधुनिक गुलामी में हैं, जिनमें 2.8 करोड़ लोग जबरन मजदूरी तथा 2.2 करोड़ लोगों का जबरन विवाह करवाया गया है।"
प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : पीटीआई
"अंतर्राष्ट्रीय गुलामी उन्मूलन दिवस पर खबर है कि भारत में एक करोड़ दस लाख से अधिक लोग गुलामी के शिकार है। जबकि संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि दुनिया भर में करीब पांच करोड़ लोग आधुनिक गुलामी में हैं, जिनमें 2.8 करोड़ लोग जबरन मजदूरी तथा 2.2 करोड़ लोगों का जबरन विवाह करवाया गया है।"
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक, साल 2021 में दुनिया भर में 2.76 करोड़ लोग जबरन मजदूरी कर रहे थे। 2016 से 2021 तक, यह संख्या 27 लाख तक बढ़ गई, जिसका मुख्य कारण निजी तौर पर जबरन मजदूरी करवाना था। खास है कि दुनिया भर में हर साल दो दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय गुलामी उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य गुलामी के आधुनिक स्वरूपों का उन्मूलन करना, मानव तस्करी के बारे में जागरूकता बढ़ाना तथा सभी लोगों, विशेषकर गुलामी के शिकार लोगों के अधिकारों और सम्मान को बढ़ावा देना है।
इतिहास में गुलामी अलग-अलग तरीकों से विकसित होकर सामने आती रही है। डाउन टू अर्थ की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, गुलामी के कुछ पारंपरिक रूप अभी भी अपने पुराने रूपों में बने हुए हैं, जबकि अन्य नए रूपों में बदल गए हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निकायों ने गुलामी के पुराने रूपों के बने रहने का दस्तावेजीकरण किया है जो पारंपरिक मान्यताओं और रीति- रिवाजों में शामिल हैं। गुलामी के ये रूप समाज में सबसे कमजोर समूहों, जैसे कि निम्न जाति, आदिवासी अल्पसंख्यक और स्वदेशी लोगों के खिलाफ लंबे समय से चले आ रहे भेदभाव का परिणाम हैं।
इतिहास की बात करें तो गुलामी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानव तस्करी को खत्म करने और दूसरों के वेश्यावृत्ति के शोषण के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (दो दिसंबर 1949 का संकल्प 317 (चौथे)) को अपनाने की तिथि के रूप में घोषित की गई है। संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव में कहा गया है, "इस दिन का ध्यान गुलामी के समकालीन रूपों, जैसे मानव तस्करी, यौन शोषण, बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों, जबरन विवाह और सशस्त्र संघर्ष में उपयोग के लिए बच्चों की जबरन भर्ती को खत्म करने पर है।"
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक, साल 2021 में दुनिया भर में 2.76 करोड़ लोग जबरन मजदूरी कर रहे थे। 2016 से 2021 तक, यह संख्या 27 लाख तक बढ़ गई, जिसका मुख्य कारण निजी तौर पर जबरन मजदूरी करवाना था। आईएलओ के अनुसार, कोई भी क्षेत्र इस समस्या से अछूता नहीं है, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सबसे अधिक संख्या यानी 1.51 करोड़ है, इसके बाद यूरोप और मध्य एशिया में 41 लाख, अफ्रीका में 38 लाख, अमेरिका में 36 लाख और अरब राज्य में यह संख्या नौ लाख हैं।
अधिकतर जबरन मजदूरी निजी क्षेत्र में होती है, जिसमें 86 फीसदी मामले निजी क्षेत्रों द्वारा लगाए जाते हैं, 63 फीसदी श्रम शोषण के लिए और 23 फीसदी यौन शोषण के लिए। शेष 14 फीसदी राज्य द्वारा लगाए गए जबरन श्रम के लिए जिम्मेदार हैं। प्रभावित होने वाले मुख्य क्षेत्र उद्योग, सेवा, कृषि और घरेलू काम हैं, जो कुल मिलाकर जबरन मजदूरी के 89 फीसदी मामलों के लिए जिम्मेवार हैं।
भारत में गुलामी की बात करें तो, साल 2023 के वैश्विक गुलामी सूचकांक के अनुसार, भारत में 1.1 करोड़ से अधिक लोग गुलामी कर रहे हैं, जो किसी भी देश में सबसे अधिक संख्या है। भारत में गुलामी कई रूपों में सामने आती है, जिसमें जबरन मजदूरी, मानव तस्करी और बाल शोषण शामिल है। आर्थिक विकास और तकनीकी उन्नति के मामले में देश ने जो अहम प्रगति की है, उसके बावजूद गुलामी आज भी इसके सामाजिक और आर्थिक ढांचे में गहराई से समाई हुई है, जिससे लाखों कमजोर लोग पीड़ित हैं।
प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : पीटीआई
"अंतर्राष्ट्रीय गुलामी उन्मूलन दिवस पर खबर है कि भारत में एक करोड़ दस लाख से अधिक लोग गुलामी के शिकार है। जबकि संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि दुनिया भर में करीब पांच करोड़ लोग आधुनिक गुलामी में हैं, जिनमें 2.8 करोड़ लोग जबरन मजदूरी तथा 2.2 करोड़ लोगों का जबरन विवाह करवाया गया है।"
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक, साल 2021 में दुनिया भर में 2.76 करोड़ लोग जबरन मजदूरी कर रहे थे। 2016 से 2021 तक, यह संख्या 27 लाख तक बढ़ गई, जिसका मुख्य कारण निजी तौर पर जबरन मजदूरी करवाना था। खास है कि दुनिया भर में हर साल दो दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय गुलामी उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य गुलामी के आधुनिक स्वरूपों का उन्मूलन करना, मानव तस्करी के बारे में जागरूकता बढ़ाना तथा सभी लोगों, विशेषकर गुलामी के शिकार लोगों के अधिकारों और सम्मान को बढ़ावा देना है।
इतिहास में गुलामी अलग-अलग तरीकों से विकसित होकर सामने आती रही है। डाउन टू अर्थ की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, गुलामी के कुछ पारंपरिक रूप अभी भी अपने पुराने रूपों में बने हुए हैं, जबकि अन्य नए रूपों में बदल गए हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निकायों ने गुलामी के पुराने रूपों के बने रहने का दस्तावेजीकरण किया है जो पारंपरिक मान्यताओं और रीति- रिवाजों में शामिल हैं। गुलामी के ये रूप समाज में सबसे कमजोर समूहों, जैसे कि निम्न जाति, आदिवासी अल्पसंख्यक और स्वदेशी लोगों के खिलाफ लंबे समय से चले आ रहे भेदभाव का परिणाम हैं।
इतिहास की बात करें तो गुलामी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानव तस्करी को खत्म करने और दूसरों के वेश्यावृत्ति के शोषण के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (दो दिसंबर 1949 का संकल्प 317 (चौथे)) को अपनाने की तिथि के रूप में घोषित की गई है। संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव में कहा गया है, "इस दिन का ध्यान गुलामी के समकालीन रूपों, जैसे मानव तस्करी, यौन शोषण, बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों, जबरन विवाह और सशस्त्र संघर्ष में उपयोग के लिए बच्चों की जबरन भर्ती को खत्म करने पर है।"
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक, साल 2021 में दुनिया भर में 2.76 करोड़ लोग जबरन मजदूरी कर रहे थे। 2016 से 2021 तक, यह संख्या 27 लाख तक बढ़ गई, जिसका मुख्य कारण निजी तौर पर जबरन मजदूरी करवाना था। आईएलओ के अनुसार, कोई भी क्षेत्र इस समस्या से अछूता नहीं है, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सबसे अधिक संख्या यानी 1.51 करोड़ है, इसके बाद यूरोप और मध्य एशिया में 41 लाख, अफ्रीका में 38 लाख, अमेरिका में 36 लाख और अरब राज्य में यह संख्या नौ लाख हैं।
अधिकतर जबरन मजदूरी निजी क्षेत्र में होती है, जिसमें 86 फीसदी मामले निजी क्षेत्रों द्वारा लगाए जाते हैं, 63 फीसदी श्रम शोषण के लिए और 23 फीसदी यौन शोषण के लिए। शेष 14 फीसदी राज्य द्वारा लगाए गए जबरन श्रम के लिए जिम्मेदार हैं। प्रभावित होने वाले मुख्य क्षेत्र उद्योग, सेवा, कृषि और घरेलू काम हैं, जो कुल मिलाकर जबरन मजदूरी के 89 फीसदी मामलों के लिए जिम्मेवार हैं।
भारत में गुलामी की बात करें तो, साल 2023 के वैश्विक गुलामी सूचकांक के अनुसार, भारत में 1.1 करोड़ से अधिक लोग गुलामी कर रहे हैं, जो किसी भी देश में सबसे अधिक संख्या है। भारत में गुलामी कई रूपों में सामने आती है, जिसमें जबरन मजदूरी, मानव तस्करी और बाल शोषण शामिल है। आर्थिक विकास और तकनीकी उन्नति के मामले में देश ने जो अहम प्रगति की है, उसके बावजूद गुलामी आज भी इसके सामाजिक और आर्थिक ढांचे में गहराई से समाई हुई है, जिससे लाखों कमजोर लोग पीड़ित हैं।