अलीगढ़ में बीफ तस्करी का आरोप लगाते हुए हिंदुत्व संगठनों से जुड़े लोगों ने चार मुस्लिम युवकों पर हमला किया था। लेकिन अब फॉरेंसिक रिपोर्ट में गोमांस होने के दावे को खारिज कर दिया गया है।

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 24 मई को चार मुस्लिम युवकों पर बीफ तस्करी का आरोप लगाकर हिंदुत्ववादी समूहों के लोगों ने हमला किया था। अब पुलिस सूत्रों ने मीडिया को बताया है कि जांच में यह पाया गया है कि जब्त किया गया मांस गाय का नहीं था।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, हरदुआगंज थाने के एसएचओ धीरज कुमार ने पुष्टि की है कि मथुरा की सरकारी प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजे गए मांस के नमूनों की रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ है कि वह मांस गाय का नहीं था।
बुधवार, 28 मई की सुबह अलीगढ़ पुलिस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पोस्ट करते हुए स्पष्ट किया कि बीफ तस्करी के आरोप निराधार हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले 15 दिनों में यह दूसरी बार है जब इन्हीं आरोपियों के समूह ने पीड़ितों के मांस ले जा रहे वाहन को उसी स्थान पर निशाना बनाया। इस बार हमलावरों ने न केवल वाहन में आग लगा दी, बल्कि हाईवे को भी जाम कर दिया।
हमले से जुड़ा एक नया वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है, जिसमें आरोपी पुलिस की मौजूदगी में एक पीड़ित को बेहोशी की हालत में पुलिस वाहन से घसीटते हुए बाहर निकालते दिखाई दे रहे हैं। चारों पीड़ितों की पहचान अरबाज, अकील, कदीम और मुन्ना खान के तौर पर हुई है, जो अलीगढ़ के अतरौली कस्बे के रहने वाले हैं। आरोप है कि हमलावरों की भीड़ ने उन्हें निर्वस्त्र कर धारदार हथियारों, ईंटों, लाठियों और लोहे की रॉड से बेरहमी से पीटा।
एसएचओ धीरज कुमार ने द वायर को बताया कि इस मामले में अब तक चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें से तीन के नाम पहले से दर्ज एफआईआर में शामिल थे, जबकि चौथे आरोपी की पहचान वायरल वीडियो फुटेज के आधार पर की गई है।
गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिनमें शामिल हैं: धारा 191(3) - घातक हथियार के साथ दंगा करना, धारा 109 - हत्या का प्रयास, धारा 308(5) - मौत की धमकी देकर वसूली और धारा 310(2) - डकैती।
बताया जा रहा है कि स्थानीय पुलिस ने चारों पीड़ितों को भीड़ से बचा लिया था, लेकिन तब तक वे गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) अमृत जैन ने मीडिया को बताया कि घायलों को अलीगढ़ के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां तीन की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है।
हमले और फॉरेंसिक रिपोर्ट सामने आने के बाद अब पीड़ितों के परिजनों ने प्रशासन से मांग की है कि सभी आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार किया जाए और पीड़ितों के खिलाफ दर्ज की गई 'झूठी' एफआईआर को वापस लिया जाए।
ज्ञात हो कि एक स्थानीय व्यक्ति विजय बजरंगी ने चार मुस्लिम युवकों के खिलाफ उत्तर प्रदेश गोवध निषेध अधिनियम, 1955 की धाराएं 3, 5 और 8 के तहत एफआईआर दर्ज करवाई थी। हालांकि, विजय बजरंगी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन उक्त एफआईआर अभी तक रद्द नहीं की गई है।
अकील के भाई मोहम्मद साजिद ने कहा कि लैब रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया है कि जब्त किया गया मांस भैंस का था, इसलिए अब झूठे मामले को समाप्त किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “सच अब पूरी दुनिया और मीडिया के सामने आ चुका है। यह झूठा मामला उन्होंने खुद को बचाने के लिए बनाया था। अगर सरकार इसे खुद नहीं रद्द करती, तो इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता। यह हमारे लिए दोहरी मार के समान है।”
उन्होंने आगे कहा, “विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने हमसे वादा किया है कि यह फर्जी केस वापस लिया जाएगा।”
इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम जैसे विपक्षी दलों के नेताओं ने पीड़ितों के परिवारों से मुलाकात की है।
27 मई को भीम आर्मी के प्रमुख और नगिना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने अलीगढ़ के जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में पीड़ितों से मुलाकात की। उन्होंने कहा, “यह केवल कानून-व्यवस्था का मामला नहीं है, बल्कि मुस्लिम और गरीब तबके के व्यापार पर एक संगठित हमला है।”
अकील के पिता सलीम ने द वायर से बातचीत में कहा था कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से उनका कामकाज पूरी तरह ठप हो गया है और उनकी आजीविका खतरे में पड़ गई है। उन्होंने बताया कि उनके पास लाइसेंस भी था और मांस का नमूना पुलिस को सौंपा गया था, फिर भी उन पर हमला किया गया।
साजिद ने कहा, “ये गोरक्षक अब वसूली गिरोह बन चुके हैं और इन्हें सरकार का पूरा संरक्षण प्राप्त है। इस बार तो हमला पुलिस की मौजूदगी में ही हुआ। पुलिस की गाड़ी से उन्हें घसीटकर बाहर निकाला गया। भाजपा, आरएसएस, बजरंग दल—ये सभी एक ही हैं। इन्होंने हिंदू-मुस्लिम के नाम पर समाज को बांटने के लिए गुंडागर्दी का माहौल बना दिया है। कोई गैरकानूनी काम नहीं किया जा रहा था, फिर भी हमला किया गया।”
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द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, हरदुआगंज थाने के एसएचओ धीरज कुमार ने पुष्टि की है कि मथुरा की सरकारी प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजे गए मांस के नमूनों की रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ है कि वह मांस गाय का नहीं था।
बुधवार, 28 मई की सुबह अलीगढ़ पुलिस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पोस्ट करते हुए स्पष्ट किया कि बीफ तस्करी के आरोप निराधार हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले 15 दिनों में यह दूसरी बार है जब इन्हीं आरोपियों के समूह ने पीड़ितों के मांस ले जा रहे वाहन को उसी स्थान पर निशाना बनाया। इस बार हमलावरों ने न केवल वाहन में आग लगा दी, बल्कि हाईवे को भी जाम कर दिया।
हमले से जुड़ा एक नया वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है, जिसमें आरोपी पुलिस की मौजूदगी में एक पीड़ित को बेहोशी की हालत में पुलिस वाहन से घसीटते हुए बाहर निकालते दिखाई दे रहे हैं। चारों पीड़ितों की पहचान अरबाज, अकील, कदीम और मुन्ना खान के तौर पर हुई है, जो अलीगढ़ के अतरौली कस्बे के रहने वाले हैं। आरोप है कि हमलावरों की भीड़ ने उन्हें निर्वस्त्र कर धारदार हथियारों, ईंटों, लाठियों और लोहे की रॉड से बेरहमी से पीटा।
एसएचओ धीरज कुमार ने द वायर को बताया कि इस मामले में अब तक चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें से तीन के नाम पहले से दर्ज एफआईआर में शामिल थे, जबकि चौथे आरोपी की पहचान वायरल वीडियो फुटेज के आधार पर की गई है।
गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिनमें शामिल हैं: धारा 191(3) - घातक हथियार के साथ दंगा करना, धारा 109 - हत्या का प्रयास, धारा 308(5) - मौत की धमकी देकर वसूली और धारा 310(2) - डकैती।
बताया जा रहा है कि स्थानीय पुलिस ने चारों पीड़ितों को भीड़ से बचा लिया था, लेकिन तब तक वे गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) अमृत जैन ने मीडिया को बताया कि घायलों को अलीगढ़ के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां तीन की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है।
हमले और फॉरेंसिक रिपोर्ट सामने आने के बाद अब पीड़ितों के परिजनों ने प्रशासन से मांग की है कि सभी आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार किया जाए और पीड़ितों के खिलाफ दर्ज की गई 'झूठी' एफआईआर को वापस लिया जाए।
ज्ञात हो कि एक स्थानीय व्यक्ति विजय बजरंगी ने चार मुस्लिम युवकों के खिलाफ उत्तर प्रदेश गोवध निषेध अधिनियम, 1955 की धाराएं 3, 5 और 8 के तहत एफआईआर दर्ज करवाई थी। हालांकि, विजय बजरंगी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन उक्त एफआईआर अभी तक रद्द नहीं की गई है।
अकील के भाई मोहम्मद साजिद ने कहा कि लैब रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया है कि जब्त किया गया मांस भैंस का था, इसलिए अब झूठे मामले को समाप्त किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “सच अब पूरी दुनिया और मीडिया के सामने आ चुका है। यह झूठा मामला उन्होंने खुद को बचाने के लिए बनाया था। अगर सरकार इसे खुद नहीं रद्द करती, तो इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता। यह हमारे लिए दोहरी मार के समान है।”
उन्होंने आगे कहा, “विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने हमसे वादा किया है कि यह फर्जी केस वापस लिया जाएगा।”
इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम जैसे विपक्षी दलों के नेताओं ने पीड़ितों के परिवारों से मुलाकात की है।
27 मई को भीम आर्मी के प्रमुख और नगिना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने अलीगढ़ के जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में पीड़ितों से मुलाकात की। उन्होंने कहा, “यह केवल कानून-व्यवस्था का मामला नहीं है, बल्कि मुस्लिम और गरीब तबके के व्यापार पर एक संगठित हमला है।”
अकील के पिता सलीम ने द वायर से बातचीत में कहा था कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से उनका कामकाज पूरी तरह ठप हो गया है और उनकी आजीविका खतरे में पड़ गई है। उन्होंने बताया कि उनके पास लाइसेंस भी था और मांस का नमूना पुलिस को सौंपा गया था, फिर भी उन पर हमला किया गया।
साजिद ने कहा, “ये गोरक्षक अब वसूली गिरोह बन चुके हैं और इन्हें सरकार का पूरा संरक्षण प्राप्त है। इस बार तो हमला पुलिस की मौजूदगी में ही हुआ। पुलिस की गाड़ी से उन्हें घसीटकर बाहर निकाला गया। भाजपा, आरएसएस, बजरंग दल—ये सभी एक ही हैं। इन्होंने हिंदू-मुस्लिम के नाम पर समाज को बांटने के लिए गुंडागर्दी का माहौल बना दिया है। कोई गैरकानूनी काम नहीं किया जा रहा था, फिर भी हमला किया गया।”
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