वोटर लिस्ट विवाद: कैसे मतदाता सूची की अनियमितताएं आखिरकार अब सुनी जा रही हैं 

Written by sabrang india | Published on: September 6, 2025
बिहार में फर्जी मतदाताओं से लेकर महाराष्ट्र में डुप्लीकेट नामों के शामिल होने तक, वर्षों से चल रही नागरिक समाज की चेतावनियां अब एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गई हैं जब विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग पर “वोट चोरी” को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। 



लंबे समय से, चुनावी निष्पक्षता के पैरोकारों, नागरिक समाज संगठनों और आम नागरिकों ने भारत की मतदाता सूची में अनियमितताओं की शिकायत की है। मतदाता सूची से गलत तरीके से नाम हटाए जाने, डुप्लीकेट इंट्रीज और अचानक पंजीकरण में वृद्धि जैसी समस्याओं को लेकर निर्वाचन आयोग में कई शिकायतें दी गईं। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) जैसे पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाले संगठनों ने आरटीआई के माध्यम से बार-बार जवाबदेही की कमी को उजागर किया लेकिन इसके बावजूद उन्हें ECI द्वारा लगातार नजरअंदाज किया गया (Mid-Day)।

फिर भी, इन शुरुआती चेतावनियों को मामूली प्रशासनिक चूक या छोटे-मोटे तकनीकी दोष बताकर टाल दिया गया। आयोग का कहना था कि मतदाता सूची में छेड़छाड़ करना "लगभग असंभव" है (The Hindu)। 

वह नैरेटिव अब टूट चुका है। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल अब खुलेआम चुनाव आयोग पर "वोट चोरी" को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहे हैं। उनका तर्क है कि मतदाता सूची में गड़बड़ी अब एक संगठित प्रक्रिया बन चुकी है। इतनी प्रभावशाली कि वह कड़े मुकाबले वाली सीटों के नतीजे तक बदल सकती है। जो कभी विशेष मुद्दों पर केंद्रित सक्रियता (niche activism) थी, वह अब मुख्यधारा की राजनीति में आ चुकी है और भारत को एक असहज सवाल का सामना करना पड़ रहा है कि क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी ही मतदाता सूचियों पर भरोसा कर सकता है?

संवेदनशील क्षेत्र: जहां गड़बड़ियों का पता चला है 

1. मध्य प्रदेश: 2023 विधानसभा चुनाव से पहले अचानक वृद्धि

● कांग्रेस नेता उमंग सिंघार ने आरोप लगाया कि अगस्त से अक्टूबर 2023 के बीच 16.05 लाख नए मतदाताओं को जोड़ा गया यानी औसतन हर दिन 26,000 नए मतदाता जोड़े गए। (स्रोत: द हिंदू; इंडियन एक्सप्रेस)
● इसके विपरीत, 2023 के पहले सात महीनों में केवल 4.64 लाख मतदाताओं को जोड़ा गया था।

● 27 विधानसभा सीटों पर नए मतदाताओं की संख्या जीत के अंतर से अधिक थी।
● भाजपा ने 163 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई जिससे यह आरोप लगे कि फर्जी या बढ़े-चढ़े मतदाता नामावली ने चुनावी परिणामों को प्रभावित किया।
● राज्य चुनाव आयोग ने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। (स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस)

2. बिहार: 65 लाख नामों को हटाने और SIR विवाद

● 2025 में, चुनाव आयोग ने बिहार में एक विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) का आदेश दिया जिसे कानूनी रूप से संदिग्ध प्रक्रिया बताया जा रहा है।
● परिणामस्वरूप, 65 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए, जिससे विरोध प्रदर्शन और न्यायिक कार्यवाही शुरू हो गई। (स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस)
● विश्लेषण से पता चला कि 24 विधानसभा सीटों पर हटाए गए मतदाताओं की संख्या, 2024 लोकसभा चुनाव में जीत के अंतर से अधिक थी। (स्रोत: द क्विंट)
● विपक्षी नेताओं का आरोप है कि यह एक दो-चरणीय रणनीति थी: पहले फर्जी मतदाता जोड़े गए और फिर उन्हें बड़े पैमाने पर हटाकर इसे सफाई के तौर पर पेश किया गया। (स्रोत: स्क्रॉल)
● सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और उसने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि वह हटाए गए नामों और उसके कारणों को सार्वजनिक करे। (स्रोत: द हिंदू)

3. महाराष्ट्र: डुप्लिकेट EPIC नंबर और मतदाता वृद्धि में कमी

● अगस्त 2025 में, CHRI ने खुलासा किया कि पालघर जिले के नालासोपारा में एक महिला मतदाता सूची में छह बार दर्ज थी, हर बार अलग-अलग और कथित रूप से यूनिक EPIC नंबर के साथ। (स्रोत: सबरंगइंडिया)। यह खुलासा Altnews की प्रारंभिक जांच के बाद हुआ। महिला का मतदाता सूची में बार-बार होना जितना चौंकाने वाला था, उससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि इन सभी एंट्रीज के खिलाफ जिले के चुनाव अधिकारी (DEO) गोविंद बोबड़े, चुनाव पंजीयन अधिकारी (ERO) शेखर घाडगे और बूथ स्तर अधिकारी (BLO) सुश्री पल्लवी सावंत के नाम दर्ज थे और वो भी सभी जगहों पर!

● चुनाव से कुछ ही हफ्ते पहले भी मतदाता सूची में पांच एंट्रीज सक्रिय थीं।

● महाराष्ट्र के मुख्य चुनाव अधिकारी (CEO) ने इस विसंगति को स्वीकार किया और हटाने का आदेश दिया लेकिन यह तथ्य कि यह समस्या चुनावों के ठीक पहले तक बनी रही, गंभीर प्रशासनिक चूकों को दर्शाता है।

● इसके अलावा, महाराष्ट्र की पूर्व मंत्री यशोमती ठाकुर ने अपनी तेजोसा विधानसभा सीट में भारी विसंगतियों को उजागर किया। उन्होंने दिखाया कि, 

○ 2009 से 2019 के बीच मतदाता लगातार बढ़े, लगभग हर साल 5,000 नए मतदाता जोड़े गए।
○ लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में, जहां मतदाता संख्या लगभग 3.2 लाख होनी चाहिए थी, वह घटकर 2.84 लाख रह गई प्राकृतिक वृद्धि को शामिल करने के बाद भी 36,000 मतदाताओं की कमी हुई।
○ इसके छह महीने बाद, विधानसभा चुनावों के दौरान, मतदाताओं की संख्या फिर से 12,252 बढ़ गई, जिससे गड़बड़ी के शक पैदा हुए।

● ठाकुर ने आरोप लगाया कि तेजोसा से लगभग 25,000 कांग्रेस समर्थक मतदाताओं को जानबूझकर हटाया गया, जबकि भाजपा समर्थक मतदाताओं को चुन-चुनकर रखा या जोड़ा गया। उन्होंने कहा कि Excel फॉर्मेट की सूचियों की जांच में 14,000 नकली वोट पाए गए। 

● पास के अमरावती लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में उन्होंने पाया कि जहां 2009 से 2019 के बीच मतदाता सूची में 2 लाख से ज्यादा मतदाता जोड़े गए, वहीं 2019 से 2024 के बीच केवल 5,677 नए मतदाता जुड़े जिससे यह संकेत मिलता है कि लगभग दो लाख मतदाताओं को सूची से बाहर रखा गया।

● ठाकुर ने दावा किया कि यदि इन मतदाताओं को हटाया नहीं गया होता, तो कांग्रेस के उम्मीदवार बलवंत वंखाड़े की अमरावती में 20,000 वोटों की जीत का अंतर एक लाख से अधिक हो जाता। उन्होंने कहा कि यदि चुनाव आयोग इन विसंगतियों की सफाई नहीं देता है, तो वह इस मामले को अदालत में ले जाएंगी। (स्रोत: लोकमत)

4. कर्नाटक: महादेवपुरा मामला

● राहुल गांधी ने खुलासा किया कि महादेवपुरा (बेंगलुरु सेंट्रल) में एक ही पते पर 80 मतदाता दर्ज थे, जिनमें पिताजी का नाम जैसे काल्पनिक विवरण “XYZ” दिया गया था। (स्रोत: द हिंदू)
● गांधी ने कहा कि यह तथ्य तब सामने आए जब उनकी टीम ने छह महीने तक चुनाव आयोग के डेटा की गहन जांच की।
● स्पष्ट करने की बजाय, मुख्य चुनाव आयुक्त ने राहुल गांधी को चुनौती दी कि वे शपथ पत्र दाखिल करें या देश से माफी मांगें। (स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस)

5. पश्चिम बंगाल: अगले SIR के लिए गलत आधार

● 2025 में, पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने स्वीकार किया कि 2002 के SIR मतदाता सूची के कुछ हिस्से गायब या त्रुटिपूर्ण थे जिनमें पूरी विधानसभा सीटें बिना डेटा के और हजारों बूथ्स के नाम गलत थे। (स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस)
● इसके बावजूद, चुनाव आयोग ने आगामी पुनरीक्षण के लिए 2002 की सूची को संदर्भ के रूप में इस्तेमाल करने का इरादा जताया, जिससे बिहार जैसा संकट दोहराए जाने का डर बढ़ गया।
● विपक्षी नेताओं ने इस प्रक्रिया की कड़ी आलोचना की तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने इसे “वैज्ञानिक अदृश्य धांधली” कहा, जबकि भाकपा (मार्क्सवादी) [CPI-M] ने इसे “पक्षपातपूर्ण हेरफेर” करार दिया।

6. जमीनी हकीकत: बिहार का प्रनपट्टी गांव

● पूर्णिया जिले के प्रनपट्टी गांव में ग्रामीणों ने पाया कि मतदाता सूची में मुस्लिम नाम जोड़ दिए गए थे जबकि गांव में कोई मुस्लिम परिवार रहता ही नहीं है।
● SIR के दौरान इन नामों को हटा दिया गया; एक मतदान केंद्र पर 45% से अधिक मतदाताओं को सूची से हटा दिया गया। (स्रोत: स्क्रॉल)
● अब स्थानीय लोग सवाल उठा रहे हैं कि इन “फर्जी मतदाताओं” को हटाने से पहले कितने चुनावों को इससे प्रभावित किया गया होगा।

ये अनियमितताएं क्यों मायने रखती हैं

● जीत का अंतर बनाम हेरफेर: हाल के चुनावों में जीत के अंतर की तुलना में कई बार नामों के हटाने और जोड़ने की संख्या कहीं अधिक रही है। इतनी ज्यादा रही है कि चुनावी नतीजे बदल सकते हैं। (स्रोत: द क्विंट)

● पारदर्शिता की कमी: चुनाव आयोग ज्यादातर मतदाता सूचियां PDF इमेज के रूप में जारी करता है, जिससे स्वतंत्र सत्यापन लगभग असंभव हो जाता है। नागरिक समाज ने मशीन-रीडेबल(machine-readable) फॉर्मेट की मांग की है। (स्रोत: द हिंदू)

● कानूनी अस्पष्टता:

○ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 32 के तहत, यदि कोई अधिकारी अपनी चुनावी ड्यूटी में लापरवाही बरतता है, तो उसके खिलाफ सजा का प्रावधान है लेकिन केवल तभी, जब चुनाव आयोग स्वयं शिकायत दर्ज कराए। (स्रोत: मिड-डे)

○ इन गंभीर अनियमितताओं के बावजूद, गलत करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के बहुत कम प्रमाण सामने आए हैं।

● संस्थागत विश्वसनीयता: चुनाव आयोग की टकरावपूर्ण भूमिका - विशेष रूप से जब वह राजनीतिक नेताओं से शपथ-पत्र की मांग करता है - ने उसकी निष्पक्षता और तटस्थता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। (स्रोत: द हिंदू) 

बदलाव का मोड़: नागरिकों से लेकर राजनीतिक दलों तक

कई वर्षों तक इन समस्याओं को नागरिक समाज -जैसे CHRI, पत्रकारों और RTI कार्यकर्ता वेंकटेश नायक - द्वारा लगातार उठाया गया। लेकिन इन खुलासों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया गया या महज "क्लेरिकल एरर" (clerical errors) कहकर खारिज कर दिया गया। (स्रोत: मिड-डे)

बदलाव तब आया जब:

● मध्य प्रदेश के उमंग सिंघार, महाराष्ट्र की यशोमती ठाकुर, सांसद राहुल गांधी और अन्य राष्ट्रीय नेताओं ने चुनाव आयोग पर "वोट की चोरी" को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। (स्रोत: द हिंदू)
● ANI के अनुसार, गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष अमित चावड़ा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और दावा किया कि उनके शोध में पता चला है कि गुजरात के कुल मतदाताओं में लगभग 12.5%, यानी करीब 62 लाख मतदाता फर्जी हैं।
● भारी संख्या में बदलाव - मध्य प्रदेश में 16 लाख नए मतदाता जोड़ना, बिहार में 65 लाख मतदाता हटाना -इसे केवल सामान्य पुनरीक्षण के रूप में खारिज करना नामुमकिन बना देते हैं।
● बिहार मामले में सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश ने नागरिकों की पुरानी चिंताओं को वैधता दी। (स्रोत: द हिंदू)
● नागरिकों की चेतावनियों और राजनीतिक समर्थन के मेल ने भारत को इस हकीकत का सामना करना मजबूर कर दिया है कि उसकी चुनावी मतदाता सूचियां -जिन्हें कभी अपरिवर्तनीय माना जाता था -अब खुद संदिग्ध हो सकती हैं। 

आगे का रास्ता

● डेटा की पारदर्शिता: मतदाता सूचियां मशीन-रीडेबल फॉर्मेट (जैसे CSV) में प्रकाशित की जानी चाहिए, ताकि उनकी स्वतंत्र जांच और ऑडिट ट्रेल संभव हो सके।
● जवाबदेही: बूथ स्तर के अधिकारी (BLO) और निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और भारतीय न्याय संहिता के तहत अपनी ड्यूटी में चूक के लिए कानूनी परिणाम भुगतने चाहिए।
● स्वतंत्र निगरानी: बड़े पैमाने पर पुनरीक्षण जैसे SIR पर संसद या न्यायिक स्तर पर जांच जरूरी हो सकती है, ताकि आयोग की विश्वसनीयता बहाल हो सके।
● मतदाता प्रणाली का विकेंद्रीकरण: चुनाव आयोग केवल लोकसभा और राष्ट्रपति चुनाव कराए; राज्य निर्वाचन आयोग (State ECs) विधानसभा और स्थानीय चुनावों के प्रभारी हों। इन्हें उपयुक्त रूप से सशक्त बनाया जाना चाहिए।
● तत्काल फोरेंसिक ऑडिट: ईवीएम (EVM), वीवीपैट (VVPAT) और मतदाता सूचियों की गहन जांच की जाए।
● पब्लिक रिलीज: मशीन-रीडेबल मतदाता सूचियां, फॉर्म 17A/17C, और सीसीटीवी फुटेज जनता के लिए उपलब्ध कराए जाएं।
● नियम 93 के प्रतिबंधात्मक संशोधनों को वापस लें; पारदर्शिता सुरक्षा उपायों को बहाल करें।
● संपूर्ण मतदान प्रक्रिया की वैधता सुनिश्चित करने के लिए विधायी गारंटी प्रदान की जाए।

निष्कर्ष

भारत स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र मानता है। लेकिन ऊपर दी गई हाल में किए गए रिसर्च दिखाते हैं कि चुनावों की पवित्रता मतदाता सूची की सत्यनिष्ठा पर निर्भर करती है। जब नागरिकों की चेतावनियां अंततः राजनीतिक आवाजों के जरिए बड़े पैमाने पर उठी हैं, तो अब इन सवालों से इनकार करने का समय खत्म हो चुका है। चुनाव आयोग के सामने स्पष्ट विकल्प है: पारदर्शिता और जवाबदेही को अपनाएं - या ऐसे लोकतंत्र को संभाले जहां खुद वोट पर विश्वास नहीं किया जाता।

Related

बिहार में 1.88 लाख दो बार पंजीकृत संदिग्ध मतदाता, नाम हटाने के असामान्य पैटर्न से संदेह बढ़ा

चुराया गया मताधिकार: चुनाव आयोग जवाबदेही से नहीं बच सकता

बिहार SIR के दौरान दर्ज 89 लाख अनियमितताओं की शिकायतें निर्वाचन आयोग ने खारिज कर दीं: कांग्रेस

बाकी ख़बरें