पश्चिम बंगाल SIR: बीएलओ का शव पेड़ से लटका मिला, ममता बनर्जी ने ECI की आलोचना की

Written by sabrang india | Published on: November 21, 2025
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जलपाईगुड़ी में एक बीएलओ की मौत पर दुख व्यक्त करते हुए आरोप लगाया कि मतदाता सूची के जारी SIR ने जमीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मियों पर ‘अमानवीय’ दबाव डाला है।


साभार : एएनआई (फाइल फोटो)

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार 19 नवंबर को जलपाईगुड़ी के माल ब्लॉक में एक बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) की मृत्यु पर शोक जताते हुए आरोप लगाया कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया ने जमीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मियों पर ‘अमानवीय’ दबाव बना दिया है। उन्होंने आगे कहा कि एसआईआर की प्रक्रिया के चलते अब तक 28 लोगों की मौत हो चुकी है।

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री ने कहा कि मृतक शांति मुनी एक्का आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थीं, जो बीएलओ की जिम्मेदारी भी निभा रही थीं। उनका दावा है कि निर्वाचन आयोग द्वारा कराए जा रहे पुनरीक्षण कार्य के ‘असहनीय दबाव’ के चलते उन्होंने आत्महत्या कर ली।

सोशल मीडिया मंच एक्स पर साझा किए गए एक बयान में मुख्यमंत्री बनर्जी ने चुनाव आयोग की आलोचना करते हुए कहा कि एसआईआर की प्रक्रिया 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले ‘अनियोजित’ है और इसने कर्मचारियों पर ‘अत्यधिक काम का बोझ’ डाल दिया है।

उन्होंने एक्स पर लिखा, “मुझे गहरा सदमा और दुख है। आज एक बार फिर हमने जलपाईगुड़ी के माल में एक बूथ लेवल अधिकारी को खो दिया - एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, जिन्होंने चल रहे एसआईआर कार्य के असहनीय दबाव में अपनी जान दे दी।”

मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि एसआईआर शुरू होने के बाद से अब तक 28 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, कुछ डर और अनिश्चितता के कारण, तो कुछ तनाव और बढ़ते काम के बोझ के कारण।

उन्होंने कहा, “कथित भारतीय चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई अनियोजित प्रक्रिया और अत्यधिक कार्यभार के कारण इतनी कीमती जानें जा रही हैं। जिस काम में पहले तीन साल लगते थे, उसे अब चुनाव से ठीक पहले महज़ दो महीनों में पूरा करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है - सिर्फ राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए। इसका नतीजा यह है कि बीएलओ पर अमानवीय बोझ पड़ रहा है।”

द वायर ने लिखा, बनर्जी ने चुनाव आयोग से “विवेकपूर्ण निर्णय लेने” और इस अभियान को तुरंत रोकने की अपील की। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि एसआईआर कार्य की मौजूदा रफ्तार इसी तरह बनी रही तो और भी जानें जोखिम में पड़ सकती हैं।

उन्होंने कहा, ‘मैं चुनाव आयोग से आग्रह करती हूं कि वह विवेक से काम ले और और जानें जाने से पहले इस अनियोजित अभियान को तुरंत रोक दे।’

ज्ञात हो कि टीएमसी नेता लगातार चुनाव आयोग पर समय सीमा बढ़ाने और चुनावों से पहले बीएलओ पर अत्यधिक क्षेत्रीय सत्यापन का बोझ डालने का आरोप लगाते रहे हैं। सत्तारूढ़ दल का कहना है कि लंबे कार्य के समय, लगातार यात्राओं की आवश्यकता और समय सीमा पूरा करने के दबाव ने कई कर्मचारियों को बेहद परेशान कर दिया है।

फिलहाल मुख्यमंत्री के आरोपों पर चुनाव आयोग की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

हालांकि, विपक्षी दलों ने टीएमसी के आरोपों को नकारते हुए कहा है कि सरकार अपनी खराब प्रशासनिक तैयारियों की जिम्मेदारी क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं पर डालकर बचने की कोशिश कर रही है।

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, मृतक शांति मुनि के पति, सुखु एक्का ने दावा किया कि उनकी पत्नी बहुत ज्यादा काम के बोझ तले दबी थीं और बंगाल में चल रहे मतदाता सूची के एसआईआर के लिए घर-घर जाकर लोगों से मिलने का तनाव झेल नहीं पा रही थीं।

एक्का ने मीडिया को बताया, ‘जब से एसआईआर की प्रक्रिया शुरू हुई है, शांति को हर सुबह 7 बजे निकलना पड़ता था और वह दोपहर के समय ही वापस आ पाती थीं।’

स्थानीय मीडिया के अनुसार, 46 वर्षीय शांति मुनि एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना में कार्यरत थीं और न तो बंगाली बोल सकती थीं और न ही पढ़ और लिख सकती थीं, जिसके चलते उनके लिए बीएलओ के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना मुश्किल हो गया था।

उन्हें कोलकाता से करीब 600 किलोमीटर उत्तर में रंगामती ग्राम पंचायत के 101वें बूथ पर गणना फॉर्म बांटने की जिम्मेदारी दी गई थी।

एक्का ने बताया कि शांति रोज सुबह जल्दी उठकर घर के सभी लोगों के लिए खाना बनाती थीं और फिर काम पर निकल जाती थीं। लेकिन आज जब वे जागे, तो न खाना बना हुआ था और न ही शांति घर में दिख रही थीं। बाहर जाकर उन्हें तलाशने पर उन्होंने एक पेड़ से लटका हुआ उनका शव देखा।

मालूम हो कि एक्का के परिवार में न तो दंपति और न ही उनका कॉलेज जाने वाला बेटा डिसूजा कोई भी बंगाली नहीं पढ़ सकता।

परिवार का कहना है कि कुछ दिन पहले शांति मुनि ने मालबाजार के संयुक्त प्रखंड विकास अधिकारी से अनुरोध किया था कि उन्हें बीएलओ की जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए, लेकिन उन्हें पद पर बने रहने के लिए कहा गया।

इससे पहले, पूर्वी बर्दवान के कालना में बीएलओ नमिता हांसदा की 8 नवंबर की रात ब्रेन स्ट्रोक से मौत हो गई थी। उनके परिवार और पड़ोसियों का कहना है कि मतदाता गणना अभियान के दौरान लगातार काम करने की वजह से उनकी स्थिति बिगड़ी और अंततः उनकी मृत्यु हो गई।

केरल और राजस्थान में भी ऐसे कई मामले सामने आए

उल्लेखनीय है कि हाल ही में केरल और राजस्थान में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण से संबंधित कार्य के अत्यधिक दबाव के चलते कथित तौर पर बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के रूप में कार्यरत दो लोगों ने आत्महत्या कर ली थी।

इससे पहले बिहार में हुए एसआईआर के दौरान आरा के एक सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक और बीएलओ सुपरवाइजर राजेंद्र प्रसाद की 27 अगस्त को कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई थी।

परिजनों का कहना था कि सेवानिवृत्ति में केवल चार महीने बचे थे, लेकिन एसआईआर प्रक्रिया के चलते वे लगातार बढ़ते काम और अधिकारियों के दबाव से परेशान थे। इसी तनाव और दबाव ने अंततः उनकी जान ले ली।

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