वकीलों का विरोध: वेदांता के सिजिमाली बॉक्साइट खनन परियोजना के लिए अवैध भूमि अधिग्रहण के खिलाफ प्रदर्शन 

Written by sabrang india | Published on: December 20, 2025
देशभर के 125 से ज्यादा वकीलों, कानूनी पेशेवरों (फैकल्टी) और कानून के छात्रों ने ओडिशा के राज्यपाल से तत्काल हस्तक्षेप की अपील की है। उनका कहना है कि ऐसा करके विरोध कर रहे ग्रामीणों पर जारी सरकारी दमन को रोका जा सके और सिजिमाली में बॉक्साइट खनन के लिए वेदांता को सामुदायिक रूप से प्रबंधित वन भूमि सौंपने के उद्देश्य से की जा रही सभी अवैध प्रशासनिक कार्रवाइयों को भी रोका जा सके। 


30 अगस्त 2024 को कांटामल गांव में हुई पहली ग्राम सभा की तस्वीर

देशभर के 125 से अधिक वकीलों, कानूनी पेशेवरों (फैकल्टी) और कानून के छात्रों ने वेदांता लिमिटेड के प्रस्तावित सिजिमाली बॉक्साइट खनन परियोजना के विरोध में देशव्यापी अभियान शुरू किया है। यह विरोध ओडिशा के रायगड़ा और कालाहांडी जिलों में वन भूमि और पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आने वाली भूमि के कथित अवैध अधिग्रहण, साथ ही परियोजना का विरोध कर रहे आदिवासी ग्रामीणों के लगातार अपराधीकरण और डराने-धमकाने के खिलाफ किया जा रहा है। 

जनधारा की रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा के राज्यपाल, पुलिस महानिदेशक और रायगड़ा और कालाहांडी के जिला कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को संबोधित एक विस्तृत याचिका में, वकीलों ने पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण को रोकने, ग्रामीणों के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेने और सिजिमाली में वेदांता के खनन प्रोजेक्ट को सुविधाजनक बनाने के लिए किए जा रहे "औपनिवेशिक-युग के दमन" को रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।

वकीलों का यह हस्तक्षेप सिजिमाली क्षेत्र में बढ़ती पुलिस कार्रवाई की पृष्ठभूमि में सामने आया है। वेदांता की खनन योजनाओं का विरोध कर रहे ग्रामीणों का आरोप है कि वे पिछले लगभग दो वर्षों से भय के माहौल में जीवन यापन कर रहे हैं। 14 दिसंबर को जारी एक प्रेस नोट के मुताबिक, ग्रामीणों को बार-बार गिरफ्तारी, पुनः गिरफ्तारी, हिरासत और धमकियों का सामना करना पड़ा है। याचिका में कहा गया है कि इससे पूरे क्षेत्र में आतंक का वातावरण बन गया है और कानून के शासन की स्थिति कमजोर हुई है। 

बताई गई सबसे गंभीर घटनाओं में से एक 7 दिसंबर 2025 को सामने आई, जब कथित तौर पर आम नागरिकों के वेश में आए लोगों ने कासिपुर ब्लॉक के सुंगेर चौक पर दिनदहाड़े गांव के नेताओं के अपहरण का प्रयास किया। प्रभावित गांवों के नौ से अधिक युवा नेता वर्तमान में रायगड़ा और भवानीपटना की जेलों में बंद हैं, जबकि कई अन्य लोगों को कथित रूप से नियमित तौर पर उठाया जा रहा है या उन्हें गिरफ्तारी की धमकियां दी जा रही हैं। 

वकीलों ने कहा कि गांवों में सशस्त्र पुलिस की मौजूदगी ने ऐसा भय का माहौल बना दिया है कि लोग अस्पताल जाने या साप्ताहिक बाजारों में पहुंचने से भी डरने लगे हैं। उन्होंने बताया कि इससे क्षेत्र की दैनिक आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप हो गई हैं। याचिका में कहा गया है कि जब ग्रामीण खनन के लिए अपनी भूमि के कथित अवैध उपयोग पर निर्णय लेने के लिए इकट्ठा होते हैं, या आवश्यक पर्यावरण एवं वन मंजूरियों में निर्धारित नियमों की अनदेखी का विरोध करते हैं, तो उन्हें पुलिस की अत्यधिक बर्बरता का सामना करना पड़ता है। 

वकीलों ने राज्यपाल को सौंपी गई अपनी याचिका में तर्क दिया है कि खनन पट्टा स्वयं ही गैरकानूनी है, क्योंकि इसे पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में ग्राम सभाओं की स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति के बिना प्रदान किया गया। याचिका के अनुसार, परियोजना में शामिल लगभग आधी भूमि वन क्षेत्र और समुदाय के नियंत्रण वाली भूमि है, जिसे वन संरक्षण अधिनियम, 1980; पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA); वन अधिकार अधिनियम, 2006; तथा उड़ीसा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण विनियम, 1956 के तहत संरक्षण प्राप्त है। इन कानूनों के अनुसार, किसी भी प्रकार की भूमि के हस्तांतरण से पहले स्थानीय निवासियों की स्वतंत्र और सूचित सहमति अनिवार्य है। 

प्रेस नोट और वकीलों की याचिका, दोनों में यह प्रमुख आरोप लगाया गया है कि वेदांता ने प्रशासन के साथ मिलीभगत कर नकली ग्राम सभाओं के माध्यम से कथित “सहमति” तैयार की। वकीलों का कहना है कि 8 दिसंबर 2023 को रायगड़ा जिले के काशीपुर ब्लॉक स्थित सुंगेर ग्राम पंचायत तथा कालाहांडी जिले के थुआमुल रामपुर ब्लॉक की तलामपदर ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले गांवों में सशस्त्र पुलिस और कंपनी के कर्मचारियों की मौजूदगी में कम से कम दस ऐसी ग्राम सभाएं आयोजित की गईं, जिनका उद्देश्य ग्रामीणों की कथित सहमति प्राप्त करना था। 

याचिका में कहा गया है कि 8 फरवरी 2024 को कालाहांडी जिला प्रशासन से प्राप्त आरटीआई जवाबों से यह सामने आया कि ग्रामीणों को सहमति संबंधी प्रस्तावों पर अंगूठे के निशान लगाने के लिए मजबूर किया गया। इन तथाकथित ग्राम सभाओं में कंपनी के अधिकारी, सशस्त्र पुलिस और स्थानीय दबंगों की मौजूदगी बताई गई है। याचिका के अनुसार, सभी दस ग्राम सभाओं को एक ही तारीख और एक ही समय पर दसों गांवों में आयोजित दिखाया गया, जिससे ये सभाएं जबरन कराई गई और ‘काल्पनिक’ साबित होती हैं। इसके परिणामस्वरूप इन सभाओं में पारित प्रस्तावों को अमान्य बताया गया है। 

याचिका में राज्यपाल का ध्यान इस ओर भी दिलाया गया है कि जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MoTA) द्वारा नकली ग्राम सभाओं के आरोपों की जांच के निर्देश दिए जाने के बावजूद अब तक किसी प्रकार की जांच शुरू नहीं की गई है।

वकीलों ने जिला प्रशासनों पर ओडिशा औद्योगिक बुनियादी ढांचा विकास निगम (IDCO) के लिए लैंड बैंक तैयार करने का आरोप भी लगाया है। इसके तहत संरक्षित वनों को डी-रिज़र्व किया गया तथा गोचर और अन्य सामुदायिक भूमि को “बंजर भूमि” घोषित कर वेदांता सहित अन्य कॉर्पोरेट परियोजनाओं के लिए उपलब्ध कराया गया। याचिका के अनुसार, कंधमाल ज़िले के तिजमाली गांव में प्रशासन ने कथित तौर पर प्रभावित 30 परिवारों को बिना सूचना दिए 70 एकड़ से अधिक भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। याचिका में तर्क दिया गया है कि यह अधिग्रहण राज्यपाल द्वारा जारी पांचवीं अनुसूची के नियमों का उल्लंघन है, जिन्हें आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को रोकने या उस पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से बनाया गया है।

याचिका में ग्राम सभाओं से पूर्व तैयार की गई एक अत्यंत अपूर्ण पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट की ओर भी ध्यान दिलाया गया है। आरोप है कि इस रिपोर्ट में क्षेत्र की बारहमासी धाराओं और जल स्रोतों की संख्या को कम करके दर्शाया गया, जिस पर सार्वजनिक सुनवाई के दौरान आपत्तियां दर्ज कराई गई थीं।

कथित फर्जी ग्राम सभाओं के विपरीत, स्थानीय समुदायों ने सितंबर 2024 में दस विशेष ग्राम सभाएं आयोजित कीं, जिनमें सर्वसम्मति से वेदांता के खनन प्रस्ताव को खारिज करने का प्रस्ताव पारित किया गया। इन प्रस्तावों में भूमि, जल स्रोतों, जंगलों और आजीविका पर पड़ने वाले संभावित खतरों का हवाला दिया गया। जाली हस्ताक्षरों और फर्जी ग्राम सभाओं को लेकर स्थानीय पुलिस थानों में शिकायतें दर्ज कराई गईं और स्टेशन डायरी में प्रविष्टियां भी की गईं, लेकिन कोई प्राथमिकी (FIR) दर्ज नहीं की गई। इसके बजाय, याचिका में आरोप लगाया गया है कि पुलिस ने गंभीर दमनात्मक कार्रवाई की।

ये सभी तथ्य ओडिशा उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक रिट याचिका [WP(C) No. 3729/2025] में प्रस्तुत किए गए थे। 5 मई 2025 को दिए गए अपने आदेश में अदालत ने वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अधिकारों की प्रयोज्यता को दोहराया और केंद्र सरकार को इस पर समुचित ध्यान देने का निर्देश दिया। वकीलों के अनुसार, इसके बाद केंद्र सरकार को सौंपे गए अभ्यावेदनों पर अब तक कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई है। 

याचिका के अनुसार, वर्ष 2023 से 2025 के बीच भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया का विरोध कर रहे गांवों में पुलिस और कंपनी के कर्मचारियों की लगातार मौजूदगी बनी हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि ये भूमि और जंगल सामुदायिक संसाधन हैं, जिनकी वे पीढ़ियों से खेती और संरक्षण करते आ रहे हैं। विरोध प्रदर्शनों के जवाब में, याचिका में स्थानीय पुलिस पर डराने-धमकाने, उत्पीड़न, हिरासत और गिरफ्तारियों के एक नियमित पैटर्न का आरोप लगाया गया है।

जून 2025 से खनन परियोजना का विरोध कर रहे स्थानीय संगठन मा माटी माली सुरक्षा मंच के सदस्यों के खिलाफ BNSS की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा और शांति भंग से संबंधित कार्रवाई लागू की गई है। वकीलों के अनुसार, संगठन के नौ से अधिक प्रमुख कार्यकर्ता वर्तमान में हिरासत में हैं, जिन्हें वे झूठे आपराधिक मामलों में फंसाया जाना बताते हैं। वहीं अन्य सदस्यों को लगातार धमकियों और गिरफ्तारी का सामना करना पड़ रहा है। 

याचिका में आगे आरोप लगाया गया है कि वेदांता के कहने पर पुलिस ने ग्रामीणों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों पर मामले वापस लेने के बदले “कंपनी के साथ समझौता” करने का दबाव बनाया। हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं ने हिरासत के दौरान यातना, जातिसूचक और नस्लवादी अपमान, तथा न्यायिक मजिस्ट्रेटों के समक्ष स्वतंत्र रूप से बयान देने से रोकने के लिए दी गई धमकियों की शिकायत की है। 

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि पुलिस ने संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यावरण दिवस, संयुक्त राष्ट्र विश्व स्वदेशी जन दिवस और बिरसा मुंडा जयंती जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों को आयोजित होने से रोकने का प्रयास किया। पुलिस पर आरोप है कि उसने बिना किसी ठोस सबूत के यह दावा किया कि ग्रामीण वेदांता का समर्थन करने वालों को डराने के उद्देश्य से “हथियारों” के साथ इकट्ठा हो रहे थे। 

याचिकाकर्ताओं ने राज्यपाल से आग्रह किया है कि समुदाय द्वारा प्रबंधित वन भूमि को वेदांता को सौंपने के उद्देश्य से की जा रही सभी कार्रवाइयों पर तत्काल रोक लगाई जाए। याचिका में कहा गया है, “आज़ाद भारत में नागरिकों पर औपनिवेशिक दौर जैसा दमन थोपने और निष्पक्ष व कानूनसम्मत प्रशासन को जानबूझकर कमजोर करने का कोई औचित्य नहीं है।” 

संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत गवर्नर को प्रदान की गई विशेष शक्तियों का हवाला देते हुए, वकीलों ने अनुसूचित क्षेत्रों में शांति और सुशासन बहाल करने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इन संवैधानिक जिम्मेदारियों को कॉर्पोरेट हितों के पक्ष में प्रभावित नहीं होने दिया जा सकता। 

मुख्य मांगों में शामिल हैं: वेदांता को दी गई खनन लीज़ की समीक्षा करना, ग्रामीणों के खिलाफ दर्ज सभी FIR वापस लेना, अवैध गिरफ्तारी और यातना के लिए मुआवज़े के साथ हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करना, तथा तब तक परियोजना से जुड़े सभी कार्यों को पूरी तरह रोकना जब तक ग्राम सभाएं बिना किसी डर के माहौल में स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पातीं। 

वकीलों ने पुलिस और प्रशासनिक अत्याचारों की स्वतंत्र जांच कराने, कंपनी के कर्मचारियों के गांवों में प्रवेश पर रोक लगाने, तथा क्षेत्र में किसी भी पुलिस तैनाती के लिए ग्राम सभा की पूर्व अनुमति अनिवार्य करने की भी मांग की है। 

से-जैसे जमीनी स्तर पर विरोध जारी है, सिजिमाली संघर्ष ओडिशा में आदिवासी अधिकारों की रक्षा और कॉर्पोरेट खनन हितों की सेवा में राज्य शक्ति के इस्तेमाल की सीमाओं को परखने वाला एक महत्वपूर्ण परीक्षण मामला बनकर उभरा है। 

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