कोर्ट ने कहा कि शमसुल अली को एसपी (बॉर्डर) के समक्ष पेश करने का प्रयास किया गया था। वर्तमान में निर्वासन (डिपोर्टेशन) का कोई खतरा नहीं है, लेकिन यदि राज्य आगे कोई कार्रवाई करता है तो याचिकाकर्ता को दोबारा कोर्ट का रुख करने की छूट दी गई है।

अब तक जो पता चला है: 16 जुलाई, 2025
गौहाटी हाईकोर्ट ने 16 जुलाई, 2025 को बक्कर अली द्वारा दायर उस रिट याचिका को औपचारिक रूप से बंद कर दिया, जो उनके पिता शमसुल अली की गुमशुदगी और संभावित निर्वासन को लेकर दाखिल की गई थी। कोर्ट को बताया गया कि शमसुल अली को बीजनी में अचेत अवस्था में पाया गया, उन्हें दोबारा गिरफ्तार नहीं किया गया है और उन्हें पुलिस अधिकारियों के समक्ष – हालांकि अनौपचारिक रूप से – पेश किया जा चुका है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि 10 जुलाई 2025 को पहले दिए गए न्यायालयीय निर्देशों के पालन में शमसुल अली को चिरांग जिले के एसपी (बॉर्डर) के कार्यालय ले जाया गया था। हालांकि, उस समय एसपी मौजूद नहीं थे, इसलिए उनकी पेशी औपचारिक रूप से दर्ज नहीं की जा सकी। वकील ने यह भी बताया कि तब से शमसुल अली का इलाज जारी है और वे हिरासत में नहीं हैं।
इन दलीलों को दर्ज करते हुए न्यायमूर्ति कल्याण राय सुराणा और न्यायमूर्ति सुस्मिता फुकन खाउंड की खंडपीठ ने कहा कि शमसुल अली के संबंध में अब निर्वासन की कोई तत्काल आशंका नहीं बची है, क्योंकि उनकी बरामदगी के बाद राज्य सरकार ने न तो उन्हें दोबारा हिरासत में लिया है और न ही उनके निष्कासन के संबंध में कोई नई कार्रवाई की है।
याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता मृणमय दत्ता ने न्यायालय को बताया कि 10 जुलाई 2025 को, अदालत के पूर्व निर्देशों के अनुपालन में, शमसुल अली को चिरांग के पुलिस अधीक्षक (बॉर्डर) के समक्ष पेश किया गया था। हालांकि, उस समय एसपी कार्यालय में मौजूद नहीं थे, जिसके चलते उनकी उपस्थिति से संबंधित कोई औपचारिक दस्तावेज़ या प्रमाणन नहीं हो सका।
वकील ने आगे कहा कि उस तारीख से लेकर अब तक शमसुल अली का इलाज चल रहा है, और राज्य द्वारा न तो उन्हें फिर से हिरासत में लेने के लिए कोई कदम उठाया गया है और न ही उनके निर्वासन (डिपोर्टेशन) की कोई कार्यवाही शुरू की गई है।
न्यायालय की टिप्पणियां और आदेश
पीठ ने दर्ज किया कि "शमसुल अली को बीजनी में बेहोशी की हालत में पाया गया था। यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता के पिता को अधिकारियों के समक्ष पेश किया गया था लेकिन उनकी उपस्थिति दर्ज नहीं की गई क्योंकि चिरांग के एसपी (बॉर्डर) वहां मौजूद नहीं थे। इसके बाद से, याचिकाकर्ता के पिता का इलाज चल रहा है।"
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि शमसुल अली के ठीक हो जाने, आगे कोई हिरासत की कार्रवाई न होने और उन्हें सक्षम प्राधिकारी के समक्ष पेश किए जाने के मद्देनजर अब निर्वासन की आशंका नहीं रही। आदेश में कहा गया, "यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता के पिता मिल गए हैं और उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया है, उनके निर्वासन की आशंका भी अब समाप्त हो जाती है।"
इस प्रकार, याचिका को बंद कर दिया गया। हालांकि, न्यायालय ने याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता दी कि यदि भविष्य में राज्य की ओर से कोई समस्या या कार्रवाई होती है, तो वह फिर से न्यायालय में आवेदन कर सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
हैबियस कॉर्पस याचिका 25 मई 2025 की रात को चिरांग जिले के चाटीबोरगांव गांव में शमसुल अली के लापता होने के बाद दायर की गई थी। परिवार का दावा था कि उन्हें बिना गिरफ्तारी रसीद, वारंट या मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए बिना स्थानीय पुलिस ने उठा लिया था।
शमसुल अली को पहले एक विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित किया गया था, लेकिन 2019 में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के स्वतः संज्ञान (suo moto) COVID-काल के आदेश (WP(C) No. 1 of 2020) के तहत जमानत पर रिहा कर दिया गया क्योंकि वह तीन वर्ष से ज्यादा समय तक हिरासत में रह चुके थे। वह नियमित रूप से स्थानीय थाने में हर सप्ताह रिपोर्टिंग की शर्त का पालन कर रहे थे। उनकी अंतिम दर्ज उपस्थिति 21 मई 2025 को थी।
पहली सुनवाई 6 जून को हुई जिसमें न्यायालय ने नोटिस जारी किया और राज्य सरकार को याचिकाकर्ता के पिता की वर्तमान स्थिति की जानकारी देने का निर्देश दिया। 10 जून की सुनवाई में, विदेशी न्यायाधिकरण (एफ़टी) के वकील ने अदालत को बताया कि शमसुल अली को 26 मई को बीएसएफ सेक्टर मुख्यालय, पनबारी को सौंप दिया गया था। हालांकि, अदालत ने इस पर चिंता जताई कि उसके कथित स्थानांतरण से संबंधित कोई औपचारिक ज्ञापन या उस पोस्ट का विवरण उपलब्ध नहीं था जहां से उसे भेजा गया था। अदालत ने चिरांग के पुलिस अधीक्षक (सीमा) को निर्देश दिया कि वह सभी विवरणों की पुष्टि करें।
20 जून की सुनवाई में याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि शमसुल अली को बीजनी में बेहोशी की हालत में पाया गया और स्थानीय निवासियों द्वारा उन्हें घर लाया गया। अदालत ने इस जानकारी को स्वीकार करते हुए निर्देश दिया कि शमसुल अली को चिरांग के पुलिस अधीक्षक (सीमा) के समक्ष पेश किया जाए और यह भी स्पष्ट किया कि यदि उन्हें निष्कासित (deport) करने का कोई विचार किया जा रहा था, तो विधिसम्मत प्रक्रिया (due process) का पालन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।
कानूनी महत्व और निष्कर्ष
वर्तमान याचिका उन कई बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिकाओं में से एक है जो उन व्यक्तियों की फिर से हिरासत और गायब होने की घटनाओं के बाद दायर की गई हैं जिन्हें पहले लंबे समय से COVID-काल की जमानत पर रिहा किया गया था। इन मामलों ने कुछ महत्वपूर्ण कानूनी चिंताएं उठाई हैं, जैसे कि बिना जमानत रद्द किए दोबारा गिरफ्तारी, गिरफ्तारी से संबंधित दस्तावेजों की अनुपस्थिति और न्यायिक निगरानी के बिना संभावित निष्कासन (deportation) की कार्रवाइयां।
यह दर्ज करते हुए कहा गया कि शमसुल अली अब हिरासत में नहीं हैं, उन्हें उपयुक्त प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किया जा चुका है और फिलहाल उनका इलाज चल रहा है। न्यायालय ने कहा कि याचिका का आधार अब नहीं रह गया। हालांकि, याचिकाकर्ता को फिर से न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता देकर, न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया है कि भविष्य में किसी भी प्रकार की गैरकानूनी कार्रवाई की स्थिति में न्यायिक निगरानी बनी रहे।
अब यह याचिका औपचारिक रूप से समाप्त मानी जाती है।
पृष्ठभूमि और कानूनी कार्यवाही से जुड़ी विस्तृत जानकारी यहां पढ़ी जा सकती है।
संबंधित याचिकाओं पर अपडेट: राज्य सरकार ने अब्दुल शेख और मजीबुर रहमान मामलों में हलफनामा दायर किया है। अगली सुनवाई 23 जुलाई को निर्धारित है।
16 जुलाई को हुई सुनवाई में गौहाटी उच्च न्यायालय ने अब्दुल शेख (सानिदुल शेख बनाम भारत संघ) और मजीबुर रहमान (रेजिया खातून बनाम भारत संघ) के मामलों में कार्यवाही जारी रखी। दोनों लोगों को मई 2025 में दोबारा हिरासत में लिया गया, जबकि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा COVID काल के दौरान दिए गए निर्देशों के तहत लंबे समय से जमानत पर रिहा थे। दोनों मामलों में संबंधित व्यक्तियों को पहले विदेशी घोषित किया गया था, वे दो साल से ज्यादा समय तक हिरासत में रह चुके थे और उन्हें क्रमशः 2021 और 2022 में न्यायालय की निगरानी में जमानत पर रिहा किया गया था। उन्होंने अपनी रिहाई की शर्तों का पालन करते हुए नियमित रूप से स्थानीय पुलिस थाने में उपस्थिति दर्ज कराई थी।
16 जुलाई को राज्य सरकार ने याचिकाओं के विरोध में अपने हलफ़नामे दाखिल किए, जिन्हें उसी सुबह याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं को दे दिया गया। इन हलफनामों में राज्य द्वारा पहले से जारी जमानत आदेशों को रद्द किए बिना दोबारा हिरासत में लेने के कानूनी आधार को स्पष्ट किए जाने की संभावना है। याचिकाकर्ता इन नए हलफ़नामों पर अपनी प्रतिक्रिया दाखिल कर सकते हैं। इन मामलों की अगली सुनवाई 23 जुलाई 2025 को सूचीबद्ध की गई है।
यह उल्लेख करना आवश्यक है कि दोनों मामलों की पिछली सुनवाई के दिन न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह अपना विस्तृत हलफनामा दाखिल करे, जिसमें उसका कानूनी पक्ष स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाए। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि यह हलफनामा अगली सुनवाई से कम से कम छह दिन पहले याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराया जाना चाहिए, ताकि उन्हें जवाब देने का पर्याप्त समय मिल सके। हालांकि, वर्तमान कार्यवाही से यह स्पष्ट होता है कि इस निर्देश पर अमल नहीं हुआ।
पृष्ठभूमि और कानूनी कार्यवाही से संबंधित विवरण यहां पढ़े जा सकते हैं।

अब तक जो पता चला है: 16 जुलाई, 2025
गौहाटी हाईकोर्ट ने 16 जुलाई, 2025 को बक्कर अली द्वारा दायर उस रिट याचिका को औपचारिक रूप से बंद कर दिया, जो उनके पिता शमसुल अली की गुमशुदगी और संभावित निर्वासन को लेकर दाखिल की गई थी। कोर्ट को बताया गया कि शमसुल अली को बीजनी में अचेत अवस्था में पाया गया, उन्हें दोबारा गिरफ्तार नहीं किया गया है और उन्हें पुलिस अधिकारियों के समक्ष – हालांकि अनौपचारिक रूप से – पेश किया जा चुका है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि 10 जुलाई 2025 को पहले दिए गए न्यायालयीय निर्देशों के पालन में शमसुल अली को चिरांग जिले के एसपी (बॉर्डर) के कार्यालय ले जाया गया था। हालांकि, उस समय एसपी मौजूद नहीं थे, इसलिए उनकी पेशी औपचारिक रूप से दर्ज नहीं की जा सकी। वकील ने यह भी बताया कि तब से शमसुल अली का इलाज जारी है और वे हिरासत में नहीं हैं।
इन दलीलों को दर्ज करते हुए न्यायमूर्ति कल्याण राय सुराणा और न्यायमूर्ति सुस्मिता फुकन खाउंड की खंडपीठ ने कहा कि शमसुल अली के संबंध में अब निर्वासन की कोई तत्काल आशंका नहीं बची है, क्योंकि उनकी बरामदगी के बाद राज्य सरकार ने न तो उन्हें दोबारा हिरासत में लिया है और न ही उनके निष्कासन के संबंध में कोई नई कार्रवाई की है।
याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता मृणमय दत्ता ने न्यायालय को बताया कि 10 जुलाई 2025 को, अदालत के पूर्व निर्देशों के अनुपालन में, शमसुल अली को चिरांग के पुलिस अधीक्षक (बॉर्डर) के समक्ष पेश किया गया था। हालांकि, उस समय एसपी कार्यालय में मौजूद नहीं थे, जिसके चलते उनकी उपस्थिति से संबंधित कोई औपचारिक दस्तावेज़ या प्रमाणन नहीं हो सका।
वकील ने आगे कहा कि उस तारीख से लेकर अब तक शमसुल अली का इलाज चल रहा है, और राज्य द्वारा न तो उन्हें फिर से हिरासत में लेने के लिए कोई कदम उठाया गया है और न ही उनके निर्वासन (डिपोर्टेशन) की कोई कार्यवाही शुरू की गई है।
न्यायालय की टिप्पणियां और आदेश
पीठ ने दर्ज किया कि "शमसुल अली को बीजनी में बेहोशी की हालत में पाया गया था। यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता के पिता को अधिकारियों के समक्ष पेश किया गया था लेकिन उनकी उपस्थिति दर्ज नहीं की गई क्योंकि चिरांग के एसपी (बॉर्डर) वहां मौजूद नहीं थे। इसके बाद से, याचिकाकर्ता के पिता का इलाज चल रहा है।"
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि शमसुल अली के ठीक हो जाने, आगे कोई हिरासत की कार्रवाई न होने और उन्हें सक्षम प्राधिकारी के समक्ष पेश किए जाने के मद्देनजर अब निर्वासन की आशंका नहीं रही। आदेश में कहा गया, "यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता के पिता मिल गए हैं और उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया है, उनके निर्वासन की आशंका भी अब समाप्त हो जाती है।"
इस प्रकार, याचिका को बंद कर दिया गया। हालांकि, न्यायालय ने याचिकाकर्ता को स्वतंत्रता दी कि यदि भविष्य में राज्य की ओर से कोई समस्या या कार्रवाई होती है, तो वह फिर से न्यायालय में आवेदन कर सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
हैबियस कॉर्पस याचिका 25 मई 2025 की रात को चिरांग जिले के चाटीबोरगांव गांव में शमसुल अली के लापता होने के बाद दायर की गई थी। परिवार का दावा था कि उन्हें बिना गिरफ्तारी रसीद, वारंट या मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए बिना स्थानीय पुलिस ने उठा लिया था।
शमसुल अली को पहले एक विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित किया गया था, लेकिन 2019 में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के स्वतः संज्ञान (suo moto) COVID-काल के आदेश (WP(C) No. 1 of 2020) के तहत जमानत पर रिहा कर दिया गया क्योंकि वह तीन वर्ष से ज्यादा समय तक हिरासत में रह चुके थे। वह नियमित रूप से स्थानीय थाने में हर सप्ताह रिपोर्टिंग की शर्त का पालन कर रहे थे। उनकी अंतिम दर्ज उपस्थिति 21 मई 2025 को थी।
पहली सुनवाई 6 जून को हुई जिसमें न्यायालय ने नोटिस जारी किया और राज्य सरकार को याचिकाकर्ता के पिता की वर्तमान स्थिति की जानकारी देने का निर्देश दिया। 10 जून की सुनवाई में, विदेशी न्यायाधिकरण (एफ़टी) के वकील ने अदालत को बताया कि शमसुल अली को 26 मई को बीएसएफ सेक्टर मुख्यालय, पनबारी को सौंप दिया गया था। हालांकि, अदालत ने इस पर चिंता जताई कि उसके कथित स्थानांतरण से संबंधित कोई औपचारिक ज्ञापन या उस पोस्ट का विवरण उपलब्ध नहीं था जहां से उसे भेजा गया था। अदालत ने चिरांग के पुलिस अधीक्षक (सीमा) को निर्देश दिया कि वह सभी विवरणों की पुष्टि करें।
20 जून की सुनवाई में याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि शमसुल अली को बीजनी में बेहोशी की हालत में पाया गया और स्थानीय निवासियों द्वारा उन्हें घर लाया गया। अदालत ने इस जानकारी को स्वीकार करते हुए निर्देश दिया कि शमसुल अली को चिरांग के पुलिस अधीक्षक (सीमा) के समक्ष पेश किया जाए और यह भी स्पष्ट किया कि यदि उन्हें निष्कासित (deport) करने का कोई विचार किया जा रहा था, तो विधिसम्मत प्रक्रिया (due process) का पालन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।
कानूनी महत्व और निष्कर्ष
वर्तमान याचिका उन कई बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिकाओं में से एक है जो उन व्यक्तियों की फिर से हिरासत और गायब होने की घटनाओं के बाद दायर की गई हैं जिन्हें पहले लंबे समय से COVID-काल की जमानत पर रिहा किया गया था। इन मामलों ने कुछ महत्वपूर्ण कानूनी चिंताएं उठाई हैं, जैसे कि बिना जमानत रद्द किए दोबारा गिरफ्तारी, गिरफ्तारी से संबंधित दस्तावेजों की अनुपस्थिति और न्यायिक निगरानी के बिना संभावित निष्कासन (deportation) की कार्रवाइयां।
यह दर्ज करते हुए कहा गया कि शमसुल अली अब हिरासत में नहीं हैं, उन्हें उपयुक्त प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किया जा चुका है और फिलहाल उनका इलाज चल रहा है। न्यायालय ने कहा कि याचिका का आधार अब नहीं रह गया। हालांकि, याचिकाकर्ता को फिर से न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता देकर, न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया है कि भविष्य में किसी भी प्रकार की गैरकानूनी कार्रवाई की स्थिति में न्यायिक निगरानी बनी रहे।
अब यह याचिका औपचारिक रूप से समाप्त मानी जाती है।
पृष्ठभूमि और कानूनी कार्यवाही से जुड़ी विस्तृत जानकारी यहां पढ़ी जा सकती है।
संबंधित याचिकाओं पर अपडेट: राज्य सरकार ने अब्दुल शेख और मजीबुर रहमान मामलों में हलफनामा दायर किया है। अगली सुनवाई 23 जुलाई को निर्धारित है।
16 जुलाई को हुई सुनवाई में गौहाटी उच्च न्यायालय ने अब्दुल शेख (सानिदुल शेख बनाम भारत संघ) और मजीबुर रहमान (रेजिया खातून बनाम भारत संघ) के मामलों में कार्यवाही जारी रखी। दोनों लोगों को मई 2025 में दोबारा हिरासत में लिया गया, जबकि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा COVID काल के दौरान दिए गए निर्देशों के तहत लंबे समय से जमानत पर रिहा थे। दोनों मामलों में संबंधित व्यक्तियों को पहले विदेशी घोषित किया गया था, वे दो साल से ज्यादा समय तक हिरासत में रह चुके थे और उन्हें क्रमशः 2021 और 2022 में न्यायालय की निगरानी में जमानत पर रिहा किया गया था। उन्होंने अपनी रिहाई की शर्तों का पालन करते हुए नियमित रूप से स्थानीय पुलिस थाने में उपस्थिति दर्ज कराई थी।
16 जुलाई को राज्य सरकार ने याचिकाओं के विरोध में अपने हलफ़नामे दाखिल किए, जिन्हें उसी सुबह याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं को दे दिया गया। इन हलफनामों में राज्य द्वारा पहले से जारी जमानत आदेशों को रद्द किए बिना दोबारा हिरासत में लेने के कानूनी आधार को स्पष्ट किए जाने की संभावना है। याचिकाकर्ता इन नए हलफ़नामों पर अपनी प्रतिक्रिया दाखिल कर सकते हैं। इन मामलों की अगली सुनवाई 23 जुलाई 2025 को सूचीबद्ध की गई है।
यह उल्लेख करना आवश्यक है कि दोनों मामलों की पिछली सुनवाई के दिन न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह अपना विस्तृत हलफनामा दाखिल करे, जिसमें उसका कानूनी पक्ष स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाए। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि यह हलफनामा अगली सुनवाई से कम से कम छह दिन पहले याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराया जाना चाहिए, ताकि उन्हें जवाब देने का पर्याप्त समय मिल सके। हालांकि, वर्तमान कार्यवाही से यह स्पष्ट होता है कि इस निर्देश पर अमल नहीं हुआ।
पृष्ठभूमि और कानूनी कार्यवाही से संबंधित विवरण यहां पढ़े जा सकते हैं।
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