न्यायालय ने एसपी (बॉर्डर) द्वारा दायर हलफनामा रिकॉर्ड में लिया, जिसमें नियमित पुलिस रिपोर्टिंग के दावे का विरोध किया गया है। कोकराझार होल्डिंग सेंटर में बंद दो लोगों से मुलाकात की अनुमति दी गई। आवश्यकता होने पर तात्कालिक सुनवाई के लिए अनुरोध की स्वतंत्रता दी गई।

अब तक हमें जो जानकारी मिली है: 20 जून, 2025
गौहाटी उच्च न्यायालय ने 20 जून को असम के याचिकाकर्ता तोराप अली को यह अनुमति दी कि वे कोकराझार होल्डिंग सेंटर में बंद अपने दो चाचा-अबू बक्कर और अकबर अली- से एक पारिवारिक सदस्य और एक अधिवक्ता के साथ फिर से मुलाकात कर सकें। यह इजाजत इसलिए दी गई ताकि याचिकाकर्ता राज्य सरकार के उस हलफनामे के जवाब में निर्देश हासिल कर सके, जिसमें आरोप लगाया गया है कि मई 2025 में अचानक हिरासत में लिए जाने से पहले दोनों व्यक्ति अपनी जमानत की शर्तों का पालन नहीं कर रहे थे।
उक्त याचिका ऐसे कई मामलों की एक श्रृंखला का हिस्सा है, जिनमें असम में बांग्ला-भाषी मुस्लिम परिवारों ने उच्च न्यायालय का रुख किया है। इन मामलों में उनके वे परिजन शामिल हैं जिन्हें पहले कोविड काल के दौरान "विदेशी" घोषित किए जाने के बाद जमानत पर रिहा किया गया था, लेकिन हाल ही में उन्हें बिना किसी नई कानूनी प्रक्रिया के, अक्सर बिना किसी पूर्व सूचना या दस्तावेज दिए, फिर से हिरासत में ले लिया गया।
पृष्ठभूमि: कोविड दिशा-निर्देशों के तहत मिली जमानत, उसके बाद दोबारा गिरफ्तारी
अबू बकर और अकबर अली, दोनों असम के कामरूप जिले के भुकरडिया गांव के निवासी हैं। उन्हें 2017 में कामरूप के विदेशी न्यायाधिकरण संख्या 4 (FT No. 4) द्वारा "विदेशी" घोषित किया गया था। इसके बाद उन्हें हिरासत में लिया गया और कोविड-19 महामारी के दौरान उन्हें जमानत दी गई, जब वे पहले ही हिरासत में दो वर्षों से ज्यादा का समय काट चुके थे। यह जमानत सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुओ मोटो रिट याचिका (WP(C) 1/2020) में जारी दिशानिर्देशों के तहत दी गई थी, जिन्हें बाद में गौहाटी उच्च न्यायालय द्वारा भी अपनाया गया।
उनकी जमानत की शर्तों के तहत उन्हें हर सप्ताह स्थानीय थाने में हाजिरी देनी होती थी। ये वही नियम थे, जिनका कई लोगों ने सालों तक ठीक से पालन किया, बिना कोई उल्लंघन किए।
उनके भतीजे तोराप अली द्वारा दायर याचिका में यह कहा गया कि दोनों व्यक्ति हर हफ्ते ईमानदारी से थाने में हाज़िरी दे रहे थे और 24 मई से पहले उनकी जमानत रद्द नहीं की गई थी, न ही कोई नया हिरासत का आदेश जारी हुआ था लेकिन उसी रात बॉर्डर पुलिस उन्हें अचानक उनके घर से उठा ले गई, वो भी बिना किसी गिरफ्तारी मेमो या वारंट के।
इस मामले का डिटेल यहां पढ़ा जा सकता है।
पिछली सुनवाई में क्या हुआ।
● 28 और 29 मई को अदालत ने नोटिस जारी किया और राज्य से पूछा कि अबू बकर और अकबर अली को कहां रखा गया है।
● 4 जून को अदालत ने विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के वकील से कहा कि वे स्थानीय थाने से यह सत्यापित करें कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति अपनी जमानत की शर्तों का पालन कर रहे हैं या नहीं। परिवार को मुलाकात की इजाजत भी दी गई।
● 16 जून को जब अदालत ने पूछा कि क्या विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के विदेशी घोषित करने के फैसले को चुनौती दी गई है, तो याचिकाकर्ता के वकील ने स्वीकार किया कि ऐसा नहीं किया गया है। हालांकि अदालत ने प्रत्यर्पण से संरक्षण देने से इनकार कर दिया, फिर भी एसपी (बॉर्डर) को निर्देश दिया कि वे यह जांच करें कि जमानत की शर्तों का पालन किया जा रहा है या नहीं।
सुनवाई का डिटेल यहां पढ़ा जा सकता है।
20 जून: मुलाकात की इजाजत, प्रत्यर्पण पर कोई निर्णय नहीं
हालिया सुनवाई में:
● एफटी के वकील ने बताया कि उसी दिन एसपी (बॉर्डर), कंभोगी का हलफनामा दायर किया जाएगा। अदालत ने नोट किया कि यह हलफनामा याचिकाकर्ता के जमानत पालन के दावों का विरोध करता है।
● तोराप अली के वकील ने हिरासत में रखे गए दोनों व्यक्तियों से मिलने के लिए मुलाकात की इजाजत मांगी ताकि वे उनके निर्देश ले सकें और औपचारिक जवाबी हलफनामा तैयार कर सकें। यह इजाजत दी गई।
● अदालत ने आदेश दिया कि तोराप अली, एक परिवार का सदस्य और एक वकील कोकराझार होल्डिंग सेंटर में अबू बकर और अकबर अली से मिलने जा सकते हैं।
● मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई, 2025 को निर्धारित की गई है।
याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी चिंता जताई कि हिरासत में रखे गए व्यक्तियों को बिना कानूनी प्रक्रिया के सीमा पार बांग्लादेश भेजे जाने का खतरा है और अदालत से आग्रह किया कि किसी भी प्रत्यर्पण को कानूनी प्रक्रिया के बिना न किया जाए।
हालांकि, बेंच ने ऐसी सुरक्षा देने से इंकार कर दिया और कहा:
"हम राज्य द्वारा अवैध रूप से बाहर निकाले जाने का अनुमान नहीं लगा सकते। विदेशी होने की घोषणा की गई है जिसे चुनौती नहीं दी गई है।"
इसके साथ ही न्यायालय ने अगली सुनवाई से पहले कोई प्रतिकूल या बलपूर्वक कार्रवाई किए जाने पर तत्काल आउट-ऑफ-टर्न लिस्टिंग की छूट दी है।
आदेश यहां पढ़ा जा सकता है:

अब तक हमें जो जानकारी मिली है: 20 जून, 2025
गौहाटी उच्च न्यायालय ने 20 जून को असम के याचिकाकर्ता तोराप अली को यह अनुमति दी कि वे कोकराझार होल्डिंग सेंटर में बंद अपने दो चाचा-अबू बक्कर और अकबर अली- से एक पारिवारिक सदस्य और एक अधिवक्ता के साथ फिर से मुलाकात कर सकें। यह इजाजत इसलिए दी गई ताकि याचिकाकर्ता राज्य सरकार के उस हलफनामे के जवाब में निर्देश हासिल कर सके, जिसमें आरोप लगाया गया है कि मई 2025 में अचानक हिरासत में लिए जाने से पहले दोनों व्यक्ति अपनी जमानत की शर्तों का पालन नहीं कर रहे थे।
उक्त याचिका ऐसे कई मामलों की एक श्रृंखला का हिस्सा है, जिनमें असम में बांग्ला-भाषी मुस्लिम परिवारों ने उच्च न्यायालय का रुख किया है। इन मामलों में उनके वे परिजन शामिल हैं जिन्हें पहले कोविड काल के दौरान "विदेशी" घोषित किए जाने के बाद जमानत पर रिहा किया गया था, लेकिन हाल ही में उन्हें बिना किसी नई कानूनी प्रक्रिया के, अक्सर बिना किसी पूर्व सूचना या दस्तावेज दिए, फिर से हिरासत में ले लिया गया।
पृष्ठभूमि: कोविड दिशा-निर्देशों के तहत मिली जमानत, उसके बाद दोबारा गिरफ्तारी
अबू बकर और अकबर अली, दोनों असम के कामरूप जिले के भुकरडिया गांव के निवासी हैं। उन्हें 2017 में कामरूप के विदेशी न्यायाधिकरण संख्या 4 (FT No. 4) द्वारा "विदेशी" घोषित किया गया था। इसके बाद उन्हें हिरासत में लिया गया और कोविड-19 महामारी के दौरान उन्हें जमानत दी गई, जब वे पहले ही हिरासत में दो वर्षों से ज्यादा का समय काट चुके थे। यह जमानत सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुओ मोटो रिट याचिका (WP(C) 1/2020) में जारी दिशानिर्देशों के तहत दी गई थी, जिन्हें बाद में गौहाटी उच्च न्यायालय द्वारा भी अपनाया गया।
उनकी जमानत की शर्तों के तहत उन्हें हर सप्ताह स्थानीय थाने में हाजिरी देनी होती थी। ये वही नियम थे, जिनका कई लोगों ने सालों तक ठीक से पालन किया, बिना कोई उल्लंघन किए।
उनके भतीजे तोराप अली द्वारा दायर याचिका में यह कहा गया कि दोनों व्यक्ति हर हफ्ते ईमानदारी से थाने में हाज़िरी दे रहे थे और 24 मई से पहले उनकी जमानत रद्द नहीं की गई थी, न ही कोई नया हिरासत का आदेश जारी हुआ था लेकिन उसी रात बॉर्डर पुलिस उन्हें अचानक उनके घर से उठा ले गई, वो भी बिना किसी गिरफ्तारी मेमो या वारंट के।
इस मामले का डिटेल यहां पढ़ा जा सकता है।
पिछली सुनवाई में क्या हुआ।
● 28 और 29 मई को अदालत ने नोटिस जारी किया और राज्य से पूछा कि अबू बकर और अकबर अली को कहां रखा गया है।
● 4 जून को अदालत ने विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के वकील से कहा कि वे स्थानीय थाने से यह सत्यापित करें कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति अपनी जमानत की शर्तों का पालन कर रहे हैं या नहीं। परिवार को मुलाकात की इजाजत भी दी गई।
● 16 जून को जब अदालत ने पूछा कि क्या विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के विदेशी घोषित करने के फैसले को चुनौती दी गई है, तो याचिकाकर्ता के वकील ने स्वीकार किया कि ऐसा नहीं किया गया है। हालांकि अदालत ने प्रत्यर्पण से संरक्षण देने से इनकार कर दिया, फिर भी एसपी (बॉर्डर) को निर्देश दिया कि वे यह जांच करें कि जमानत की शर्तों का पालन किया जा रहा है या नहीं।
सुनवाई का डिटेल यहां पढ़ा जा सकता है।
20 जून: मुलाकात की इजाजत, प्रत्यर्पण पर कोई निर्णय नहीं
हालिया सुनवाई में:
● एफटी के वकील ने बताया कि उसी दिन एसपी (बॉर्डर), कंभोगी का हलफनामा दायर किया जाएगा। अदालत ने नोट किया कि यह हलफनामा याचिकाकर्ता के जमानत पालन के दावों का विरोध करता है।
● तोराप अली के वकील ने हिरासत में रखे गए दोनों व्यक्तियों से मिलने के लिए मुलाकात की इजाजत मांगी ताकि वे उनके निर्देश ले सकें और औपचारिक जवाबी हलफनामा तैयार कर सकें। यह इजाजत दी गई।
● अदालत ने आदेश दिया कि तोराप अली, एक परिवार का सदस्य और एक वकील कोकराझार होल्डिंग सेंटर में अबू बकर और अकबर अली से मिलने जा सकते हैं।
● मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई, 2025 को निर्धारित की गई है।
याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी चिंता जताई कि हिरासत में रखे गए व्यक्तियों को बिना कानूनी प्रक्रिया के सीमा पार बांग्लादेश भेजे जाने का खतरा है और अदालत से आग्रह किया कि किसी भी प्रत्यर्पण को कानूनी प्रक्रिया के बिना न किया जाए।
हालांकि, बेंच ने ऐसी सुरक्षा देने से इंकार कर दिया और कहा:
"हम राज्य द्वारा अवैध रूप से बाहर निकाले जाने का अनुमान नहीं लगा सकते। विदेशी होने की घोषणा की गई है जिसे चुनौती नहीं दी गई है।"
इसके साथ ही न्यायालय ने अगली सुनवाई से पहले कोई प्रतिकूल या बलपूर्वक कार्रवाई किए जाने पर तत्काल आउट-ऑफ-टर्न लिस्टिंग की छूट दी है।
आदेश यहां पढ़ा जा सकता है: