मध्य प्रदेश : जनसुनवाई के दौरान एसिड पीने से किसान की मौत, तहसीलदार, आरआई, पटवारी और क्लर्क को बर्खास्त करने की मांग

Written by sabrang india | Published on: June 14, 2025
किसान की मौत पर पूरे प्रदेश में आक्रोश का माहौल है। किसान संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे प्रशासनिक हत्या करार दिया।


फोटो साभार : द मूकनायक

इंदौर में एक किसान द्वारा जनसुनवाई के दौरान तेजाब पीने की घटना ने प्रशासनिक तंत्र को हिलाकर रख दिया है। मृतक किसान करण सिंह अपनी जमीन के सीमांकन और अवैध कब्जे को हटवाने की मांग को लेकर लंबे समय से प्रशासनिक दफ्तरों के चक्कर काट रहे थे। बताया जा रहा है कि उन्होंने कई बार आवेदन दिए और मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर भी शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उनकी शिकायतों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार प्रशासनिक उपेक्षा से हताश होकर उन्होंने तहसील परिसर में जनसुनवाई के दौरान कथित रूप से तेजाब पी लिया। कुछ दिनों तक अस्पताल में इलाज के बाद उनकी मौत हो गई।

द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, किसान करण सिंह की आत्महत्या के मामले में जब जांच शुरू हुई तो अधिकारियों की गंभीर लापरवाही सामने आई। जांच में यह स्पष्ट हो गया कि किसान ने दो बार जमीन के सीमांकन और दो बार अवैध कब्जा हटवाने के लिए आवेदन दिए थे। सीमांकन की प्रक्रिया तो पूरी हो गई थी, लेकिन उस रिपोर्ट के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की गई और किसान को उनकी जमीन का कब्जा नहीं दिलाया गया। जांच के दौरान एक और चौंकाने वाली बात सामने आई कि करण सिंह के आवेदन से जुड़ी मूल फाइल ही कार्यालय से गायब थी। यह महज एक तकनीकी भूल नहीं, बल्कि जानबूझकर की गई प्रशासनिक लापरवाही के रूप में देखी जा रही है।

अपर कलेक्टर राजेंद्र रघुवंशी की जांच रिपोर्ट में साफ तौर पर सामने आया है कि किसान करण सिंह की समस्या को प्रशासनिक स्तर पर गंभीरता से नहीं लिया गया। रिपोर्ट के अनुसार, तहसीलदार जगदीश रंधावा, राजस्व निरीक्षक नरेश विवलकर, पटवारी अल्केश गुप्ता और क्लर्क रीना कुशवाह अपने कर्तव्यों के निर्वहन में पूरी तरह विफल रहे। इन अधिकारियों की लापरवाही के चलते किसान को बार-बार कार्यालयों के चक्कर काटने पड़े और अंततः उसने आत्मघाती कदम उठा लिया। जांच में यह भी स्पष्ट हुआ कि यदि तहसीलदार चाहते, तो सीमांकन रिपोर्ट के आधार पर किसान को जमीन पर कब्जा दिलाया जा सकता था, लेकिन उन्होंने कोई पहल नहीं की।

जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रभारी कलेक्टर गौरव बैनल ने त्वरित कार्रवाई करते हुए तहसीलदार जगदीश रंधावा, पटवारी अल्केश गुप्ता, क्लर्क रीना कुशवाह और राजस्व निरीक्षक नरेश विवलकर के खिलाफ निलंबन की अनुशंसा संभागायुक्त दीपक सिंह को भेजी। अनुशंसा स्वीकार करते हुए चारों के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश जारी कर दिए गए हैं। सूत्रों के अनुसार, राजस्व निरीक्षक नरेश विवलकर को पहले ही निलंबित किया जा चुका था, लेकिन अब तहसीलदार, पटवारी और क्लर्क पर भी कार्रवाई की गई है।

जांच में यह भी सामने आया है कि बीते 16 महीनों के दौरान इस मामले से जुड़े जिन भी अधिकारियों और कर्मचारियों की पदस्थापना रही, उन्होंने किसान की शिकायतों पर लापरवाही बरती। रिपोर्ट के अनुसार, किसी भी स्तर पर मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया, जिससे साफ है कि किसान की समस्या को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया।

किसान करण सिंह की मौत के बाद पूरे प्रदेश में आक्रोश का माहौल है। विभिन्न किसान संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस घटना को "प्रशासनिक हत्या" करार दिया है। उनका कहना है कि जब भूमि का सीमांकन पहले ही हो चुका था, तो किसान को उसकी जमीन पर कब्जा क्यों नहीं दिलाया गया? उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि किसान की फाइल का कार्यालय से गायब हो जाना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि मामला जानबूझकर लटकाया गया। संगठनों ने मांग की है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए प्रशासनिक जवाबदेही तय की जाए।

भारतीय किसान संघ के प्रांत संगठन मंत्री राहुल धूत ने 'द मूकनायक' से बातचीत में किसान की मौत को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और पीड़ादायक बताया। उन्होंने इस घटना के लिए प्रशासन को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया, जिसने समय पर जमीन का सीमांकन नहीं किया और किसान की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया। राहुल धूत ने कहा, "यदि प्रशासन ने संवेदनशीलता दिखाते हुए किसान की बात समय रहते सुनी होती और सीमांकन के बाद उन्हें उनका हक दिलाया होता, तो यह त्रासदी रोकी जा सकती थी। यह केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं है, बल्कि उन नीतिगत और प्रशासनिक विफलताओं का परिणाम है, जो आज किसानों को आत्मघाती कदम उठाने तक के लिए मजबूर कर रही हैं।" उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि, "क्या आम जनता की आवाज अब भी प्रशासनिक गलियारों में कोई महत्व रखती है, या उसे पूरी तरह से अनसुना कर दिया जाता है?"

धूत ने आगे कहा कि एक किसान, जो देश की अर्थव्यवस्था की नींव है, उनकी बात को अनदेखा किया जाना न सिर्फ संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि यह मानवता पर भी एक गहरा आघात है। उन्होंने सरकार से मांग की कि जिन अधिकारियों-कर्मचारियों की लापरवाही से यह हादसा हुआ है, उन्हें निलंबन तक सीमित न रखा जाए, बल्कि उन्हें शासकीय सेवा से बर्खास्त किया जाए। साथ ही, पीड़ित किसान परिवार को उचित मुआवजा दिया जाए ताकि उनके पुनर्वास और जीविका में मदद मिल सके।

Related

किसान आंदोलन: खनौरी में आज महापंचायत... अनशन पर बैठे दल्लेवाल देंगे संदेश; आ सकते हैं 2 लाख किसान, देश भर के किसानों की नजरें टिकीं

किसानों ने एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर 26 जनवरी को देशभर में ट्रैक्टर मार्च निकालने की घोषणा की

बाकी ख़बरें