तेलंगाना : "कांचा गाचीबोवली में वनों को नष्ट करना कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र का उल्लंघन"

Written by sabrang india | Published on: April 21, 2025
कांचा गाचीबोवली में आईटी हब बनाने के लिए 100 एकड़ से ज्यादा वन भूमि को नष्ट करना कांग्रेस पार्टी के अपने घोषणापत्र का उल्लंघन है। ये बातें कंस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) में शामिल सेवानिवृत्त सिविल सेवकों का कहना है।



तेलंगाना के कांचा गाचीबोवली में आईटी हब बनाने के लिए 100 एकड़ से ज्यादा वन भूमि का जल्दबाजी में और एकतरफा बुलडोजर से विनाश कांग्रेस पार्टी के अपने घोषणापत्र का उल्लंघन है। ये बातें हाल ही में जारी एक बयान में सेवानिवृत्त सिविल सेवकों का कहना है।

इस बारे में विस्तार से बताते हुए बयान में कहा गया है कि कांग्रेस पार्टी ने 2024 के चुनावों के लिए अपने घोषणापत्र में तेज, समावेशी और सतत विकास तथा अपने पारिस्थितिकी तंत्र, स्थानीय समुदायों, वनस्पतियों और जीवों की रक्षा के लिए अपनी गहरी प्रतिबद्धता दिखाई है। इसने यह भी कहा था कि यह पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को उस गंभीरता के साथ संबोधित करेगी जिसके वे हकदार हैं। इसलिए हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में हुई परेशान करने वाली घटनाएं, जैसे कांचा गाचीबोवली में 100 एकड़ से ज्यादा वन भूमि को बुलडोजर से नष्ट करने का उद्देश्य इस जमीन का इस्तेमाल आईटी भवनों और गतिविधियों के लिए करना है जो पार्टी के अपने चुनावी वादे का उल्लंघन है।

बयान में कहा गया कि, इसके अलावा जब हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने वन भूमि की सफाई, पेड़ों की कटाई और बुलडोजर के इस्तेमाल के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन किया तो राज्य सरकार ने मामले को सुलझाने के लिए उनके साथ बातचीत करने के बजाय बलपूर्वक विरोध को दबाने की कोशिश की। यहां तक कि गिरफ्तारी की गई और लाठीचार्ज भी किया गया। आगे कहा गया, "हमें राहत है कि सरकार अब अपने पहले के रुख से पीछे हट गई है, लेकिन हम अभी भी इस भूमि से संबंधित कई मुद्दों को लेकर चिंतित हैं।"

संबंधित भूमि के वन भूमि न होने के मुद्दे पर राज्य सरकार द्वारा जानबूझकर बनाए गए भ्रम को स्पष्ट करने के लिए पूर्व सिविल सेवकों ने दोहराया कि इस दावे का खंडन करने वाले पर्याप्त सबूत हैं। नीचे विरोधाभासों की सूची दी गई 

● 1996 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, जिसे आमतौर पर गोदावर्मन मामला कहा जाता है, सभी राज्यों को यह निर्देश दिया गया था कि चाहे उनकी मालिकाना स्थिति कुछ भी हो वे राज्य विशेषज्ञ समितियों (State Expert Committees - SEC) का गठन करें, ताकि वे "वन" शब्द के शब्दकोशीय अर्थ के अनुसार सभी वनों की पहचान कर सकें। आंध्र प्रदेश सरकार (जिसका 1996 में तेलंगाना भी हिस्सा था) एसईसी का गठन करने में विफल रही और इसलिए उसने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार सभी वनों की पहचान नहीं की। वे वनों के भू-संदर्भ (geo-referencing of forests) पर सर्वोच्च न्यायालय के बाद के आदेशों का पालन करने में भी विफल रहे। इसलिए संबंधित भूमि को वन नहीं मानना सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है और कानूनी रूप से अनुचित है।

● जब 2014 में तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग किया गया था तो उसके पास वनों पर कोई व्यापक डेटा नहीं था, न ही राज्य ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार वनों की पहचान करने के लिए कोई कदम उठाया।

● यह ध्यान देने लायक है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन किया गया होता तो विचाराधीन भूमि, कांचा गचीबोवली, को "शब्दकोश अर्थ" के अनुसार वन के रूप में पहचाना जाता, साथ ही भूमि अभिलेखों के अनुसार, जिसे "बंजर भूमि" (जिसका मतलब घास के मैदान, झाड़ीदार जंगल आदि है) कहा जाता है।

● साल 2025 की शुरुआत में WP 1164/23 में सर्वोच्च न्यायालय ने फिर से सभी राज्यों को जमीन पर सभी जंगलों की पहचान करने और उनका भू-संदर्भ लेने का निर्देश दिया। जबकि प्रेस में यह व्यापक तरीके से बताया गया था कि 15 मार्च, 2025 को तेलंगाना में ऐसी समिति गठित की गई थी, लेकिन सरकार ने यह घोषित करने से पहले कि विवादित क्षेत्र (कांचा गचीबोवली) वन नहीं है, इस समिति की रिपोर्ट या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसकी स्वीकृति का इंतजार करने की जहमत नहीं उठाई। यह सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना को दर्शाता है। हमें आश्चर्य है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार सभी वनों की पहचान करने के लिए समिति गठित करने का क्या उद्देश्य था, जबकि ऐसे वनों को वैधता, नागरिकों के विरोध, या क्षेत्र की जैव विविधता और वन्य जीवन की परवाह किए बिना नष्ट किया जा रहा है।

● हमें जानकारी मिली है कि इस वन क्षेत्र में कई प्रवासी पक्षियों, 220 पक्षी प्रजातियों, हिरण, 700 प्रकार के पौधों, संकटग्रस्त स्टार कछुओं तथा हैदराबाद ट्री ट्रंक स्पाइडर जैसी एक स्थानीय प्रजाति की मौजूदगी दर्ज की गई है, जो केवल यहीं पाई जाती है।

इसके बाद, बयान में दर्ज किया गया है कि, वे इस तथ्य से उत्साहित हैं कि हाल ही में इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 16 अप्रैल, 2025 को सभी जंगलों की पहचान के बारे में अपने पहले के आदेशों को दोहराया है और इस बात पर जोर दिया है कि कोर्ट के आदेशों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।

हैदराबाद के लिए यह सौभाग्य की बात है कि शहर के लैंडस्केप का हिस्सा ये 400 एकड़ क्षेत्र भी है: यह वर्षा जल को रोकने के लिए जलग्रहण क्षेत्र के रूप में काम करता है, भूजल को रिचार्ज करता है जिसका इस्तेमाल आस-पास की कॉलोनियों और इमारतों द्वारा किया जाता है; यह शहर के "हीट आइलैंड" प्रभाव को कम करता है- विशेषज्ञों ने कहा है कि यह परिवेश के तापमान को 4 डिग्री सेल्सियस तक कम करता है; यह शहर के हरित फेफड़े के रूप में काम करता है, जो प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों को रोकता है। यह चौंकाने वाली बात है कि इन पारिस्थितिक और जलवायु लाभ को तेलंगाना सरकार द्वारा अपने विनाशकारी प्रयास में पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है, जो कि ठीक उस समय है जब वैज्ञानिकों और जलवायु विज्ञानियों के बीच बढ़ती गर्मी और पानी की कमी को लेकर एकमत हैं। यदि नागरिकों और छात्रों की नहीं सुननी है तो सरकार को कम से कम विशेषज्ञों की बात सुननी चाहिए। जब आईटी पार्क के विकल्प मौजूद हैं तो प्राकृतिक पर्यावरण की इतनी बड़ी कीमत पर विकास पारिस्थितिकी विनाश से कम नहीं है।

सेवानिवृत्त सिविल सेवकों के समूह, कंस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप ने केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के साथ काम किया है। वे भारतीय संविधान के उल्लंघन के खिलाफ बोलने के लिए कंस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के रूप में एक साथ आए हैं।

इसके बाद बयान में दर्ज किया गया है कि जबकि सीसीजी इस तथ्य की सराहना करता है कि तेलंगाना सरकार अब इस मामले में टकराव से हट गई है और एक स्वीकार्य समाधान खोजने की कोशिश कर रही है, ऐसे में हम यह जानकर चिंतित हैं कि उस भूमि के बदले निजी पक्षों से 10000 करोड़ रुपये लिए गए हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह भी उतना ही चिंताजनक है कि इस क्षेत्र को जंगल के रूप में पुनर्जीवित करने और शहर के लिए एक हरा फेफड़ा और इसके वन्यजीवों और जैव विविधता के लिए एक आश्रय स्थल बनाने का वादा करने के बजाय सरकार विश्वविद्यालय की भूमि सहित पूरी भूमि को इको-पार्क में बदलना चाहती है। एक इको-पार्क एक जंगल नहीं है; यह एक मानव-केंद्रित "विकासात्मक" गतिविधि है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार नहीं है। इसके बजाय राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विशेषज्ञ समिति 19/02/24 और 04/03/25 के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को "शब्दशः और भावना" में लागू करे। इसके बाद, उसे मानव जीवन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और अपनी जैव विविधता की भलाई सुनिश्चित करने के लिए अपने सभी पहचाने गए वनों की रक्षा करनी चाहिए।

कांग्रेस पार्टी देश के अन्य हिस्सों में जवाबदेही, हितधारकों के परामर्श और सुशासन की अवधारणाओं की वकालत करती रही है। दुर्भाग्य से कांचा गाचीबोवली जैसी कार्रवाइयों के कारण तेलंगाना राज्य में बदलाव दिखाने का मौका खो रहा है। सीसीजी को उम्मीद है कि इस भूमि की प्रस्तावित नीलामी या निजी पक्षों को आवंटन रद्द कर दिया जाएगा और विशेषज्ञ समिति को सभी वनों की पहचान करने और भू-संदर्भित (geo-reference) करने की अनुमति दी जाएगी और उन सभी वन भूमि पर वनों को फिर से उगाने की अनुमति दी जाएगी, जहां कटाई हुई है।

"हालांकि कांचा गाचीबोवली का मुद्दा मेट्रोपोलिटन शहर में होने, एक विश्वविद्यालय के पास होने और छात्रों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होने के कारण मीडिया का ध्यान खींचता है, लेकिन वनों, जैव विविधता और वन्यजीवों का बड़े पैमाने पर कटाव और अनावश्यक विनाश लगभग सभी राज्यों में, लगभग हर राजनीतिक और नौकरशाही शासन के तहत, एक सामान्य समस्या है। इस तरह की गतिविधि हमारे देश की पारिस्थितिक सुरक्षा को बड़े पैमाने पर प्रभावित करती है। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों को सभी सामान्य संपत्ति संसाधनों की रक्षा के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए, क्योंकि देश के हर हिस्से में कार्रवाई की आवश्यकता है। सभी सरकारों से हमारी हार्दिक अपील है कि वे सुनिश्चित करें कि देश भर में हमारे वन और जैव विविधता की रक्षा की जाए और "विकास" के नाम पर उनका दुरुपयोग न किया जाए।"

कंस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के इस बयान पर 67 दिग्गजों ने हस्ताक्षर किए हैं, जो इस प्रकार हैं:

1. आनंद अरनी-आरएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व विशेष सचिव, कैबिनेट सचिवालय, भारत सरकार

2. जी. बालचंद्रन-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव, पश्चिम बंगाल सरकार

3. वप्पला बालचंद्रन-आईपीएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व विशेष सचिव, कैबिनेट सचिवालय, भारत सरकार

4. गोपालन बालगोपाल-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व विशेष सचिव, पश्चिम बंगाल सरकार

5. चंद्रशेखर बालकृष्णन-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सचिव, कोयला, भारत सरकार

6. राणा बनर्जी आरएएस-(सेवानिवृत्त)-पूर्व विशेष सचिव, कैबिनेट सचिवालय, भारत सरकार

7. शरद बेहार आईएएस-(सेवानिवृत्त)-पूर्व मुख्य सचिव, मध्य प्रदेश सरकार

8. अरबिंदो बेहरा आईएएस-(सेवानिवृत्त)-पूर्व सदस्य, राजस्व बोर्ड, ओडिशा सरकार

9. मधु भादुड़ी आईएफएस-(सेवानिवृत्त)-पुर्तगाल में पूर्व राजदूत

10. प्रदीप भट्टाचार्य आईएएस-(सेवानिवृत्त)-पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव, विकास एवं योजना और प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान, पश्चिम बंगाल सरकार

11. रवि बुद्धिराजा आईएएस-(सेवानिवृत्त)-पूर्व अध्यक्ष, जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट, भारत सरकार

12. मनेश्वर सिंह चहल-आईएएस-(सेवानिवृत्त)-पूर्व प्रमुख सचिव, गृह, पंजाब सरकार

13. राहेल चटर्जी-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व विशेष मुख्य सचिव, कृषि, आंध्र प्रदेश सरकार

14. कल्याणी चौधरी आईएएस-(सेवानिवृत्त)-पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव, पश्चिम बंगाल सरकार

15. गुरजीत सिंह चीमा-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व वित्तीय आयुक्त (राजस्व), पंजाब सरकार

16. एफ.टी.आर. कोलासो-आईपीएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व पुलिस महानिदेशक, कर्नाटक सरकार व जम्मू-कश्मीर सरकार

17. रेणु साहनी धर-आईएएस (सेवानिवृत्त)-मुख्यमंत्री की पूर्व प्रधान सलाहकार, हिमाचल प्रदेश सरकार

18. सुशील दुबे-आईएफएस (सेवानिवृत्त)-स्वीडन में पूर्व राजदूत

19. एएस दुलत-आईपीएस (सेवानिवृत्त)-कश्मीर पर पूर्व ओएसडी, प्रधानमंत्री कार्यालय, भारत सरकार

20. सुरेश के गोयल-आईएफएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व महानिदेशक, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, भारत सरकार

21. मीना गुप्ता-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सचिव, पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार

22. रवि वीरा-गुप्ता आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व डिप्टी गवर्नर, भारतीय रिजर्व बैंक

23. नजीब जंग-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर, दिल्ली

24. संजय कौल-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व प्रमुख सचिव, कर्नाटक सरकार

25. गीता कृपलानी-आईआरएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सदस्य, सेटलमेंट कमीशन, भारत सरकार

26. बृजेश कुमार आईएएस-(सेवानिवृत्त)-पूर्व सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार

27. सुधीर कुमार-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सदस्य, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण

28. संदीप मदान-आईएएस (इस्तीफा)-पूर्व सचिव, हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग

29. हर्ष मंदर-आईएएस (सेवानिवृत्त)-मध्य प्रदेश सरकार

30. अमिताभ माथुर-आईपीएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व विशेष सचिव, कैबिनेट सचिवालय, भारत सरकार

31. अदिति मेहता-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव, राजस्थान सरकार

32. अविनाश मोहननी-आईपीएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व पुलिस महानिदेशक, सिक्किम सरकार

33. सुधांशु मोहंती-आईडीएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व वित्तीय सलाहकार (रक्षा सेवाएं), रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार

34. जुगल महापात्रा-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सचिव, ग्रामीण विकास विभाग, भारत सरकार

35. देब मुखर्जी-आईएफएस (सेवानिवृत्त)-बांग्लादेश में पूर्व उच्चायुक्त और नेपाल में पूर्व राजदूत

36. गौतम मुखोपाध्याय-आईएफएस (सेवानिवृत्त)-म्यांमार में पूर्व राजदूत

37. टी.के.ए. नायर-आईएएस (सेवानिवृत्त)-भारत के प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार

38. बी.एम. नांता-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सचिव, हिमाचल प्रदेश सरकार

39. अमिताभ पांडे-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सचिव, अंतर-राज्यीय परिषद, भारत सरकार

40. मैक्सवेल परेरा-आईपीएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व संयुक्त पुलिस आयुक्त, दिल्ली

41. आलोक परती-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सचिव, कोयला मंत्रालय, भारत सरकार

42. जी.के. पिल्लई-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व गृह सचिव, भारत सरकार

43. वी.पी. राजा-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व अध्यक्ष, महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग

44. सतवंत रेड्डी-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सचिव, रसायन और पेट्रोकेमिकल्स, भारत सरकार

45. विजया लता रेड्डी-आईएफएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, भारत सरकार

46. जूलियो रिबेरो-आईपीएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व पुलिस महानिदेशक, पंजाब सरकार

47. मनबेंद्र एन. रॉय-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव, पश्चिम बंगाल सरकार

48. ए.के. सामंत-आईपीएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व पुलिस महानिदेशक (खुफिया), पश्चिम बंगाल सरकार

49. दीपक सानन-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व प्रधान सलाहकार (एआर) मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश सरकार

50. जी.वी. वेणुगोपाल सरमा-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सदस्य, राजस्व बोर्ड, ओडिशा सरकार

51. एस. सत्यभामा-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय बीज निगम, भारत सरकार

52. एन.सी. सक्सेना-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सचिव, योजना आयोग, भारत सरकार

53. अर्धेंदु सेन-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व मुख्य सचिव, पश्चिम बंगाल सरकार

54. अभिजीत सेनगुप्ता-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सचिव, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार

55. आफताब सेठ-आईएफएस (सेवानिवृत्त)-जापान में पूर्व राजदूत

56. अशोक कुमार शर्मा-आईएफओएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व एमडी, राज्य वन विकास निगम, गुजरात सरकार

57. अशोक कुमार शर्मा-आईएफएस (सेवानिवृत्त)-फिनलैंड और एस्टोनिया में पूर्व राजदूत

58. राजू शर्मा-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सदस्य, राजस्व बोर्ड, उत्तर प्रदेश सरकार

59. अवय शुक्ला-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन व तकनीकी शिक्षा), हिमाचल प्रदेश सरकार

60. मुक्तेश्वर सिंह-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सदस्य, मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग

61. तारा अजय सिंह-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव, कर्नाटक सरकार

62. ए.के. श्रीवास्तव-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व प्रशासनिक सदस्य, मध्य प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरण

63. प्रकृति श्रीवास्तव-आईएफओएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विशेष अधिकारी, पुनर्निर्माण केरल विकास कार्यक्रम, केरल सरकार

64. अनूप ठाकुर-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व सदस्य, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग

65. पी.एस.एस. थॉमस-आईएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व महासचिव, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

66. गीता थुपाल-आईआरएएस (सेवानिवृत्त)-पूर्व महाप्रबंधक, मेट्रो रेलवे, कोलकाता

67. रूडी वारजरी-आईएफएस (सेवानिवृत्त)-कोलंबिया, इक्वाडोर और कोस्टा रिका में पूर्व राजदूत

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