बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, विरोध प्रदर्शन और हिरासत: सुप्रीम कोर्ट ने कांचा गाचीबोवली में तेलंगाना के पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई, अनुमति पर सवाल उठाए

Written by sabrang india | Published on: April 7, 2025
तेलंगाना के अधिकारियों द्वारा कांचा गाचीबोवली के पेड़ों को कटाई, कथित तौर पर पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन करने और हिरासत व पुलिस कार्रवाई के साथ विरोध प्रदर्शनों को दबाने पर लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट द्वारा कार्रवाई जारी रहेगी।



कांचा गाचीबोवली भूमि विवाद में 3 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट के दखल ने पर्यावरण विनाश की कीमत पर शहरी विकास के लिए तेलंगाना सरकार के आक्रामक प्रयास पर सख्त प्रतिक्रिया दी है। बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई का स्वत: संज्ञान लेते हुए शीर्ष अदालत ने 400 एकड़ में सभी प्रकार की गतिविधियों को रोक दिया और राज्य सरकार से जवाब मांगा। जस्टिस बी.आर. गवई और ए.जी. मसीह ने वनों की कटाई को "खतरनाक" पाया, जिसमें मोर और हिरणों को भारी मशीनरी द्वारा भूमि को समतल किए जाने के दौरान भागते हुए दिखाया गया था। न्यायालय ने सरकार की कार्रवाई, पर्यावरण मंजूरी की कमी और वैधानिक वन भूमि पहचान प्रक्रियाओं की अवहेलना पर सवाल उठाया और चेतावनी दी कि राज्य के मुख्य सचिव को नियमों की अवहेलना के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा।






स्थिति से निपटने के लिए तेलंगाना सरकार की कार्यप्रणाली में अपारदर्शिता, क्रूर बल प्रयोग और असहमति का दमन शामिल है। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी की जमीन पर ऐतिहासिक दावे और संवैधानिक न्यायालयों द्वारा सुनवाई के लिए लंबित याचिकाओं के बावजूद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाया, विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए पुलिस का इस्तेमाल किया। छात्रों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं को आंदोलन में शामिल होने को लेकर हिरासत में लिया गया, जबकि सरकार ने इस नाराजगी को "गलत सूचना" और "राजनीतिक अवसरवाद" बताकर खारिज कर दिया। इस बीच, के.टी. रामा राव ने मुंबई में अरे वन पर कांग्रेस के पिछले रुख को याद करते हुए मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की सरकार पर पाखंड का आरोप लगाया है। फिर भी, कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई ने भी सतर्क रुख अपनाया है और भूमि को सुरक्षित करने में सरकार की विफलता की आलोचना की है, हालांकि उसने इसका खुलकर विरोध नहीं किया है।

प्रशासन के तर्क—50,000 करोड़ रुपये की निवेश और पांच लाख नौकरियों का वादा—प्राकृतिक संसाधनों की हो रही बर्बादी को संबोधित करने में विफल रहते हैं। अधिकारी इस बात पर जोर देते हैं कि उक्त भूमि को वन के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, फिर भी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से इसके विपरीत संकेत मिलते हैं, जिससे प्रक्रियात्मक उल्लंघन और अदालत की संभावित अवमानना को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। पारदर्शिता या सार्वजनिक परामर्श के बिना तेजी से विकास के लिए सरकार के इस प्रयास ने इस मुद्दे को सरकार की विफलता का केंद्र बना दिया है। अब, जब सर्वोच्च न्यायालय ने दखल दिया है, ऐसे में तेलंगाना सरकार खुद को घिरी हुई पा रही है। उसे शहरीकरण और न्यायिक निगरानी के बीच लड़ाई में अपने काम का बचाव करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

कांचा गाचीबोवली में पेड़ों की कटाई पर 3 अप्रैल, 2025 को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही

दोपहर का घटनाक्रम: हैदराबाद के कांचा गाचीबोवली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई पर चिंता जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस क्षेत्र में सभी विकास गतिविधियों को रोकने का तत्काल आदेश जारी किया। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने उसी दिन मामले का स्वतः संज्ञान लिया और निर्देश दिया कि बचे पेड़ों की सुरक्षा के उपायों को छोड़कर, कोई भी गतिविधि अगले नोटिस तक नहीं होनी चाहिए।

न्यायालय ने अनुपालन पर जोर दिया और चेतावनी दी कि उसके निर्देश का कोई भी उल्लंघन तेलंगाना के मुख्य सचिव की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी। पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, पीठ ने मुख्य सचिव को निम्नलिखित चिंताओं को संबोधित करते हुए एक विस्तृत हलफनामा पेश करने का आदेश दिया:

1. विवादित क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई सहित विकास गतिविधियों की आवश्यकता क्यों पड़ी?

2. क्या राज्य सरकार ने परियोजना शुरू करने से पहले अनिवार्य पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) प्रमाणन प्राप्त किया था?

3. क्या पेड़ों को काटने से पहले वन अधिकारियों या किसी अन्य संबंधित स्थानीय निकाय से आवश्यक अनुमति ली गई थी?

4. तेलंगाना सरकार द्वारा गठित समिति में विशेष अधिकारियों को शामिल करने के पीछे क्या तर्क था, खासकर उन लोगों को, जिनकी वन क्षेत्रों की पहचान करने में कोई भूमिका नहीं है?

5. काटे गए पेड़ों के लिए राज्य सरकार की क्या योजना है?

इससे पहले दिन की शुरूआत में, अदालत ने पेड़ों की आगे की कटाई पर रोक लगाते हुए एक अंतरिम आदेश पारित किया था और तेलंगाना उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को साइट पर निरीक्षण करने और दोपहर 3:30 बजे तक एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। जब मामला दोपहर 3:45 बजे फिर से शुरू हुआ, तो सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट की समीक्षा की और इसे बेहद चिंताजनक पाया। निरीक्षण से पता चला कि बड़े पैमाने पर वनों की कटाई चल रही थी, जिसमें सैकड़ों एकड़ जमीन को साफ करने के लिए जेसीबी जैसी भारी मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा था। अदालत ने इस विनाश से भागते हुए मोर और हिरणों की तस्वीरें भी देखीं, जो बताती हैं कि यह क्षेत्र वन्यजीवों के लिए निवास स्थान था।

अशोक कुमार शर्मा, आईएफएस (सेवानिवृत्त) एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में अपने पिछले आदेशों का हवाला देते हुए, न्यायालय ने अपने 4 मार्च के निर्देश पर जोर दिया, जिसमें वन भूमि की पहचान करने के लिए वैधानिक समितियों का गठन करने में विफलता के लिए राज्य के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह ठहराया गया था। इसने उसी मामले में अपने 3 फरवरी के आदेश का भी हवाला दिया, जिसमें राज्यों को कंपेनसेट्री अफॉरेस्ट्रेशन लैंड (compensatory afforestation land) प्रदान किए बिना वन क्षेत्र को कम करने से रोक दिया गया था। न्यायालय ने तेलंगाना सरकार के कार्यों की आलोचना की और सवाल किया कि जब वन भूमि की स्थिति निर्धारित करने की वैधानिक प्रक्रिया शुरू भी नहीं हुई थी तो वनों की कटाई इतनी तत्परता से क्यों की गई।

तेलंगाना राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि विवादित भूमि वन की श्रेणी में नहीं आती है। हालांकि, पीठ इससे सहमत नहीं थी। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने स्पष्ट रूप से सवाल किया कि क्या सरकार ने पेड़ों की कटाई के लिए आवश्यक अनुमति प्राप्त की थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भूमि का वर्गीकरण पर्यावरणीय मंजूरी के लिए कानूनी आवश्यकताओं के प्रति दूसरे दर्जे का है।

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति गवई ने तेजी से हो रही वनों की कटाई पर निराशा जाहिर करते हुए पूछा, "वन हो या न हो, क्या आपने पेड़ों को काटने से पहले आवश्यक मंजूरी ली थी?" "केवल दो से तीन दिनों में 100 एकड़ भूमि को साफ करना चिंताजनक है... हमें आपको एक सरल सिद्धांत याद दिलाना चाहिए- चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।"

इस बीच, कुछ हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने पीठ को बताया कि विनाश का विरोध कर रहे छात्रों को हिरासत में लिया जा रहा है, जो परियोजना के विरोध को दबाने में तेलंगाना सरकार के कठोर दृष्टिकोण को उजागर करता है।

सुबह की कार्यवाही और प्रारंभिक स्थगन आदेश: सुबह के सत्र में, सुप्रीम कोर्ट ने कांचा गाचीबोवली में वृक्ष-कटाई की गतिविधियों पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश जारी किया था, जो व्यापक वन संरक्षण मामले (टीएन गोदावर्मन मामले) में न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर द्वारा तत्काल मौखिक उल्लेख पर कार्रवाई करते हुए किया गया था।

पीठ ने एक्सटेंडेड वीकेंड में तेजी से वनों की कटाई को उजागर करने वाली मीडिया रिपोर्टों का संज्ञान लिया, जिसमें सुझाव दिया गया था कि अधिकारियों ने सार्वजनिक जांच से बचने के लिए जानबूझकर प्रक्रिया को तेज कर दिया था। इन रिपोर्टों ने आगे बताया गया कि वन क्षेत्र में अनुसूचित वन्यजीवों की कम से कम आठ प्रजातियां हैं। इन घटनाक्रमों से चिंतित, अदालत ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) द्वारा तत्काल साइट निरीक्षण का आदेश दिया जिसमें निर्देश दिया गया कि उसी दिन दोपहर 3:30 बजे तक एक अंतरिम रिपोर्ट पेश की जाए।

सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) द्वारा तेलंगाना उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया गया कि वे शीघ्र अनुपालन सुनिश्चित करें। इसके अलावा, अदालत ने तेलंगाना के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे अगले आदेश जारी होने तक किसी भी तरह के पेड़ की कटाई को रोकें।


लाइव लॉ के अनुसार, आदेश इस प्रकार दिया गया:

“न्यूज रिपोर्टों से पता चलता है कि कांचा गाचीबोवली जंगल में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हो रही है। कथित तौर पर बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई की जा रही है और ऐसा लगता है कि अधिकारियों ने कटाई में तेजी लाने के लिए लंबे सप्ताहांत का फायदा उठाया है। रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि यह क्षेत्र कई अनुसूचित वन्यजीव प्रजातियों का शरण स्थल है। हम तेलंगाना उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को तत्काल साइट का दौरा करने और आज दोपहर 3:30 बजे तक एक अंतरिम रिपोर्ट पेश करने का निर्देश देते हैं। इस न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को इस आदेश को तुरंत भेजने करने का निर्देश दिया जाता है। इसके अलावा, तेलंगाना के मुख्य सचिव यह सुनिश्चित करेंगे कि कांचा गाचीबोवली में तब तक कोई और पेड़ नहीं काटे जाएं जब तक कि यह न्यायालय आगे के निर्देश जारी न कर दे।”

सुनवाई के दौरान, तेलंगाना सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने न्यायालय को बताया कि तेलंगाना उच्च न्यायालय भी संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा है। जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान ले रहा है, लेकिन उसने उच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है।

सुप्रीम कोर्ट का दखल पर्यावरण क्षरण और बड़े पैमाने पर वनों की कटाई करने से पहले कानूनी और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन करने में राज्य अधिकारियों की विफलता पर उसकी गहरी चिंता को दर्शाता है। भविष्य में इस मामले पर बारीकी से नजर रखे जाने की उम्मीद है।

कांचा गाचीबोवली वन मामले में तेलंगाना उच्च न्यायालय की कार्यवाही

3 अप्रैल, 2025 को सुनवाई: गुरुवार को तेलंगाना उच्च न्यायालय ने हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू) परिसर के पास स्थित कांचा गाचीबोवली वन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने के अपने अंतरिम आदेश को आगे बढ़ाया। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजॉय पॉल और न्यायमूर्ति रेणुका यारा की पीठ ने राज्य सरकार को मामले में अपना जवाबी हलफनामा पेश करने के लिए 7 अप्रैल, 2025 तक का समय दिया। न्यायालय का यह दखल 2 अप्रैल को जारी किए गए एक पूर्व निर्देश के बाद हुआ, जिसमें उसने राज्य को आगे के विचार-विमर्श तक कोई भी बलपूर्वक कदम उठाने से स्पष्ट रूप से रोक दिया था। उक्त सुनवाई के दौरान, न्यायालय को सूचित किया गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी दिन की शुरूआत में मामले का संज्ञान लिया था और साइट निरीक्षण करने की आवश्यकता बताई थी।

तेलंगाना सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि साइट निरीक्षण की आवश्यकता वाले सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को मामले को आगे बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर प्रतिबंध के रूप में गलत तरीके से नहीं समझा जाना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि विचाराधीन भूमि पर दशकों से मुकदमेबाजी चल रही है, फिर भी किसी दावे या कानूनी दस्तावेज में इसे वन के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया। उनके अनुसार, पिछले 30 वर्षों में ऐसे दावों की गैर मौजूदगी इस बात को दर्शाती है कि इस क्षेत्र को कभी भी औपचारिक रूप से वन भूमि के रूप में मान्यता नहीं दी गई थी। सिंघवी ने आगे दावा किया कि आसपास के कई संस्थान, जिनमें एक वनस्पति उद्यान और एक गोल्फ कोर्स शामिल हैं, गैर-वन उद्देश्यों के लिए क्षेत्र के लंबे समय से आवंटन को प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि भूमि को लगभग 20 साल पहले एक निजी संस्था को सौंपा गया था और राज्य की कार्रवाई पूरी तरह से कानूनी और नियामक प्रक्रियाओं के अनुरूप थी।

जवाब में, वाता फाउंडेशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस. निरंजन रेड्डी ने राज्य के दावों का जोरदार तरीके से खंडन किया। उन्होंने अदालत को सूचित किया कि पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, गुरुवार सुबह तक पेड़ों की कटाई जारी रही। रेड्डी ने अपने दावे को पुष्ट करने के लिए अखबारों की रिपोर्ट और टाइमस्टैम्प वाले फोटोग्राफिक साक्ष्य युक्त एक अंतरिम आवेदन (आईए) पेश किया। इसके अलावा, उन्होंने कथित पुलिस दमन के बारे में अदालत को बताया, जिसमें खुलासा किया गया कि एक छात्र जो वीडियो रिकॉर्डिंग के जरिए पेड़ की कटाई को रिकॉर्ड कर रहा था, उसे स्थानीय पुलिस स्टेशन में हिरासत में लिया गया था। रेड्डी ने इस बात पर जोर दिया कि याचिकाकर्ता अब सर्वोच्च न्यायालय के दखल से सुरक्षित हैं, लेकिन उन्होंने उच्च न्यायालय से 7 अप्रैल को होने वाली अपनी आगामी सुनवाई में राज्य की कार्रवाई की जांच करने का आग्रह किया।

एक छात्र संघ का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अन्य अधिवक्ता ने इस कटाई का शांतिपूर्ण विरोध करने वाले छात्रों के खिलाफ पुलिस अत्याचारों के खतरनाक पैटर्न को उजागर किया। उन्होंने आगे कहा कि उक्त भूमि हैदराबाद विश्वविद्यालय की थी जिससे कमर्शियल आईटी डेवलपमेंट के लिए इसके आवंटन के खिलाफ मामला मजबूत हो गया। इन दलीलों को स्वीकार करते हुए, उच्च न्यायालय ने राज्य के कानूनी प्रतिनिधियों को इन गंभीर आरोपों का औपचारिक रूप से जवाब देने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई 7 अप्रैल को निर्धारित की।

उच्च न्यायालय के आदेश में वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी और महाधिवक्ता द्वारा की गई दलील का सारांश दिया गया, जिसमें उन्होंने अनुरोध किया कि मामले की सुनवाई 7 अप्रैल को की जाए ताकि राज्य को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। अदालत ने दर्ज किया कि याचिकाकर्ताओं को इस समयसीमा पर कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते कि पेड़ों की कटाई के खिलाफ अंतरिम राहत बरकरार रहे। वरिष्ठ अधिवक्ता निरंजन रेड्डी ने कहा कि चूंकि सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही रोक लगा दी है, इसलिए उच्च न्यायालय को 7 अप्रैल को निर्धारित सुनवाई के साथ ही आगे बढ़ना चाहिए। अदालत ने इन दलीलों को स्वीकार कर लिया और राज्य को याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत सभी अंतरिम आवेदनों पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

2 अप्रैल 2025 को सुनवाई: बुधवार को तेलंगाना उच्च न्यायालय ने विवादित कांचा गाचीबोवली भूमि में पेड़ों की कटाई पर अस्थायी रोक लगा दी थी। यह मामला तेलंगाना सरकार द्वारा जारी किए गए सरकारी आदेश (जीओ) के खिलाफ एक तत्काल याचिका के बाद सुना गया था, जिसमें आईटी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 400 एकड़ वन क्षेत्र को अलग करने की मांग की गई थी।


यह मामला पर्यावरण के लिए काम करने वाली गैर-लाभकारी संस्था वात फाउंडेशन द्वारा दायर याचिका से उठा, जिसमें आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए क्षेत्र में 400 एकड़ हरित भूमि को अलग करने की सुविधा देने वाले एक विवादास्पद सरकारी आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि जीओ ने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का उल्लंघन किया है और मांग की है कि आदेश के अनुसार किए गए सभी सरकारी कार्यों को रद्द कर दिया जाए। उन्होंने अदालत से भूमि को 'राष्ट्रीय उद्यान' के रूप में घोषित करने का भी आग्रह किया। इसके अलावा, अदालत ने सेवानिवृत्त वैज्ञानिक कलापाल बाबू राव द्वारा दायर इसी तरह की जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई की, जिन्होंने इसी प्रकार की राहत की मांग की।

वात फाउंडेशन की याचिका में कहा गया है कि यह भूमि जो सदियों से अछूती रही है, 237 पक्षी प्रजातियों, चित्तीदार हिरण, जंगली सूअर, स्टार कछुए, सांप और प्राचीन चट्टान संरचनाओं और झीलों का शरण स्थल है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि तेलंगाना राज्य औद्योगिक अवसंरचना निगम (TSIIC), जिसने 2012 में भूमि का अधिग्रहण किया था, उसने 2024 में भूमि को वाणिज्यिक उद्देश्यों के इरादे से सरकारी आदेश जारी किया। तेजी से हो रहे वनों की कटाई ने याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया, जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया कि इस क्षेत्र में हैदराबाद विश्वविद्यालय की भूमि भी शामिल है, जिसे तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है।

अदालत ने मूल रूप से मामले को 7 अप्रैल के लिए निर्धारित किया था, लेकिन याचिकाकर्ताओं द्वारा यह रिपोर्ट किए जाने के बाद कि बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई के लिए 40 जेसीबी मशीनों को तैनात किया गया था, उसे पहले दखल देने के लिए मजबूर होना पड़ा। तत्काल दोपहर के भोजन के प्रस्ताव के अनुरोध के बाद, उच्च न्यायालय ने 2 अप्रैल को मामले पर कार्रवाई करते हुए रोक लगा दी।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता कलापाल बाबू राव की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एल. रविचंदर ने तेलंगाना सरकार द्वारा न्यायिक उदाहरणों की घोर अवहेलना पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि सरकार के काम ने सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण निर्णयों - टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ और अशोक कुमार शर्मा बनाम भारत संघ एवं अन्य - का उल्लंघन किया है, जिसमें वनों की पहचान और संरक्षण को अनिवार्य बनाया गया था, जिसमें ऐसे क्षेत्र भी शामिल हैं जिन्हें आधिकारिक तौर पर वनों के रूप में नामित नहीं किया गया है, लेकिन शब्दकोश की परिभाषा के तहत वे वनों के योग्य हैं। उन्होंने आगे तर्क दिया कि इस क्षेत्र की अनूठी चट्टानी संरचनाएं, जो लगभग 2 बिलियन वर्ष पुरानी होने का अनुमान है, में दुर्लभ वनस्पतियां और विदेशी पक्षी प्रजातियां हैं, जिन्हें तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है।

इसके उलट, राज्य के महाधिवक्ता ए. सुदर्शन रेड्डी ने याचिकाकर्ताओं के मामले को आधिकारिक रिकॉर्ड के बजाय केवल "गूगल इमेज" पर आधारित बताते हुए खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकार के पास स्पष्ट राजस्व रिकॉर्ड हैं जो दर्शाते हैं कि भूमि हमेशा औद्योगिक उपयोग के लिए नामित की गई थी। इस मुद्दे को महत्वहीन बनाने का प्रयास करते हुए, उन्होंने टिप्पणी की कि यदि मोर, नेवले और सांपों की उपस्थिति वन की स्थिति निर्धारित करती है, तो शहर के गोल्फ कोर्स सहित हैदराबाद के बड़े हिस्से को भी वन घोषित किया जाना चाहिए। हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया और मामले की गहन जांच की आवश्यकता दोहराई।

केंद्र सरकार का दखल

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हैदराबाद के कांचा गाचीबोवली में 400 एकड़ वन भूमि की विवादास्पद कटाई में आधिकारिक रूप से दखल दिया, जिसे तेलंगाना सरकार द्वारा नीलामी के लिए चिन्हित किया गया है। कथित तौर पर बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए मंत्रालय ने 2 अप्रैल, 2025 को चल रहे घटनाक्रम के संबंध में राज्य सरकार से तत्काल तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है।

बुधवार को तेलंगाना के अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन) को संबोधित एक औपचारिक पत्र में, सहायक वन महानिरीक्षक एस. सुंदर ने कहा कि मंत्रालय को कांचा गाचीबोवली क्षेत्र में "वनस्पति की अवैध कटाई" की रिपोर्टों के बारे में सतर्क किया गया था। भूमि की नीलामी के लिए जिम्मेदार इकाई तेलंगाना औद्योगिक अवसंरचना निगम लिमिटेड (TGIIC) को इन गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पहचाना गया था। पत्र में उल्लेख किया गया है कि प्रिंट और डिजिटल मीडिया दोनों में व्यापक कवरेज ने पारिस्थितिक विनाश, विशेष रूप से क्षेत्र के वन्यजीवों, जल निकायों और विशिष्ट चट्टानी संरचनाओं को होने वाले नुकसान के बारे में चिंताओं को उजागर किया था।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए इस पत्र में खुलासा किया गया कि केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को संसद सदस्यों और विभिन्न जन प्रतिनिधियों से कई ज्ञापन प्राप्त हुए थे, जिसमें अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय नुकसान को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई का आग्रह किया गया था।

इन चिंताओं के मद्देनजर मंत्रालय ने तेलंगाना सरकार को बिना देरी किए मामले पर एक विस्तृत तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। इसके अलावा राज्य को भारतीय वन अधिनियम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम सहित अन्य लागू कानूनों के अनुसार कानूनी कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया गया। पत्र में वन संरक्षण और भूमि संरक्षण के संबंध में न्यायालयों और न्यायाधिकरणों द्वारा जारी न्यायिक निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया।

केंद्र के दखल पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, केंद्रीय कोयला एवं खदान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने मामले में निर्णायक कार्रवाई करने के लिए भूपेंद्र यादव के प्रति सार्वजनिक रूप से आभार व्यक्त किया। रेड्डी ने इस बात पर जोर दिया कि संघ की प्रतिक्रिया सरकारी जवाबदेही सुनिश्चित करने, पर्यावरण के और अधिक नुकसान को रोकने और हरित क्षेत्र की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने आगे कहा कि इस हस्तक्षेप से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि विवादित भूमि से संबंधित सभी कार्य कानूनी सीमाओं के भीतर रहें और उचित परामर्श प्रक्रियाओं के माध्यम से आवश्यक जांच से गुजरें।

पर्यावरण विनाश और बढ़ती चिंताएं

छात्र समूहों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि कांचा गाचीबोवली वन के विनाश के गंभीर पारिस्थितिक परिणाम होंगे। शोधकर्ता अरुण वासीरेड्डी ने क्षेत्र के पर्यावरणीय महत्व पर एक रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला कि कांचा गाचीबोवली वन में वनों की कटाई से स्थानीय तापमान में 1 से 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है, जिससे गाचीबोवली क्षेत्र में गर्मी की स्थिति और खराब हो सकती है। जैसे-जैसे हैदराबाद का आईटी कॉरिडोर बढ़ता जा रहा है, कार्यकर्ताओं का तर्क है कि इस तरह के महत्वपूर्ण हरित क्षेत्र के नुकसान से वायु की गुणवत्ता और खराब होगी, जैव विविधता को खतरा होगा और जलवायु अस्थिरता बढ़ेगी।

बढ़ते विरोध के बावजूद राज्य सरकार ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं से निपटने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है, बल्कि छात्रों और पत्रकारों के खिलाफ कठोर पुलिस कार्रवाई की है।

हैदराबाद विश्वविद्यालय में छात्रों के विरोध पर कांग्रेस सरकार की कार्रवाई

हैदराबाद विश्वविद्यालय (यूओएच) में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है, क्योंकि छात्रों ने क्लास का अनिश्चितकालीन बहिष्कार शुरू कर दिया है, जिसमें तेलंगाना सरकार द्वारा आईटी पार्क के विकास के लिए टीजीआईआईसी के माध्यम से कांचा गचीबोवली की 400 एकड़ जमीन की नीलामी करने के फैसले की निंदा की गई है। राज्य के अतिक्रमण, पुलिस दमन और पर्यावरण विनाश के आरोपों के बीच विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है।

यूओएच छात्र संघ के उपाध्यक्ष आकाश कुमार के अनुसार, छात्रों को पुलिस द्वारा जबरन परिसर के भीतर प्रतिबंधित किया जा रहा है, जिससे वे सड़कों पर अपना विरोध प्रदर्शन न करें। कुमार ने हिंदुस्तान टाइम्स के पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा, “टीजीआईआईसी द्वारा जारी वनों की कटाई से अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक नुकसान हो रहा है। कांचा गाचीबोवली विविध वनस्पतियों और जीवों का शरण स्थल है और हम लापरवाही के साथ हो रही भूमि-सफाई गतिविधियों को तत्काल रोकने की मांग करते हैं। हमने आज अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू की है और वनों की कटाई बंद होने तक इसे जारी रखेंगे।” उन्होंने भारी पुलिस बल की मौजूदगी और 50 से अधिक अर्थमूविंग मशीनों को हटाने की भी मांग की, जो निरंतर इस जगह को नष्ट कर रहे हैं।

प्रदर्शनकारी छात्रों ने इस बात पर जोर दिया कि कांचा गाचीबोवली केवल भूमि का एक खाली टुकड़ा नहीं है, बल्कि एक पारिस्थितिक हॉटस्पॉट है, जिसमें 734 से अधिक पौधों की प्रजातियां, 220 पक्षी प्रजातियां और भारतीय स्टार कछुआ सहित संवेदनशील वन्यजीव हैं। इस भूमि की अनूठी चट्टानी संरचनाएं और झीलें इस क्षेत्र की जैव विविधता में योगदान करती हैं और आईटी पार्क के लिए इसकी सफाई पर्यावरणीय बर्बरता के रूप में देखा जाता है।

बड़े पैमाने पर नाराजगी के बावजूद, टीजीआईआईसी ने रविवार से कटाई गतिविधियों को जारी रखा है। दूसरी ओर, तेलंगाना पुलिस ने सोमवार को एक बयान जारी करके बल प्रयोग से इनकार करते हुए अपनी भूमिका को छिपाने का प्रयास किया। उनके बयान के अनुसार, छात्रों पर लाठीचार्ज नहीं किया गया, बल्कि उन्होंने "अधिकारियों और कार्यकर्ताओं पर लाठी और पत्थरों से हमला किया।" सोमवार और मंगलवार को राज्य पुलिस ने 55 छात्रों को हिरासत में लिया, जिसे एक सुरक्षात्मक कदम के रूप में बताया गया है। बाद में उनमें से 53 छात्रों को रिहा कर दिया गया। हालांकि, तेलंगाना टुडे के अनुसार, दो छात्रों बी. रोहित कुमार और एर्राम नवीन कुमार को गिरफ्तार किया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इन पर आपराधिक अतिक्रमण और दंगा से संबंधित कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।

राज्य दमन में वृद्धि: पुलिस की बर्बरता और मनमाने ढंग से हिरासत में लेना

2 अप्रैल, 2025 को लगातार चौथे दिन विरोध प्रदर्शन के दौरान परिसर में स्थिति तनावपूर्ण हो गई। हैदराबाद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ और संयुक्त कार्रवाई समिति के नेतृत्व में छात्रों और संकाय सदस्यों ने अपने आंदोलन को तेज कर दिया, परिसर के अंदर रैली निकाली और सरकार की कार्रवाई और विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता की निंदा की। हालांकि, छात्र आंदोलनों पर सत्तावादी दमन की याद दिलाते हुए राज्य ने बल का इस्तेमाल किया।

मंगलवार को पुलिस ने लाठीचार्ज किया क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने मुख्य द्वार की ओर मार्च करने का प्रयास किया था। पूर्वी परिसर में झड़प के दौरान कई छात्र घायल हो गए, जिससे राज्य की बर्बरतापूर्ण रणनीति के खिलाफ आक्रोश और बढ़ गया। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में पुलिस अधिकारियों को छात्रों की पिटाई करते और उन्हें जबरन घसीटते हुए दिखाया गया है, जबकि शांतिपूर्ण विरोध एक मौलिक लोकतांत्रिक अधिकार है।

एनएसयूआई-एचसीयू के महासचिव प्रभाकर सिंह ने मीडिया से बात करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन की कड़ी आलोचना की और इसे पुलिस क्रूरता को "सुविधा देने" का जिम्मेदार ठहराया।। उन्होंने कहा, "प्रशासन ने हमें पूरी तरह से विफल कर दिया है। उन्होंने पुलिस को परिसर में घुसने दिया और जेसीबी मशीनों को तोड़फोड़ जारी रखने की अनुमति दी। उन्होंने 20 मार्च को हुई कार्यकारी परिषद की बैठक का डिटेल भी नहीं बताया, जिससे भूमि से जुड़े मुद्दे पर उनका रुख स्पष्ट हो जाता।"

इन प्रदर्शनों ने विभिन्न विचारधाराओं और पृष्ठभूमियों से आए राजनीतिक और छात्र समूहों को एक साथ लाकर एक मजबूत विरोध का रूप ले लिया है। वामपंथी और दलित-बहुजन छात्र संगठनों के साथ-साथ भाजपा की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) सभी नीलामी का विरोध कर रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और उस्मानिया विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के छात्र संघों ने भी अपना समर्थन दिया है। इस बीच, कांग्रेस की छात्र शाखा, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) ने ज्यादा तटस्थ रुख अपनाया है, भूमि की रक्षा करने में विश्वविद्यालय की विफलता की आलोचना करते हुए इसके स्वामित्व को सुरक्षित करने पर चर्चा की वकालत की है।

अतिक्रमण की विरासत: परिसर की जमीन के लिए बड़ा संघर्ष

विश्वविद्यालय समुदाय के लोगों के लिए, यह लड़ाई सिर्फ़ कांचा गाचीबोवली में 400 एकड़ जमीन को लेकर नहीं है, बल्कि विश्वविद्यालय की जमीन पर राज्य के अतिक्रमण के निरंतर इतिहास के बारे में है। पिछले कुछ सालों में कई परियोजनाओं ने विश्वविद्यालय के क्षेत्र को हड़प लिया है, जिसमें IIIT परिसर, गाचीबोवली स्टेडियम, एक बस डिपो, एक बिजली स्टेशन, एक स्कूल और यहां तक कि शूटिंग रेंज की स्थापना भी शामिल है। हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, विरोध प्रदर्शन करने वाले एक छात्र ने कहा, “राज्य ने कई सालों से व्यवस्थित रूप से विश्वविद्यालय से जमीन हड़पी है। अब, जिसे हम अपने परिसर का हिस्सा मानते हैं वह आखिरी बची हुई जमीन जिसे छीनी जा रही है।”

शिक्षकों और छात्रों को डर है कि अगर यह जमीन चली गई, तो विश्वविद्यालय का विस्तार बुरी से बाधित होगा, जिससे एक प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में इसकी स्थिति कमजोर हो जाएगी। इससे भी अहम बात यह है कि वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि वाणिज्यिक उपक्रमों के पक्ष में हरित क्षेत्रों का अतिक्रमण एक खतरनाक मिसाल कायम करता है, जहां कॉर्पोरेट हितों को सार्वजनिक कल्याण और पर्यावरणीय स्थिरता से ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है।

तेलंगाना सरकार 400 एकड़ भूमि पर एकमात्र स्वामित्व का दावा करती रही है, लेकिन इसके बयान का कड़ा विरोध किया गया है। राज्य का कहना है कि 19 जुलाई, 2024 को विश्वविद्यालय के अधिकारियों की मौजूदगी में किए गए सर्वेक्षण ने पुष्टि की है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास भूमि पर कोई कानूनी दावा नहीं है। हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा है कि ऐसा कोई सर्वेक्षण कभी नहीं हुआ। संस्थान का कहना है कि वह बार-बार राज्य से उचित सीमांकन के लिए अनुरोध करता रहा है, लेकिन उसे अनदेखा कर दिया गया।

राज्य के कानूनी दावों के बावजूद, प्रदर्शनकारी छात्रों का दावा है कि मुद्दा केवल स्वामित्व का नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण और शैक्षणिक स्वायत्तता का है। यह भूमि हैदराबाद के आईटी कॉरिडोर के लिए एक अपूरणीय हरित फेफड़ा (irreplaceable green lung) है और इसे कॉर्पोरेट हितों को सौंपने के बजाय संरक्षित किया जाना चाहिए।

जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच छात्र अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं: परिसर के आसपास से पुलिस बलों और बुलडोजरों को तुरंत हटाया जाए, विश्वविद्यालय प्रशासन से लिखित आश्वासन दिया जाए कि वह अपने नाम से भूमि के कानूनी पंजीकरण के लिए लड़ेगा और भूमि से संबंधित दस्तावेजों और कार्यकारी निर्णयों में पारदर्शिता होगी।

विरोध प्रदर्शन की कवरेज पर कार्रवाई के बीच पत्रकार हिरासत में

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामा राव ने हैदराबाद विश्वविद्यालय में चल रहे छात्र विरोध प्रदर्शन को कवर करने वाले एक पत्रकार को कथित तौर पर हिरासत में लेने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली तेलंगाना सरकार की कड़ी आलोचना की है। केटीआर ने पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए इसे असहमति को दबाने के लिए राज्य की शक्ति का अत्यधिक इस्तेमाल बताया। उन्होंने सरकार पर प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने और आलोचनात्मक आवाजों को दबाने का आरोप लगाया। उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, "तेलंगाना में पुलिस की क्रूर कार्रवाई चिंताजनक है! पत्रकारों को हिरासत में लिया जा रहा है और असहमति जताने वालों को गिरफ्तार किया जा रहा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह खुला दमन अस्वीकार्य है। और राहुल गांधी लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में उपदेश देने निकल पड़े हैं। दोहरे मापदंड बेहद घृणित हैं।"



हिरासत में लिए गए पत्रकार की पहचान सुमित के रूप में हुई है, जो विश्वविद्यालय परिसर में वनों की सफाई का विरोध कर रहे छात्रों की गिरफ्तारी को रिकॉर्ड कर रहे थे। बाद में उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसको लेकर पुलिस द्वारा उन्हें हिरासत में लिया गया, जिससे प्रेस की स्वतंत्रता के समर्थकों में नाराजगी फैल गई। बीआरएस प्रवक्ता कृष्णक ने भी कांग्रेस सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि पत्रकारों को उनके काम के लिए गिरफ्तार करना लोकतंत्र में मीडिया की मौलिक भूमिका पर हमला है।

राजनीतिक विरोध तेज

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के कार्यकारी अध्यक्ष और तेलंगाना के पूर्व मंत्री के.टी. रामा राव ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से हैदराबाद विश्वविद्यालय में चल रहे भूमि विवाद में हस्तक्षेप करने का आह्वान किया है। मुंबई के आरे जंगल की सफाई के लिए गांधी के पिछले विरोध का हवाला देते हुए, केटीआर ने तेलंगाना में वनों की कटाई पर कांग्रेस की चुप्पी पर सवाल उठाया।



बढ़ते तनाव के बीच, तेलंगाना पुलिस ने 1 अप्रैल को विधायक पायल शंकर और धनपाल सूर्यनारायण गुप्ता सहित कई भाजपा नेताओं को हिरासत में लिया था, क्योंकि वे विश्वविद्यालय में छात्रों के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का प्रयास कर रहे थे। भाजपा ने इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाया है, तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष जी. किशन रेड्डी, केंद्रीय मंत्री बंदी संजय और भाजपा सांसदों ने दिल्ली में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात कर उनसे दखल देने की मांग की है।

केटीआर ने एक्स पर कई पोस्ट में कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर छात्रों की आवाज दबाने, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने और यहां तक कि वन्यजीवों को विस्थापित करने का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस खुद सहित बीआरएस नेताओं को विरोध स्थल पर जाने से रोक रही है। तुलना करते हुए, उन्होंने याद किया कि कैसे राहुल गांधी को के. चंद्रशेखर राव के कार्यकाल के दौरान दो बार हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दौरा करने पर रोहित वेमुला के लिए न्याय का समर्थन करने के लिए पूरी सुरक्षा दी गई थी। केटीआर ने पूछा, "यह पाखंड क्यों है, राहुल जी? आपकी सरकार दुनिया से क्या छिपाने की कोशिश कर रही है?"


इस मुद्दे पर वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की ओर से कोई सोशल मीडिया पोस्ट नहीं किया गया है। राहुल गांधी, जयराम रमेश और प्रियंका गांधी जैसे नेताओं ने विरोध, गिरफ्तारी, हिरासत या वनों की कटाई के बारे में कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है।

तेलंगाना सरकार ने भूमि नीलामी और विकास योजनाओं का बचाव किया

बढ़ते विरोध के बावजूद, तेलंगाना सरकार अपनी योजनाओं को आगे बढ़ा रही है। पिछले कुछ दिनों में पेड़ों और झाड़ियों की कटाई को लेकर भूमि को समतल करने के लिए भारी मशीनरी तैनात की गई है। मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने इस परियोजना का बचाव करते हुए कहा कि 400 एकड़ की साइट विकसित करने से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, 50,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा और पांच लाख नौकरियां पैदा होंगी। उन्होंने विपक्षी नेताओं को इस विकास में बाधा डालने का प्रयास करने वाले "चालाक" बताया।

31 मार्च को, तेलंगाना के राजस्व मंत्री पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी ने दावा किया था कि राज्य के पास भूमि का पूर्ण कानूनी स्वामित्व है। उन्होंने घोषणा की, "हमने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों में कानूनी लड़ाई जीतने के बाद इस भूमि पर कब्जा कर लिया। एक इंच भी हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का नहीं है। इस पर विवाद करने का कोई भी प्रयास न्यायालय की अवमानना है।"

विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र उपमुख्यमंत्री मल्लू भट्टी विक्रमार्क ने स्पष्ट किया कि एचसीयू ने लंबे समय से यह मान लिया था कि भूमि उसके अधिकार क्षेत्र में है। उन्होंने बताया कि जब तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) सरकार ने अतीत में एक निजी फर्म को 400 एकड़ आवंटित किया था, तो बदले में विश्वविद्यालय को गोपनपल्ली में 397 एकड़ का वैकल्पिक भूखंड दिया गया था।

एचसीयू के पूर्व छात्र और आईटी मंत्री श्रीधर बाबू के साथ भट्टी ने विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार और राज्य के राजस्व अधिकारियों के बीच हस्ताक्षरित समझौतों के सबूत पेश किए। श्रीधर बाबू ने आश्वासन दिया कि नीलामी और विकास से पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान नहीं होगा, जिसमें पीकॉक लेक और मशरूम रॉक जैसे स्थल शामिल हैं और छात्रों की इन साइटों तक पहुंच जारी रहेगी।

मंत्रियों ने विपक्षी दलों, विशेष रूप से बीआरएस पर छात्रों को गुमराह करने के लिए पुरानी तस्वीरों - जैसे कि मरे हुए हिरण की तस्वीरों का इस्तेमाल करके गलत सूचना फैलाने का भी आरोप लगाया। टीजीआईआईसी और मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के अधिकारियों ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड पुष्टि करते हैं कि 400 एकड़ का भूखंड वन भूमि के रूप में वर्गीकृत नहीं है, जो भाजपा के इस दावे का खंडन करता है कि यह एक संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आता है। अधिकारियों ने आगे खुलासा किया कि जुलाई 2024 में विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार की सहमति से एक सर्वेक्षण किया गया था और विश्वविद्यालय और सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति में सीमांकन को अंतिम रूप दिया गया था।

पृष्ठभूमि: हैदराबाद विश्वविद्यालय में 400 एकड़ भूमि विवाद

विवाद के केंद्र में 400 एकड़ भूमि का टुकड़ा, हैदराबाद विश्वविद्यालय (हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय) को मूल रूप से आवंटित लगभग 2,500 एकड़ भूमि का हिस्सा है, जब इसे 1974 में संसद के एक अधिनियम के माध्यम से स्थापित किया गया था। अविभाजित आंध्र प्रदेश सरकार ने यह भूमि दी थी, जो उस समय हैदराबाद के शहर के केंद्र से लगभग 20 किमी दूर एक दूरस्थ क्षेत्र था। पिछले कुछ वर्षों में हैदराबाद के वित्तीय जिले के विस्तार के साथ ये भूमि काफी कीमत वाली हो गई है, विशेष रूप से आईटी क्षेत्र और कॉर्पोरेट विकास के कारण।

रंग रेड्डी जिले के सेरिलिंगमपल्ली मंडल के कांचे गाचीबोवली गांव के सर्वेक्षण संख्या 25 में स्थित, यह भूमि अब विश्वविद्यालय, अंतर्राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (IIIT), इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (ISB) और माइक्रोसॉफ्ट जैसे प्रमुख प्रौद्योगिकी परिसरों सहित प्रमुख संस्थानों से घिरी हुई है।

जनवरी 2004 में, पास के गाचीबोवली खेल परिसर में 2003 के एफ्रो-एशियाई खेलों की सफल मेजबानी के बाद, तत्कालीन चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली सरकार ने खेल परिसरों के विकास के लिए इन 400 एकड़ जमीन को IMG अकादमी भारत प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित किया था। हालांकि, परियोजना कभी शुरू नहीं हुई जिसके कारण नवंबर 2006 में नायडू के उत्तराधिकारी वाई.एस. राजशेखर रेड्डी ने आवंटन रद्द कर दिया। बाद में यह जमीन राज्य के युवा उन्नति, पर्यटन और संस्कृति विभाग को हस्तांतरित कर दी गई।

IMG ने इसे रद्द करने को लेकर अदालत में चुनौती दी, जिसके नतीजे में लगभग दो दशकों तक लंबी कानूनी लड़ाई चली। जब दिसंबर 2023 में रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आई तो उसने इस मामले को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया। मार्च 2024 में तेलंगाना उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद IMG ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की लेकिन मई 2024 में याचिका खारिज कर दी गई। अदालत के फैसले के बाद तेलंगाना सरकार ने औपचारिक रूप से जमीन पर कब्जा कर लिया।

जून 2024 में, टीजीआईआईसी ने आईटी और वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिए 400 एकड़ के भूखंड का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव पेश किया। इसके बाद, 1 जुलाई 2024 को राजस्व विभाग ने आधिकारिक तौर पर भूमि को टीजीआईआईसी को हस्तांतरित कर दिया जिससे इसकी नीलामी और विकास का रास्ता साफ हो गया।

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