विरोध में दलित संगठनों के प्रतिनिधियों ने अधिकारी से मुलाकात कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की।

प्रतीकात्मक तस्वीर ; साभार : इंडियन एक्सप्रेस
मध्य प्रदेश के जबलपुर से करीब 37 किलोमीटर दूर पाटन तहसील के ग्राम पंचायत पौड़ी के चपोद टोले में एक बुजुर्ग की मौत के बाद अहिरवार समाज के लोग जब अंतिम संस्कार के लिए गए तो गांव के दबंगों ने उन्हें रोक दिया और कहा कि “यह जमीन तुम्हारी नहीं है, यहां दाह संस्कार नहीं होगा!” इस घटना के बाद लोग मजबूर होकर पुलिस से मदद मांगी और पुलिस की मौजूदगी में दाह संस्कार करना पड़ा।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, चपोद गांव में मुक्तिधाम न होने के कारण वर्षों से ग्रामीण गांव के बाहर स्थित शासकीय भूमि पर अंतिम संस्कार करते आ रहे थे। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही थी, लेकिन बीते कुछ वर्षों में गांव के ही पटेल परिवार ने इस शासकीय भूमि पर कब्जा कर खेती करना शुरू कर दिया। शुरुआत में किसी ने इसका विरोध नहीं किया, लेकिन जब भी किसी का निधन होता और अंतिम संस्कार के लिए शव उस स्थान पर लाया जाता, तो पटेल परिवार के लोग आपत्ति जताने लगे।
ज्ञात हो कि 25 मार्च को गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग शिवप्रसाद अहिरवार के बाद उनके परिजन उसी स्थान पर अंतिम संस्कार करने पहुंचे थे लेकिन, पटेल परिवार के लोगों ने यह कहते हुए दाह संस्कार करने से रोक दिया और कहा कि वहां उनकी फसल खड़ी है, जिसे आग लगने का खतरा है।
पीड़ित परिवार और अहिरवार समाज के लोगों ने इस घटना की जानकारी पाटन तहसीलदार और थाना प्रभारी को दी। सूचना मिलने के कुछ समय बाद पुलिस मौके पर पहुंची और दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझाने का प्रयास किया। आखिरकार प्रशासन ने दखल देते हुए बुजुर्ग का अंतिम संस्कार उस स्थान से दूर करवाया।
जब इस मामले की जानकारी डीएम दीपक कुमार सक्सेना को दी गई, तो उन्होंने एसडीएम और तहसीलदार को पटेल परिवार द्वारा कब्जाई गई शासकीय जमीन को मुक्त करवाने और वहां पर एक स्थायी मुक्तिधाम बनवाने के आदेश दिए।
ग्रामीणवासी बुजुर्ग दौलत अहिरवार ने मीडिया बताया कि वह पिछले करीब 30 सालों से देख रहे हैं कि गांव के बाहर इस जमीन पर अंतिम संस्कार होता आ रहा है। लेकिन, बीते कुछ वर्षों में शिवकुमार पटेल, पप्पू पटेल और सुदेश पटेल के परिवारों ने धीरे-धीरे करीब पौन एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया और खेती करने लगे।
उन्होंने कहा, "कुछ महीना पहले गांव के ही दो आदिवासी लड़कों की मृत्यु के बाद जब उनके परिजन शव लेकर दाह संस्कार के लिए पहुंचे तो पटेल परिवार ने विवाद खड़ा कर दिया था। आखिरकार, उन शवों का अंतिम संस्कार तालाब किनारे करना पड़ा। यह बहुत दुखद है कि आज भी हमारे गांव में कोई मुक्तिधाम नहीं है।"
घटना की जानकारी मिलने पर डीएम ने तहसीलदार और पटवारी को मौके पर जाकर भूमि का नाप करवाने और मुक्तिधाम निर्माण के लिए इस्टीमेट तैयार करवाने के निर्देश दिए।
तहसीलदार दिलीप हलवत ने बताया, "ग्राम चपोद में जिस स्थान पर अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ था, वह खसरा नंबर 100 पर स्थित शासकीय भूमि है। ग्रामीणों की मांग पर जल्द ही वहां पर एक स्थायी मुक्तिधाम का निर्माण किया जाएगा।"
घटना के विरोध में अनुसूचित जाति संगठनों के प्रतिनिधियों ने कलेक्टर से मुलाकात की और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। संगठनों ने प्रशासन से आग्रह किया कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए कठोर कदम उठाए जाएं।
डीएम दीपक कुमार सक्सेना ने कहा, "ग्राम चपोद में जहां लोग वर्षों से अंतिम संस्कार करते आ रहे थे, वह जमीन शासकीय है। लेकिन कुछ वर्षों पहले उस पर कब्जा कर खेती शुरू कर दी गई। अब इस मामले को संज्ञान में लिया गया है। 25 मार्च को अंतिम संस्कार करवा दिया गया और अब तहसीलदार को भेजकर उस भूमि को कब्जामुक्त करवा दिया गया है। जल्द ही वहां पर मुक्तिधाम का निर्माण कराया जाएगा।"
द मूकनायक से बातचीत में मध्य प्रदेश राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य एवं एससी कांग्रेस के अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार ने इस घटना को दलितों के संवैधानिक अधिकारों का खुला उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा, "यह सिर्फ एक गांव की घटना नहीं है, बल्कि पूरे मध्य प्रदेश में जातिवाद की जड़ों को दर्शाती है। संविधान ने हर नागरिक को बराबरी का हक दिया है, लेकिन आज भी दलितों को श्मशान तक इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जाती। यह घटना दर्शाती है कि प्रशासनिक तंत्र और कानून का डर खत्म हो गया है, जिससे ऐसे जातिगत अपराध बढ़ रहे हैं।" उन्होंने सरकार से मांग की कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो और पीड़ित परिवार को न्याय मिले।
ज्ञात हो कि हर दिन दलितों के साथ भेदभाव का मामला सामने आता रहता है। ऐसी ख़बरें देखने को मिलती हैं, जहां कभी दलित युवक की बारात को सड़क से गुजरने नहीं दिया जाता, तो कभी घोड़े पर बैठने पर दलित दूल्हे की हत्या कर दी जाती है। वहीं कभी सार्वजनिक हैंडपंप का पानी पीने के लिए उनकी पिटाई की जाती है तो कभी गांव के सार्वजनिक श्मशान में दलितों के शवों का अंतिम संस्कार करने की मनाही होती है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर ; साभार : इंडियन एक्सप्रेस
मध्य प्रदेश के जबलपुर से करीब 37 किलोमीटर दूर पाटन तहसील के ग्राम पंचायत पौड़ी के चपोद टोले में एक बुजुर्ग की मौत के बाद अहिरवार समाज के लोग जब अंतिम संस्कार के लिए गए तो गांव के दबंगों ने उन्हें रोक दिया और कहा कि “यह जमीन तुम्हारी नहीं है, यहां दाह संस्कार नहीं होगा!” इस घटना के बाद लोग मजबूर होकर पुलिस से मदद मांगी और पुलिस की मौजूदगी में दाह संस्कार करना पड़ा।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, चपोद गांव में मुक्तिधाम न होने के कारण वर्षों से ग्रामीण गांव के बाहर स्थित शासकीय भूमि पर अंतिम संस्कार करते आ रहे थे। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही थी, लेकिन बीते कुछ वर्षों में गांव के ही पटेल परिवार ने इस शासकीय भूमि पर कब्जा कर खेती करना शुरू कर दिया। शुरुआत में किसी ने इसका विरोध नहीं किया, लेकिन जब भी किसी का निधन होता और अंतिम संस्कार के लिए शव उस स्थान पर लाया जाता, तो पटेल परिवार के लोग आपत्ति जताने लगे।
ज्ञात हो कि 25 मार्च को गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग शिवप्रसाद अहिरवार के बाद उनके परिजन उसी स्थान पर अंतिम संस्कार करने पहुंचे थे लेकिन, पटेल परिवार के लोगों ने यह कहते हुए दाह संस्कार करने से रोक दिया और कहा कि वहां उनकी फसल खड़ी है, जिसे आग लगने का खतरा है।
पीड़ित परिवार और अहिरवार समाज के लोगों ने इस घटना की जानकारी पाटन तहसीलदार और थाना प्रभारी को दी। सूचना मिलने के कुछ समय बाद पुलिस मौके पर पहुंची और दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझाने का प्रयास किया। आखिरकार प्रशासन ने दखल देते हुए बुजुर्ग का अंतिम संस्कार उस स्थान से दूर करवाया।
जब इस मामले की जानकारी डीएम दीपक कुमार सक्सेना को दी गई, तो उन्होंने एसडीएम और तहसीलदार को पटेल परिवार द्वारा कब्जाई गई शासकीय जमीन को मुक्त करवाने और वहां पर एक स्थायी मुक्तिधाम बनवाने के आदेश दिए।
ग्रामीणवासी बुजुर्ग दौलत अहिरवार ने मीडिया बताया कि वह पिछले करीब 30 सालों से देख रहे हैं कि गांव के बाहर इस जमीन पर अंतिम संस्कार होता आ रहा है। लेकिन, बीते कुछ वर्षों में शिवकुमार पटेल, पप्पू पटेल और सुदेश पटेल के परिवारों ने धीरे-धीरे करीब पौन एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया और खेती करने लगे।
उन्होंने कहा, "कुछ महीना पहले गांव के ही दो आदिवासी लड़कों की मृत्यु के बाद जब उनके परिजन शव लेकर दाह संस्कार के लिए पहुंचे तो पटेल परिवार ने विवाद खड़ा कर दिया था। आखिरकार, उन शवों का अंतिम संस्कार तालाब किनारे करना पड़ा। यह बहुत दुखद है कि आज भी हमारे गांव में कोई मुक्तिधाम नहीं है।"
घटना की जानकारी मिलने पर डीएम ने तहसीलदार और पटवारी को मौके पर जाकर भूमि का नाप करवाने और मुक्तिधाम निर्माण के लिए इस्टीमेट तैयार करवाने के निर्देश दिए।
तहसीलदार दिलीप हलवत ने बताया, "ग्राम चपोद में जिस स्थान पर अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ था, वह खसरा नंबर 100 पर स्थित शासकीय भूमि है। ग्रामीणों की मांग पर जल्द ही वहां पर एक स्थायी मुक्तिधाम का निर्माण किया जाएगा।"
घटना के विरोध में अनुसूचित जाति संगठनों के प्रतिनिधियों ने कलेक्टर से मुलाकात की और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। संगठनों ने प्रशासन से आग्रह किया कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए कठोर कदम उठाए जाएं।
डीएम दीपक कुमार सक्सेना ने कहा, "ग्राम चपोद में जहां लोग वर्षों से अंतिम संस्कार करते आ रहे थे, वह जमीन शासकीय है। लेकिन कुछ वर्षों पहले उस पर कब्जा कर खेती शुरू कर दी गई। अब इस मामले को संज्ञान में लिया गया है। 25 मार्च को अंतिम संस्कार करवा दिया गया और अब तहसीलदार को भेजकर उस भूमि को कब्जामुक्त करवा दिया गया है। जल्द ही वहां पर मुक्तिधाम का निर्माण कराया जाएगा।"
द मूकनायक से बातचीत में मध्य प्रदेश राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य एवं एससी कांग्रेस के अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार ने इस घटना को दलितों के संवैधानिक अधिकारों का खुला उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा, "यह सिर्फ एक गांव की घटना नहीं है, बल्कि पूरे मध्य प्रदेश में जातिवाद की जड़ों को दर्शाती है। संविधान ने हर नागरिक को बराबरी का हक दिया है, लेकिन आज भी दलितों को श्मशान तक इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जाती। यह घटना दर्शाती है कि प्रशासनिक तंत्र और कानून का डर खत्म हो गया है, जिससे ऐसे जातिगत अपराध बढ़ रहे हैं।" उन्होंने सरकार से मांग की कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो और पीड़ित परिवार को न्याय मिले।
ज्ञात हो कि हर दिन दलितों के साथ भेदभाव का मामला सामने आता रहता है। ऐसी ख़बरें देखने को मिलती हैं, जहां कभी दलित युवक की बारात को सड़क से गुजरने नहीं दिया जाता, तो कभी घोड़े पर बैठने पर दलित दूल्हे की हत्या कर दी जाती है। वहीं कभी सार्वजनिक हैंडपंप का पानी पीने के लिए उनकी पिटाई की जाती है तो कभी गांव के सार्वजनिक श्मशान में दलितों के शवों का अंतिम संस्कार करने की मनाही होती है।
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