तेलंगाना : पत्रकारों को जमानत, अदालत ने ‘संगठित अपराध’ के आरोप को खारिज किया

Written by sabrang india | Published on: March 18, 2025
मुख्यमंत्री रेवंथ रेड्डी के खिलाफ कथित ‘अपमानजनक’ टिप्पणी के लिए पुलिस की छापेमारी में पल्स न्यूज के पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया। अदालत ने संगठित अपराध के आरोप को खारिज कर दिया। तेलंगाना सरकार द्वारा असहमति को दबाने के लिए कानून के दुरुपयोग को लेकर चिंता जताई गई।



तेलंगाना में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा करने वाले एक मामले में हैदराबाद की एक अदालत ने गिरफ्तार किए गए दो पत्रकारों के खिलाफ संगठित अपराध के आरोप को खारिज कर दिया। अदालत ने फैसला सुनाया कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 111 उन पर लागू नहीं हो सकती, क्योंकि इसमें संगठित अपराध या पैसे के लेनदेन का कोई तत्व शामिल नहीं था। पल्स न्यूज के प्रबंध निदेशक पोगदंडा रेवती और उसी चैनल के रिपोर्टर थानवी यादव को बाद में जमानत दे दी गई। अदालत ने उन्हें 25,000 रूपये के दो अलग अलग जमानत पेश करने का निर्देश दिया। इन पत्रकारों को मुख्यमंत्री रेवंथ रेड्डी के बारे में कथित अपमानजनक सामग्री को पोस्ट करने को लेकर गिरफ्तार किया गया था।

उनके खिलाफ मामला उनके एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर पोस्ट किए गए एक वीडियो से विवाद में आया, जिसमें एक किसान ने कथित तौर पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी। कांग्रेस की राज्य सोशल मीडिया इकाई के प्रमुख द्वारा दायर की गई शिकायत में आरोप लगाया गया है कि वीडियो का उद्देश्य अशांति भड़काना था और यह पल्स न्यूज द्वारा सीएम को बदनाम करने के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास था। पुलिस ने दावा किया कि वीडियो भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) मुख्यालय में शूट किया गया था और इसके रिलीज के पीछे एक राजनीतिक साजिश का संदेह है। "निप्पूकोडी" नामक एक्स अकाउंट का यूजर भी पुलिस की जांच और हिरासत में है।

अदालत ने संगठित अपराध के आरोप को खारिज करने के बावजूद, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और बीएनएस के तहत झूठी सूचना तैयार करने और प्रसारित करने से संबंधित अन्य प्रावधानों को बरकरार रखा। हालांकि, जिस तरह से तेलंगाना पुलिस ने काम किया - सुबह-सुबह छापेमारी करना और पत्रकारों को राजनीतिक प्रतिशोध की तरह गिरफ्तार करना - उसकी चारो तरफ से तीखी आलोचना हो रही है।

संदिग्ध परिस्थितियों में गिरफ्तारी

इस मामले में तेलंगाना पुलिस के बर्ताव ने सत्ता के दुरुपयोग के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा की हैं। रेवती को 12 मार्च को सुबह 5 बजे उनके घर से गिरफ्तार किया गया। यह तरीका आपातकाल के दौर की तानाशाही कार्रवाई की याद दिलाता है। गिरफ्तारी से पहले पोस्ट किए गए एक वीडियो में उन्होंने कहा, "पुलिस मेरे दरवाजो पर है! वे मुझे गिरफ्तार करना चाहते हैं। वे मुझे उठाकर ले जा सकते हैं। एक बात साफ है: रेवंत रेड्डी मुझ पर और मेरे परिवार पर दबाव डालना चाहते हैं और मुझे धमकाना चाहते हैं।"



पुलिस के अनुसार, गिरफ्तारी उचित थी क्योंकि पत्रकारों का आचरण काफी भड़काऊ था और इससे कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती थी। सरकारी वकील ने उनकी जमानत का विरोध करते हुए तर्क दिया कि पुलिस को जांच के लिए और समय चाहिए। हालांकि, रेवती और थानवी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील जक्कुला रमेश ने आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया कि पुलिस ने राजनीतिक दबाव में काम किया है। उन्होंने बताया कि अन्य किसी भी आरोप में सात साल से ज्यादा की सजा नहीं है, जिससे तत्काल गिरफ्तारी अनुचित हो जाती है। न्यायालय ने धारा 111 को निरस्त करते हुए सहमति जताते हुए कहा कि इस स्तर पर यह अनुचित है।

आलोचना और प्रेस के खिलाफ रेवंत रेड्डी की चेतावनी

इस मामले को और भी ज्यादा परेशान करने वाली बात खुद मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की प्रतिक्रिया है। गिरफ्तारियों के कुछ दिनों बाद, उन्होंने विधानसभा में सोशल मीडिया की आलोचना पर तीखा हमला किया और चेतावनी दी कि "पत्रकारिता की आड़ में अपमानजनक प्रोपगेंडा" करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने एक और कदम आगे बढ़ते हुए खुलेआम चेतावनी भरी टिप्पणी की, जिसमें कहा गया कि जो लोग सीमा पार करेंगे उनको नंगा कर दिया जाएगा और परेड कराया जाएगा।

उनके इस तरह के विचार से स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रति दुश्मनी का पता चलता है और यह संकेत मिलता है कि उनकी सरकार आलोचकों को चुप कराने के लिए कानून का हथियार बनाने को तैयार है। हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, सीएम रेड्डी ने कहा, "हम ऐसे अपराधियों को जरूरत के हिसाब से जवाब देंगे। अगर वे मुखौटे के पीछे छिपे हैं, तो वह पर्दा हटा दिया जाएगा और उनका पर्दाफाश किया जाएगा। तमाशा मत बनाओ। मैं भी एक इंसान हूं... हम कानून के अनुसार सख्ती से काम करेंगे और किसी भी सीमा को पार नहीं करेंगे।"

एक पदस्थ मुख्यमंत्री की ओर से किए गए ऐसे बयान, तानाशाही की ओर एक खतरनाक बदलाव का संकेत देते हैं, जहां सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किए जाने का खतरा रहता है।

गिरफ्तारियों की चौतरफा निंदा

इन गिरफ्तारियों की काफी आलोचना हुई है। खास तौर पर भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने जिसने कांग्रेस सरकार पर असहमति के प्रति असहिष्णु होने का आरोप लगाया है। पूर्व मंत्री और वरिष्ठ बीआरएस नेता के.टी. रामा राव ने इस स्थिति की तुलना आपातकाल से की और इन गिरफ्तारियों को “प्रेस की आजादी पर जबरदस्त हमला” बताया। एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, “ऐसा लगता है कि तेलंगाना में आपातकाल की स्थिति फिर से आ गई है… क्या यही वह लोकतंत्र है जिसकी आप बात करते हैं, राहुल गांधी? सुबह-सुबह दो महिला पत्रकारों को गिरफ्तार करना! उनका अपराध क्या है? अक्षम और भ्रष्ट कांग्रेस सरकार पर जनता की राय को आवाज देना?”

टी हरीश राव और कलवकुंतला कविता सहित अन्य बीआरएस नेताओं ने भी तेलंगाना सरकार की निंदा की। हरीश राव ने सवाल उठाया कि क्या तेलंगाना तानाशाही में बदल रहा है, उन्होंने कहा, “रेवंत रेड्डी की सरकार इन गिरफ्तारियों के सवालों का जवाब देती है।”



राजनीतिक हस्तियों के अलावा, नागरिक समाज समूहों और पत्रकार संगठनों ने भी इन गिरफ्तारियों की निंदा की है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने पुलिस की सुबह-सुबह की गई कार्रवाई की कड़ी आलोचना करते हुए एक बयान जारी किया और इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर हमला बताया। कांग्रेस के पूर्व नेता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने भी इस कदम की निंदा करते हुए कहा,

“गिरफ्तारी कोई समाधान नहीं है। यह असहिष्णुता नामक संक्रामक बीमारी का परिणाम है।”


पुलिस द्वारा जब्ती और दुर्व्यवहार के आरोप

पुलिस की ज्यादतियों के बारे में चिंताओं को बढ़ाते हुए, हैदराबाद पुलिस ने माधापुर में पल्स न्यूज के कार्यालय पर छापा मारा और जब्त किया:

●दो लैपटॉप

●दो हार्ड डिस्क

●सात सीपीयू

●अन्य डिजिटल उपकरण

रेवती के वकील ने आरोप लगाया कि पुलिस ने दोनों पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार किया और न्यायाधीश ने पुलिस की इन ज्यादतियों पर ध्यान दिया है। इस तरह की कार्रवाइयों से पता चलता है कि पुलिस केवल जांच नहीं कर रही थी बल्कि एक संदेश भेज रही थी। अन्य पत्रकारों को चेतावनी कि वे नियमों का पालन करें या फिर उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाएगा।

प्रेस की स्वतंत्रता पर कांग्रेस का पाखंड

तेलंगाना कांग्रेस जिसने खुद को लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रक्षक के रूप में लंबे समय से स्थापित किया है, उसने अब अपने पाखंड को उजागर कर दिया है। वही पार्टी जो अक्सर भाजपा पर पत्रकारों को दबाने का आरोप लगाती रही है, लेकिन वह अब उसी चाल पर चल रही है, आलोचना को चुप कराने के लिए राज्य की शक्ति का इस्तेमाल कर रही है।

कांग्रेस नेताओं ने पुलिस का बचाव करने की कोशिश की है, उनका दावा है कि पत्रकारों के बीआरएस से संबंध थे और वे पिछले दो महीनों से सरकार के खिलाफ प्रोपगेंडा फैला रहे थे। हालांकि, गिरफ्तारी की मनमानी प्रकृति, विधानसभा सत्र से पहले का समय और सुबह-सुबह की गई छापेमारी के सामने यह औचित्य पूरी तरह से बेमानी है। ये सभी राजनीतिक रूप से प्रेरित कार्रवाई के लक्षण हैं।

निष्कर्ष: तेलंगाना में एक खतरनाक मिसाल कायम की जा रही है

रेवती और थानवी यादव की गिरफ्तारी कोई अलग मामला नहीं है; यह एक भयावह संकेत है कि रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली तेलंगाना सरकार के तहत दमन का एक पैटर्न बन सकता है। पुलिस को इस तरह के बेशर्मी से तानाशाही तरीके से काम करने की अनुमति देकर, कांग्रेस सरकार ने दिखाया है कि वह अपनी इमेज की हिफाजत के लिए प्रेस की स्वतंत्रता को कमजोर करने के लिए तैयार है।

यह घटना एक खतरनाक मिसाल कायम करती है। अगर पत्रकारों को सिर्फ अपनी राय साझा करने या लोगों की शिकायतों को बढ़ाने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है तो कोई भी आलोचनात्मक मीडिया आउटलेट सुरक्षित नहीं है। प्रेस की आजादी पर इस अनुचित हमले के लिए तेलंगाना सरकार को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और नागरिक समाज को इस बढ़ते दमनकारी माहौल के खिलाफ़ आवाज उठानी चाहिए।

अगर इस तरह की प्रवृत्ति जारी रही तो तेलंगाना एक और ऐसा राज्य बन जाएगा जहां पत्रकारों को डर के साये में काम करना होगा, जहां सरकार तय करेगी कि क्या कहा जा सकता है और क्या नहीं, और जहां राजनीतिक अस्तित्व के नाम पर लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को कुचला जा रहा है।

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