"सरकार किसानों की मांगों पर प्राथमिकता से विचार करे तभी उनके साथ वाजिब न्याय हो सकेगा"

Written by sabrang india | Published on: December 24, 2024
"सरकार को प्रदर्शनकारी किसानों की मांगों पर तत्काल ध्यान देना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए तथा सरकार जगजीत सिंह दल्लेवाल, सरवन सिंह पंडेर और अन्य किसान नेताओं के साथ बातचीत करे।"



तीन कृषि कानूनों को रद्द करने को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन के बाद एक बार फिर किसानों ने अपनी पुरानी मांगों को दोहराया है। किसानों के प्रदर्शन के बीच पीयूसीएल ने सरकार से एमएसपी समेत कई मांगें की है। इन मांगों को लेकर हाल ही में किसानों ने दिल्ली कूच का ऐलान किया था लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर बैरिकेडिंग लगाकर उन्हें रोक दिया गया।

इस बीच पीयूसीएल के अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने कहा है कि वह "इस बात से स्तब्ध है कि भारत सरकार ने पंजाब की खनौरी और शंभू सीमाओं पर बैठे किसानों के 10 महीने लंबे विरोध प्रदर्शन का जवाब देने से इनकार कर दिया है। इससे भी बुरी बात यह है कि एसकेएम (गैर-राजनीतिक) के नेता, 73 वर्षीय जगजीत सिंह दल्लेवाल के आमरण अनशन के प्रति पूरी तरह से उपेक्षा और संवेदनहीन रवैया अपनाया गया है, जो कि डॉक्टरों के अनुसार अनशन के 27वें दिन (22दिसंबर, 2024), बहुत गंभीर है और अगर उपवास वापस नहीं लिया गया तो कार्डियक अरेस्ट और मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर का बहुत अधिक खतरा है। फिर भी सरकार के किसी भी प्रतिनिधि को जगजीत सिंह दल्लेवाल या सीमाओं पर बैठे प्रदर्शनकारी किसानों के समूह से बातचीत करने या सुनने के लिए नहीं भेजा गया है।”

किसानों के मुद्दे को उठाते हुए संगठन ने कहा कि, "लोकतंत्र लोगों की आवाज सुनने के बारे में है और जब किसान अपना दर्द, गुस्सा और असंतोष व्यक्त कर रहे हैं, तो यह जरूरी है कि सरकार उनकी बात सुने। विरोध प्रदर्शनों को नजरअंदाज करने से यह संदेश जाता है कि सरकार देश की जीवनरेखा यानी किसानों की चिंताओं पर प्रतिक्रिया नहीं दे रही है। भारत सरकार द्वारा अपनाया गया असहमति को नजरअंदाज करने और कुचलने का यह सत्तावादी रास्ता, भारत की दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने की छवि के साथ कोई न्याय नहीं करता है।”

वहीं पिछले किसान आंदोलन के दौरान एमएसपी की उठी मांग को लेकर संगठन का कहना है कि, "यह भी याद किया जाना चाहिए कि दिल्ली की सीमाओं पर साल भर चलने वाले किसानों के आंदोलन (नवंबर, 2021 से दिसंबर, 2022) को आंदोलनरत किसान समूहों ने भारत सरकार द्वारा अन्य मांगों के साथ सभी फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी सुनिश्चित करने के वादे के बाद हटा दिया था। वादे के चौदह महीने सरकार की बिना किसी प्रतिक्रिया के बीत जाने के बाद किसानों का उत्तेजित हो जाना स्वाभाविक है।"

केंद्र सरकार द्वारा किसानों से किए गए वादों की याद दिलाते हुए पीयूसीएल ने कहा कि, "काफी सोच-विचार के बाद ही 13 फरवरी, 2023 को सैकड़ों यूनियनों और समूहों वाले किसानों के दो मंचों, संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए हजारों की संख्या में दिल्ली तक मार्च करने का फैसला किया। भारत सरकार की 2022 में दिल्ली सीमा पर लाखों प्रदर्शनकारी किसानों से किए गए वादों को पूरा करने की जवाबदेही है। जैसा कि अपेक्षित था, सरकार ने किसानों को पंजाब में पंजाब-हरियाणा सीमा के दोनों गांवों खनौरी और शंभू में पुनःरोक दिया गया। गौरतलब है कि किसानों पर गोलियां और पैलेट गन से हमला किया गया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई घायल हो गए। कुछ युवा किसानों पर पुलिस अत्याचार हुआ, जिन्हें बाद में अस्पताल में भर्ती कराया गया।"

ज्ञात हो कि शुरुआत में केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों ने किसान नेताओं से बात की थी और उनसे दिल्ली कूच न करने का आग्रह किया था। हालांकि, जब किसानों ने अपनी योजना वापस नहीं ली तो भारत सरकार ने उनसे मिलने से भी इनकार कर दिया और उनकी अनदेखी की। किसानों की ओर से कई प्रयास किए गए, लेकिन भारत सरकार ने पिछले 10 महीनों में किसानों की बात सुनने से इनकार कर दिया।

वहीं सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद ही किसानों की मांगों की व्यवहारिकता की जांच करने के लिए भारत सरकार द्वारा एक समिति का गठन किया। रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार ने इस समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया। जब विरोध करने वाले किसानों को सरकार द्वारा दिल्ली में प्रवेश करने से रोक दिया गया और हरियाणा पुलिस द्वारा उन पर कार्रवाई की गई तो किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने 26 नवंबर से आमरण अनशन शुरू कर दिया।

किसानों का कहना था कि जब उन्हें केंद्र सरकार की ओर से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली तो 6, 8 और 14 दिसंबर को किसानों ने सैकड़ों की संख्या में हरियाणा में प्रवेश करने और ट्रैक्टर छोड़कर निहत्थे पैदल चलकर दिल्ली की ओर मार्च करने की कोशिश की। हरियाणा पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े। वहीं किसानों ने 18 दिसंबर को रेल रोको आंदोलन भी किया। इस महीने की शुरुआत में किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने घोषणा करते हुए कहा कि किसानों ने 30 दिसंबर को 'पंजाब बंद' का आह्वान किया है।

पीयूसीएल ने कहा कि "सरकार को प्रदर्शनकारी किसानों की मांगों पर तत्काल ध्यान देना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए तथा सरकार जगजीत सिंह दल्लेवाल, सरवन सिंह पंडेर और अन्य किसान नेताओं के साथ बातचीत करे।"

संगठन ने सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग की है। इसके अलावा किसान प्रस्तावित बिजली सुधारों और कृषि कनेक्शनों के लिए स्मार्ट मीटरों की चल रही स्थापना का विरोध करते हुए बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को वापस लेने की भी मांग की है। वहीं किसानों की व्यापक ऋण माफी से साथ बकाया ऋण को पूरी तरह से रद्द करने के साथ ही 2021 की लखीमपुर खीरी हिंसा से जुड़े पुलिस मामलों को वापस लेने और निष्पक्ष जांच और आरोपियों के लिए निष्पक्ष सुनवाई की मांग की है। वहीं संगठन ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को बहाल करने और 2020-21 के आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की भी मांग की है।

पीयूसीएल ने कहा कि उसकी मांग है कि सरकार इन बिंदुओं पर प्राथमिकता से विचार करे तथा ऐसा करने पर ही किसानों के साथ वाजिब न्याय हो सकेगा।

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