ग्रेटर नोएडा में ग्रामीण एकजुटता दिखाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विरोध प्रदर्शन में शामिल होने को लेकर जेल में बंद किसानों की तत्काल रिहाई की मांग के लिए कैंडल जलाकर जुलूस निकाल रहे हैं। ये शांतिपूर्ण मार्च लगातार बढ़ रहे हैं, जो न्याय और बेहतर मुआवजे के लिए किसानों के चल रहे संघर्ष को दिखाते हैं।
ग्रेटर नोएडा के गांवों में, कैंडल जलाकर रात को जुलूस निकाले जा रहे हैं, क्योंकि किसान उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा हिरासत में लिए गए अपने साथी कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई की मांग कर रहे हैं। 17 दिसंबर के अदालती फैसले के बाद विरोध प्रदर्शनों ने रफ्तार पकड़ ली है, जिसमें पहले के प्रदर्शनों के दौरान गिरफ्तार किए गए 86 किसानों को जमानत दी गई थी। किसानों से अधिग्रहित भूमि के लिए अधिक मुआवजे के वादे को पूरा करने में सरकार द्वारा विफल रहने के बाद भड़के इन विरोध प्रदर्शनों को व्यापक समर्थन मिला है।
पृष्ठभूमि
17 दिसंबर (मंगलवार) को ग्रेटर नोएडा में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया, जब एक अदालत ने इस महीने की शुरुआत में विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार किए गए 86 किसानों को जमानत दे दी। इन किसानों को क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण के लिए अधिक मुआवजे की मांग करने वाले प्रदर्शनों के दौरान हिरासत में लिया गया था। ये गिरफ्तारियां 4 और 5 दिसंबर को ग्रेटर नोएडा के जीरो पॉइंट पर हुई थी जहां 136 किसानों को हिरासत में लिया गया था। पिछले सप्ताह आठ किसानों को जमानत पर रिहा कर दिया गया था, जबकि मंगलवार को जमानत पर रिहा किए गए 86 किसान तब तक जेल में रहेंगे जब तक वे 20,000 रुपये का मुचलका जमा नहीं कर देते।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए किसानों से अधिग्रहित भूमि के लिए बढ़े हुए मुआवजे के वादे को पूरा करने में विफल रहने के बाद किसानों का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। किसान यूनियनों जैसे भारतीय किसान यूनियन (BKU) के नेतृत्व में, किसान बढ़ती लागत और अपनी जमीन की कीमत को ध्यान में रखते हुए मुआवजे की दरों की मांग कर रहे हैं। इन विरोध प्रदर्शनों के कारण बाधा उत्पन्न हुए, जिसमें 5 दिसंबर को नोएडा एक्सप्रेसवे की नाकाबंदी भी शामिल है, जब प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर बैरिकेड्स को क्षतिग्रस्त कर दिया और उनकी पुलिस के साथ झड़प हुई।
सब-इंस्पेक्टर राहुल कुमार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की, जिसमें उन पर दंगा करने, गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा होने और सरकारी कर्मचारियों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया। अपनी शिकायत में कुमार ने कहा कि पुलिस द्वारा तनाव कम करने के प्रयासों के बावजूद, प्रदर्शनकारियों ने सरकार और पुलिस के खिलाफ नारे लगाया जिससे स्थिति और बिगड़ गई। हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, किसान नेताओं का कहना है कि उनका विरोध शांतिपूर्ण था और आरोप मनगढ़ंत थे।
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में किसानों का संघर्ष
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में किसानों का संघर्ष उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध का एक सशक्त उदाहरण है, जो लंबे समय से तनाव का कारण रही हैं। यह संघर्ष किसानों की उचित मुआवजे और वैकल्पिक आजीविका की मांगों में गहराई से निहित है।
भूमि अधिग्रहण और राजनीतिक प्रासंगिकता
इस क्षेत्र में किसानों के विरोध की वजह कई प्रमुख विकास परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की चल रही प्रक्रिया है। इनमें ग्रेटर नोएडा और नोएडा औद्योगिक क्षेत्रों, यमुना एक्सप्रेसवे, जेवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (यूपीएसआईडीसी) के तहत विभिन्न परियोजनाओं का निर्माण शामिल है। किसानों का कहना है कि उनकी भूमि को उचित मुआवजे के बिना अधिग्रहित किया गया, जिससे उन्हें अपनी आजीविका के लिए पर्याप्त मदद नहीं मिल पाया। इस क्षेत्र में भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष ने राजनीतिक प्रासंगिकता हासिल कर ली है क्योंकि यह राज्य सरकार और इन भूमि अधिग्रहणों से लाभान्वित होने वाली कॉर्पोरेट ताकतों के बीच शोषणकारी संबंधों को उजागर करता है।
पिछले संघर्ष और किसान एकजुटता
किसानों के संघर्ष कई वर्षों से चल रहे हैं, जिसमें अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) ने किसानों को संगठित करने और समुदायों के बीच एकजुटता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2023 में, किसानों द्वारा एक उच्च-शक्ति समिति के गठन के लिए सफलतापूर्वक दबाव डालने के बाद, सरकार ने कई वादा किया, जिसमें अधिक मुआवजा और अधिग्रहित भूमि का एक हिस्सा वापस करना शामिल है। हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार इन सिफारिशों को लागू करने में विफल रही है, जिससे किसानों को अपना संघर्ष तेज करने के लिए उकसाया जा रहा है।
नवंबर-दिसंबर 2024: विरोध प्रदर्शनों में तेजी
नवंबर और दिसंबर 2024 में स्थिति तब और बिगड़ गई, जब संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले दस प्रमुख किसान संगठनों ने 25 नवंबर को ग्रेटर नोएडा में महापंचायत बुलाया। बड़ी संख्या में महिलाओं सहित किसानों ने उत्तर प्रदेश सरकार से उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की। जब सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया तो किसानों ने 26 नवंबर से 1 दिसंबर तक दिन-रात विरोध प्रदर्शन किया।
हिंसक दमन और गिरफ़्तारियां
2 दिसंबर, 2024 को, हजारों किसानों ने दिल्ली की ओर मार्च करने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस बैरिकेड्स द्वारा उन्हें रोक दिया गया, जिसके नतीजे में यातायात बाधित हुआ। सरकार ने किसानों से बातचीत करने के कई वादे करके जवाब दिया, लेकिन 3 दिसंबर को स्थिति और बिगड़ गई, जब पुलिस बलों ने प्रदर्शनकारियों को हिंसक तरीके से खदेड़ दिया। प्रमुख नेताओं सहित 160 से अधिक किसानों को गिरफ्तार कर लुक्सर जेल भेज दिया गया, जबकि कई अन्य को उनके घरों में नज़रबंद करके हिरासत में रखा गया।
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष भूमि अधिग्रहण, मुआवजा और ग्रामीण किसानों के अधिकारों से जुड़े व्यापक मुद्दों का प्रतीक बन गया है। यह भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की कॉर्पोरेट-हितैषी नीतियों के लिए एक सीधी चुनौती है और इसने देश भर के किसानों से व्यापक समर्थन प्राप्त किया है। आंदोलन लगातार तेज हो रहा है, और ज्यादा विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई जा रही है और किसान अपने उचित मांगों को लेकर अड़े हुए हैं।
ग्रेटर नोएडा के गांवों में, कैंडल जलाकर रात को जुलूस निकाले जा रहे हैं, क्योंकि किसान उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा हिरासत में लिए गए अपने साथी कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई की मांग कर रहे हैं। 17 दिसंबर के अदालती फैसले के बाद विरोध प्रदर्शनों ने रफ्तार पकड़ ली है, जिसमें पहले के प्रदर्शनों के दौरान गिरफ्तार किए गए 86 किसानों को जमानत दी गई थी। किसानों से अधिग्रहित भूमि के लिए अधिक मुआवजे के वादे को पूरा करने में सरकार द्वारा विफल रहने के बाद भड़के इन विरोध प्रदर्शनों को व्यापक समर्थन मिला है।
पृष्ठभूमि
17 दिसंबर (मंगलवार) को ग्रेटर नोएडा में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया, जब एक अदालत ने इस महीने की शुरुआत में विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार किए गए 86 किसानों को जमानत दे दी। इन किसानों को क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण के लिए अधिक मुआवजे की मांग करने वाले प्रदर्शनों के दौरान हिरासत में लिया गया था। ये गिरफ्तारियां 4 और 5 दिसंबर को ग्रेटर नोएडा के जीरो पॉइंट पर हुई थी जहां 136 किसानों को हिरासत में लिया गया था। पिछले सप्ताह आठ किसानों को जमानत पर रिहा कर दिया गया था, जबकि मंगलवार को जमानत पर रिहा किए गए 86 किसान तब तक जेल में रहेंगे जब तक वे 20,000 रुपये का मुचलका जमा नहीं कर देते।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए किसानों से अधिग्रहित भूमि के लिए बढ़े हुए मुआवजे के वादे को पूरा करने में विफल रहने के बाद किसानों का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। किसान यूनियनों जैसे भारतीय किसान यूनियन (BKU) के नेतृत्व में, किसान बढ़ती लागत और अपनी जमीन की कीमत को ध्यान में रखते हुए मुआवजे की दरों की मांग कर रहे हैं। इन विरोध प्रदर्शनों के कारण बाधा उत्पन्न हुए, जिसमें 5 दिसंबर को नोएडा एक्सप्रेसवे की नाकाबंदी भी शामिल है, जब प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर बैरिकेड्स को क्षतिग्रस्त कर दिया और उनकी पुलिस के साथ झड़प हुई।
सब-इंस्पेक्टर राहुल कुमार ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की, जिसमें उन पर दंगा करने, गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा होने और सरकारी कर्मचारियों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया। अपनी शिकायत में कुमार ने कहा कि पुलिस द्वारा तनाव कम करने के प्रयासों के बावजूद, प्रदर्शनकारियों ने सरकार और पुलिस के खिलाफ नारे लगाया जिससे स्थिति और बिगड़ गई। हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, किसान नेताओं का कहना है कि उनका विरोध शांतिपूर्ण था और आरोप मनगढ़ंत थे।
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में किसानों का संघर्ष
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में किसानों का संघर्ष उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध का एक सशक्त उदाहरण है, जो लंबे समय से तनाव का कारण रही हैं। यह संघर्ष किसानों की उचित मुआवजे और वैकल्पिक आजीविका की मांगों में गहराई से निहित है।
भूमि अधिग्रहण और राजनीतिक प्रासंगिकता
इस क्षेत्र में किसानों के विरोध की वजह कई प्रमुख विकास परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की चल रही प्रक्रिया है। इनमें ग्रेटर नोएडा और नोएडा औद्योगिक क्षेत्रों, यमुना एक्सप्रेसवे, जेवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (यूपीएसआईडीसी) के तहत विभिन्न परियोजनाओं का निर्माण शामिल है। किसानों का कहना है कि उनकी भूमि को उचित मुआवजे के बिना अधिग्रहित किया गया, जिससे उन्हें अपनी आजीविका के लिए पर्याप्त मदद नहीं मिल पाया। इस क्षेत्र में भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष ने राजनीतिक प्रासंगिकता हासिल कर ली है क्योंकि यह राज्य सरकार और इन भूमि अधिग्रहणों से लाभान्वित होने वाली कॉर्पोरेट ताकतों के बीच शोषणकारी संबंधों को उजागर करता है।
पिछले संघर्ष और किसान एकजुटता
किसानों के संघर्ष कई वर्षों से चल रहे हैं, जिसमें अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) ने किसानों को संगठित करने और समुदायों के बीच एकजुटता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2023 में, किसानों द्वारा एक उच्च-शक्ति समिति के गठन के लिए सफलतापूर्वक दबाव डालने के बाद, सरकार ने कई वादा किया, जिसमें अधिक मुआवजा और अधिग्रहित भूमि का एक हिस्सा वापस करना शामिल है। हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार इन सिफारिशों को लागू करने में विफल रही है, जिससे किसानों को अपना संघर्ष तेज करने के लिए उकसाया जा रहा है।
नवंबर-दिसंबर 2024: विरोध प्रदर्शनों में तेजी
नवंबर और दिसंबर 2024 में स्थिति तब और बिगड़ गई, जब संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले दस प्रमुख किसान संगठनों ने 25 नवंबर को ग्रेटर नोएडा में महापंचायत बुलाया। बड़ी संख्या में महिलाओं सहित किसानों ने उत्तर प्रदेश सरकार से उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की। जब सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया तो किसानों ने 26 नवंबर से 1 दिसंबर तक दिन-रात विरोध प्रदर्शन किया।
हिंसक दमन और गिरफ़्तारियां
2 दिसंबर, 2024 को, हजारों किसानों ने दिल्ली की ओर मार्च करने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस बैरिकेड्स द्वारा उन्हें रोक दिया गया, जिसके नतीजे में यातायात बाधित हुआ। सरकार ने किसानों से बातचीत करने के कई वादे करके जवाब दिया, लेकिन 3 दिसंबर को स्थिति और बिगड़ गई, जब पुलिस बलों ने प्रदर्शनकारियों को हिंसक तरीके से खदेड़ दिया। प्रमुख नेताओं सहित 160 से अधिक किसानों को गिरफ्तार कर लुक्सर जेल भेज दिया गया, जबकि कई अन्य को उनके घरों में नज़रबंद करके हिरासत में रखा गया।
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष भूमि अधिग्रहण, मुआवजा और ग्रामीण किसानों के अधिकारों से जुड़े व्यापक मुद्दों का प्रतीक बन गया है। यह भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की कॉर्पोरेट-हितैषी नीतियों के लिए एक सीधी चुनौती है और इसने देश भर के किसानों से व्यापक समर्थन प्राप्त किया है। आंदोलन लगातार तेज हो रहा है, और ज्यादा विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई जा रही है और किसान अपने उचित मांगों को लेकर अड़े हुए हैं।