महीनों तक शिकायतों और चेतावनी की अनदेखी के बाद एक 20 वर्षीय छात्रा ने अपने प्रिंसिपल के कार्यालय के सामने आत्मदाह कर लिया। यह यौन उत्पीड़न और संस्थागत उदासीनता के खिलाफ उस छात्रा का आखिरी विरोध प्रदर्शन था।

फोटो साभार : पीटीआई
ओडिशा के बालासोर स्थित फकीर मोहन स्वायत्त महाविद्यालय में 14 जुलाई, 2025 की रात को इंटीग्रेटेड बी.एड. की 20 वर्षीया छात्रा ने लगभग 48 घंटे तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद एम्स, भुवनेश्वर के बर्न आईसीयू में दम तोड़ दिया। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वह परिसर में प्रिंसिपल के कार्यालय के सामने आत्मदाह करने के बाद 90-95% तक जल गई थी। उसका आखिरी कदम महीनों तक एक प्रोफेसर द्वारा कथित यौन उत्पीड़न, उसके शैक्षणिक भविष्य को लेकर मिली धमकियों और अधिकारियों द्वारा उसकी सुरक्षा में पूरी तरह से विफल रहने के खिलाफ एक दिल दहला देने वाला विरोध था।
यह केवल एक मृत्यु नहीं थी बल्कि यह व्यवस्था पर एक सार्वजनिक आरोप था, एक संस्थागत हत्या जो उपेक्षा, उदासीनता और पितृसत्तात्मक मिलीभगत के कारण हुई। उसका शरीर जल गया और आखिरकार उसकी मौत हो गई क्योंकि उसकी आवाज दबा दी गई थी।
छह महीने का उत्पीड़न, दो आत्महत्या के प्रयास और चुप्पी
आरोपी डॉ. समीर कुमार साहू शिक्षा विभाग के प्रमुख थे। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले छह महीनों में उन्होंने कथित तौर पर छात्रा के साथ यौन संबंध बनाने की कोशिश की और मना करने पर उसे परीक्षा में फेल करने और उसका शैक्षणिक रिकॉर्ड खराब करने की धमकी दी। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की सक्रिय सदस्य छात्रा ने न केवल अपने कॉलेज की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) में बल्कि मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) में भी औपचारिक शिकायत दर्ज कराई।
लेकिन उसकी ये गुहार अनसुनी कर दी गई। जब उसने प्रिंसिपल दिलीप घोष से मदद मांगी तो उन्होंने कथित तौर पर उसका मजाक उड़ाया और धमकी दी कि अगर उसने अपनी शिकायत जारी रखी तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। उसके परिवार के अनुसार, छात्रा ने पहले भी लगातार उत्पीड़न के कारण दो बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी।
1 जुलाई को उसने आखिरी शिकायत दर्ज कराई जिसमें चेतावनी दी गई कि वह मानसिक तनाव में है और उसे "आखिरी कदम" उठाने के लिए मजबूर किया जा सकता है। 9 जुलाई को कॉलेज की आईसीसी ने साहू को क्लीन चिट दे दी जिससे वह और भी अलग-थलग पड़ गई। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, उसी हफ्ते, पुलिस ने दावा किया कि वे कार्रवाई करने से पहले उसकी शिकायत पर कॉलेज के जवाब का इंतजार कर रहे हैं।
आग लगाने की घटना: एक आखिरी विरोध प्रदर्शन जिसे कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता
13 जुलाई की सुबह युवती ने प्रिंसिपल के चेंबर के बाहर धरना दिया। उनके कार्यालय से निकलने के कुछ ही पल बाद उसने खुद पर पेट्रोल डालकर आग लगा ली। यह सब सीसीटीवी फुटेज में कैद हो गया है। साथी छात्र उसे बचाने के लिए दौड़े, लेकिन इस दौरान कई छात्र घायल हो गए।
उसे बालासोर जिला मुख्यालय अस्पताल ले जाया गया और फिर एम्स भुवनेश्वर शिफ्ट कर दिया गया, जहां आठ विशेषज्ञ शिक्षकों की एक टीम ने उसका इलाज किया। 14 जुलाई की रात को उसकी मृत्यु हो गई, जैसा कि एनी ने बताया था। एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, मैकेनिकल वेंटिलेशन और रेनल थेरेपी सहित गहन प्रयासों के बावजूद, 14 जुलाई की रात को उसकी मृत्यु हो गई।
उसके अंतिम क्षणों में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और ओडिशा के राज्यपाल हरि बाबू कंभमपति ने एम्स में उससे मुलाकात की और परिवार को हर संभव सहायता का आश्वासन दिया। लेकिन कई लोगों को उनकी उपस्थिति प्रतीकात्मक लगी क्योंकि आग लगाने की घटना सामने आने के बाद ही वे आएं।
मौत के बाद गिरफ़्तारियां: मौत के बाद दिखावे की कार्रवाई
उसकी मौत के बाद जनाक्रोश ने प्रशासन को यह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। ओडिशा के उच्च शिक्षा विभाग ने साहू और घोष दोनों को निलंबित कर दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, पुलिस ने उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाने, आपराधिक धमकी देने और यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर कार्रवाई न करने के आरोप में गिरफ्तार किया।
एक स्थानीय कॉलेज में क्लर्क छात्रा के पिता ने कहा कि यह व्यवस्था पहले ही उनकी बेटी को फेल कर चुकी थी। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, उन्होंने आरोप लगाया कि साहू ने लगातार उपस्थिति को लेकर उसकी बेटी को प्रताड़ित किया, जबकि उसके पास वैध स्वास्थ्य संबंधी और परिवार में आपात जैसी स्थितियां थीं। जब उसने थोड़ी नरमी की मांग की तो बदले में साहू ने उससे यौन संबंध बनाने की मांग की। उसने जब अपनी तकलीफों का विस्तार से जिक्र किया, तब भी न तो किसी आंतरिक समिति ने और न ही पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई की।
यौन हिंसा में डूबा एक राज्य: पिछले एक महीने में कई बलात्कार और गैंगरेप की घटनाएं
उसका मामला सबसे दुखद है, लेकिन यह अकेला नहीं है। ओडिशा अब यौन हिंसा की एक चिंताजनक लहर की चपेट में है, खासकर युवा महिलाओं, नाबालिगों और कमजोर समूहों को निशाना बनाकर। जून महीने में कम से कम सात बड़े गैंगरेप या यौन हमले की घटनाएं दर्ज हुईं।
●15 जून: गोपालपुर बीच पर 10 लोगों ने कथित तौर पर एक 20 वर्षीय कॉलेज छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया।
● 16 जून: क्योंझर की एक 17 वर्षीय लड़की के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार की गई और हत्या की गई।
● 17 जून: गांव के एक तालाब में नहाते समय एक विकलांग महिला के साथ कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया गया।
● 22 जून: जाजपुर में दिल्ली की एक 22 वर्षीय युवती सहित दो महिलाओं के साथ कथित तौर पर छेड़छाड़ और हमला किया गया।
● 23 जून: बरहामपुर में एक फर्जी होम्योपैथी डॉक्टर ने अपने सहायक और एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की मदद से एक नाबालिग लड़की के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया।
● 24 जून: मयूरभंज में एक सुनसान ढाबे पर एक महिला के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया।
● 28 जून: गंजम में सातवीं कक्षा की एक लड़की के साथ उसके रिश्तेदार ने कथित तौर पर बलात्कार किया।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा गृह विभाग द्वारा मार्च 2025 में जारी अपराध पर एक श्वेत पत्र में 2024 में बलात्कार के 3,054 मामले दर्ज किए गए थे जो 2023 की तुलना में 8% ज्यादा है।
राजनीतिक उबाल: संवेदनाएं, गुस्सा और बचाव की कवायद
छात्रा की मौत ने राजनीति में खासा हलचल मचा दी है। बीजू जनता दल (बीजेडी) ने पूरे ओडिशा में छात्रों की हड़ताल करने का ऐलान किया है। पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इसे “संस्थाओं की सुरक्षा का फेल होना” बताया। कांग्रेस ने पांच महिला सदस्यों की एक टीम जांच के लिए भेजी है, वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने मामले की पूरी जांच कराने की मांग की है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने आत्मदाह और गोपालपुर गैंगरेप के मामले में ओडिशा सरकार को नोटिस भी भेजा है।
मुख्यमंत्री मोहन मझी ने AIIMS का दौरा किया और “सख्त कार्रवाई” और “फास्ट-ट्रैक कोर्ट के जरिए न्याय” का वादा किया। लेकिन उनकी सरकार पहले ही पुलिस की देर से कार्रवाई, ICCs की निष्क्रियता, और खासकर शैक्षणिक संस्थानों में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को लेकर आलोचनाओं के घेरे में है।
निष्कर्ष: वह इसलिए आत्मदाह की क्योंकि उसकी आवाज कोई सुनना नहीं चाहता था
यह कोई अचानक हुई घटना नहीं थी। यह पूरे सिस्टम की भारी असफलता का परिणाम था, चाहे वह ICC हो, पुलिस हो, क्लासरूम हो या राज्य विधानसभा। छात्रा ने लिखा, चेतावनी दी और विरोध किया। और जब किसी ने उसकी बात नहीं मानी, तो उसने अपना शरीर ही आखिरी उम्मीद का जलता हुआ पत्र बना दिया।
अगर इस मौत को अगली खबरों में फिका पड़ने दिया गया, तो यह सिर्फ उसके साथ अन्याय नहीं होगा बल्कि यह ओडिशा और पूरे भारत के हर उस जिंदा बचे हुए के लिए संदेश होगा कि चुप रहना बोलने से ज्यादा सुरक्षित है।
उसका नाम भले ही याद न हो, लेकिन न्याय के हर संभव रास्ते से नजरअंदाज किए जाने के बाद कॉलेज के प्रिंसिपल के दरवाजे के सामने खुद को आग लगाने वाली एक युवती की छवि, हमारी सामूहिक अंतरात्मा को तब तक परेशान करती रहेगी, जब तक कि आईसीसी का हर कार्य, हर शिकायत पर सुनवाई न हो जाए और किसी भी लड़की को सिर्फ विश्वास दिलाने के लिए जलना न पड़े।
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फोटो साभार : पीटीआई
ओडिशा के बालासोर स्थित फकीर मोहन स्वायत्त महाविद्यालय में 14 जुलाई, 2025 की रात को इंटीग्रेटेड बी.एड. की 20 वर्षीया छात्रा ने लगभग 48 घंटे तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद एम्स, भुवनेश्वर के बर्न आईसीयू में दम तोड़ दिया। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वह परिसर में प्रिंसिपल के कार्यालय के सामने आत्मदाह करने के बाद 90-95% तक जल गई थी। उसका आखिरी कदम महीनों तक एक प्रोफेसर द्वारा कथित यौन उत्पीड़न, उसके शैक्षणिक भविष्य को लेकर मिली धमकियों और अधिकारियों द्वारा उसकी सुरक्षा में पूरी तरह से विफल रहने के खिलाफ एक दिल दहला देने वाला विरोध था।
यह केवल एक मृत्यु नहीं थी बल्कि यह व्यवस्था पर एक सार्वजनिक आरोप था, एक संस्थागत हत्या जो उपेक्षा, उदासीनता और पितृसत्तात्मक मिलीभगत के कारण हुई। उसका शरीर जल गया और आखिरकार उसकी मौत हो गई क्योंकि उसकी आवाज दबा दी गई थी।
छह महीने का उत्पीड़न, दो आत्महत्या के प्रयास और चुप्पी
आरोपी डॉ. समीर कुमार साहू शिक्षा विभाग के प्रमुख थे। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले छह महीनों में उन्होंने कथित तौर पर छात्रा के साथ यौन संबंध बनाने की कोशिश की और मना करने पर उसे परीक्षा में फेल करने और उसका शैक्षणिक रिकॉर्ड खराब करने की धमकी दी। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की सक्रिय सदस्य छात्रा ने न केवल अपने कॉलेज की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) में बल्कि मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) में भी औपचारिक शिकायत दर्ज कराई।
लेकिन उसकी ये गुहार अनसुनी कर दी गई। जब उसने प्रिंसिपल दिलीप घोष से मदद मांगी तो उन्होंने कथित तौर पर उसका मजाक उड़ाया और धमकी दी कि अगर उसने अपनी शिकायत जारी रखी तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। उसके परिवार के अनुसार, छात्रा ने पहले भी लगातार उत्पीड़न के कारण दो बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी।
1 जुलाई को उसने आखिरी शिकायत दर्ज कराई जिसमें चेतावनी दी गई कि वह मानसिक तनाव में है और उसे "आखिरी कदम" उठाने के लिए मजबूर किया जा सकता है। 9 जुलाई को कॉलेज की आईसीसी ने साहू को क्लीन चिट दे दी जिससे वह और भी अलग-थलग पड़ गई। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, उसी हफ्ते, पुलिस ने दावा किया कि वे कार्रवाई करने से पहले उसकी शिकायत पर कॉलेज के जवाब का इंतजार कर रहे हैं।
आग लगाने की घटना: एक आखिरी विरोध प्रदर्शन जिसे कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता
13 जुलाई की सुबह युवती ने प्रिंसिपल के चेंबर के बाहर धरना दिया। उनके कार्यालय से निकलने के कुछ ही पल बाद उसने खुद पर पेट्रोल डालकर आग लगा ली। यह सब सीसीटीवी फुटेज में कैद हो गया है। साथी छात्र उसे बचाने के लिए दौड़े, लेकिन इस दौरान कई छात्र घायल हो गए।
उसे बालासोर जिला मुख्यालय अस्पताल ले जाया गया और फिर एम्स भुवनेश्वर शिफ्ट कर दिया गया, जहां आठ विशेषज्ञ शिक्षकों की एक टीम ने उसका इलाज किया। 14 जुलाई की रात को उसकी मृत्यु हो गई, जैसा कि एनी ने बताया था। एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, मैकेनिकल वेंटिलेशन और रेनल थेरेपी सहित गहन प्रयासों के बावजूद, 14 जुलाई की रात को उसकी मृत्यु हो गई।
उसके अंतिम क्षणों में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और ओडिशा के राज्यपाल हरि बाबू कंभमपति ने एम्स में उससे मुलाकात की और परिवार को हर संभव सहायता का आश्वासन दिया। लेकिन कई लोगों को उनकी उपस्थिति प्रतीकात्मक लगी क्योंकि आग लगाने की घटना सामने आने के बाद ही वे आएं।
मौत के बाद गिरफ़्तारियां: मौत के बाद दिखावे की कार्रवाई
उसकी मौत के बाद जनाक्रोश ने प्रशासन को यह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। ओडिशा के उच्च शिक्षा विभाग ने साहू और घोष दोनों को निलंबित कर दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, पुलिस ने उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाने, आपराधिक धमकी देने और यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर कार्रवाई न करने के आरोप में गिरफ्तार किया।
एक स्थानीय कॉलेज में क्लर्क छात्रा के पिता ने कहा कि यह व्यवस्था पहले ही उनकी बेटी को फेल कर चुकी थी। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, उन्होंने आरोप लगाया कि साहू ने लगातार उपस्थिति को लेकर उसकी बेटी को प्रताड़ित किया, जबकि उसके पास वैध स्वास्थ्य संबंधी और परिवार में आपात जैसी स्थितियां थीं। जब उसने थोड़ी नरमी की मांग की तो बदले में साहू ने उससे यौन संबंध बनाने की मांग की। उसने जब अपनी तकलीफों का विस्तार से जिक्र किया, तब भी न तो किसी आंतरिक समिति ने और न ही पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई की।
यौन हिंसा में डूबा एक राज्य: पिछले एक महीने में कई बलात्कार और गैंगरेप की घटनाएं
उसका मामला सबसे दुखद है, लेकिन यह अकेला नहीं है। ओडिशा अब यौन हिंसा की एक चिंताजनक लहर की चपेट में है, खासकर युवा महिलाओं, नाबालिगों और कमजोर समूहों को निशाना बनाकर। जून महीने में कम से कम सात बड़े गैंगरेप या यौन हमले की घटनाएं दर्ज हुईं।
●15 जून: गोपालपुर बीच पर 10 लोगों ने कथित तौर पर एक 20 वर्षीय कॉलेज छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया।
● 16 जून: क्योंझर की एक 17 वर्षीय लड़की के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार की गई और हत्या की गई।
● 17 जून: गांव के एक तालाब में नहाते समय एक विकलांग महिला के साथ कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया गया।
● 22 जून: जाजपुर में दिल्ली की एक 22 वर्षीय युवती सहित दो महिलाओं के साथ कथित तौर पर छेड़छाड़ और हमला किया गया।
● 23 जून: बरहामपुर में एक फर्जी होम्योपैथी डॉक्टर ने अपने सहायक और एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की मदद से एक नाबालिग लड़की के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया।
● 24 जून: मयूरभंज में एक सुनसान ढाबे पर एक महिला के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया।
● 28 जून: गंजम में सातवीं कक्षा की एक लड़की के साथ उसके रिश्तेदार ने कथित तौर पर बलात्कार किया।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा गृह विभाग द्वारा मार्च 2025 में जारी अपराध पर एक श्वेत पत्र में 2024 में बलात्कार के 3,054 मामले दर्ज किए गए थे जो 2023 की तुलना में 8% ज्यादा है।
राजनीतिक उबाल: संवेदनाएं, गुस्सा और बचाव की कवायद
छात्रा की मौत ने राजनीति में खासा हलचल मचा दी है। बीजू जनता दल (बीजेडी) ने पूरे ओडिशा में छात्रों की हड़ताल करने का ऐलान किया है। पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इसे “संस्थाओं की सुरक्षा का फेल होना” बताया। कांग्रेस ने पांच महिला सदस्यों की एक टीम जांच के लिए भेजी है, वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने मामले की पूरी जांच कराने की मांग की है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने आत्मदाह और गोपालपुर गैंगरेप के मामले में ओडिशा सरकार को नोटिस भी भेजा है।
मुख्यमंत्री मोहन मझी ने AIIMS का दौरा किया और “सख्त कार्रवाई” और “फास्ट-ट्रैक कोर्ट के जरिए न्याय” का वादा किया। लेकिन उनकी सरकार पहले ही पुलिस की देर से कार्रवाई, ICCs की निष्क्रियता, और खासकर शैक्षणिक संस्थानों में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को लेकर आलोचनाओं के घेरे में है।
निष्कर्ष: वह इसलिए आत्मदाह की क्योंकि उसकी आवाज कोई सुनना नहीं चाहता था
यह कोई अचानक हुई घटना नहीं थी। यह पूरे सिस्टम की भारी असफलता का परिणाम था, चाहे वह ICC हो, पुलिस हो, क्लासरूम हो या राज्य विधानसभा। छात्रा ने लिखा, चेतावनी दी और विरोध किया। और जब किसी ने उसकी बात नहीं मानी, तो उसने अपना शरीर ही आखिरी उम्मीद का जलता हुआ पत्र बना दिया।
अगर इस मौत को अगली खबरों में फिका पड़ने दिया गया, तो यह सिर्फ उसके साथ अन्याय नहीं होगा बल्कि यह ओडिशा और पूरे भारत के हर उस जिंदा बचे हुए के लिए संदेश होगा कि चुप रहना बोलने से ज्यादा सुरक्षित है।
उसका नाम भले ही याद न हो, लेकिन न्याय के हर संभव रास्ते से नजरअंदाज किए जाने के बाद कॉलेज के प्रिंसिपल के दरवाजे के सामने खुद को आग लगाने वाली एक युवती की छवि, हमारी सामूहिक अंतरात्मा को तब तक परेशान करती रहेगी, जब तक कि आईसीसी का हर कार्य, हर शिकायत पर सुनवाई न हो जाए और किसी भी लड़की को सिर्फ विश्वास दिलाने के लिए जलना न पड़े।
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