अरुणाचल प्रदेश : प्रस्तावित सियांग बांध के खिलाफ ग्रामीणों का शांतिपूर्ण प्रदर्शन

Written by sabrang india | Published on: July 16, 2025
अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले में प्रस्तावित 12,000 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना को लेकर स्थानीय लोग लंबे समय से प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट (पीएफआर) और सर्वेक्षण कार्यों का विरोध कर रहे हैं। इसी क्रम में, 14 जुलाई को तीन जिलों के ग्रामीणों ने अपर सियांग के गेकू गांव में एक शांतिपूर्ण मार्च निकाला।


फोटो साभार : द वायर/अरेंजमेंट

प्रस्तावित सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना के विरोध में अरुणाचल प्रदेश के तीन जिलों के ग्रामीणों ने सोमवार 14 जुलाई को अपर सियांग जिले के गेकू गांव में आयोजित एक रैली में भाग लिया और शांतिपूर्ण मार्च निकाला। यह परियोजना सियांग नदी पर लगभग 12,000 मेगावाट की जलविद्युत क्षमता के साथ पूर्वोत्तर अरुणाचल प्रदेश में प्रस्तावित है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय समुदाय कई वर्षों से राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (एनएचपीसी) द्वारा क्रियान्वित की जा रही जलविद्युत परियोजना और बांध के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी पैतृक भूमि से विस्थापन, जिससे वे सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुए हैं, तथा बांध के कारण क्षेत्र में होने वाले पर्यावरणीय प्रभावों का डर है।

रैली के वीडियो में देखा गया कि गेकू गांव के एक मैदान में करीब एक हजार लोग इकट्ठा हुए और उसके बाद गांव की सड़कों पर शांतिपूर्ण विरोध मार्च निकाला। इस मार्च के दौरान लोगों ने ‘हमें न्याय चाहिए’, ‘सशस्त्र बलों को हटाओ’, ‘बांध नहीं, पीएफआर नहीं’ और ‘भारत माता की जय’ जैसे नारे लगाए। यह प्रदर्शन पुलिस और सशस्त्र बलों की मौजूदगी में पूरी तरह शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा को 14 जुलाई को भेजे गए एक पत्र में सियांग स्वदेशी किसान मंच (एसआईएफएफ) ने परियोजना प्रभावित परिवारों (पीएएफ) और सभी संभावित डूब क्षेत्र के ग्रामीणों की ओर से प्रस्तावित परियोजना और उससे जुड़ी प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट (पीएफआर) गतिविधियों का कड़ा विरोध जताया। मंच ने आरोप लगाया कि सरकार इन गतिविधियों को स्थानीय लोगों की सहमति के बिना आगे बढ़ा रही है।

पत्र में यह जिक्र किया गया है कि अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू द्वारा अपने आधिकारिक फेसबुक और ट्विटर अकाउंट पर किए गए वे दावे, जिनमें कहा गया है कि रीगा गांव के निवासियों ने परियोजना को लेकर सहमति जताई है, ‘तथ्यात्मक रूप से गलत’ हैं। पत्र में स्पष्ट किया गया कि न तो गांव की ग्राम पंचायत और न ही जनजातीय परिषद ने ऐसी कोई सहमति दी है, और अब तक किसी भी संबंधित अधिकारी ने गांव में कोई सार्वजनिक बैठक भी नहीं की है।

पत्र में यह दावा किया गया है कि 'हम निरंतर हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों और प्रभावित समुदायों के लिए प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र की कमी को लेकर काफी चिंतित हैं। हमारे बार-बार प्रयासों के बावजूद, राज्य सरकार ने डूब क्षेत्र के गांवों की आशंकाओं और समस्याओं का संतोषजनक समाधान नहीं किया है। इसके विपरीत, माननीय मुख्यमंत्री और ओजिंग तासिंग जैसे विधायकों द्वारा फैलाई जा रही भ्रामक जानकारी परियोजना के प्रति समुदाय के समर्थन की भ्रामक तस्वीर पेश कर रही है।

पत्र में प्रधान सचिव से आग्रह किया गया है कि वे मंगलवार, 15 जुलाई को होने वाली बैठक में प्रस्तावित परियोजना के प्रति व्यापक जनविरोध और जमीनी हकीकत को यथावत रूप में प्रधानमंत्री के समक्ष प्रस्तुत करें।

पत्र में यह उम्मीद जताई गई है कि इस परियोजना से प्रभावित क्षेत्रों और संभावित जलमग्न गांवों की चिंताओं को प्राथमिकता दी जाएगी और किसी भी प्रकार का निर्णय भ्रामक या असत्य जानकारियों के आधार पर नहीं लिया जाएगा।

एसआईएफएफ की युवा शाखा द्वारा 14 जुलाई को प्रधान सचिव को भेजे गए एक अन्य पत्र में इस बात पर जोर दिया गया कि लोग पीएफआर की प्रक्रिया के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की तैनाती के विरोध में अनिश्चितकालीन शांतिपूर्ण धरने पर बैठे हैं। पत्र में इस असंवैधानिक कदम की कड़ी निंदा की गई और यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि सियांग क्षेत्र के आदि समुदाय के लोग न तो आने सियांग (बड़ी सियांग नदी) पर बांध चाहते हैं, और न ही अपनी पैतृक भूमि से विस्थापन के लिए तैयार हैं।

आदि उस क्षेत्र में बसने वाले मुख्य जनजातीय समुदायों में से एक है, जहां सियांग बांध का प्रस्ताव रखा गया है।

पत्र में जोर देकर कहा गया है कि परियोजना प्रस्ताव को तत्काल रद्द किया जाए और इससे जुड़ी सभी गतिविधियां तुरंत बंद कर दी जाएं। इसमें स्पष्ट कहा गया है, ‘जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होतीं, हम अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे।

ज्ञात हो कि इस वर्ष 23 मई से ग्रामीण लोग परियोजना के पहले चरण, यानी प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट (पीएफआर) अध्ययन को लागू करने के लिए सशस्त्र बलों की तैनाती के विरोध में अनिश्चितकालीन प्रदर्शन कर रहे हैं।

द वायर द्वारा पहले रिपोर्ट किया गया था, प्रदर्शनकारियों ने सेना को गांव में प्रवेश करने से रोकने के लिए एक पुल को भी जला दिया था।

अपर सियांग परियोजना - जो यदि पूरी होती है तो भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना बन सकती है - न केवल बड़े पैमाने पर विस्थापन, घरों और कृषि भूमि के नुकसान जैसी सामाजिक चिंताओं को जन्म देती है, बल्कि समृद्ध जैव विविधता को भी गंभीर पर्यावरणीय खतरा पहुंचा सकती है। इसके अलावा, यह परियोजना एक भूकंपीय रूप से बेहद संवेदनशील क्षेत्र में प्रस्तावित है।

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