पाली जिले में जल बंटवारे को लेकर विरोध कर रहे किसानों की एफआईआर संख्या 127/2022 को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने माना कि यह एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन था।

फोटो साभार : एबीपी न्यूज
राजस्थान हाईकोर्ट ने पाली जिले के सांडेराव थाना क्षेत्र में किसानों के खिलाफ दर्ज एफआईआर संख्या 127/2022 को रद्द करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। न्यायाधीश फरजंद अली ने अपने फैसले में कहा कि, "लोकतंत्र में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करना एक संवैधानिक अधिकार है।" अदालत ने यह भी माना कि जवाई बांध से पानी के वितरण को लेकर किसानों द्वारा किया गया विरोध एक वैध लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति था और इसे आपराधिक मामला मानना अनुचित है।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला अक्टूबर 2022 में हुए विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा है, जब किसानों ने जल बंटवारे पर एक महत्वपूर्ण बैठक जोधपुर में करने के प्रशासनिक फैसले के खिलाफ एनएच-62 पर प्रदर्शन किया था। किसानों का तर्क था कि यह बैठक परंपरागत रूप से सुमेरपुर के डैम इंस्पेक्शन भवन में होती आई है, लेकिन इस बार उसे अचानक जोधपुर स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे उन्हें अपनी समस्याएं रखने का उचित अवसर नहीं मिला।
पुलिस ने इस प्रदर्शन के संबंध में 53 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धाराएं 143 (अवैध जमावड़ा), 117 (उकसाहट), 283 (सार्वजनिक उपद्रव), 353 (सरकारी कर्मचारी पर हमला) और राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम की धारा 8बी के तहत मामला दर्ज किया था, जिसमें सड़क जाम करने और नारेबाजी करने का आरोप लगाया गया।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि "यह विरोध प्रदर्शन न तो हिंसक था और न ही विध्वंसात्मक।" न्यायालय ने माना कि भले ही इस जमावड़े से कुछ अस्थायी असुविधा हुई हो, लेकिन न तो सार्वजनिक संपत्ति को कोई नुकसान हुआ और न ही किसी सरकारी अधिकारी पर हमला किए जाने के प्रमाण मिले। न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा, "जब प्रशासनिक निर्णय लोगों की आजीविका पर असर डालते हैं, तो नागरिकों को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी असहमति जताने का अधिकार है।" उन्होंने आगे कहा, "ऐसे शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को आपराधिक कृत्य करार देना औपनिवेशिक मानसिकता का प्रतीक है, जो स्वतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्था की भावना के विपरीत है।"
अदालत ने याचिकाकर्ता अजयपाल सिंह का शस्त्र लाइसेंस भी बहाल कर दिया, यह कहते हुए कि केवल एफआईआर दर्ज होने के आधार पर लाइसेंस निलंबित करना न्यायसंगत नहीं है। न्यायालय ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह इस मामले में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल करे। साथ ही यह राहत उन सभी आरोपियों तक भी विस्तारित की गई जो स्वयं अदालत में उपस्थित नहीं हो सके। न्यायाधीश ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी भी की कि, “न्याय केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए नहीं होता, बल्कि उनका भी संरक्षण करता है जिनके पास न्याय की लड़ाई लड़ने के पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।”
इस फैसले को नागरिक स्वतंत्रताओं की एक महत्वपूर्ण जीत के रूप में देखा जा रहा है, जो वैध विरोध प्रदर्शनों को दबाने की प्रवृत्ति के खिलाफ प्रशासन को एक स्पष्ट संदेश देता है। यह निर्णय उस मूल लोकतांत्रिक सिद्धांत को रेखांकित करता है कि “जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए बने लोकतंत्र में विरोध कोई अपराध नहीं, बल्कि अधिकारों का सुरक्षा कवच है।”

फोटो साभार : एबीपी न्यूज
राजस्थान हाईकोर्ट ने पाली जिले के सांडेराव थाना क्षेत्र में किसानों के खिलाफ दर्ज एफआईआर संख्या 127/2022 को रद्द करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। न्यायाधीश फरजंद अली ने अपने फैसले में कहा कि, "लोकतंत्र में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करना एक संवैधानिक अधिकार है।" अदालत ने यह भी माना कि जवाई बांध से पानी के वितरण को लेकर किसानों द्वारा किया गया विरोध एक वैध लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति था और इसे आपराधिक मामला मानना अनुचित है।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला अक्टूबर 2022 में हुए विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा है, जब किसानों ने जल बंटवारे पर एक महत्वपूर्ण बैठक जोधपुर में करने के प्रशासनिक फैसले के खिलाफ एनएच-62 पर प्रदर्शन किया था। किसानों का तर्क था कि यह बैठक परंपरागत रूप से सुमेरपुर के डैम इंस्पेक्शन भवन में होती आई है, लेकिन इस बार उसे अचानक जोधपुर स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे उन्हें अपनी समस्याएं रखने का उचित अवसर नहीं मिला।
पुलिस ने इस प्रदर्शन के संबंध में 53 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धाराएं 143 (अवैध जमावड़ा), 117 (उकसाहट), 283 (सार्वजनिक उपद्रव), 353 (सरकारी कर्मचारी पर हमला) और राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम की धारा 8बी के तहत मामला दर्ज किया था, जिसमें सड़क जाम करने और नारेबाजी करने का आरोप लगाया गया।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि "यह विरोध प्रदर्शन न तो हिंसक था और न ही विध्वंसात्मक।" न्यायालय ने माना कि भले ही इस जमावड़े से कुछ अस्थायी असुविधा हुई हो, लेकिन न तो सार्वजनिक संपत्ति को कोई नुकसान हुआ और न ही किसी सरकारी अधिकारी पर हमला किए जाने के प्रमाण मिले। न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा, "जब प्रशासनिक निर्णय लोगों की आजीविका पर असर डालते हैं, तो नागरिकों को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी असहमति जताने का अधिकार है।" उन्होंने आगे कहा, "ऐसे शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को आपराधिक कृत्य करार देना औपनिवेशिक मानसिकता का प्रतीक है, जो स्वतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्था की भावना के विपरीत है।"
अदालत ने याचिकाकर्ता अजयपाल सिंह का शस्त्र लाइसेंस भी बहाल कर दिया, यह कहते हुए कि केवल एफआईआर दर्ज होने के आधार पर लाइसेंस निलंबित करना न्यायसंगत नहीं है। न्यायालय ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह इस मामले में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल करे। साथ ही यह राहत उन सभी आरोपियों तक भी विस्तारित की गई जो स्वयं अदालत में उपस्थित नहीं हो सके। न्यायाधीश ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी भी की कि, “न्याय केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए नहीं होता, बल्कि उनका भी संरक्षण करता है जिनके पास न्याय की लड़ाई लड़ने के पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।”
इस फैसले को नागरिक स्वतंत्रताओं की एक महत्वपूर्ण जीत के रूप में देखा जा रहा है, जो वैध विरोध प्रदर्शनों को दबाने की प्रवृत्ति के खिलाफ प्रशासन को एक स्पष्ट संदेश देता है। यह निर्णय उस मूल लोकतांत्रिक सिद्धांत को रेखांकित करता है कि “जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए बने लोकतंत्र में विरोध कोई अपराध नहीं, बल्कि अधिकारों का सुरक्षा कवच है।”
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