मोदी जी का फंडा साफ है। जनता के सामने उन्होंने अच्छी तरह स्पष्ट कर दिया है कि वह एक हिन्दू हैं, गुजराती हैं, हिन्दू राष्ट्र के समर्थक हैं और हिन्दुत्ववादी हैं। मोदी जी क्या हैं, इस बारे में किसी को कन्फ्यूजन नहीं है।
दूसरी पार्टियों के नेताओं में इतना खुलकर सामने आने का साहस नहीं है। वे खुद कन्फ्यूज्ड हैं कि जनता के सामने वे अपनी किस तरह की इमेज पेश करें। जब वे कन्फ्यूज्ड हैं तो जनता का भी उनके बारे में कन्फ्यूज्ड रहना स्वाभाविक है। इस स्थिति का लाभ सीधे-सीधे बीजेपी को मिल रहा है।
उत्तर-पूर्व के ईसाई बहुल राज्य जो कभी कॉंग्रेस के गढ़ माने जाते थे आज वहाँ भाजपा का स्वागत हो रहा है। यह इसी कन्फ्यूजन का नतीजा है। ऐसा लगता है कि जैसे कॉंग्रेस ने वहाँ चुनावों से पहले ही मान लिया था कि जीतना तो है नहीं, क्यों वहाँ बेकार की कोशिश की जाए ! जब वहाँ चुनाव हो रहे थे, राहुल गांधी विदेश यात्रा पर थे।
सोचने की बात है, आज पूरे देश में ईसाइयों और उनके धर्म स्थलों पर हमले हो रहे हैं, सुनियोजित ढंग से उनके विरुद्ध कुप्रचार चल रहा है और इसके बावजूद बीजेपी ईसाई बहुल इलाकों में सत्ता में साझेदारी कर रही है। यह ठीक है कि इसकी एक वजह यह है कि वहाँ के व्यावहारिक स्थायी नेता केंद्र के साथ मिल कर रहने में अपना फ़ायदा देखते हैं, मगर बात इतनी नहीं है।
अल्पसंख्यक चाहे जिस समुदाय के हों वे हर सियासी पार्टी से उम्मीद खोते जा रहे हैं। इतना कुछ उनके विरुद्ध हो रहा है, विरोधी पक्ष इस पर दो-चार जुमले खाना-पूरी के लिए कभी बोल दे तो बोल दे वरना कुछ न कहना ही बेहतर समझता है। हर विरोधी पक्ष के नेता को यही लगता है कि अल्पसंख्यकों के साथ खड़ा दिखाई देना, भले ही यह उनकी एक निहायत जरूरी नैतिक ज़िम्मेदारी हो, बहुसंख्यकों के खिलाफ़ जाना है।
कॉंग्रेस हमेशा अल्पसंख्यकों के लिए आखिरी सहारा रही है, भले ही उसके अनेक कदम उनके विरुद्ध रहे हों, पर अफसोस कि अब ऐसा नहीं है। राहुल गांधी का यह खयाल कि यात्रा कर लेने भर से भारत जुड़ सकता है, खामखयाली के सिवाय कुछ नहीं है। उनका मंदिरों के चक्कर लगाना और जनेऊ प्रदर्शन करना साफ़ दिखाता है कि वह अपनी वास्तविकता पर पर्दा डाले रखने के लिए किस कदर बेचैन हैं। अगर उनकी माँ और उनके बहनोई ईसाई हैं और पिता का सम्बन्ध एक पारसी परिवार से था और उनकी चाची सिक्ख हैं तो उनके लिए यह गर्व की बात होनी चाहिए थी कि असली भारत जो विविध धर्मों और समूहों का संगम-स्थल है, वह उनके परिवार में भी नज़र आता है।
आप अपना रिश्ता किसी भी धर्म या संप्रदाय से ज़ाहिर करें, यह आपका निजी मामला है, आप कौन से धार्मिक स्थल पर जाना चाहते हैं, इस पर भी फ़ैसला करना आपका अधिकार है, मगर इस मामले में इस हद तक बढ़ जाना कि सार्वजनिक स्तर पर आप अपनी सच्चाई पर पर्दा डालने के लिए पीड़ित संप्रदायों के पक्ष में मुंह खोलने की हिम्मत न कर पाएं, अंतततः आपको ही क्षति पहुंचा सकता है। यही आज कॉंग्रेस और दूसरी तथाकथित धर्म निरपेक्ष पार्टियों और उनके लीडरों के साथ हो रहा है।
उत्तर-पूर्व के राज्यों ने यह जो काँग्रेस को बाहर का रास्ता दिखाया है, इसे कॉंग्रेस और राहुल गांधी की उनके प्रति चुप्पी की एक प्रतिक्रिया भी कहना ग़लत नहीं होगा। और कॉंग्रेस ही नहीं, दूसरी विपक्षी पार्टियों को भी यह समझना होगा कि ज़बानी हमदर्दी से काम नहीं चलने वाला। अगर आप सचमुच अल्पसंख्यकों के दोस्त हैं तो आपको उनके लिए ईमानदारी के साथ सामने आ कर बोलना पड़ेगा। कहना पड़ेगा कि आपके साथ तरह-तरह से अन्याय हो रहा है , यह हम मानते हैं और इसमें हम आपके साथ हैं।
वर्ना तो जो पार्टी सत्ता में है वह भी क्या बुरी है, कम से कम मुफ़्त का अनाज तो दे ही रही है और वह अल्पसंख्यकों की दोस्त होने का दिखावा नहीं करती।
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