'कोरोना वैक्सीनेशन के मामले में फतवों के बजाय खुद की अक्ल इस्तेमाल करें'

Written by हसन पाशा | Published on: January 1, 2021
क्या कहें अपने इस्लाम के आलिमों को! जी तो चाहता है कि इन्हें तथाकथित आलिम कहूं। यानी नाम के आलिम। पता नहीं ये कहां-कहां के हवाले से अपने उलटे-सीधे फ़तवे जारी करते हैं. बस ये क़ुरआन के हवाले से बात नहीं करते। जानते हैं कि पकड़े जाएंगे।



अब इनमें कई लोग कोरोना वैक्सीन को मुद्दा बना रहे हैं. अभी तक वैक्सीन भारत में लगनी शुरू भी नहीं हुई है. ख़ुदा मालूम कौन से सोर्स से इन्हें पता लग गया कि इसमें सुअर की चर्बी इस्तमाल हो रही है. यानी इस टीके को लगवाना हराम होगा।
 
अच्छी बात है कि कई आलिम इन तथाकथित आलिमों से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि अगर सवाल जान बचाने का हो तो किसी भी चीज़ को बतौर इलाज इस्तेमाल किया जा सकता है. यानी बात साफ़ है कि सूअर की चर्बी भी.

क़ुरआन में सूअर का गोश्त खाने के मामले में सिर्फ़ दो लाइनें हैं. इनके मुताबिक सूअर का गोश्त हराम खानों में है लेकिन, अगर कुछ और खाने के लिए आपके पास नहीं है और सवाल ज़िन्दा रहने का है तो इसे भी खाया जा सकता है.

इस्लाम एक प्रैक्टिकल मज़हब है. ये सिर्फ़ मज़हब नहीं बल्कि सही ढंग से ज़िन्दगी गुज़ारने का तरीक़ा है. सूअर पर इन दो लाइनों के मुक़ाबले नैतिकता पर चलने के फ़र्ज़ को पूरे क़ुरआन में बार बार दोहराया गया है. यहां तक कहा गया है कि अगर आप अपनी इंसानी ज़िम्मेदारियों को पूरा नहीं करते, आप झूठ बोलते हैं, धोखा देते, हराम की कमाई खाते हैं, किसी का हक़ मारते हैं ऐसी तमाम दूसरी बुराइयों से आपका नाता है तो आपकी इबादत बेकार है. यहां तक कि अल्लाह की नज़र में आप मुसलमान ही नहीं हैं.

ये नाम के मौलाना इन बातों की तरफ़ लोगों का ध्यान नहीं दिलाते, बस बेकार की बातों में अनजान लोगों को गोल गोल घुमाते रहते हैं. नैतिकता की बातों को अपने अमल में अपनाना खुद इन तथाकथित आलिमों से हो नहीं पाता तो दूसरों को ये क्या सिखाएंगे! 

क़ुरान कहता है कि दुनियावी और दीनी अमल के लिए तुम्हारे पास सिर्फ़ एक किताब है. वो है क़ुरआन जो आसान रखी गयी है ताकि उसे समझो और उस पर अमल करो. किसी और किताब से हवाला लेने की ज़रूरत ही नहीं है. क़ुरआन ये भी कहता है कि इसमें जितना कहा गया है वही तुम्हारे मानने के लिए काफ़ी है. उससे आगे तुम्हें नहीं जाना है. Do not go beyond the brief. 

अफ़सोस है कि हमारे बहुत से मौलाना लोग क़ुरआनी इंटरप्रिटेशन के नाम पर सीधे सादे आम लोगों को न किन किन अँधेरी गलियों में भटकाते रहते। ये कभी उनसे नहीं कहेंगे कि तुम खुद क़ुरआन को समझो। समझने के लिए ज़रूरी है कि इसे उस ज़ुबान में भी पढ़ा जाए जो आप जानते हैं. तरह तरह के बहानों से ऐसा करने से आपको रोका जाएगा। मक़सद यही है कि इस्लाम पर इनकी monopoly  बनी रहे। इनकी मुर्ग़ी बिरयानी इसी से तो चलती है. 

यही इन्होंने पोलियो ड्राप के मामले में किया। ऐलान कर दिया कि पोलियो ड्राप मुस्लिम बच्चों की जनन क्षमता को ख़त्म करने की एक सरकारी साज़िश है. न जाने कितने मुस्लिम इलाक़ों में बच्चों को पोलियो ड्राप पिलाने आने वाले कर्मियों को खदेड़ कर भगाया गया।  नतीजा ये हुआ कि देश भर में न जाने कितने मुस्लिम बच्चे पोलियो ग्रस्त हो गए. 

इसलिए, जब भी कोरोना के टीके आप तक पहुंचें, मौलवी साहबों के बहकावे में आकर मना न कर दीजिए। कोरोना जिस तरह बार बार ख़त्म हो कर वापस आ रहा है उस सूरत में इससे बचने के लिए टीका लगवाने के सिवाय कोई रास्ता नहीं है. ज़िंदा रहने के लिए हराम चीज़ भी हलाल हो जाती है, अगर क़ुरआन की मानें। और बहुत मुमकिन कि टीके की दवाई में सुअर की कोई चीज़ मिलाया जाना महज़ अफ़वाह हो. यक़ीन मानिए कि दवा बनाने वालों को आपसे कोई दुश्मनी नहीं है. इसमें जो भी होगा आप और आपके परिवार को बचाने के मक़सद से होगा। ऐसी दवाएं आती हैं जिनमे जानवरों के गोश्त या चर्बी से निकाले गए पदार्थ इस्तमाल होते हैं. अगर ऐसा होता है तो दवा के पैकेट पर उसका ज़िक्र होता है. मिसाल के तौर पर एक वैक्सीन प्रोस्ट्रेट के लिये आती है जिसकी शीशी पर साफ तौर पर लिखा गया है कि सुअर की कोइ चीज़ इस्तमाल हुई है. अगर ऐसा कोरोना वैक्सीन के मामले में है तो याद कर लें कि क़ुरआन ने क्या कहा है. किसी मौलवी की न मानें, मेरी भी न मानें, आप ख़ुद पढ़ें और समझें।

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