किसान मार्च पर कार्यक्रम के बाद हिमाचल प्रदेश से एक दर्शक का संदेश आया। संदेश अंग्रेज़ी में था। उन्होंने बताया कि उना में हमारे पास दो गायें हैं। पाँच लीटर दूध बेचते हैं। एक लीटर का भाव मिलता है 21.50. 2010 में यही रेट था 18 रु प्रति लीटर। कोई सरकार सही दाम नहीं देती है। जब हमने उनसे कहा कि मुझे विस्तार से बताएँ तो उनका दूसरा मेसेज आया। यह जनाब मार्च में हिस्सा लेने दिल्ली नहीं आए हैं मगर इस मार्च के बहाने अपने सवालों को लेकर जहाँ हैं वहीं मार्च कर रहे हैं। उनके दिलो दिमाग़ पर किसानों का मुद्दा छाया हुआ है।
मेरे माता पिता उना ज़िले के पनगोडा गाँव में रहते हैं। हम 1981 से गायें पाल रहे हैं 2012 तक राज्य दुग्ध सहकारिता की गाड़ियाँ आती थीं और छोटे किसानों से दूध ले जाती थीं। जबकि दाम बहुत कम मिलता रहा। 18 रुपये प्रति लीटर। कुछ समय बाद सहकारिता की गाड़ी आनी बंद हो गई। 2016 में Verka ने दूध लेना शुरू कर दिया। आज दाम 23 रुपये प्रति लीटर है। यह दाम शुद्ध दूध का है। हर हफ़्ते कंपनी हमारे दूध में वसा की मात्रा की जाँच होती है। वसा की मात्रा बढ़ाने के लिए गाय को विशेष आहार देना पड़ता है जिस पर हर महीने 4000 अलग से ख़र्च हो जाता है।
इसके कारण दूध की क़ीमत 24 रुपये प्रति लीटर मिल जाती है क्योंकि वसा की मात्रा अधिक होती है। चारा, घास कुतरना, मज़दूरी, बिजली का भी ख़र्चा होता है। सूखा चारा सौ रुपये कुंतल आता है। साल में पचास हज़ार लग जाता है हर महीने पंद्रह हज़ार की लागत आती है। अगर हम पाँच लीटर दूध 23 रुपये प्रति लीटर के भाव से बेचते हैं तो तीस दिन में हमारी कमाई होती है 15,600 रुपये होती है।
मैं शिमला में रहता हूँ जहाँ 24 रुपये का आधा लीटर दूध ख़रीदता हूँ। वो भी डबल टोन दूध। जबकि अपने घर में 24 रुपये लीटर से कम पर दूध बेचता हूँ। यह हमारे साथ मज़ाक़ नहीं तो और क्या है।
जब मैंने उनसे पूछा कि छह सौ रुपये के लाभ के लिए कोई इतनी मेहनत क्यों करेगा? तो ये जवाब आया है।
“ कभी हिसाब ही नहीं किया। और शायद फ़ायदा होता भी ना हो। खेती के साथ पशु पालन होता ही है। यह कहानी सभी छोटे ज़मींदारों की है। एक गाँव में रहने वाला ही समझेगा नहीं तो यह business लगेगा।” शुक्रिया समझने के लिए।
मेरे माता पिता उना ज़िले के पनगोडा गाँव में रहते हैं। हम 1981 से गायें पाल रहे हैं 2012 तक राज्य दुग्ध सहकारिता की गाड़ियाँ आती थीं और छोटे किसानों से दूध ले जाती थीं। जबकि दाम बहुत कम मिलता रहा। 18 रुपये प्रति लीटर। कुछ समय बाद सहकारिता की गाड़ी आनी बंद हो गई। 2016 में Verka ने दूध लेना शुरू कर दिया। आज दाम 23 रुपये प्रति लीटर है। यह दाम शुद्ध दूध का है। हर हफ़्ते कंपनी हमारे दूध में वसा की मात्रा की जाँच होती है। वसा की मात्रा बढ़ाने के लिए गाय को विशेष आहार देना पड़ता है जिस पर हर महीने 4000 अलग से ख़र्च हो जाता है।
इसके कारण दूध की क़ीमत 24 रुपये प्रति लीटर मिल जाती है क्योंकि वसा की मात्रा अधिक होती है। चारा, घास कुतरना, मज़दूरी, बिजली का भी ख़र्चा होता है। सूखा चारा सौ रुपये कुंतल आता है। साल में पचास हज़ार लग जाता है हर महीने पंद्रह हज़ार की लागत आती है। अगर हम पाँच लीटर दूध 23 रुपये प्रति लीटर के भाव से बेचते हैं तो तीस दिन में हमारी कमाई होती है 15,600 रुपये होती है।
मैं शिमला में रहता हूँ जहाँ 24 रुपये का आधा लीटर दूध ख़रीदता हूँ। वो भी डबल टोन दूध। जबकि अपने घर में 24 रुपये लीटर से कम पर दूध बेचता हूँ। यह हमारे साथ मज़ाक़ नहीं तो और क्या है।
जब मैंने उनसे पूछा कि छह सौ रुपये के लाभ के लिए कोई इतनी मेहनत क्यों करेगा? तो ये जवाब आया है।
“ कभी हिसाब ही नहीं किया। और शायद फ़ायदा होता भी ना हो। खेती के साथ पशु पालन होता ही है। यह कहानी सभी छोटे ज़मींदारों की है। एक गाँव में रहने वाला ही समझेगा नहीं तो यह business लगेगा।” शुक्रिया समझने के लिए।