किसान आज हमारे विमर्श में कहा है?

Written by Girish Malviya | Published on: November 30, 2018
किसान आज हमारे विमर्श में कहा है?..... क्या कभी यह सवाल हम अपने आप से करते भी है! .......आज जब आप यह पढ़ रहे होंगे तो हजारों लाखों की संख्या में दिल्ली की शाहराहो पर किसान इस जनतंत्र की आखिरी मंजिल की ओर कूच कर चुका होगा कुछ घण्टो बाद उसे हकाल दिया जाएगा,अब किसान मार्च एक औपचारिकता मात्र है .......संसद के गलियारे में कितने घण्टे घड़ियाल बजा ले क्रोनी कैपटलिज्म की पुरोधा मोदी सरकार को अब फर्क ही कहाँ पड़ता हैं, हा लेकिन स्पेक्ट्रम लाइसेंस चुकाने से छूट देना हो तो एक टांग पर खड़े होकर त्वरित गति से निर्णय होते हैं ओर किसान जो घण्टा बजाते हैं वह घण्टा उन्ही के ऊपर गिर जाता है.



कुछ दिन पहले पी साईनाथ ने बताया कि ‘पिछले 20 सालों में हर दिन दो हज़ार किसान खेती छोड़ रहे हैं. ऐसे किसानों की संख्या लगातार घट रही है जिनकी अपनी खेतीहर ज़मीन हुआ करती थी और ऐसे किसानों की संख्या बढ़ रही है जो किराये पर ज़मीन लेकर खेती कर रहे हैं. इन किरायेदार किसानों में 80 प्रतिशत क़र्ज़ में डूबे हुए हैं.’

किसानों को कृषि ऋण बांटने की बात की जाती है लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) भी नकद मुंबई में बांट रहा है जहां खेती-किसानी है ही नहीं.’

पी साईनाथ ने ये भी खुलासा किया कि मोदी सरकार की फसल बीमा योजना राफेल से बड़ा घोटाला है 'रिलायंस ने एक जिले में 30 करोड़ रुपये का भुगतान किया और उसे शुद्ध लाभ 143 करोड़ रुपये हुआ, जबकि उसका निवेश एक भी रुपया नहीं था'लेकिन उसके बावजूद बीमा करवाने को किसानों को मजबूर किया गया.

लेकिन मीडिया के कान पर जूं तक नही रेंगी आज भी दैनिक भास्कर में दिल्ली के किसान मार्च की खबर सेकंड लास्ट पेज पर सबसे नीचे डाली गई है ताकि किसी का ध्यान नही चला जाए, NDTV को छोड़कर अन्य राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स पर तो इस मार्च का कोई जिक्र ही नही है, महात्मा गांधी ने किसानों को 'भारत की आत्मा' कहा था, लेकिन इन मीडिया हाउसेस को 'भारत की आत्मा' की दुख तकलीफ से कोई मतलब नही है उन्हें तो देश को सांप्रदायिक वैमनस्य की आग में झोंकना ज्यादा मुफीद दिखता है क्योंकि इसी से सत्ताधारी दल के हितसाधन की पूर्ति होती हैं.

बाकी ख़बरें