नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही देश से भ्रष्टाचार की ‘संस्कृति’ को हमेशा के लिए समाप्त कर देने की बात करते आए हों, लेकिन उनके ही संस्कृति मंत्रालय में भ्रष्टाचार की नई कहानी सामने आ रही है.
इस ‘भ्रष्टाचार’ की जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को भी है, लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है. बल्कि आरोप है कि मंत्री व उनके अधिकारी इस घोटाले को दबाने के हर संभव प्रयास में जुट गए हैं.
ये कहानी संस्कृति मंत्रालय के अधीन नई दिल्ली के द्वारका में चलने वाले ‘सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र’ की है. यहां इसके निदेशक पर करोड़ों रूपये के घोटाले की रिपोर्ट सामने आई है, बावजूद इसके संस्कृति मंत्रालय द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
1979 में स्थित ये केन्द्र संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन एक स्वायत्त संस्थान के रूप में कार्यरत है.
आरटीआई के ज़रिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के इंटरनल ऑडिट विंग से हासिल स्पेशल ऑडिट रिपोर्ट बताती है कि, ‘सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र’ के निदेशक जी.सी. जोशी द्वारा गंभीर आर्थिक व प्रशासनिक अनियमितता बरती गई है.
ये ऑडिट रिपोर्ट बताती है कि, अगर 2010-11 में ऑडिटोरियम से हुए कमाई को राजस्व का आधार माना जाए तो निदेशक जोशी की ऑडिटोरियम के लिए अनुमोदन/लाइसेंस में गैर-कार्यवाही के कारण साल 2011-12 से 2015-16 तक 1.56 करोड़ का नुक़सान हुआ है.
यही नहीं, यहां कई स्टाफ़ की बहाली बग़ैर किसी पूर्व सूचना या विज्ञापन जारी किए हुई है. इसके अलावा इस रिपोर्ट में निदेशक द्वारा किए गए कई सारी अनियमितताओं की ओर स्पष्ट तौर पर इशारा किया गया है.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस केन्द्र के निदेशक के कारनामों को देखते हुए उन्हें तुरंत सस्पेंड किया जाए या फिर उन्हें जांच मुकम्मल होने तक छूट्टी पर भेज दिया जाए. साथ ही 2012 से इन्होंने जितने बहाली, ख़रीदारी और स्टाफ़ बरख़ास्तगी के अनुमोदन दिए हैं, उन सबको अवैध माना जाए.
बावजूद इसके निदेशक जी.सी. जोशी अभी तक अपने पद पर बरक़रार हैं. जबकि इस संबंध में कई शिकायतें प्रधानमंत्री कार्यालय में की जा चुकी हैं.
TwoCircles.net से बातचीत करते हुए निदेशक जी.सी. जोशी ऑडिट रिपोर्ट मंत्रालय को दी गई है और जिसने आरटीआई से ये रिपोर्ट हासिल की है, हमें उसकी भी जानकारी है. उसकी कॉपी हमारे पास भी आई हुई है. मंत्रालय ने बताया है कि ये आरटीआई से दी गई है.
जब हमने उन पर लगे आरोपों के संबंध में उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो उनका कहना था, जब रिपोर्ट मेरे पास आएगी तो मैं उसे पढ़ूंगा. आप मंत्रालय से ही इस संबंध में बात कीजिए.
बताते चलें कि इस संबंध में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कई पत्र भेजकर कार्रवाई करने की गुहार लगाई गई है. प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से कार्रवाई के नाम पर इस शिकायत पत्र को संस्कृति मंत्रालय के सचिव को हस्तांतरित कर दिया गया है. लेकिन संस्कृति मंत्रालय द्वारा अभी तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है. (TwoCircles.net के पास शिकायत पत्र और पीएमओ द्वारा संस्कृति मंत्रालय को हस्तांतरित किए गए पत्र मौजूद हैं.)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे एक पत्र में बताया गया है कि, यहां के निदेशक के भ्रष्टाचार को सामने लाने वाले यहां के कर्मचारियों को प्रतिदिन निदेशक एवं यहां के कुछ उप-निदेशक द्वारा उनको बर्खास्त करने एवं उनके ख़िलाफ़ एक्शन लेने की धमकी दी जा रही है. क्या देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने का काम देश की आम जनता को प्रधानमंत्री जी के साथ नहीं करना चाहिए.
प्रधानमंत्री को लिखे इस पत्र में आरोप लगाते हुए सवाल खड़ा किया गया है कि, संस्कृति मंत्रालय के ही पूर्व सचिव एन. के. सिन्हा जी द्वारा इस निदेशक को बचाने की हर संभव कोशिश की जा रही है, क्योंकि इस भ्रष्टाचार में वो भी शामिल रहे हैं. ऐसे में जब ऑडिट रिपोर्ट सामने है और संस्कृति मंत्रालय के ही उच्च अधिकारी ने करोड़ों का घोटाला पकड़ा है एवं उस पर रिकवरी के आदेश के साथ सीबीआई से जांच की सिफ़ारिश की गई है, वैसे में मंत्रालय द्वारा एक भ्रष्ट निदेशक के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं किया जाना क्या जताता है?
साथ ही इस पत्र में प्रधानमंत्री से यह भी कहा गया है कि, भ्रष्टाचार साबित होने के बावजूद कार्रवाई नहीं करना, देश की सवा करोड़ जनता के साथ अन्याय करना है. वहीं निदेशक पर लगे गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप पर चुप्पी साधे रहना देश की जनता के मानस पटल पर मंत्री के प्रति कई सवाल पैदा करता है, जो कि प्रधानमंत्री द्वारा ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत अभियान’ के बिल्कुल विपरित प्रतीत होता है.
नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर एक अन्य शिकायतकर्ता TwoCircles.net से बातचीत में बताते हैं कि, इस घोटाले को दबाने के लिए बहुत बड़े-बड़े लोगों द्वारा मंत्रालय पर दवाव बनाया जा रहा है. क्या देश को बचाने का संस्कृति मंत्रालय के पास बस यही ‘संस्कृति’ बची है?
वो आगे बताते हैं कि, इस ऑडिट रिपोर्ट को जान-बूझ कर दबाया जा रहा है. ऐसे में आम जनता के करोड़ों रूपये का घोटाला, वो भी संस्कृति मंत्रालय के ठीक नाक के नीचे और फिर संस्कृति मंत्रालय द्वारा ही भ्रष्ट अधिकारी को बचाना… इसे कहां तक उचित ठहराया जा सकता है.
बताते चलें कि इस कथित भ्रष्टाचार को लेकर लोकसभा में भाजपा के सांसद एडवोकेट नरेन्द्र केशव सावईकर ने साल 2016 में 12 दिसम्बर को सवाल किया, लेकिन तब संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री महेश शर्मा ने कहा था —‘सूचना एकत्र की जा रही है और सभा पटल पर रख दी जाएगी.’
10 अप्रैल, 2017 को भी इसी सांसद ने दुबारा से अपने उन्हीं सवालों को दोहराया, लेकिन अब भी संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री महेश शर्मा का जवाब था —‘सूचना एकत्र की जा रही है और सभा पटल पर रख दी जाएगी.’
Courtesy: Two Circles
इस ‘भ्रष्टाचार’ की जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को भी है, लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है. बल्कि आरोप है कि मंत्री व उनके अधिकारी इस घोटाले को दबाने के हर संभव प्रयास में जुट गए हैं.
ये कहानी संस्कृति मंत्रालय के अधीन नई दिल्ली के द्वारका में चलने वाले ‘सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र’ की है. यहां इसके निदेशक पर करोड़ों रूपये के घोटाले की रिपोर्ट सामने आई है, बावजूद इसके संस्कृति मंत्रालय द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
1979 में स्थित ये केन्द्र संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन एक स्वायत्त संस्थान के रूप में कार्यरत है.
आरटीआई के ज़रिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के इंटरनल ऑडिट विंग से हासिल स्पेशल ऑडिट रिपोर्ट बताती है कि, ‘सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र’ के निदेशक जी.सी. जोशी द्वारा गंभीर आर्थिक व प्रशासनिक अनियमितता बरती गई है.
ये ऑडिट रिपोर्ट बताती है कि, अगर 2010-11 में ऑडिटोरियम से हुए कमाई को राजस्व का आधार माना जाए तो निदेशक जोशी की ऑडिटोरियम के लिए अनुमोदन/लाइसेंस में गैर-कार्यवाही के कारण साल 2011-12 से 2015-16 तक 1.56 करोड़ का नुक़सान हुआ है.
यही नहीं, यहां कई स्टाफ़ की बहाली बग़ैर किसी पूर्व सूचना या विज्ञापन जारी किए हुई है. इसके अलावा इस रिपोर्ट में निदेशक द्वारा किए गए कई सारी अनियमितताओं की ओर स्पष्ट तौर पर इशारा किया गया है.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस केन्द्र के निदेशक के कारनामों को देखते हुए उन्हें तुरंत सस्पेंड किया जाए या फिर उन्हें जांच मुकम्मल होने तक छूट्टी पर भेज दिया जाए. साथ ही 2012 से इन्होंने जितने बहाली, ख़रीदारी और स्टाफ़ बरख़ास्तगी के अनुमोदन दिए हैं, उन सबको अवैध माना जाए.
बावजूद इसके निदेशक जी.सी. जोशी अभी तक अपने पद पर बरक़रार हैं. जबकि इस संबंध में कई शिकायतें प्रधानमंत्री कार्यालय में की जा चुकी हैं.
TwoCircles.net से बातचीत करते हुए निदेशक जी.सी. जोशी ऑडिट रिपोर्ट मंत्रालय को दी गई है और जिसने आरटीआई से ये रिपोर्ट हासिल की है, हमें उसकी भी जानकारी है. उसकी कॉपी हमारे पास भी आई हुई है. मंत्रालय ने बताया है कि ये आरटीआई से दी गई है.
जब हमने उन पर लगे आरोपों के संबंध में उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो उनका कहना था, जब रिपोर्ट मेरे पास आएगी तो मैं उसे पढ़ूंगा. आप मंत्रालय से ही इस संबंध में बात कीजिए.
बताते चलें कि इस संबंध में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कई पत्र भेजकर कार्रवाई करने की गुहार लगाई गई है. प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से कार्रवाई के नाम पर इस शिकायत पत्र को संस्कृति मंत्रालय के सचिव को हस्तांतरित कर दिया गया है. लेकिन संस्कृति मंत्रालय द्वारा अभी तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है. (TwoCircles.net के पास शिकायत पत्र और पीएमओ द्वारा संस्कृति मंत्रालय को हस्तांतरित किए गए पत्र मौजूद हैं.)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे एक पत्र में बताया गया है कि, यहां के निदेशक के भ्रष्टाचार को सामने लाने वाले यहां के कर्मचारियों को प्रतिदिन निदेशक एवं यहां के कुछ उप-निदेशक द्वारा उनको बर्खास्त करने एवं उनके ख़िलाफ़ एक्शन लेने की धमकी दी जा रही है. क्या देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने का काम देश की आम जनता को प्रधानमंत्री जी के साथ नहीं करना चाहिए.
प्रधानमंत्री को लिखे इस पत्र में आरोप लगाते हुए सवाल खड़ा किया गया है कि, संस्कृति मंत्रालय के ही पूर्व सचिव एन. के. सिन्हा जी द्वारा इस निदेशक को बचाने की हर संभव कोशिश की जा रही है, क्योंकि इस भ्रष्टाचार में वो भी शामिल रहे हैं. ऐसे में जब ऑडिट रिपोर्ट सामने है और संस्कृति मंत्रालय के ही उच्च अधिकारी ने करोड़ों का घोटाला पकड़ा है एवं उस पर रिकवरी के आदेश के साथ सीबीआई से जांच की सिफ़ारिश की गई है, वैसे में मंत्रालय द्वारा एक भ्रष्ट निदेशक के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं किया जाना क्या जताता है?
साथ ही इस पत्र में प्रधानमंत्री से यह भी कहा गया है कि, भ्रष्टाचार साबित होने के बावजूद कार्रवाई नहीं करना, देश की सवा करोड़ जनता के साथ अन्याय करना है. वहीं निदेशक पर लगे गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप पर चुप्पी साधे रहना देश की जनता के मानस पटल पर मंत्री के प्रति कई सवाल पैदा करता है, जो कि प्रधानमंत्री द्वारा ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत अभियान’ के बिल्कुल विपरित प्रतीत होता है.
नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर एक अन्य शिकायतकर्ता TwoCircles.net से बातचीत में बताते हैं कि, इस घोटाले को दबाने के लिए बहुत बड़े-बड़े लोगों द्वारा मंत्रालय पर दवाव बनाया जा रहा है. क्या देश को बचाने का संस्कृति मंत्रालय के पास बस यही ‘संस्कृति’ बची है?
वो आगे बताते हैं कि, इस ऑडिट रिपोर्ट को जान-बूझ कर दबाया जा रहा है. ऐसे में आम जनता के करोड़ों रूपये का घोटाला, वो भी संस्कृति मंत्रालय के ठीक नाक के नीचे और फिर संस्कृति मंत्रालय द्वारा ही भ्रष्ट अधिकारी को बचाना… इसे कहां तक उचित ठहराया जा सकता है.
बताते चलें कि इस कथित भ्रष्टाचार को लेकर लोकसभा में भाजपा के सांसद एडवोकेट नरेन्द्र केशव सावईकर ने साल 2016 में 12 दिसम्बर को सवाल किया, लेकिन तब संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री महेश शर्मा ने कहा था —‘सूचना एकत्र की जा रही है और सभा पटल पर रख दी जाएगी.’
10 अप्रैल, 2017 को भी इसी सांसद ने दुबारा से अपने उन्हीं सवालों को दोहराया, लेकिन अब भी संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री महेश शर्मा का जवाब था —‘सूचना एकत्र की जा रही है और सभा पटल पर रख दी जाएगी.’
Courtesy: Two Circles