मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग में सीधी भर्ती से प्रोफेसरों की भर्ती में भी अनियमितताएं सामने आई हैं। कई चयनित अभ्यर्थियों के पास निर्धारित योग्यता ही नहीं है तो कई के पास आवश्यक अनुभव नहीं है। कई अभ्यर्थी ऐसे भी भर्ती हो गए जिनकी तीन से ज्यादा संतानें हैं, जबकि 2001 के बाद से 3 और ज्यादा संतानों वाले अभ्यर्थियों को सरकारी नियुक्ति दी ही नहीं जा सकती।
पीएससी ने 2009 में प्रदेश के सरकारी कॉलेजों के 385 पदों पर नियुक्ति का विज्ञापन जारी किया था। सिर्फ इंटरव्यू के जरिये चयन कर लिया गया। इसके लिए पीएचडी के बाद सरकारी या अनुदान प्राप्त कॉलेज में दस वर्ष तक पीजी कक्षाओं में शिक्षण का अनुभव मांगा गया था। प्रक्रिया के जरिये 2011 में 242 पदों पर नियुक्ति दी गई, लेकिन सूची जारी होते ही ये गड़बड़ियां सामने आईं तो हंगामा मचने लगा।
सूची में ऐसे कई अभ्यर्थियों के नाम हैं, जो आवेदन की तारीख तक न तो दस साल का अनुभव जुटा सके थे, न उनकी पीएचडी को दस वर्ष हुए थे।
नईदुनिया के अनुसार, बीते महीने ऐसे 15 प्रोफेसरों के रिकॉर्ड सत्यापन की कार्रवाई शुरू हुई। इसी सप्ताह दो आदेश जारी कर सात प्रोफेसरों का प्रोबेशन खत्म कर उनको नियमित कर दिया गया। इनमें इंदौर के रहने वाले और वर्तमान में उज्जैन के शासकीय माधव कॉलेज में पदस्थ डॉ दिनेश दवे (वाणिज्य) के साथ इंदौर के जीएसीसी में पदस्थ डॉ प्रेरणा ठाकुर (इतिहास) का नाम भी शामिल है।
डॉ दवे की तीन संतान हैं, जबकि शासकीय सेवा के नियमों के मुताबिक तीन संतान होने पर 2001 के बाद किसी भी व्यक्ति को नियुक्ति नहीं दी जा सकती।
डॉ. ठाकुर के पास नियुक्ति दिनांक तक 10 वर्ष तक पढ़ाने का अनुभव नहीं होने की शिकायत की जा रही है। वे सुगनीदेवी कॉलेज में अनुबंध या अतिथि शिक्षक के रूप में पढ़ाती रही हैं, जबकि चयन शर्तों के मुताबिक निजी अनुदान प्राप्त कॉलेज में नियमित नियुक्ति होने पर ही अनुभव मान्य किया जाता है।
ये भी सामने आया है जिन प्रोफेसरों को नियम विरुद्ध नियमित किया गया है, उनमें से ज्यादातर के संबंध आरएसएस या एबीवीपी से हैं, या उन संगठनों की तरफ से उनकी सिफारिशें आई हैं।
ऐसे में कई काबिल लोगों के साथ अन्याय हो गया है। प्रभावित प्रोफेसरों के साथ व्हिसिल ब्लोअर पंकज प्रजापति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, और कोर्ट ने उच्च शिक्षा विभाग को जांच के आदेश दिए थे। जांच कमेटी ने फर्जी प्रमाण पत्र लगाने की बात भी मानी थी लेकिन विभाग आरटीआई में भी जांच रिपोर्ट नहीं दे रहा है।
पीएससी ने 2009 में प्रदेश के सरकारी कॉलेजों के 385 पदों पर नियुक्ति का विज्ञापन जारी किया था। सिर्फ इंटरव्यू के जरिये चयन कर लिया गया। इसके लिए पीएचडी के बाद सरकारी या अनुदान प्राप्त कॉलेज में दस वर्ष तक पीजी कक्षाओं में शिक्षण का अनुभव मांगा गया था। प्रक्रिया के जरिये 2011 में 242 पदों पर नियुक्ति दी गई, लेकिन सूची जारी होते ही ये गड़बड़ियां सामने आईं तो हंगामा मचने लगा।
सूची में ऐसे कई अभ्यर्थियों के नाम हैं, जो आवेदन की तारीख तक न तो दस साल का अनुभव जुटा सके थे, न उनकी पीएचडी को दस वर्ष हुए थे।
नईदुनिया के अनुसार, बीते महीने ऐसे 15 प्रोफेसरों के रिकॉर्ड सत्यापन की कार्रवाई शुरू हुई। इसी सप्ताह दो आदेश जारी कर सात प्रोफेसरों का प्रोबेशन खत्म कर उनको नियमित कर दिया गया। इनमें इंदौर के रहने वाले और वर्तमान में उज्जैन के शासकीय माधव कॉलेज में पदस्थ डॉ दिनेश दवे (वाणिज्य) के साथ इंदौर के जीएसीसी में पदस्थ डॉ प्रेरणा ठाकुर (इतिहास) का नाम भी शामिल है।
डॉ दवे की तीन संतान हैं, जबकि शासकीय सेवा के नियमों के मुताबिक तीन संतान होने पर 2001 के बाद किसी भी व्यक्ति को नियुक्ति नहीं दी जा सकती।
डॉ. ठाकुर के पास नियुक्ति दिनांक तक 10 वर्ष तक पढ़ाने का अनुभव नहीं होने की शिकायत की जा रही है। वे सुगनीदेवी कॉलेज में अनुबंध या अतिथि शिक्षक के रूप में पढ़ाती रही हैं, जबकि चयन शर्तों के मुताबिक निजी अनुदान प्राप्त कॉलेज में नियमित नियुक्ति होने पर ही अनुभव मान्य किया जाता है।
ये भी सामने आया है जिन प्रोफेसरों को नियम विरुद्ध नियमित किया गया है, उनमें से ज्यादातर के संबंध आरएसएस या एबीवीपी से हैं, या उन संगठनों की तरफ से उनकी सिफारिशें आई हैं।
ऐसे में कई काबिल लोगों के साथ अन्याय हो गया है। प्रभावित प्रोफेसरों के साथ व्हिसिल ब्लोअर पंकज प्रजापति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, और कोर्ट ने उच्च शिक्षा विभाग को जांच के आदेश दिए थे। जांच कमेटी ने फर्जी प्रमाण पत्र लगाने की बात भी मानी थी लेकिन विभाग आरटीआई में भी जांच रिपोर्ट नहीं दे रहा है।