उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा के दौरान कानून-व्यवस्था बिगड़ गई। कई जगहों पर लोगों ने तोड़ फोड़ कीं, खाने-पीने की दुकानों पर उनकी पहचान के आधार पर हमले किए और रास्तों पर बाधा डाली। खाने के दुकानदारों पर हमला होने की भी कई खबरें आई हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और उत्तराखंड सरकार के विवादित क्यूआर कोड के उन निर्देशों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, जिसमें होटलों को अपना लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन दिखाना जरूरी बताया गया है।

प्रतीकात्मक तस्वीर
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इस साल कांवड़ यात्रा के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति बेहद चिंताजनक रही है। यात्रा के पहले पांच दिनों में ही 170 से ज्यादा कांवड़ियों के खिलाफ गंभीर आरोपों में मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें उपद्रव, दंगा, राजमार्ग बाधित करना और शांति भंग करना शामिल है। सामान्य अराजकता से इतर एक और खतरनाक प्रवृत्ति सामने आई है। इनमें खासकर ढाबा और होटल मालिकों व कर्मचारियों को निशाना बनाकर की जा रही उत्पीड़न और तोड़फोड़ की घटनाएं शामिल हैं। यह सब अक्सर सांप्रदायिक आरोपों और विवादित निर्देशों जैसे होटल मालिकों के नाम, प्रबंधकों के नाम और क्यूआर कोड प्रदर्शित करने की मांग के चलते हो रहा है, जबकि यह कानूनी रूप से उस व्यक्ति की पहचान को उजागर करता है जिसे सांप्रदायिक हिंसा या हमले का खतरा हो सकता है। मुजफ्फरनगर और हरिद्वार में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जहां तीर्थयात्रियों ने कर्मचारियों की धार्मिक पहचान की जांच करने की कोशिश की और मैनेजर को अपशब्द कहे। वहीं, मीरापुर में स्थित ढाबों पर भी इसी तरह के मामलों को लेकर तोड़फोड़ की गई। स्थिति तब और गंभीर हो गई जब गाजियाबाद के लोनी इलाके में एक भाजपा विधायक ने खुद ही एक मांस विक्रेता की दुकान बंद करवाने का प्रयास किया जबकि पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे भेदभावपूर्ण निर्देशों पर रोक लगाने का स्पष्ट आदेश दिया था।
यह आक्रोश अब बेहद मामूली बातों तक पहुंच गई है जैसे कि भोजन की सामग्री को लेकर लोग हिंसक हो गए। मुजफ्फरनगर में खाने में प्याज और लहसुन मिलने के चलते ढाबों में तोड़फोड़ की गई और उनके मालिकों पर हमला किया गया। स्थिति और भी भयावह तब हो गई जब मिर्जापुर में एक सीआरपीएफ जवान पर बर्बर हमला किया गया, जिसकी देशभर में निंदा हुई। इसके अलावा मेरठ और हरिद्वार में आम नागरिकों और उनकी संपत्तियों को भी हिंसा का शिकार बनाया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के आदेश की वैधता की जांच करने से इनकार कर दिया
इसके अलावा, जब ढाबा और होटल मालिकों पर उनकी पहचान के आधार पर हो रहे हमलों की चिंताजनक खबरें सामने आ रही थीं तो इसी बीच 22 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड प्रशासन द्वारा जारी उस निर्देश की कानूनी वैधता की जांच करने से इनकार कर दिया, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित खाने-पीने की दुकानों को क्यूआर कोड प्रदर्शित करने का आदेश दिया गया था, ताकि श्रद्धालु मालिक की जानकारी देख सकें। न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की पीठ ने इस आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निपटारा करते हुए स्पष्ट किया कि विक्रेताओं के लिए केवल वैधानिक रूप से आवश्यक लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्रों का डिस्प्ले करना अनिवार्य है। पीठ के हवाले से लाइव लॉ ने लिखा, "हमें बताया गया है कि आज कांवड़ यात्रा का अंतिम दिन है। किसी भी स्थिति में, यह निकट भविष्य में समाप्त होने वाली है। इसलिए इस स्तर पर हम केवल इतना आदेश पारित करेंगे कि सभी संबंधित होटल मालिक वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप अपने लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र डिस्प्ले करें। हम यह स्पष्ट करते हैं कि हम इस समय याचिका में उठाए गए अन्य मुद्दों पर विचार नहीं कर रहे हैं। आवेदन बंद किया जाता है।"
प्रोफेसर अपूर्वानंद और कार्यकर्ता आकार पटेल, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और एनजीओ एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स द्वारा दायर आवेदनों में इन निर्देशों पर रोक लगाने की मांग की गई थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि ये पिछले साल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हैं, जिसमें विक्रेता की पहचान का जबरन खुलासा करने और धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देने पर रोक लगाई गई थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंहवी ने तर्क दिया कि ये निर्देश धार्मिक पहचान के आधार पर वर्गीकरण (प्रोफाइलिंग) करने के उद्देश्य से जारी किए गए हैं, न कि सेवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए। उन्होंने इसे धर्मनिरपेक्षता पर एक सीधा हमला बताया। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि ये निर्देश एफएसएसएआई (FSSAI) नियमों के अनुरूप हैं। उन्होंने बताया कि कुछ ढाबों ने शाकाहारी भोजन को गलत तरीके से परोसा है। न्यायमूर्ति सुंदरेश ने यह कहा कि उपभोक्ताओं के पास यह विकल्प होना चाहिए कि वे जान सकें कि कोई स्थान विशेष रूप से शाकाहारी भोजन परोसता है या नहीं, खासकर जब बात एक तीर्थयात्रा की हो।
आखिरकार, पीठ ने यह कहते हुए विवादास्पद मुद्दों में गहराई से जाने से इनकार कर दिया कि कांवड़ यात्रा के समाप्त होने के कारण यह मामला अब अप्रासंगिक (infructuous) हो गया है। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को कहा कि यदि वे इस निर्देश को आगे चुनौती देना चाहते हैं, तो वे उच्च न्यायालय का रुख करें।
अराजकता में वृद्धि: उपद्रव और हिंसा की घटनाएं
रिपोर्ट्स के अनुसार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विभिन्न शहरों में कांवड़ यात्रा के दौरान उपद्रव और अनुशासनहीनता की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। मेला पुलिस फोर्स कंट्रोल रूम से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, केवल पहले पांच दिनों में ही 170 से ज्यादा कांवड़ियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए, जिनमें उपद्रव, दंगा, राजमार्ग अवरोध, पुलिस अधिकारियों के काम में बाधा डालना, शांति भंग करने और गलत तरीके से लोगों को रोकने जैसे आरोप शामिल हैं। हिंदुस्तान टाइम्स ने इस रिपोर्ट प्रकाशित किया।
होटलों के मालिकों और कर्मचारियों को निशाना बनाकर किया गया उत्पीड़न
इस साल की कांवड़ यात्रा के दौरान एक विशेष रूप से चिंताजनक प्रवृत्ति सामने आई है जिसमें होटल और ढाबा मालिकों के खिलाफ जानबूझकर किया गया उत्पीड़न और तोड़फोड़, जो अक्सर सांप्रदायिक आरोपों से प्रेरित रही है। डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, मुजफ्फरनगर में एक चौंकाने वाली घटना घटी, जहां स्वामी यशवीर महाराज के नेतृत्व में एक भगवा संगठन के सदस्यों ने ‘पंडितजी का ढाबा’ पर काम करने वाले कर्मचारियों को धर्म की जांच के लिए कथित तौर पर कपड़े उतरवाने की कोशिश की, क्योंकि स्कैन किए गए बारकोड से यह जानकारी सामने आई कि ढाबे का मालिक मुस्लिम है।
इस भगवा संगठन ने राज्य सरकार के उस निर्देश के बाद, जिसमें होटलों को मालिक का नाम प्रदर्शित करने को कहा गया था, सैकड़ों कार्यकर्ताओं को तैनात किया ताकि हिंदू नाम वाले मुस्लिम स्वामित्व वाले ढाबों और होटलों की पहचान की जा सके। एक वायरल वीडियो में कैद हुई इस घटना के चलते पुलिस ने छह लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया। हालांकि, स्वामी यशवीर महाराज ने चेतावनी दी कि अगर उनके कार्यकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई, तो वे राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे। उन्होंने साफ तौर पर कहा, “हम किसी भी हाल में मुसलमानों को यात्रा मार्ग पर खाने-पीने की दुकानें चलाने की अनुमति नहीं देंगे।”
सांप्रदायिक निशाना साधने की यह घटना कोई एकमात्र घटना नहीं थी। हरिद्वार में कांवड़ यात्रियों ने मुस्लिम-स्वामित्व वाले खाने-पीने के एक स्टॉल पर काम करने वाले सिख मैनेजर को गाली दी और परेशान किया। यात्रियों ने यह आरोप लगाया कि वह उन्हें “मुस्लिम स्टॉल” से चाय परोसकर धोखा दे रहा है। जब प्रबंधक ने धार्मिक समानता की बात की तो उसे कहा गया कि “तर्क देना बंद करो।”
इसी तरह, मीरापुर में भी यह दावा करते हुए एक ढाबे को कांवड़ियो ने तोड़फोड़ किया कि मुस्लिम मालिकों ने अपनी पहचान प्रदर्शित नहीं की थी जो सांप्रदायिक उत्पीड़न के पैटर्न को और स्पष्ट करता है।
गाजियाबाद के लोनी में 10 जुलाई को भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने खुद मांस विक्रेता की दुकान को बंद कर दिया। उन्होंने हिंदू महीने सावन और कांवड़ यात्रा का हवाला देते हुए पुलिस के कार्रवाई न करने पर “खुद ही मामला अपने हाथों में लेने और कानून तोड़ने” की धमकी दी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2024 में दखल देते हुए मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा जारी सार्वजनिक नोटिस को लागू करने से रोका। यह नोटिस कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित होटलों, ढाबों और दुकानों को उनके मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने का निर्देश देता था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भेदभावपूर्ण माना। खाने पीने की पसंद को लेकर की गई तोड़फोड़ और अन्य हमलों के मामले सामने आए।
भोजन की पसंद को लेकर की गई तोड़फोड़ और अन्य हमले
सांप्रदायिक दृष्टिकोण से परे, कांवड़ियों ने मामूली बातों को लेकर तोड़फोड़ और हमलों को अंजाम दिया है। मुजफ्फरनगर में 7 जुलाई को कांवड़ यात्री ‘ताऊ हुक्केवाला हरियाणवी टूरिस्ट ढाबा’ में तोड़फोड़ कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि परोसी गई दाल में प्याज और लहसुन था जबकि मालिक प्रमोद कुमार ने बताया कि यह एक कर्मचारी की गलती थी। वे तीर्थ यात्री जिन्होंने इन सामग्रियों से परहेज़ करने का संकल्प लिया था उन्होंने कर्मचारियों पर हमला किया, फर्नीचर को नुकसान पहुंचाया और रसोइये का पीछा किया।
एक और ऐसी ही घटना ‘बालकनाथ ढाबा’ पर हुई, जहां मालिक साधना पवार ने दुखी होकर बताया, “मैंने हाथ जोड़कर विनती की, लेकिन उन्होंने मेरा पूरा ढाबा तोड़ दिया… मेरे नौकर की टांग भी तोड़ दी, सारा पैसा लूट लिया,” सिर्फ इसलिए क्योंकि एक डिश में गलती से प्याज था।

यह हिंसा शारीरिक हमलों तक भी बढ़ गई। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक घटना को लेकर व्यापक निंदा हुई, जहां सात कांवड़ियों को गिरफ्तार किया गया, जिन्होंने रेलवे स्टेशन पर ट्रेन टिकट के विवाद के दौरान एक सीआरपीएफ जवान को बेरहमी से पीटा और लात मारी। सीसीटीवी फुटेज में भगवा कपड़ा पहने यात्रियों को जवान को जमीन पर गिराकर खुलेआम मारपीट करते देखा जा सकता है।
यहां तक कि मासूम लोग और उनकी संपत्ति भी सुरक्षित नहीं रहे। मेरठ में, जब एक बस तीन कांवड़ियों को सिर्फ छू गया, तो उनके साथ जा रहे अन्य यात्रियों ने उस बस में तोड़-फोड़ की। इसके शीशे तोड़ डाले और ड्राइवर पर हमला किया। बाद में ये लोग भाग गए।

5 जुलाई 2025 को हरिद्वार के मंगलौर में कांवड़ियों ने एक कार पर हमला किया, जिसमें एक मुस्लिम परिवार सवार था। उन्होंने आरोप लगाया कि कार ने एक कांवड़िया को टक्कर मारी है और फिर ड्राइवर और यात्रियों पर हमला किया तथा कार को तोड़फोड़ कर क्षतिग्रस्त कर दिया।
अब, बढ़ती समस्याओं को समझते हुए अधिकारियों ने दुर्व्यवहार पर लगाम लगाने की कोशिश की है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, बुलंदशहर, हापुड़ और बागपत जैसे जिलों के प्रमुख यात्रा मार्गों पर कांवड़ियों को लकड़ी, त्रिशूल, हॉकी स्टिक और इसी तरह की चीजें लेकर चलने से प्रतिबंधित कर दिया है।
इसके अलावा, शोर प्रदूषण और लोगों की परेशानियों को रोकने के लिए बिना साइलेंसर वाली मोटरसाइकिलों के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। ADG (मेरठ जोन) भानु भास्कर ने सख्त कार्रवाई की पुष्टि करते हुए कहा, “सरकार ने इसके लिए स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं। हम इन्हें कड़ाई से लागू कर रहे हैं और नियम तोड़ने वालों के खिलाफ FIR दर्ज की जा रही है।”
मुख्यमंत्री का रुख और उसके प्रभाव
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कांवड़ यात्रा को लेकर की गई टिप्पणियां चर्चा और आलोचना का विषय बनी हैं। आलोचकों का मानना है कि उनकी कुछ बातों से कुछ असामाजिक तत्वों को परोक्ष रूप से प्रोत्साहन मिला है। रविवार, 20 जुलाई 2025 को मुख्यमंत्री ने दावा किया कि “शरारती तत्व” कांवड़ जत्थों में घुसपैठ कर रहे हैं ताकि सोशल मीडिया पर उन्हें बदनाम किया जा सके। उन्होंने "कांवड़ संघों" से ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें दूर रखने की अपील की। उन्होंने कह,:“हमें यह ध्यान रखना होगा कि जहां उत्साह और उमंग होता है, जहां श्रद्धा और भक्ति होती है, वहां कुछ तत्व लगातार उस उत्साह को बाधित करने और इस भक्ति व आस्था को बदनाम करने की कोशिश करते हैं।” मुख्यमंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि यात्रा समाप्त होने के बाद सीसीटीवी में कैद उपद्रवियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसे इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित किया।
यात्रा के दौरान हुई हिंसक घटनाओं और आलोचनाओं के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 18 जुलाई 2025 को वाराणसी में एक और तीखा बयान दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांवड़ यात्रा को “जानबूझकर बदनाम” किया जा रहा है और इसके प्रतिभागियों को “गुंडा” कहकर पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कुछ ताकतें भारत की विरासत को अपमानित करने का प्रयास कर रही हैं। उन्होंने कहा, “आज यात्रा शांतिपूर्वक और श्रद्धा के साथ चल रही है, फिर भी कुछ लोग इसे उन्मादी बताने में लगे हैं। ये वही ताकतें हैं जो आदिवासी समाज को भटकाने और भड़काने की कोशिश करती हैं। हमें ऐसे विघटनकारी तत्वों से सतर्क रहना होगा।” यह रिपोर्ट द हिंदू द्वारा प्रकाशित किया गया।
उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक आगजनी करने वाला व्यक्ति, जो भगवा गमछा पहने हुए था, “या अल्लाह” चिल्ला रहा था। मुख्यमंत्री ने इस तरह की चालबाजियों को असामाजिक तत्वों की साजिश करार दिया।
हालांकि मुख्यमंत्री ने “शरारती तत्वों” की हरकतों की निंदा की और कानून व्यवस्था बनाए रखने की अपील की, लेकिन उनका यह बयान -जिसमें उन्होंने बाहरी “बदनाम करने वालों” और “राष्ट्रविरोधी तत्वों” को जिम्मेदार ठहराया- संभवतः कांवड़ियों के उग्र और अनुशासनहीन व्यवहार के लिए एक तरह का ढाल बन गया। इससे सीधे तौर पर कांवड़ियों की हरकतों को नजरअंदाज करते हुए ध्यान कहीं और मोड़ दिया गया। मेरठ में मुख्यमंत्री द्वारा अन्य नेताओं के साथ कांवड़ियों पर सार्वजनिक रूप से फूल बरसाना भी एक ऐसा दृश्य था जिसने राज्य की ओर से समर्थन और नरमी का संकेत दिया। आलोचकों का कहना है कि यह संदेश कुछ लोगों के लिए एक मूक स्वीकृति (tacit approval) के रूप में देखा गया जिससे उपद्रवी तत्वों का मनोबल बढ़ा और उन्हें यह भरोसा मिला कि अगर वे कुछ गलत भी करें तो उन्हें “बदनाम किए गए भक्तों” के रूप में बचाव मिल सकता है, न कि अपराध के दोषी के रूप में देखा जाएगा।
श्रद्धा पर हिंसा का दाग
हिंसा, आक्रामकता और सांप्रदायिक निशाना बनाए जाने की बढ़ती खबरें कांवड़ यात्रा के पवित्र उद्देश्य को कलंकित कर रही हैं। महंत रविंद्र पुरी का यह कहना कि यात्रा “करुणा” और “प्रायश्चित” का प्रतीक है, उन घटनाओं से बिल्कुल विपरीत लगता है जहां तोड़फोड़, मारपीट और डर का वातावरण बना। 22 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवादास्पद QR कोड निर्देशों की वैधता की समीक्षा से इनकार करना, खासकर उस समय जब लगातार ऐसी घटनाएं सामने आ रही थीं जिनमें होटल मालिकों को उनकी पहचान के आधार पर निशाना बनाया जा रहा था, इस बात को उजागर करता है कि कांवड़ यात्रा के आध्यात्मिक उद्देश्य और जमीनी हकीकत के बीच कितना बड़ा फासला बन गया है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवादास्पद निर्देशों - विशेषकर पहचान के आधार पर दुकानदारों को निशाना बनाने की घटनाओं - की वैधता की जांच से परहेज़ करना, ऐसी हिंसा को लेकर जवाबदेही के कई अहम सवाल खड़े करता है।
जब एक ऐसी तीर्थयात्रा जिसका उद्देश्य भक्ति, संयम और त्याग को दर्शाना है-और जो भगवान परशुराम तथा श्रद्धावान श्रवण कुमार जैसे आदर्श चरित्रों की परंपरा से जुड़ी मानी जाती है -वही यात्रा सड़कों पर जाम, लोगों को डराने-धमकाने और शारीरिक हिंसा की पहचान बनने लगे तो उसकी आध्यात्मिक पवित्रता बुरी तरह आहत होती है। ये घटनाएं न केवल सार्वजनिक शांति और व्यवस्था को बाधित करती हैं, बल्कि डर और विभाजन के बीज भी बोती हैं, जो यात्रा के मूल मूल्य-एकता, भक्ति, और निःस्वार्थ सेवा-का मौलिक रूप से अपमान करती हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इस साल कांवड़ यात्रा के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति बेहद चिंताजनक रही है। यात्रा के पहले पांच दिनों में ही 170 से ज्यादा कांवड़ियों के खिलाफ गंभीर आरोपों में मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें उपद्रव, दंगा, राजमार्ग बाधित करना और शांति भंग करना शामिल है। सामान्य अराजकता से इतर एक और खतरनाक प्रवृत्ति सामने आई है। इनमें खासकर ढाबा और होटल मालिकों व कर्मचारियों को निशाना बनाकर की जा रही उत्पीड़न और तोड़फोड़ की घटनाएं शामिल हैं। यह सब अक्सर सांप्रदायिक आरोपों और विवादित निर्देशों जैसे होटल मालिकों के नाम, प्रबंधकों के नाम और क्यूआर कोड प्रदर्शित करने की मांग के चलते हो रहा है, जबकि यह कानूनी रूप से उस व्यक्ति की पहचान को उजागर करता है जिसे सांप्रदायिक हिंसा या हमले का खतरा हो सकता है। मुजफ्फरनगर और हरिद्वार में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जहां तीर्थयात्रियों ने कर्मचारियों की धार्मिक पहचान की जांच करने की कोशिश की और मैनेजर को अपशब्द कहे। वहीं, मीरापुर में स्थित ढाबों पर भी इसी तरह के मामलों को लेकर तोड़फोड़ की गई। स्थिति तब और गंभीर हो गई जब गाजियाबाद के लोनी इलाके में एक भाजपा विधायक ने खुद ही एक मांस विक्रेता की दुकान बंद करवाने का प्रयास किया जबकि पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे भेदभावपूर्ण निर्देशों पर रोक लगाने का स्पष्ट आदेश दिया था।
यह आक्रोश अब बेहद मामूली बातों तक पहुंच गई है जैसे कि भोजन की सामग्री को लेकर लोग हिंसक हो गए। मुजफ्फरनगर में खाने में प्याज और लहसुन मिलने के चलते ढाबों में तोड़फोड़ की गई और उनके मालिकों पर हमला किया गया। स्थिति और भी भयावह तब हो गई जब मिर्जापुर में एक सीआरपीएफ जवान पर बर्बर हमला किया गया, जिसकी देशभर में निंदा हुई। इसके अलावा मेरठ और हरिद्वार में आम नागरिकों और उनकी संपत्तियों को भी हिंसा का शिकार बनाया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के आदेश की वैधता की जांच करने से इनकार कर दिया
इसके अलावा, जब ढाबा और होटल मालिकों पर उनकी पहचान के आधार पर हो रहे हमलों की चिंताजनक खबरें सामने आ रही थीं तो इसी बीच 22 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड प्रशासन द्वारा जारी उस निर्देश की कानूनी वैधता की जांच करने से इनकार कर दिया, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित खाने-पीने की दुकानों को क्यूआर कोड प्रदर्शित करने का आदेश दिया गया था, ताकि श्रद्धालु मालिक की जानकारी देख सकें। न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की पीठ ने इस आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निपटारा करते हुए स्पष्ट किया कि विक्रेताओं के लिए केवल वैधानिक रूप से आवश्यक लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्रों का डिस्प्ले करना अनिवार्य है। पीठ के हवाले से लाइव लॉ ने लिखा, "हमें बताया गया है कि आज कांवड़ यात्रा का अंतिम दिन है। किसी भी स्थिति में, यह निकट भविष्य में समाप्त होने वाली है। इसलिए इस स्तर पर हम केवल इतना आदेश पारित करेंगे कि सभी संबंधित होटल मालिक वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप अपने लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र डिस्प्ले करें। हम यह स्पष्ट करते हैं कि हम इस समय याचिका में उठाए गए अन्य मुद्दों पर विचार नहीं कर रहे हैं। आवेदन बंद किया जाता है।"
प्रोफेसर अपूर्वानंद और कार्यकर्ता आकार पटेल, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और एनजीओ एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स द्वारा दायर आवेदनों में इन निर्देशों पर रोक लगाने की मांग की गई थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि ये पिछले साल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हैं, जिसमें विक्रेता की पहचान का जबरन खुलासा करने और धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देने पर रोक लगाई गई थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंहवी ने तर्क दिया कि ये निर्देश धार्मिक पहचान के आधार पर वर्गीकरण (प्रोफाइलिंग) करने के उद्देश्य से जारी किए गए हैं, न कि सेवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए। उन्होंने इसे धर्मनिरपेक्षता पर एक सीधा हमला बताया। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि ये निर्देश एफएसएसएआई (FSSAI) नियमों के अनुरूप हैं। उन्होंने बताया कि कुछ ढाबों ने शाकाहारी भोजन को गलत तरीके से परोसा है। न्यायमूर्ति सुंदरेश ने यह कहा कि उपभोक्ताओं के पास यह विकल्प होना चाहिए कि वे जान सकें कि कोई स्थान विशेष रूप से शाकाहारी भोजन परोसता है या नहीं, खासकर जब बात एक तीर्थयात्रा की हो।
आखिरकार, पीठ ने यह कहते हुए विवादास्पद मुद्दों में गहराई से जाने से इनकार कर दिया कि कांवड़ यात्रा के समाप्त होने के कारण यह मामला अब अप्रासंगिक (infructuous) हो गया है। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को कहा कि यदि वे इस निर्देश को आगे चुनौती देना चाहते हैं, तो वे उच्च न्यायालय का रुख करें।
अराजकता में वृद्धि: उपद्रव और हिंसा की घटनाएं
रिपोर्ट्स के अनुसार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विभिन्न शहरों में कांवड़ यात्रा के दौरान उपद्रव और अनुशासनहीनता की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। मेला पुलिस फोर्स कंट्रोल रूम से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, केवल पहले पांच दिनों में ही 170 से ज्यादा कांवड़ियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए, जिनमें उपद्रव, दंगा, राजमार्ग अवरोध, पुलिस अधिकारियों के काम में बाधा डालना, शांति भंग करने और गलत तरीके से लोगों को रोकने जैसे आरोप शामिल हैं। हिंदुस्तान टाइम्स ने इस रिपोर्ट प्रकाशित किया।
होटलों के मालिकों और कर्मचारियों को निशाना बनाकर किया गया उत्पीड़न
इस साल की कांवड़ यात्रा के दौरान एक विशेष रूप से चिंताजनक प्रवृत्ति सामने आई है जिसमें होटल और ढाबा मालिकों के खिलाफ जानबूझकर किया गया उत्पीड़न और तोड़फोड़, जो अक्सर सांप्रदायिक आरोपों से प्रेरित रही है। डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, मुजफ्फरनगर में एक चौंकाने वाली घटना घटी, जहां स्वामी यशवीर महाराज के नेतृत्व में एक भगवा संगठन के सदस्यों ने ‘पंडितजी का ढाबा’ पर काम करने वाले कर्मचारियों को धर्म की जांच के लिए कथित तौर पर कपड़े उतरवाने की कोशिश की, क्योंकि स्कैन किए गए बारकोड से यह जानकारी सामने आई कि ढाबे का मालिक मुस्लिम है।
इस भगवा संगठन ने राज्य सरकार के उस निर्देश के बाद, जिसमें होटलों को मालिक का नाम प्रदर्शित करने को कहा गया था, सैकड़ों कार्यकर्ताओं को तैनात किया ताकि हिंदू नाम वाले मुस्लिम स्वामित्व वाले ढाबों और होटलों की पहचान की जा सके। एक वायरल वीडियो में कैद हुई इस घटना के चलते पुलिस ने छह लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया। हालांकि, स्वामी यशवीर महाराज ने चेतावनी दी कि अगर उनके कार्यकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई, तो वे राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे। उन्होंने साफ तौर पर कहा, “हम किसी भी हाल में मुसलमानों को यात्रा मार्ग पर खाने-पीने की दुकानें चलाने की अनुमति नहीं देंगे।”
सांप्रदायिक निशाना साधने की यह घटना कोई एकमात्र घटना नहीं थी। हरिद्वार में कांवड़ यात्रियों ने मुस्लिम-स्वामित्व वाले खाने-पीने के एक स्टॉल पर काम करने वाले सिख मैनेजर को गाली दी और परेशान किया। यात्रियों ने यह आरोप लगाया कि वह उन्हें “मुस्लिम स्टॉल” से चाय परोसकर धोखा दे रहा है। जब प्रबंधक ने धार्मिक समानता की बात की तो उसे कहा गया कि “तर्क देना बंद करो।”
इसी तरह, मीरापुर में भी यह दावा करते हुए एक ढाबे को कांवड़ियो ने तोड़फोड़ किया कि मुस्लिम मालिकों ने अपनी पहचान प्रदर्शित नहीं की थी जो सांप्रदायिक उत्पीड़न के पैटर्न को और स्पष्ट करता है।
गाजियाबाद के लोनी में 10 जुलाई को भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने खुद मांस विक्रेता की दुकान को बंद कर दिया। उन्होंने हिंदू महीने सावन और कांवड़ यात्रा का हवाला देते हुए पुलिस के कार्रवाई न करने पर “खुद ही मामला अपने हाथों में लेने और कानून तोड़ने” की धमकी दी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2024 में दखल देते हुए मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा जारी सार्वजनिक नोटिस को लागू करने से रोका। यह नोटिस कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित होटलों, ढाबों और दुकानों को उनके मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने का निर्देश देता था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भेदभावपूर्ण माना। खाने पीने की पसंद को लेकर की गई तोड़फोड़ और अन्य हमलों के मामले सामने आए।
भोजन की पसंद को लेकर की गई तोड़फोड़ और अन्य हमले
सांप्रदायिक दृष्टिकोण से परे, कांवड़ियों ने मामूली बातों को लेकर तोड़फोड़ और हमलों को अंजाम दिया है। मुजफ्फरनगर में 7 जुलाई को कांवड़ यात्री ‘ताऊ हुक्केवाला हरियाणवी टूरिस्ट ढाबा’ में तोड़फोड़ कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि परोसी गई दाल में प्याज और लहसुन था जबकि मालिक प्रमोद कुमार ने बताया कि यह एक कर्मचारी की गलती थी। वे तीर्थ यात्री जिन्होंने इन सामग्रियों से परहेज़ करने का संकल्प लिया था उन्होंने कर्मचारियों पर हमला किया, फर्नीचर को नुकसान पहुंचाया और रसोइये का पीछा किया।
एक और ऐसी ही घटना ‘बालकनाथ ढाबा’ पर हुई, जहां मालिक साधना पवार ने दुखी होकर बताया, “मैंने हाथ जोड़कर विनती की, लेकिन उन्होंने मेरा पूरा ढाबा तोड़ दिया… मेरे नौकर की टांग भी तोड़ दी, सारा पैसा लूट लिया,” सिर्फ इसलिए क्योंकि एक डिश में गलती से प्याज था।

यह हिंसा शारीरिक हमलों तक भी बढ़ गई। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक घटना को लेकर व्यापक निंदा हुई, जहां सात कांवड़ियों को गिरफ्तार किया गया, जिन्होंने रेलवे स्टेशन पर ट्रेन टिकट के विवाद के दौरान एक सीआरपीएफ जवान को बेरहमी से पीटा और लात मारी। सीसीटीवी फुटेज में भगवा कपड़ा पहने यात्रियों को जवान को जमीन पर गिराकर खुलेआम मारपीट करते देखा जा सकता है।
यहां तक कि मासूम लोग और उनकी संपत्ति भी सुरक्षित नहीं रहे। मेरठ में, जब एक बस तीन कांवड़ियों को सिर्फ छू गया, तो उनके साथ जा रहे अन्य यात्रियों ने उस बस में तोड़-फोड़ की। इसके शीशे तोड़ डाले और ड्राइवर पर हमला किया। बाद में ये लोग भाग गए।

5 जुलाई 2025 को हरिद्वार के मंगलौर में कांवड़ियों ने एक कार पर हमला किया, जिसमें एक मुस्लिम परिवार सवार था। उन्होंने आरोप लगाया कि कार ने एक कांवड़िया को टक्कर मारी है और फिर ड्राइवर और यात्रियों पर हमला किया तथा कार को तोड़फोड़ कर क्षतिग्रस्त कर दिया।
अब, बढ़ती समस्याओं को समझते हुए अधिकारियों ने दुर्व्यवहार पर लगाम लगाने की कोशिश की है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, बुलंदशहर, हापुड़ और बागपत जैसे जिलों के प्रमुख यात्रा मार्गों पर कांवड़ियों को लकड़ी, त्रिशूल, हॉकी स्टिक और इसी तरह की चीजें लेकर चलने से प्रतिबंधित कर दिया है।
इसके अलावा, शोर प्रदूषण और लोगों की परेशानियों को रोकने के लिए बिना साइलेंसर वाली मोटरसाइकिलों के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। ADG (मेरठ जोन) भानु भास्कर ने सख्त कार्रवाई की पुष्टि करते हुए कहा, “सरकार ने इसके लिए स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं। हम इन्हें कड़ाई से लागू कर रहे हैं और नियम तोड़ने वालों के खिलाफ FIR दर्ज की जा रही है।”
मुख्यमंत्री का रुख और उसके प्रभाव
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कांवड़ यात्रा को लेकर की गई टिप्पणियां चर्चा और आलोचना का विषय बनी हैं। आलोचकों का मानना है कि उनकी कुछ बातों से कुछ असामाजिक तत्वों को परोक्ष रूप से प्रोत्साहन मिला है। रविवार, 20 जुलाई 2025 को मुख्यमंत्री ने दावा किया कि “शरारती तत्व” कांवड़ जत्थों में घुसपैठ कर रहे हैं ताकि सोशल मीडिया पर उन्हें बदनाम किया जा सके। उन्होंने "कांवड़ संघों" से ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें दूर रखने की अपील की। उन्होंने कह,:“हमें यह ध्यान रखना होगा कि जहां उत्साह और उमंग होता है, जहां श्रद्धा और भक्ति होती है, वहां कुछ तत्व लगातार उस उत्साह को बाधित करने और इस भक्ति व आस्था को बदनाम करने की कोशिश करते हैं।” मुख्यमंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि यात्रा समाप्त होने के बाद सीसीटीवी में कैद उपद्रवियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसे इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित किया।
यात्रा के दौरान हुई हिंसक घटनाओं और आलोचनाओं के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 18 जुलाई 2025 को वाराणसी में एक और तीखा बयान दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांवड़ यात्रा को “जानबूझकर बदनाम” किया जा रहा है और इसके प्रतिभागियों को “गुंडा” कहकर पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कुछ ताकतें भारत की विरासत को अपमानित करने का प्रयास कर रही हैं। उन्होंने कहा, “आज यात्रा शांतिपूर्वक और श्रद्धा के साथ चल रही है, फिर भी कुछ लोग इसे उन्मादी बताने में लगे हैं। ये वही ताकतें हैं जो आदिवासी समाज को भटकाने और भड़काने की कोशिश करती हैं। हमें ऐसे विघटनकारी तत्वों से सतर्क रहना होगा।” यह रिपोर्ट द हिंदू द्वारा प्रकाशित किया गया।
उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक आगजनी करने वाला व्यक्ति, जो भगवा गमछा पहने हुए था, “या अल्लाह” चिल्ला रहा था। मुख्यमंत्री ने इस तरह की चालबाजियों को असामाजिक तत्वों की साजिश करार दिया।
हालांकि मुख्यमंत्री ने “शरारती तत्वों” की हरकतों की निंदा की और कानून व्यवस्था बनाए रखने की अपील की, लेकिन उनका यह बयान -जिसमें उन्होंने बाहरी “बदनाम करने वालों” और “राष्ट्रविरोधी तत्वों” को जिम्मेदार ठहराया- संभवतः कांवड़ियों के उग्र और अनुशासनहीन व्यवहार के लिए एक तरह का ढाल बन गया। इससे सीधे तौर पर कांवड़ियों की हरकतों को नजरअंदाज करते हुए ध्यान कहीं और मोड़ दिया गया। मेरठ में मुख्यमंत्री द्वारा अन्य नेताओं के साथ कांवड़ियों पर सार्वजनिक रूप से फूल बरसाना भी एक ऐसा दृश्य था जिसने राज्य की ओर से समर्थन और नरमी का संकेत दिया। आलोचकों का कहना है कि यह संदेश कुछ लोगों के लिए एक मूक स्वीकृति (tacit approval) के रूप में देखा गया जिससे उपद्रवी तत्वों का मनोबल बढ़ा और उन्हें यह भरोसा मिला कि अगर वे कुछ गलत भी करें तो उन्हें “बदनाम किए गए भक्तों” के रूप में बचाव मिल सकता है, न कि अपराध के दोषी के रूप में देखा जाएगा।
श्रद्धा पर हिंसा का दाग
हिंसा, आक्रामकता और सांप्रदायिक निशाना बनाए जाने की बढ़ती खबरें कांवड़ यात्रा के पवित्र उद्देश्य को कलंकित कर रही हैं। महंत रविंद्र पुरी का यह कहना कि यात्रा “करुणा” और “प्रायश्चित” का प्रतीक है, उन घटनाओं से बिल्कुल विपरीत लगता है जहां तोड़फोड़, मारपीट और डर का वातावरण बना। 22 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवादास्पद QR कोड निर्देशों की वैधता की समीक्षा से इनकार करना, खासकर उस समय जब लगातार ऐसी घटनाएं सामने आ रही थीं जिनमें होटल मालिकों को उनकी पहचान के आधार पर निशाना बनाया जा रहा था, इस बात को उजागर करता है कि कांवड़ यात्रा के आध्यात्मिक उद्देश्य और जमीनी हकीकत के बीच कितना बड़ा फासला बन गया है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवादास्पद निर्देशों - विशेषकर पहचान के आधार पर दुकानदारों को निशाना बनाने की घटनाओं - की वैधता की जांच से परहेज़ करना, ऐसी हिंसा को लेकर जवाबदेही के कई अहम सवाल खड़े करता है।
जब एक ऐसी तीर्थयात्रा जिसका उद्देश्य भक्ति, संयम और त्याग को दर्शाना है-और जो भगवान परशुराम तथा श्रद्धावान श्रवण कुमार जैसे आदर्श चरित्रों की परंपरा से जुड़ी मानी जाती है -वही यात्रा सड़कों पर जाम, लोगों को डराने-धमकाने और शारीरिक हिंसा की पहचान बनने लगे तो उसकी आध्यात्मिक पवित्रता बुरी तरह आहत होती है। ये घटनाएं न केवल सार्वजनिक शांति और व्यवस्था को बाधित करती हैं, बल्कि डर और विभाजन के बीज भी बोती हैं, जो यात्रा के मूल मूल्य-एकता, भक्ति, और निःस्वार्थ सेवा-का मौलिक रूप से अपमान करती हैं।
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