शामली में कौमी एकता का नायाब नमूना
सावन की मशहूर कांवड़ यात्रा में हर साल की तरह इस साल भी लाखो कांवड़ियों ने पूरे जोश से हरिद्वार का रूख़ किया. जिसके तहत हमेशा की तरह फिर शामली ज़िले में यमुना घाटों पर कांवड़ियों की हिफ़ाज़त के लिए मुसलमान गोताख़ोर तैनात किए गए. बीबीसी हिंदी ने अपनी ख़ास रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमान भाईचारे पर रौशनी डालते हुए मज़हबी एकता की ये नायाब कहानी पेश की है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक़ हरिद्वार में गौमुख के दर्शन के लिए रवाना कांवड़ मुसाफ़िरों का एक जत्था यमुना के किनारों पर भी रूकता है. यमुना स्नान के दौरान हिंदू भक्तों की हिफ़ाज़त के लिए तैनात स्थानीय मुसलमान गोताख़ोर पिछले 10 साल से उनकी हिफ़ाज़त कर रहे हैं. इन मल्लाहों ने अनेक कांवड़ों की जान बचाकर आपसी प्रेम का नायाब नमूना पेश किया है. शामली ज़िले के इन गोताख़ोरों के लिए मज़हब और इंसानियत एक ही सिक्के को दो पहलू हैं इसलिए इंसानी जान की क़ीमत इनके लिए सबसे ऊपर है. उन्हें ज़िला पंचायत की ओर से इस ड्यूटी के लिए अमूमन 300 से 400 रूपए तक फ़ीस अदा की जाती है लेकिन इंसानियत के लिए जान पर खेल जाने का ये जज़्बा बेशक़ीमती है.
इस साल की कांवड़ यात्रा के मद्देनज़र केवट बिरादरी के इन 25 तैराकों के बारे में बीबीसी से बात करते हुए शामली के ज़िला पंचायत ठेकेदार कहते हैं कि “ये सभी तैराक अपने कार्य में निपुण हैं. इस बार इनकी ड्यूटी 4 जुलाई से लेकर 15 जुलाई तक लगी है. ये लोग अपनी जान की बाज़ी लगाकर कांवड़ियों की हिफ़ाज़त करते हैं.” इस वर्ष तैनात गोताख़ोरों में कॉमर्स ग्रेजुएट दिलशाद अहमद और पॉलीटेक्निक की डिग्री वाले अफ़ज़ाल भी शामिल हैं.
शामली में मौजूद एहतमाल तिमाली गांव के गोताख़ोरों ने अपने हुनर के एवज़ अनगिनत दुआएं बटोरी हैं. हालांकि यमुना घाट के पार भी इनकी लोकप्रियता की धूम है लेकिन इन मुसलमान गोताख़ोरों का कांवड़ यात्रियों को बचाना कई मायनों में हिंदुस्तान की साझी विरासत को बचाने के बराबर है.
IMAGE SOURCE- BBC HINDI
सावन की मशहूर कांवड़ यात्रा में हर साल की तरह इस साल भी लाखो कांवड़ियों ने पूरे जोश से हरिद्वार का रूख़ किया. जिसके तहत हमेशा की तरह फिर शामली ज़िले में यमुना घाटों पर कांवड़ियों की हिफ़ाज़त के लिए मुसलमान गोताख़ोर तैनात किए गए. बीबीसी हिंदी ने अपनी ख़ास रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमान भाईचारे पर रौशनी डालते हुए मज़हबी एकता की ये नायाब कहानी पेश की है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक़ हरिद्वार में गौमुख के दर्शन के लिए रवाना कांवड़ मुसाफ़िरों का एक जत्था यमुना के किनारों पर भी रूकता है. यमुना स्नान के दौरान हिंदू भक्तों की हिफ़ाज़त के लिए तैनात स्थानीय मुसलमान गोताख़ोर पिछले 10 साल से उनकी हिफ़ाज़त कर रहे हैं. इन मल्लाहों ने अनेक कांवड़ों की जान बचाकर आपसी प्रेम का नायाब नमूना पेश किया है. शामली ज़िले के इन गोताख़ोरों के लिए मज़हब और इंसानियत एक ही सिक्के को दो पहलू हैं इसलिए इंसानी जान की क़ीमत इनके लिए सबसे ऊपर है. उन्हें ज़िला पंचायत की ओर से इस ड्यूटी के लिए अमूमन 300 से 400 रूपए तक फ़ीस अदा की जाती है लेकिन इंसानियत के लिए जान पर खेल जाने का ये जज़्बा बेशक़ीमती है.
इस साल की कांवड़ यात्रा के मद्देनज़र केवट बिरादरी के इन 25 तैराकों के बारे में बीबीसी से बात करते हुए शामली के ज़िला पंचायत ठेकेदार कहते हैं कि “ये सभी तैराक अपने कार्य में निपुण हैं. इस बार इनकी ड्यूटी 4 जुलाई से लेकर 15 जुलाई तक लगी है. ये लोग अपनी जान की बाज़ी लगाकर कांवड़ियों की हिफ़ाज़त करते हैं.” इस वर्ष तैनात गोताख़ोरों में कॉमर्स ग्रेजुएट दिलशाद अहमद और पॉलीटेक्निक की डिग्री वाले अफ़ज़ाल भी शामिल हैं.
शामली में मौजूद एहतमाल तिमाली गांव के गोताख़ोरों ने अपने हुनर के एवज़ अनगिनत दुआएं बटोरी हैं. हालांकि यमुना घाट के पार भी इनकी लोकप्रियता की धूम है लेकिन इन मुसलमान गोताख़ोरों का कांवड़ यात्रियों को बचाना कई मायनों में हिंदुस्तान की साझी विरासत को बचाने के बराबर है.
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