पुष्कर सिंह धामी सरकार ने बुधवार को विधानसभा में एक प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिसके तहत उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शैक्षणिक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। यह प्राधिकरण कांग्रेस सरकार द्वारा 2016 में स्थापित उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड की भूमिका को नियंत्रित करेगा।

फोटो साभार : टीओआई (फाइल फोटो)
भाजपा शासित उत्तराखंड में अल्पसंख्यक संचालित मदरसे सहित शैक्षणिक संस्थानों को अब 2026-27 शैक्षणिक सत्र से अपने संचालन को जारी रखने के लिए एक नई सरकारी संस्था के साथ पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, पुष्कर सिंह धामी सरकार ने बुधवार को विधानसभा में एक प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिसके तहत उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शैक्षणिक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। यह प्राधिकरण कांग्रेस सरकार द्वारा 2016 में स्थापित उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड की भूमिका को नियंत्रित करेगा।
नए प्राधिकरण में कुल 12 सदस्य होंगे, जिनमें से एक अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति इसका अध्यक्ष होगा। अध्यक्ष किसी भी अल्पसंख्यक समूह से हो सकता है-मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, या जैन-लेकिन उसके पास कम से कम 15 वर्षों का शिक्षण अनुभव होना चाहिए, जिसमें से पांच वर्ष विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के रूप में हो। अन्य सदस्यों में विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों के प्रतिनिधि और सचिव स्तर के एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी शामिल होंगे। सभी सदस्यों की नामांकन प्रक्रिया राज्य सरकार द्वारा की जाएगी।
इस प्रस्ताव के अनुसार, अल्पसंख्यक संस्थाओं को तीन वर्षों के लिए पंजीकरण दिया जाएगा जिसे बाद में बढ़ाया जा सकेगा। संस्थाओं के पास अपनी जमीन होनी चाहिए और वे सभी वित्तीय लेनदेन बैंक खातों के जरिए करेंगी। मसौदे में यह भी कहा गया है कि किसी भी संस्था को शिक्षक या छात्रों को धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए बाध्य करने की अनुमति नहीं होगी।
मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व वाली सरकार ने अक्सर मदरसों पर अवैध विदेशी धन प्राप्त करने, नफरत फैलाने और सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है। हाल के वर्षों में, राज्य सरकार ने 50 से ज्यादा मदरसों को बंद किया है, उनकी संपत्तियां जब्त की हैं और कुछ इस्लामी स्कूलों तथा मजारों को भी ध्वस्त किया है। धामी ने अल्पसंख्यक संस्थानों को पंजीकरण के लिए आवेदन देने की आखिरी तारीख 1 जुलाई 2026 तय की है। वर्तमान में, मौजूदा बोर्ड के साथ कुल 452 मदरसे पंजीकृत हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “मुझे समझ नहीं आता कि धामी को मदरसों से इतनी नफरत क्यों है। उन्हें यह जानना चाहिए कि मदरसों ने स्वतंत्रता संग्राम में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।”
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फोटो साभार : टीओआई (फाइल फोटो)
भाजपा शासित उत्तराखंड में अल्पसंख्यक संचालित मदरसे सहित शैक्षणिक संस्थानों को अब 2026-27 शैक्षणिक सत्र से अपने संचालन को जारी रखने के लिए एक नई सरकारी संस्था के साथ पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, पुष्कर सिंह धामी सरकार ने बुधवार को विधानसभा में एक प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिसके तहत उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शैक्षणिक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। यह प्राधिकरण कांग्रेस सरकार द्वारा 2016 में स्थापित उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड की भूमिका को नियंत्रित करेगा।
नए प्राधिकरण में कुल 12 सदस्य होंगे, जिनमें से एक अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति इसका अध्यक्ष होगा। अध्यक्ष किसी भी अल्पसंख्यक समूह से हो सकता है-मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, या जैन-लेकिन उसके पास कम से कम 15 वर्षों का शिक्षण अनुभव होना चाहिए, जिसमें से पांच वर्ष विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के रूप में हो। अन्य सदस्यों में विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों के प्रतिनिधि और सचिव स्तर के एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी शामिल होंगे। सभी सदस्यों की नामांकन प्रक्रिया राज्य सरकार द्वारा की जाएगी।
इस प्रस्ताव के अनुसार, अल्पसंख्यक संस्थाओं को तीन वर्षों के लिए पंजीकरण दिया जाएगा जिसे बाद में बढ़ाया जा सकेगा। संस्थाओं के पास अपनी जमीन होनी चाहिए और वे सभी वित्तीय लेनदेन बैंक खातों के जरिए करेंगी। मसौदे में यह भी कहा गया है कि किसी भी संस्था को शिक्षक या छात्रों को धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए बाध्य करने की अनुमति नहीं होगी।
मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व वाली सरकार ने अक्सर मदरसों पर अवैध विदेशी धन प्राप्त करने, नफरत फैलाने और सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है। हाल के वर्षों में, राज्य सरकार ने 50 से ज्यादा मदरसों को बंद किया है, उनकी संपत्तियां जब्त की हैं और कुछ इस्लामी स्कूलों तथा मजारों को भी ध्वस्त किया है। धामी ने अल्पसंख्यक संस्थानों को पंजीकरण के लिए आवेदन देने की आखिरी तारीख 1 जुलाई 2026 तय की है। वर्तमान में, मौजूदा बोर्ड के साथ कुल 452 मदरसे पंजीकृत हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “मुझे समझ नहीं आता कि धामी को मदरसों से इतनी नफरत क्यों है। उन्हें यह जानना चाहिए कि मदरसों ने स्वतंत्रता संग्राम में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।”
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