आखिर नाम के बहाने दुकानों पर जाति-धर्म का ठप्पा क्यों लगवाना चाहती है यूपी की योगी सरकार ?

Written by विजय विनीत | Published on: July 20, 2024
उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने कांवड़ मार्ग पर दुकानों पर उनके संचालकों और वहां काम करने वाले लोगों का नाम लिखने का आदेश जारी किया है। योगी सरकार ने यह फरमान पहली बार जारी किया है। अब से पहले बीजेपी सरकार कांवड़ यात्रा मार्गों पर मांस की दुकानों को बंद रखने, नॉनवेज परोसने वाले ढाबे और होटलों को बंद करने का आदेश दिया जाता था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर पुलिस ने सबसे पहले दुकानों के बाहर दुकानदारों को अपना नाम लिखने का आदेश दिया था। पुलिस का कहना था कि इससे कांवड़ यात्रियों का भ्रम दूर होगा। दुकानदार का धर्म पता चल सकेगा। मुजफ्फरनगर में प्रशासन की सख्ती का असर यह है कि ज्यादातर ढाबा संचालकों ने अपने यहां से मुस्लिम कर्मचारियों को हटा दिया है।



उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा मार्गों पर पड़ने वाली दुकानों में दुकानदार को अपना नाम लिखना होगा। इसमें दुकान मालिक का नाम और डिटेल लिखी जाएगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चंद रोज पहले यह फरमान जारी किया। सरकार का कहना है कि कांवड़ यात्रियों की शुचिता बनाए रखने के लिए यह फैसला लिया है। यूपी के बाद उत्तराखंड की हरिद्वार पुलिस ने भी होटल मालिकों को कांवड़ यात्रा मार्ग पर नाम लिखने के लिए कहा है। इस साल कांवड़ यात्रा 22 जुलाई से शुरू हो रही है, जो 19 अगस्त तक चलेगी।
 
यूपी के फरमान की चारों तरफ चर्चा
 
बनारस में योगी सरकार के आदेश को अमल में लाने पर भले ही सख्ती नहीं बरती जा रही है, लेकिन बात यहीं सबसे ज्यादा खड़ी की जा रही है। कांवड़ मार्ग पर दुकानों पर उनके संचालकों का नाम लिखवाने के मामले ने तूल तब पकड़ा जब मुजफ्फरनगर प्रशासन ने सख्ती बरतनी शुरू की। विपक्ष ने जब सरकार और प्रशासन को घेरना शुरू किया तो वो बैकफुट पर आ गए। अब सफाई दी जा रही है कि ढाबा और दुकान मालिकों पर कोई सख्ती नहीं बरती जा रही है। सरकार के आदेश का पालन करना स्वैच्छिक है।

योगी सरकार के आदेश पर भले ही सख्ती नहीं बरती जा रही है, लेकिन कांवड़ यात्रा मार्गों पर होटल, ढाबा और रेस्टोरेंट के संचालकों में हड़कंप की स्थिति है। सावन के महीने पर बनारस और जौनपुर मार्ग पर हर साल कांवड़ियों का रेला उमड़ता है। इस मार्ग पर एक ग्राम पंचायत है काजीसराय। यहां एक छोटा सा बाजार भी है। सबरंग इंडिया ने जीरो ग्राउंड पर पड़ताल की तो सड़क के किनारे कई रेस्टोरेंट, होटल और ढाबा मालिकों ने व्यंजनों की डिटेल लिखी है। कुछ ने देवी-देवताओं की तस्वीरें भी लगा रखी हैं। काजीसराय में फूल-माला और खान-पान का सामन बेचने वालों ने अपने नाम को हाई लाइट कर रखा है।

काजीसराय में हमारी मुलाकात सेराज अली से हुई। वो कांवड़ यात्रा मार्ग पर फूल-माला के अलावा शादी-विवाह में इस्तेमाल होने वाले सामान बेचते हैं। वह कहते हैं, ''खान-पान का सामान बेचने पर नाम और धर्म इंगित करने वाला विवरण लिखने की सख्ती का सरकार का आदेश सिर्फ पॉलिटिकल स्टंट है। यह ऐसा स्टंट है जिससे भाईचारा टूटेगा और देश बर्बाद होगा। हम तो शादी-विवाह के लिए मौहर, पगड़ी, सिंधोरा से लगायत लकड़ी का सुग्गा तक बेचते हैं। हमारे ज्यादातर ग्राहक हिंदू ही हैं। सरकारी आदेश तो हर साल आते हैं। कभी सावन में मांस नहीं परोसने का आदेश आता है तो कभी कुछ भी।''


बनारस जौनपुर मार्ग पर सराय काजी। फोटो क्रेडिट- विजय विनीत

''इस बार आदेश आया है कि सारा ब्यौरा जनता के सामने रखना है। बनारस में कुछ होटल और ढाबा मालिकों ने सावन भर के लिए अपने यहां से मुस्लिम कर्मचारियों को काम हटा दिया है। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि ज्यादातर मुस्लिम कारीगर मांसाहारी व्यंजन अच्छा बनाते हैं। सावन में जब बिक्री ही नहीं होगी तो वो फोकट में वेतन क्यों देंगे? ऐसे में तो सब के सब भूखों मरने लगेंगे।''  

सेराज यह भी कहते हैं, ''हम साल 2004 से फूल-माला और शादी-विवाह का सामान बेचते आ रहे हैं। हमने तो पहले से ही अपनी दुकान पर पोस्टर लगा रखा है, जिसमें अपना नाम भी अंकित करा रखा है। कभी किसी को आपत्ति नहीं हुई। यह दुनिया की पहली सरकार है जो धार्मिक आधार पर लोगों को बांटने पर उतारू है। ऐसा तुगलकी फरमान भला कौन जारी करता है, जो भाईचारे को जोड़ने के बजाय तोड़ता है। क्या ऐसा करने से बीजेपी को वोट ज्यादा मिलने लगेगा। अगर ऐसा होता तो लोकसभा चुनाव में वो अयोध्या में चुनाव कैसे हार गए? ''
 
उन्हें सिर्फ राजनीति से मतलब
 
सेराज अली की दुकान में हमारी मुलाकात अजय पटेल से हुई। इनकी पान की दुकान है और शादी-विवाह में वो सेराज अली के साथ काम करते हैं। अजय कहते हैं, ''हमने कभी जाना ही नहीं कि कौन हिंदू है और कौन मुसलमान? हम मुहर्रम में सेराज के साथ शामिल होते हैं तो वो होली-दिवाली हमारे साथ ही मनाते हैं। सरकार है कि वो हमारे भाईचारे को, सालों पुराने रिश्तों को अपने राजनीतिक मुनाफे के लिए बांटने पर उतारू है। वोट के लिए यह मुहब्बत तोड़ने वाला आदेश है। लगता है कि बीजेपी सरकार को भाईचारे से नहीं, सिर्फ राजनीति से मतलब है।''


सेराज के साथ अजय पटेल 

थोड़ा और आगे बढ़ने पर हमारी मुलाकात हुई मोहम्मद जमील से। वह अपनी दुकान पर खाने-पीने के सामान बेचते हैं। कांवड़ के दौरान कांवड़ियों को पानी पिलाते हैं और खाना भी खिलाते रहे हैं। वह कहते हैं, ''दुकानों और होटल-ढाबों पर धर्म और जाति लिखने से भाईचारा टूटेगा। कांवड़ियों को किसी तरह की जरूरत पड़ी तो उनकी मदद कौन करेगा? उन्हें सोचना चाहिए कि जब खून की जरूरत पड़ती है तब वो यह क्यों नहीं पता करते कि कौन खून हिंदू का है और कौन मुसलमान का।''


मोहम्मद जमील

जमील के पास खड़े कमलेश पटेल ने सरकार के आदेश को जायज करार दिया और बोले, ''सरकार से जो आदेश आए, वह ठीक हैं। हम मुसलमानों के साथ खाने-पीने के लिए तैयार हैं, लेकिन वो हमारी पार्टी बीजेपी को वोट देना शुरू कर दें, हम उनके साथ बैठकर भोजन करना शुरू कर देंगे।''


कमलेश पटेल

योगी सरकार के आदेश पर काजीसराय के एक युवक दीपक चंद ने खान-पान का सामान बेचने पर नाम और धर्म इंगित करने वाला विवरण लिखने के लिए योगी सरकार के सख्त आदेश का विरोध किया और कहा, ''इसका असर क्या होगा, यह सावन बीतने के बाद कांवड़ यात्रा खत्म होने पर ही पता चलेगा। नाम-पता लिखने के लिए पुलिस सख्ती करेगी तो हर जगह विरोध के स्वर फूटेंगे। हर किसी को सरकार की नीति और नीयत के बारे में पता है। वो दिन लद गए जब बीजेपी धर्म की आड़ में सियासत करती थी और सफल हो जाया करती थी। बनारस में धर्म के आधार पर वोट पड़ा होता तो ज्ञानवापी मुद्दे के बाद पीएम मोदी बंपर वोटों से चुनाव जीतते। बनारस में वो तो नैतिक रूप से चुनाव हार गए थे।''

दीपक कहते हैं, ''काजीसराय में हिंदू-मुस्लिम सब रहते हैं। यहां जितनी भी दुकानें हैं, यहां कोई धार्मिक आधार पर खाने-पीने का सामान खरीदने नहीं आता। ऐसा आदेश हमने पहली बार देखा। सरकार को ऐसा फैसला नहीं देना चाहिए। सरकार हिंदू-मुस्लिम करना चाहती है। वो यही चाहती है कि हिंदू एक तरफ हो जाएं और मुस्लिम एक तरफ। बोर्ड लगा देने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जितना पहले बिक्री हो रही थी, उतनी दुकानदारी आज भी है। काजीसराय में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा पहले से चला आ रहा है और वो टूटने वाला नहीं है। सरकार के फरमान का बुरा असर जरूर पड़ेगा, क्योंकि हमारे गांव में ज्यादातर आबादी मुसलमानों की है तो हिंदुओं का घर कहां ढूंढेंगे। सरकार ने जो आदेश दिया है, वह गलत है। यह सब ढोंग बना रखा है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। जिसे खाना होगा वह कहीं भी जाकर खा लेगा।''
 
सरकार का फैसला जायज
 
बनारस के हरहुआ बाजार में ठेले पर फल बेचने वाले रामनाथ यादव कहते हैं, ''सरकार का फैसला बिल्कुल सही है। कांवड़ियों के लिए तो यह आदेश बहुत सही है, क्योंकि वह लहसुन-प्याज नहीं खाते हैं। बहुत से लोग हिंदू नाम से दुकान चलाते हैं। इससे कांवड़िए भ्रमित होते हैं। उनकी धार्मिक यात्रा भंग हो सकती है। ऐसे में ढाबा संचालक को अपना नाम लिखकर ही दुकान चलानी चाहिए। जिसे खाना होगा। वह खुद ही आ जाएगा। इस पर राजनीति हो रही है, यह गलत बात है। गलत इसलिए है कि लोग पूरे साल कावड़ यात्रा का इंतजार करते हैं, जिससे वह अपनी रोजी-रोटी कमा सकें।''

''ज्यादातर कांवड़ियां परहेज करेंगे। कोई भी नाम तो बदल सकता है, लेकिन धर्म नहीं बदल सकता। लेकिन जो मुस्लिम हैं, अगर वह हिंदू नाम से ढाबा चलाता है तो गलत है, उसको अपने नाम से ढाबा चलाना चाहिए। कई मर्तबा कांवड़ियों को भ्रम हो जाता है कि कहीं होटल और ढाबे पर लहसुन-प्याज की सब्जी न बनती हो, जिससे उनकी कावड़ यात्रा भंग न हो जाए। नाम लिखने से यह होगा कि कावड़िए उलझेंगे नहीं। कांवड़ियों को पता चल जाएगा कि सात्विक भोजन कहां मिलता है और वो वहीं जाएंगे? सरकार ने जो किया, वो सोच-समझ कर किया है।''

हरहुआ बाजार में हमारी मुलाकात आंचलिक पत्रकार मेराज अहमद से हुई। इनकी दुकान पर ब्रेड-बिस्कुट, चिप्स, अगरबत्ती, कोल्डड्रिक, पानी, गुटका, सिगराट सभी कुछ बिकता है। कांवड़ यात्री समान खरीदते भी हैं। वह कहते हैं, ''हमारी दुकान पर हमारे नाम का बोर्ड भी लगा है। हरहुआ बाजार के सभी मुसलमान हिंदुओं के साथ सावन भर कांवड़ियों की सेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। योगी जी का ये आदेश समझ नहीं आया। हमें लगता है कि यह सरकार मुसलमानों का हौसला तोड़ना चाहती है। वो नहीं चाहती कि मुसलमान अपने कारोबार को आगे बढ़ाएं। भारत में मांस के जितने बड़े कारोबारी हैं, वो हिंदू हैं और शंका-संदेह मुसलमानों पर किया जाता है। जौनपुर की ओर से हर साल लाखों कांवड़िये गंगाजल लेने के लिए बनारस आते हैं। बाबा विश्वनाथ के मंदिर में जल चढ़ाते हैं।''


हरहुआ निवासी पत्रकार मेराज अहमद। फोटो क्रेडिट- विजय विनीत

''कांवड़ियों की हर जाति और हर संप्रदाय के लोग सालों से सेवा करते आ रहे हैं। सरकार ने इस बार इसे मुद्दा बना दिया। कांवड़ मार्ग पर पड़ने वाली मीट की दुकानों को मुस्लिम समाज के लोग खुद ही कांवड़ यात्रा के दौरान बंद रखते हैं। हम तो सालों से कावड़ियों की सेवा करते आ रहे हैं। उनके ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था करते हैं। हमें पता है कि कांवड़ लेने ज्यादातर अति पिछड़े और दलित ही जाते हैं। सरकार ने अपने वोटबैंक की मजबूती के लिए इसी वर्ग को अपने टारगेट पर लिया हैं। शायद सरकार को यकीन है कि यह तबका ज्यादा सेंटीमेंटल होता है और वो धर्म की घुट्टी पिलाने पर वो आसानी से टूट जाता है। योगी सरकार को नया आदेश जारी करने की कोई जरूरत नहीं थी। यह तो शुद्ध रूप से वोट की सियासत है।''
 
योगी सरकार पर विपक्ष का हमला
 
उत्तर प्रदेश में हर साल करीब पांच-छह करोड़ कांवड़िये बनारस, हरिद्वार, इलाहाबाद आदि स्थानों से गंगाजल उठाते हैं। यूपी में कांवड़ यात्रा मार्गों पर पड़ने वाली दुकानों में दुकानदार को अपना नाम लिखना होगा। इसमें दुकान मालिक का नाम और डिटेल लिखी जाएगी। सीएम योगी का फरमान है कि हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट बेचने वालों पर भी कार्रवाई होगी। यूपी के बाद उत्तराखंड के हरिद्वार में भी यह आदेश लागू कर दिया गया है। बीजेपी सरकार के इस आदेश के खिलाफ इंडिया गठबंधन से जुड़े दल खुलकर सामने आ गए हैं। एनडीए से जुड़े आरएलडी के अलावा लोजपा (रामविलास) अध्यक्ष चिराग पासवान ने यूपी सरकार के इस फैसले को गलत परंपरा बताते हुए इसका समर्थन करने से ऐलानिया तौर पर इनकार कर दिया है। जनता दल (यू) ने कहा है कि योगी सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।

केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने कांवड़ यात्रा पर यूपी सरकार के आदेश का विरोध करते हुए कहा है, ''हम फैसले का समर्थन नहीं करते। हमारी पार्टी जाति या धर्म के नाम पर किसी भी विभाजन का समर्थन नहीं करती। समाज में सिर्फ दो वर्ग हैं, जिनमें एक अमीर और दूसरे गरीब। यह तबका हर जाति और हर धर्म के बीच है। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा है, ''बिहार में सबसे बड़ी कांवड़ यात्रा निकलती है और वहां इस तरह का कोई आदेश नहीं दिया गया है। पीएम नरेंद्र मोदी का नारा है, 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास'। यूपी सरकार का प्रतिबंध इस नियम के खिलाफ है। इस आदेश पर पुनर्विचार की जरूरत है।''

''अखिलेश यादव ने एक्स पर लिखा- कोर्ट को इस मामले पर खुद एक्शन लेना चाहिए। ऐसे आदेश की जांच कराई जाए। ऐसे आदेश सामाजिक अपराध हैं, जो सौहार्द के शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाड़ना चाहते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए कहा है कि यह फरमान चुनावी मुनाफे के लिए है। यह प्रयास धर्म विशेष के लोगों का आर्थिक बायकॉट करने का है।''
 
देवबंद से आया बयान
 
इस मामले पर देवबंद की तरफ से भी बयान आया है। देवबंदी उलेमा मुफ्ती असद कासमी ने कहा, ''इस फैसले से दूरियां पैदा होगी। इसका फायदा रकापरस्त ताकतें उठाएंगी। वो आसानी से दुकानों में हिंदू-मुस्लिम कर सकेंगे। उन्हें दंगा- फसाद करने में भी सहूलियत होगी। मुफ्ती असद कासमी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि वो इस मसले पर एक बार और गौर करें। यूपी में हर साल पूरे सावन भर लोग कावड़ लेकर जाते हैं। सैकड़ों स्थानों पर मुस्लिम समुदाय के लोग उनके लिए कैंप लगाते हैं और खाने-पीने का इंतजाम करते हैं। भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए मुसलमानों ने कई बार कांवड़ियों पर फूल भी बरसाए हैं।''

ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी बरेलवी ने कहा, ''कांवड़ यात्रा के मार्ग पर ढाबा संचालकों, फल विक्रेताओं और अन्य स्टॉल मालिकों के लिए सरकार और पुलिस ने जो एडवाइजरी जारी कि है उस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। यह एडवाइजरी कानून व्यवस्था के लिए है। कांवड़ यात्रा, एक धार्मिक यात्रा है। पुलिस ने यह व्यवस्था इसलिए लागू की है ताकि इसमें हिंदू-मुस्लिम विवाद न हो।''
 
यूपी सरकार के फैसले का काशी के संतों ने स्वागत किया है। अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा, ''आखिर इस बात का अलग-अलग राजनीतिक दल और मुस्लिम समाज विरोध क्यों कर रहा है? कल तक आप हलाल सामान बेचते थे तो हमने तो कोई प्रश्न नहीं उठाए। आप पहचान छुपाकर के व्यापार क्यों करना चाहते हैं।'' पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने कहा, ''यह स्वागत योग्य फैसला है। आदेश में यह नहीं कहा गया है कि किसे कहां से सामान खरीदना है, जो जहां से चाहे वहां से सामान खरीद सकता है। व्रत, त्योहार, कांवड़ यात्रा के कुछ नियम हैं उनका उल्लंघन न हो। इस नीयत से यह निर्णय लिया गया है।

भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है, ''एक सीमित प्रशासनिक दिशा-निर्देश के कारण इस तरह का असमंजस हुआ था। जो भी सांप्रदायिक भ्रम पैदा हुआ था, उसे दूर कर लिया गया है। यह किसी मुल्क, मजहब, मानवता के लिए अच्छा नहीं है। आस्था का सम्मान और आस्था की सुरक्षा पर सांप्रदायिक सियासत नहीं होनी चाहिए।''
 
योगी सरकार पर गंभीर सवाल?
 
सोशल मीडिया पर कई लोगों ने कांवड़ियों की सेवा में जुटे प्रशासन की आलोचना की है। इन लोगों ने सार्वजनिक जगहों पर धार्मिक आयोजन किए जाने को लेकर योगी सरकार के हालिया बयानों और रवैये की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो कांवड़ यात्रा और लुलु मॉल में नमाज़ पढ़ने के बाद हुए विवाद को एक साथ रखकर सरकार के रवैये पर सवाल उठा रहे हैं।

कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी ने इस फैसले को लोकतंत्र पर हमला बताया तो ऑल इंडिया मुस्लिम जमात ने सरकार के फैसले का समर्थन किया है। यूपी कांग्रेस प्रमुख अजय राय ने कहा, ''यह पूरी तरीके से अव्यावहारिक कार्य है। वे समाज में भाईचारे की भावना को खराब करने का कार्य कर रहे हैं। इसको तत्काल निरस्त करना चाहिए।''

असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल साइट एक्स पर लिखा, ''ठेले मालिक को अपना नाम बोर्ड पर लगाना होगा, ताकि कोई कांवड़िया गलती से किसी मुसलमान की दुकान से कुछ न खरीद लें। इसे दक्षिण अफ्रीका में अपारथेड कहा जाता था और हिटलर की जर्मनी में इसका नाम जुडेनबॉयकॉट था। नाजी जर्मनी में केवल विशेष दुकानों और घरों पर निशान बनाए जाते थे।''

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार कुमार विजय कहते हैं, '' उत्तर प्रदेश में व्यस्त सड़क से जा रहे कांवड़ियों पर कभी फूलों की बारिश कराती है तो कभी सड़क के किनारे नमाज़ पढ़ने वालों को जेल में डाल देती है। कुछ साल पहले योगी आदित्यनाथ सरकार ने सार्वजनिक इलाक़ों में धार्मिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये फ़ैसला सड़क पर नमाज़ पढ़े जाने को लेकर हुए विवाद के बाद लिया गया था।''

''इस मुद्दे पर उन्होंने कहा था कि धार्मिक आयोजन धार्मिक स्थलों के परिसर के अंदर ही सीमित होने चाहिए। किसी भी पर्व-त्योहार का आयोजन सड़क पर नहीं होना चाहिए। सार्वजनिक स्थलों पर नमाज़ पढ़ना आपत्तिजनक और कावंड़ियों पर फूल बरसाना नैतिक रूप से सही कैसे हो सकता है? योगी सरकार के अब धर्म विशेष का पहचान कराने वाले नए फरमान का असर दूर तक होगा। इससे जहां सांप्रदायिक भेदभाव पैदा होगा, वहीं भाईचारा भी टूटेगा।''
 
कांवड़ यात्रा का महत्व क्यों?
 
सावन के महीने में भोलेनाथ के भक्त गंगा तट पर जाते हैं। वहां स्नान करने के बाद कलश में गंगा जल भरते हैं। फिर कांवड़ पर उसे बांध कर और अपने कंधे पर लटका कर अपने-अपने इलाके के शिवालय में लाते हैं और शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।

कांवड़ बांस या लकड़ी से बना डंडा होता है जिसे रंग बिरंगे पताकों, झंडे, धागे, चमकीले फूलों से सजाया जाता है और उसके दोनों सिरों पर गंगाजल से भरा कलश लटकाया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान सात्विक भोजन किया जाता है। इस दौरान आराम करने के लिए कांवड़ को किसी ऊंचे स्थान या पेड़ पर लटका कर रखा जाता है। साथ ही यह पूरी कांवड़ यात्रा नंगे पांव करना होता है।

हिंदू धर्म की मान्यता के मुताबिक चतुर्मास में पड़ने वाले श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा का बड़ा महत्व है। माना जाता है कि शिव को आसानी से ख़ुश किया जा सकता है। उन्हें केवल एक लोटा जल चढ़ा कर प्रसन्न किया जा सकता है। वहीं यह भी मान्यता है कि शिव बहुत जल्दी क्रोधित भी होते हैं। लिहाज़ा ऐसी मान्यता भी है कि इस कांवड़ यात्रा के दौरान मांस, मदिरा, तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए और न ही कांवड़ का अपमान (ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए) किया जाना चाहिए। कहा जाता है कि यह समता और भाईचारे की यात्रा भी है। सावन जप, तप और व्रत का महीना है। शिवलिंग के जलाभिषेक के दौरान भक्त पंचाक्षर, महामृत्युंजय आदि मंत्रों का जप भी करते हैं।
 
कहां-कहां होती है कांवड़ यात्रा?
 
शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त गंगा, नर्मदा, शिप्रा आदि नदियों से जल भर कर उसे एक लंबी पैदल यात्रा कर शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग पर उसे चढ़ाते हैं। उत्तराखंड में कांवड़िया हरिद्वार, गोमुख, गंगोत्री से गंगा जल भर कर इसे अपने अपने इलाके के शिवालयों में स्थित शिवलिंगों पर अर्पित करते हैं। बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा मार्कंडेय मंदिर में करोड़ों कांवरिये जलाभिषेक करते हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर, देवास, शुजालपुर आदि जगहों से कांवड़ यात्री वहां की नदियों से जल लेकर उज्जैन में महादेव पर उसे चढ़ाते हैं। बनारस में बाबा विश्वनाथ के मंदिर में हर साल लाखों कांवडिये जलाभिषेक करते हैं।

बिहार में कांवड़ यात्रा सुल्तानगंज से देवघर और पहलेजा घाट से मुज़फ़्फ़रपुर तक होती है। बिहार में श्रद्धालु सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर क़रीब 108 किलोमीटर पैदल यात्रा कर झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ (बाबाधाम) में जल चढ़ाते हैं। वहीं सोनपुर के पहलेजा घाट से मुज़फ़्फ़रपुर के बाबा ग़रीबनाथ, दूधनाथ, मुक्तिनाथ, खगेश्वर मंदिर, भैरव स्थान मंदिरों पर भक्त गंगा जल चढ़ाते हैं। जो कांवड़िए गंगाजल भरने के बाद अगले 24 घंटे के अंदर उसे भोलेनाथ पर चढ़ाने के संकल्प लिए दौड़ते हुए इन शिवालयों में पहुंच कर शिवलिंगों पर यह जल अर्पित करते हैं उन्हें 'डाकबम' कहते हैं।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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