यूपी और उत्तराखंड में पड़ने वाले कांवड़ रूट की दुकानों, ठेले, रेहड़ियों पर मालिक का नाम लिखने के उक्त सरकारों के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है।
"उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकानदारों से अपनी पहचान प्रदर्शित करने के आदेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने सरकार के फैसले की आलोचना की तो वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील सीयू सिंह ने इसे अल्पसंख्यक आबादी के लिए घातक बताया है। सीयू सिंह ने यहां तक कहा कि सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार का यह फैसला अल्पसंख्यकों के आर्थिक बहिष्कार की प्लानिंग का संकेत दे रहा है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस भेजा है।"
कांवड़ रूट पर दुकानदारों की पहचान उजागर करने यानी नेमप्लेट विवाद का मामला
उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ यात्रा मार्ग में दुकानों और रेहड़ी वालों को अपना नाम लिखने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दखल दिया है। दरअसल, इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड और यूपी सरकार के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है। यही नहीं इस मामले में कोर्ट ने यूपी, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के तहत अब राज्य पुलिस दुकानदारों को अपना नाम प्रदर्शित करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। उन्हें केवल खाद्य पदार्थ की जानकारी प्रदर्शित करने के लिए कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुकान मालिकों या उनके कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मामले में अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश में तहत कहा गया है कि दुकानों पर मालिक और कर्मियों पर नाम लिखने का दबाव ना डाला जाए। बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में NGO एसोशिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की तरफ से चुनौती दी गई थी। इस मामले में जस्टिस ऋषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने सुनवाई की।
प्रशासन दबाव डाल रहा कि नाम डिस्प्ले करें
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पूछा कि ये प्रेस का बयान है या आदेश है। याचिकाकर्ता की ओर से सीयू सिंह ने कहा कि यूपी प्रशासन दुकानदारों पर दबाव डाल रहा है कि वो अपने नाम और मोबाइल नंबर डिस्प्ले करें। कोई भी कानून पुलिस को ऐसा करने का अधिकार नहीं देता। पुलिस के पास केवल यह जांचने का अधिकार है कि किस तरह का खाना परोसा जा रहा है। कर्मचारी या मालिक का नाम अनिवार्य नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता ने आदेश को बताया आर्थिक मौत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये स्वैच्छिक है और ये अनिवार्य नहीं है। याचिकाकर्ता ने कहा कि हरिद्वार पुलिस ने कैसे इसको लागू किया है। इसको देखें, वहां पुलिस की तरफ से चेतावनी दे गई कि अगर नहीं करते तो कार्रवाई होगी। मध्य प्रदेश में भी इस तरह की कार्रवाई की बात की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि ये विक्रेताओं के लिए आर्थिक मौत की तरह है।
सुप्रीम कोर्ट का यूपी सरकार से सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या सरकार ने इस बारे में कोई औपचारिक आदेश पास किया है। जिस पर वकील ने कहा कि सरकार अप्रत्यक्ष रूप से इसे लागू कर रही है। पुलिस कमिश्नर ऐसे निर्देश जारी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि हमें स्थिति को इस तरह से नहीं बताना चाहिए कि यह जमीनी हकीकत से ज्यादा बढ़ जाए। इसके तीन आयाम हैं- सुरक्षा, मानक और धर्मनिरपेक्षता और तीनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। ये बात जस्टिस एसवीएन भट्टी ने कही जब सिंघवी ने कहा कि ये पहचान का बहिष्कार है, आर्थिक बहिष्कार है।
एनडीटीवी की खबर के अनुसार, सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्रा तो सदियों से चला आ रही है, लेकिन इससे पहले ऐसी बात नहीं होती थी। इस बारे में पहले मेरठ पुलिस और फिर मुज्जफरनगर पुलिस ने नोटिस जारी किया। सीयू सिंह ने कहा कि रिपोर्टों से पता चला है कि नगर निगम ने निर्देश दिया है कि 2000 रुपये से 5000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। सिंघवी ने कहा कि हिंदुओं द्वारा चलाए जाने वाले बहुत से शुद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट हैं... लेकिन उनमें मुस्लिम कर्मचारी भी हो सकते हैं... क्या कोई कह सकता है कि मैं वहां जाकर खाना नहीं खाऊं? क्योंकि उस खाने पर किसी न किसी तरह से उन लोगों का हाथ लगा है?
क्या कांवड़िये चुनिंदा जगह से खाना चाहते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कांवड़ियां क्या ये सोचते हैं कि उन्हें फूड किसी चुनिंदा दुकानदार से मिले? सिंघवी ने कहा कि कांवड़ियां पहली बार यात्रा तो नहीं कर रहे हैं ना, वो तो पहले से करते आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि कांवड़ियों की क्या अपेक्षा है? क्या वे यह भी कहते हैं कि खाद्यान्न किसी खास समुदाय के सदस्यों द्वारा ही उगाया जाना चाहिए? फिर कानूनी सवाल- क्या कोई आदेश है?
जस्टिस भट्टी ने यहां तक कहा कि मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। केरल में एक वेजिटेरियन होटल हिंदू और एक वेजिटेरियन मुस्लिम द्वारा चलाए जा रहे हैं, लेकिन मैं मुस्लिम होटल में गया क्योंकि वहां साफ-सफाई थी। इसमें सेफ्टी, स्टैंडर्ड और हाईजीन के मानक अंतरराष्ट्रीय स्तर के थे। इसलिए गया था, ये पूरी तरह से आपकी पसंद का मामला है।
याचिकाकर्ता ने क्या तर्क दिए?
याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह चिंताजनक स्थिति है, जहां पुलिस अधिकारी विभाजन पैदा करने के लिए खुद ही आगे आ रहे हैं। अल्पसंख्यकों की पहचान करके उन्हें आर्थिक बहिष्कार के अधीन कर दिया जाएगा। यूपी और उत्तराखंड के अलावा दो और राज्य इसमें शामिल हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या यह प्रेस स्टेटमेंट था या औपचारिक आदेश था कि इन्हें प्रदर्शित किया जाना चाहिए? इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने जवाब दिया कि पहले एक प्रेस स्टेटमेंट था और फिर लोगों में आक्रोश था और वे कहते हैं कि यह स्वैच्छिक है लेकिन वे इसे सख्ती से लागू कर रहे हैं। जनसत्ता की एक रिपोर्ट के अनुसार, वकील ने कहा कि कोई औपचारिक आदेश नहीं है, बल्कि पुलिस सख्त कार्रवाई कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह एक छद्म आदेश है। वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि स्वेच्छा के नाम पर जबरन आदेश लागू किया जा रहा है।
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कांवड़ रूट पर दुकानदारों की पहचान उजागर करने यानी नेमप्लेट विवाद का मामला
उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ यात्रा मार्ग में दुकानों और रेहड़ी वालों को अपना नाम लिखने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दखल दिया है। दरअसल, इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड और यूपी सरकार के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है। यही नहीं इस मामले में कोर्ट ने यूपी, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के तहत अब राज्य पुलिस दुकानदारों को अपना नाम प्रदर्शित करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। उन्हें केवल खाद्य पदार्थ की जानकारी प्रदर्शित करने के लिए कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुकान मालिकों या उनके कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मामले में अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश में तहत कहा गया है कि दुकानों पर मालिक और कर्मियों पर नाम लिखने का दबाव ना डाला जाए। बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में NGO एसोशिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की तरफ से चुनौती दी गई थी। इस मामले में जस्टिस ऋषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने सुनवाई की।
प्रशासन दबाव डाल रहा कि नाम डिस्प्ले करें
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पूछा कि ये प्रेस का बयान है या आदेश है। याचिकाकर्ता की ओर से सीयू सिंह ने कहा कि यूपी प्रशासन दुकानदारों पर दबाव डाल रहा है कि वो अपने नाम और मोबाइल नंबर डिस्प्ले करें। कोई भी कानून पुलिस को ऐसा करने का अधिकार नहीं देता। पुलिस के पास केवल यह जांचने का अधिकार है कि किस तरह का खाना परोसा जा रहा है। कर्मचारी या मालिक का नाम अनिवार्य नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता ने आदेश को बताया आर्थिक मौत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये स्वैच्छिक है और ये अनिवार्य नहीं है। याचिकाकर्ता ने कहा कि हरिद्वार पुलिस ने कैसे इसको लागू किया है। इसको देखें, वहां पुलिस की तरफ से चेतावनी दे गई कि अगर नहीं करते तो कार्रवाई होगी। मध्य प्रदेश में भी इस तरह की कार्रवाई की बात की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि ये विक्रेताओं के लिए आर्थिक मौत की तरह है।
सुप्रीम कोर्ट का यूपी सरकार से सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या सरकार ने इस बारे में कोई औपचारिक आदेश पास किया है। जिस पर वकील ने कहा कि सरकार अप्रत्यक्ष रूप से इसे लागू कर रही है। पुलिस कमिश्नर ऐसे निर्देश जारी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि हमें स्थिति को इस तरह से नहीं बताना चाहिए कि यह जमीनी हकीकत से ज्यादा बढ़ जाए। इसके तीन आयाम हैं- सुरक्षा, मानक और धर्मनिरपेक्षता और तीनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। ये बात जस्टिस एसवीएन भट्टी ने कही जब सिंघवी ने कहा कि ये पहचान का बहिष्कार है, आर्थिक बहिष्कार है।
एनडीटीवी की खबर के अनुसार, सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्रा तो सदियों से चला आ रही है, लेकिन इससे पहले ऐसी बात नहीं होती थी। इस बारे में पहले मेरठ पुलिस और फिर मुज्जफरनगर पुलिस ने नोटिस जारी किया। सीयू सिंह ने कहा कि रिपोर्टों से पता चला है कि नगर निगम ने निर्देश दिया है कि 2000 रुपये से 5000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। सिंघवी ने कहा कि हिंदुओं द्वारा चलाए जाने वाले बहुत से शुद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट हैं... लेकिन उनमें मुस्लिम कर्मचारी भी हो सकते हैं... क्या कोई कह सकता है कि मैं वहां जाकर खाना नहीं खाऊं? क्योंकि उस खाने पर किसी न किसी तरह से उन लोगों का हाथ लगा है?
क्या कांवड़िये चुनिंदा जगह से खाना चाहते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कांवड़ियां क्या ये सोचते हैं कि उन्हें फूड किसी चुनिंदा दुकानदार से मिले? सिंघवी ने कहा कि कांवड़ियां पहली बार यात्रा तो नहीं कर रहे हैं ना, वो तो पहले से करते आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि कांवड़ियों की क्या अपेक्षा है? क्या वे यह भी कहते हैं कि खाद्यान्न किसी खास समुदाय के सदस्यों द्वारा ही उगाया जाना चाहिए? फिर कानूनी सवाल- क्या कोई आदेश है?
जस्टिस भट्टी ने यहां तक कहा कि मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। केरल में एक वेजिटेरियन होटल हिंदू और एक वेजिटेरियन मुस्लिम द्वारा चलाए जा रहे हैं, लेकिन मैं मुस्लिम होटल में गया क्योंकि वहां साफ-सफाई थी। इसमें सेफ्टी, स्टैंडर्ड और हाईजीन के मानक अंतरराष्ट्रीय स्तर के थे। इसलिए गया था, ये पूरी तरह से आपकी पसंद का मामला है।
याचिकाकर्ता ने क्या तर्क दिए?
याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह चिंताजनक स्थिति है, जहां पुलिस अधिकारी विभाजन पैदा करने के लिए खुद ही आगे आ रहे हैं। अल्पसंख्यकों की पहचान करके उन्हें आर्थिक बहिष्कार के अधीन कर दिया जाएगा। यूपी और उत्तराखंड के अलावा दो और राज्य इसमें शामिल हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या यह प्रेस स्टेटमेंट था या औपचारिक आदेश था कि इन्हें प्रदर्शित किया जाना चाहिए? इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने जवाब दिया कि पहले एक प्रेस स्टेटमेंट था और फिर लोगों में आक्रोश था और वे कहते हैं कि यह स्वैच्छिक है लेकिन वे इसे सख्ती से लागू कर रहे हैं। जनसत्ता की एक रिपोर्ट के अनुसार, वकील ने कहा कि कोई औपचारिक आदेश नहीं है, बल्कि पुलिस सख्त कार्रवाई कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह एक छद्म आदेश है। वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि स्वेच्छा के नाम पर जबरन आदेश लागू किया जा रहा है।
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