गुजरात : हाई कोर्ट ने दलित समाज के मंदिर से बहिष्कार के आरोपों पर राज्य सरकार से जवाब मांगा

Written by sabrang india | Published on: July 25, 2025
दलितों के बहिष्कार के आरोपों को चुनौती देते हुए राबारी समुदाय के 20 लोगों ने एफआईआर रद्द करने की याचिका दायर की।


प्रतीकात्मक तस्वीर

गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य के बनासकांठा जिले के पालड़ी गांव के सरपंच और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एक एफआईआर को रद्द करने की मांग को लेकर दायर की गई याचिका पर यह नोटिस जारी किया गया है। यह याचिका गांव के 20 ग्रामीणों द्वारा दायर की गई है जो सभी राबारी समुदाय से हैं। उन पर दलित समुदाय के सामाजिक बहिष्कार का आरोप लगाया गया है।

द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला 28 से 30 अप्रैल के बीच पालड़ी गांव में आयोजित दूधेश्वर महादेव मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से जुड़ा है। एफआईआर के अनुसार, समारोह में गांव और आसपास के सभी समुदायों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन अनुसूचित जाति के सदस्यों को जानबूझकर आमंत्रित नहीं किया गया। शिकायतकर्ता गांव के 55 वर्षीय सरपंच हैं और अनुसूचित जाति से आते हैं।

एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि आयोजकों ने न केवल अनुसूचित जाति के लोगों को समारोह में आमंत्रित नहीं किया, बल्कि उनके सहयोग और योगदान को भी अस्वीकार कर दिया। शिकायत में इसे एक सुनियोजित साजिश बताया गया है, जिसका उद्देश्य अनुसूचित जाति के सदस्यों को अपमानित करना और सामाजिक रूप से अलग-थलग करना था। आरोप है कि उनके साथ अस्पृश्यता जैसा व्यवहार किया गया।

शिकायत में देरी को लेकर सरपंच ने बताया कि उन्होंने धार्मिक आयोजन में कोई बाधा न आए, इसी को लेकर शुरुआत में शिकायत दर्ज नहीं कराई। हालांकि, बाद में अपनी जाति के लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उन्होंने 9 मई को भीलडी पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया।

मंगलवार को इस याचिका पर पहली सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति निरज़ार देसाई ने आदेश दिया कि प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया जाए, जिसकी अगली सुनवाई की तारीख 5 अगस्त 2025 तय की गई है। राज्य सरकार की ओर से अपर लोक अभियोजक ने नोटिस स्वीकार कर लिया है। साथ ही, प्रतिवादी संख्या 2 को संबंधित पुलिस थाने के जरिए प्रत्यक्ष रूप से नोटिस की सेवा देने की अनुमति दी गई है।

दलित समाज के लोगों से भेदभाव का यह पहला मामला नहीं है। ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं जब समारोह में या किसी आयोजन को लेकर लगातार उन्हें इस तरह का व्यवहार झेलना पड़ा है। पिछले दिनों सार्वजनिक जल स्रोतों से पानी लेने में अनुसूचित जाति समुदाय के साथ हो रहे भेदभाव को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने सख्त नारागी जाहिर करते हुए कहा कि यह "वैज्ञानिक युग में भी हैरान करने वाला और दुखद है" कि कुछ समुदायों को अब भी अपने हक के पानी के लिए इंतजार करना पड़ता है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति आर. एन. मंजुला ने कहा कि यह बेहद दुःखद है कि आज भी कुछ समुदायों को सार्वजनिक संसाधनों तक पहुंच दूसरों के बाद ही मिलती है, जबकि संविधान और कानून सभी नागरिकों को बराबर के अधिकार प्रदान करते हैं।

अदालत ने कहा, “पानी जैसी प्राकृतिक संपत्ति सभी लोगों के लिए है। यह बेहद हैरान करने वाली बात है कि आज के वैज्ञानिक और आधुनिक युग में भी कुछ समुदायों को केवल अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। क्या हम सभी एक ही मानव समाज का हिस्सा नहीं हैं?”

बीते महीने एक शादी समारोह के दौरान कुछ लोगों ने लाठी-डंडों से एक दलित परिवार पर हमला कर दिया। हमलावरों ने कथित तौर पर जाति-सूचक गालियां दीं, क्योंकि वे इस बात से नाराज थे कि उत्तर प्रदेश के रसरा में एक दलित परिवार मैरिज हॉल का इस्तेमाल कर रहा था।

रिपोर्ट के अनुसार, एक घायल व्यक्ति राघवेंद्र गौतम ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने कहा, “हम जश्न मना रहे थे, तभी अचानक कुछ लोगों का एक समूह आया और चिल्लाने लगा, ‘दलित हॉल में शादी कैसे कर सकते हैं?’ फिर उन्होंने सभी को पीटना शुरू कर दिया।” यह हमला स्वयंवर मैरिज हॉल में रात करीब 10:30 बजे हुआ। 

Related

मुंबई में दलित महिला ने उत्तर भारतीय परिवार पर बर्बर हमले और जातिवादी टिप्पणी का लगाया आरोप

दलित युवक की मौत का मामला: परिवार ने 10 दिन तक नहीं लिया शव, पुलिस पर आरोप, राहुल गांधी ने जताई चिंता

उत्तर प्रदेश : मिर्जापुर में आंबेडकर प्रतिमा की चोरी, लोगों में नाराजगी

बाकी ख़बरें