राजस्थान में मनरेगा के कार्यान्वयन में गंभीर खामियों को रेखांकित करते हुए सरकारी अंकेक्षक कैग ने कहा है कि राज्य सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम में सभी स्तरों पर आयोजना गतिविधियां समय पर पूरी हों।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कैग ने स्थानीय निकायों पर अपनी दूसरी रिपोर्ट में कहा कि मनरेगा के तहत राज्य में प्रत्येक परिवार को औसतन केवल 52.02 दिन का ही रोजगार मिला, जबकि कम से कम 100 दिन का रोजगार उन्हें दिया जाना था। कुल मिलाकर 15.82 प्रतिशत मस्टर रोल में हाजिरी
शून्य रही और श्रमिकों की हाजिरी तक दैनिक आधार पर नहीं लगायी गई।
यह रिपोर्ट 31 मार्च 2017 के लिए है जिसे बुधवार को विधानसभा पटल पर रखा गया। यह रपट चुनिंदा जिलों में मनरेगा के कार्यान्वयन की आडिट पर आधारित है।
समाचार एजेंसी भाषा की रिपोर्ट में बताया गया है कि कैग ने खुलासा किया है कि मनरेगा के तहत सालाना विकास योजना और श्रमिक बजट को समय पर मंजूरी नहीं दी गयी और ग्राम सभा में मंजूरी के लिए कोरम ही पूरा नहीं किया गया।
कैग के मुताबिक, मनरेगा के लिए घर घर सर्वे नहीं किया गया, औरजॉब कार्डों का नवीकरण भी नहीं किया गया।श्रमिकों को उनके काम की प्राप्ति भी नहीं दी गयी।
कुल मिलाकर आलोच्य वर्ष में मनरेगा के तहत बने 37.05 प्रतिशत काम अधूरे पाए गए और निर्मित संपत्तियों में भी अनेक खामियां पायी गईं।
मनरेगा श्रमिकों को कार्यस्थल पर पेयजल के अलावा कोई सुविधा नहीं उपलब्ध नहीं कराए जाने का भी इस रिपोर्ट में जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि वेतन और सामग्री मद में बकाया राशि 704.37 करोड़ रुपये है।
कैग ने कहा है कि राज्य रोजगार गारंटी परिषद की बैठक ही नियमित रूप से नहीं हुई और वह अपने दायित्वों को सही निर्वहन नहीं कर रही है।
कैग ने राज्य सरकार को सलाह दी है कि वह इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को अमली जामा पहनाए जाने के निम्न स्तर के कारणों का विश्लेषण करे और जरूरत पड़ने पर नीतिगत बदलावों पर भी विचार करे ताकि उपलब्ध संसाधनों से टिकाऊ आस्तियां सृजित की जा सकें।
कैग ने राज्य सरकार से यह भी सुनिश्चित करने को कहा है कि ग्राम पंचायत से लेकर जिले तक, सभी स्तरों पर योजना गतिविधियां समय पर पूरी हों ताकि भारत सरकार को सालाना विकास योजना व श्रम बजट बिना किसी देरी के दाखिल किए जा सकें।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कैग ने स्थानीय निकायों पर अपनी दूसरी रिपोर्ट में कहा कि मनरेगा के तहत राज्य में प्रत्येक परिवार को औसतन केवल 52.02 दिन का ही रोजगार मिला, जबकि कम से कम 100 दिन का रोजगार उन्हें दिया जाना था। कुल मिलाकर 15.82 प्रतिशत मस्टर रोल में हाजिरी
शून्य रही और श्रमिकों की हाजिरी तक दैनिक आधार पर नहीं लगायी गई।
यह रिपोर्ट 31 मार्च 2017 के लिए है जिसे बुधवार को विधानसभा पटल पर रखा गया। यह रपट चुनिंदा जिलों में मनरेगा के कार्यान्वयन की आडिट पर आधारित है।
समाचार एजेंसी भाषा की रिपोर्ट में बताया गया है कि कैग ने खुलासा किया है कि मनरेगा के तहत सालाना विकास योजना और श्रमिक बजट को समय पर मंजूरी नहीं दी गयी और ग्राम सभा में मंजूरी के लिए कोरम ही पूरा नहीं किया गया।
कैग के मुताबिक, मनरेगा के लिए घर घर सर्वे नहीं किया गया, औरजॉब कार्डों का नवीकरण भी नहीं किया गया।श्रमिकों को उनके काम की प्राप्ति भी नहीं दी गयी।
कुल मिलाकर आलोच्य वर्ष में मनरेगा के तहत बने 37.05 प्रतिशत काम अधूरे पाए गए और निर्मित संपत्तियों में भी अनेक खामियां पायी गईं।
मनरेगा श्रमिकों को कार्यस्थल पर पेयजल के अलावा कोई सुविधा नहीं उपलब्ध नहीं कराए जाने का भी इस रिपोर्ट में जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि वेतन और सामग्री मद में बकाया राशि 704.37 करोड़ रुपये है।
कैग ने कहा है कि राज्य रोजगार गारंटी परिषद की बैठक ही नियमित रूप से नहीं हुई और वह अपने दायित्वों को सही निर्वहन नहीं कर रही है।
कैग ने राज्य सरकार को सलाह दी है कि वह इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को अमली जामा पहनाए जाने के निम्न स्तर के कारणों का विश्लेषण करे और जरूरत पड़ने पर नीतिगत बदलावों पर भी विचार करे ताकि उपलब्ध संसाधनों से टिकाऊ आस्तियां सृजित की जा सकें।
कैग ने राज्य सरकार से यह भी सुनिश्चित करने को कहा है कि ग्राम पंचायत से लेकर जिले तक, सभी स्तरों पर योजना गतिविधियां समय पर पूरी हों ताकि भारत सरकार को सालाना विकास योजना व श्रम बजट बिना किसी देरी के दाखिल किए जा सकें।