महाराष्ट्र में गांव से लेकर तट तक: दमनकारी कानून, जबरन बेदखली और हिंसा के खिलाफ जबरदस्त विरोध

Written by sabrang india | Published on: July 25, 2025
दमनकारी कानून, स्वयंसेवी हिंसा और जबरन बेदखली के खिलाफ महाराष्ट्र में तीन बड़े विरोध आंदोलन एक साथ उभर रहे हैं, जो एक सामान्य कहानी बयान करते हैं यानी आजीविका का आपराधिककरण।



जुलाई 2025 में महाराष्ट्र उल्लेखनीय विरोध आंदोलन की लहर का केंद्र बन गया। राज्य के शहरों और जिलों में तीन बड़े प्रतिरोध आंदोलन हुए। इनमें से प्रत्येक की शुरुआत अलग-अलग सरकारी कार्रवाइयों से हुई लेकिन बढ़ते तानाशाही, सामाजिक उपेक्षा और कानूनी लूट के खिलाफ अपने विरोध में सभी एकजुट हैं।

● ठाणे, परभणी और कोल्हापुर में महाराष्ट्र कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियां और नागरिक अधिकार समूह हाल ही में पारित महाराष्ट्र लोक सुरक्षा अधिनियम (MSPS) के खिलाफ एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह एक व्यापक कानून है जो लोकतांत्रिक असहमति को अपराध घोषित करता है।





● छत्रपति संभाजीनगर और नांदेड में कुरैशी मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मवेशियों के व्यापार के खिलाफ राज्यव्यापी बहिष्कार शुरू किया है। यह विरोध पिछले एक दशक से जारी मॉब लिंचिंग, पुलिस उत्पीड़न और उनके अनुसार “आर्थिक रूप से तबाह करने” के अभियान के खिलाफ है।

● और मुंबई के ससून डॉक के किनारे कोली मछुआरा समुदाय कई वर्षों की गारंटी के बावजूद अचानक हुए जबरन बेदखली के खिलाफ विरोध कर रहा है। वे अपने पुश्तैनी अधिकारों और समुद्र तक पहुंच के अधिकार की रक्षा की मांग कर रहे हैं।

ये सभी विरोध एक साथ बड़ी कहानी बयां करते हैं: कैसे राज्य की सत्ता, कानूनी प्रावधान और सशस्त्र हिंसा महाराष्ट्र भर के कामकाजी वर्ग और हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों, पहचान और भविष्य को बदल रहे हैं।

● लोक सुरक्षा अधिनियम: लोगों की आवाज दबाने का कानून

जब महाराष्ट्र विशेष लोक सुरक्षा (MSPS) बिल, 2024 को जून 2025 में महाराष्ट्र विधान सभा ने पास किया तो सरकार ने इसे “शहरी नक्सलवाद” से लड़ने और सार्वजनिक व्यवस्था की रक्षा के लिए जरूरी कदम बताया। लेकिन विपक्षी पार्टियां, संविधान के विद्वान और 12,500 से ज्यादा नागरिकों ने जो संयुक्त चयन समिति को आपत्तियां प्रस्तुत कीं, उन्होंने इसे वैसे ही देखा जैसे यह है विरोध दबाने, असहमति की आवाज को रोकने और संवैधानिक अभिव्यक्ति को अपराध घोषित करने वाला कानूनी उपकरण।

यह कानून राज्य को किसी भी गतिविधि या संगठन को “अवैध” घोषित करने की अनुमति देता है यदि उसे “सार्वजनिक व्यवस्था” भंग करने वाला या “स्थापित संस्थानों” में हस्तक्षेप करने वाला माना जाए। लेकिन ये शब्द परिभाषित नहीं हैं, अस्पष्ट हैं और खतरनाक रूप से व्यापक हैं। जन सुरक्षा विधेयक विरोधी संघर्ष समिति ने 16 जुलाई 2025 को महाराष्ट्र के राज्यपाल से संपर्क किया और इस विधेयक के खिलाफ एक ज्ञापन सौंपा।

इस ज्ञापन में कहा गया कि, “संघर्ष समिति ने जन सुरक्षा विधेयक (विधेयक संख्या XXXIII, 2024) का कड़ा विरोध किया है, क्योंकि यह विधेयक राज्य के नागरिकों के लोकतांत्रिक और मौलिक अधिकारों पर प्रत्यक्ष हमला है। हमें यकीन है कि नक्सलवाद को रोकने के नाम पर, इसके अस्पष्ट प्रावधानों के कारण, इस अधिनियम का दुरुपयोग आम नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और उन संगठनों के खिलाफ किया जा सकता है जो न्यायहीन सरकारी नीतियों और कार्रवाइयों के खिलाफ वैध तरीके से अपनी आवाज उठाते हैं। किसी भी तरह के विरोध और असहमति को दबाना हमारे संविधान के लोकतांत्रिक ढांचे के खिलाफ है। विधेयक के प्रति हमारे मुख्य आपत्तियों को विस्तृत रूप में बताने वाला एक नोट भी संलग्न किया गया है।”

16 जुलाई 2025 को राज्यपाल को सौंपे गए एक दूसरे ज्ञापन में यह बताया गया कि धारा 2(एफ), जो अवैध गतिविधि को परिभाषित करती है, इतनी व्यापक है कि यह रास्ता रोको, सत्याग्रह, पर्चा वितरण या यहां तक कि सोशल मीडिया पोस्ट को भी अपराध माना जा सकता है।

राज्यपाल को दिए गए ज्ञापन में कहा गया कि, “अवैध गतिविधि की परिभाषा बहुत व्यापक और सब कुछ शामिल करने वाला है। मुख्यमंत्री ने बार-बार यह कहा है कि मोर्चे, आंदोलनों और अन्य लोकतांत्रिक विरोध के स्वरूपों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा, लेकिन सच्चाई यह है कि अधिनियम की धारा 2(एफ) में ‘अवैध गतिविधि’ की परिभाषा इतनी व्यापक है कि मोर्चे, आंदोलन आदि इस परिभाषा के दायरे में आ जाते हैं। इसलिए, सदन में दी गई इन आश्वासनों को स्पष्ट रूप से लिखित रूप में सुनिश्चित करना आवश्यक है।”

धारा 5 के अंतर्गत, एडवायजरी बोर्ड, जिसे मूल रूप से एक संवैधानिक निगरानी प्रणाली के रूप में काम करना था, उसको संरचनात्मक रूप से भी कमजोर कर दिया गया है। संयुक्त चयन समिति द्वारा प्रस्तुत संशोधनों के तहत अब इस बोर्ड में सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीशों और सरकारी वकीलों को शामिल किया जा सकता है, जिससे इसकी स्वतंत्रता प्रभावित होती है।

विपक्ष का राज्य भर में विरोध प्रदर्शन:

● परभणी में कांग्रेस नेताओं ने अंबेडकर की प्रतिमा के सामने इस विधेयक की प्रतियां जलाकर इसका विरोध किया और इसे अंबेडकरवादी तथा फुले-शाहू विचारधारा पर हमला करार दिया।
● कोल्हापुर में 2,000 लोगों ने पुलिस को घेर लिया और कानून के प्रतीकात्मक पुतलों को “अंदर से भी काला, बाहर से भी काला” बताते हुए आग के हवाले किया।

● ठाणे में 27 जुलाई को एक बड़ी जनसभा आयोजित की गई, जिसमें पत्रकार कुमार केतकर, राज्यसभा सांसद संजय राउत, पूर्व मंत्री जितेंद्र आव्हाड और सेवानिवृत्त न्यायाधीश अभय थिप्से शामिल हुए। सभी ने इस अधिनियम को रद्द करने की मांग की।

द वीक की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने गांधी भवन में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि यह कानून उग्रवाद पर लगाम कसने के लिए नहीं, बल्कि धारावी में जमीन हड़पने वाले उद्योगपतियों और गढ़चिरौली के सुरजागड़ क्षेत्र में खनिज संपदा का दोहन करने वालों को संरक्षण देने के लिए बनाया गया है।

“यह कानून बाहर से ही नहीं बल्कि भीतर से भी दमनकारी है और इसका उद्देश्य आम जनता को दबाना है… इससे फायदा केवल सरकार और उसे समर्थन देने वाले उद्योगपतियों को होगा। उन्हें लाभ होगा जिन्होंने धारावी में जमीन पर कब्जा किया, सुरजागड़ (गढ़चिरौली) में खनिज संसाधनों की लूट की, और जो शक्तिपीठ हाईवे कॉरिडोर तक लाल कालीन बिछाकर पहुंच पाना चाहते हैं।”

राज्यपाल ने अब तक इस विधेयक को अपनी स्वीकृति नहीं दी है और नागरिक समाज के समूह लगातार यह मांग कर रहे हैं कि इस विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विधानसभा को वापस भेजा जाए। महाराष्ट्र में ऐसे और कई विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई जा रही है। 27 जुलाई 2025 को ठाणे में एक विरोध सभा आयोजित की जानी है जिसे अन्य वक्ताओं के साथ पूर्व न्यायाधीश अभय थिप्से भी संबोधित करेंगे।



मॉब लिंचिंग के खिलाफ कुरैशी समुदाय का आर्थिक बहिष्कार

1 जुलाई 2025 को छत्रपति संभाजीनगर में एक शांत लेकिन निर्णायक क्रांति की शुरुआत हुई। भैंस के मांस और मवेशी व्यापार से पारंपरिक रूप से जुड़े कुरैशी मुस्लिम समुदाय के लोगों ने घोषणा की कि वे अनिश्चितकाल के लिए सभी व्यावसायिक गतिविधियां बंद कर रहे हैं।

इसका कारण? गौ रक्षा के नाम पर पिछले एक दशक से जारी मॉब लिंचिंग, वसूली और कथित पुलिस की मिलीभगत इसका कारण है। महाराष्ट्र जमात-उल-कुरैश के अध्यक्ष हाजी असलम सुलतान कुरैशी ने हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में कहा, “हम कानूनी व्यापारी हैं, लेकिन तथाकथित गौ रक्षक हमें मारते हैं, हमारे वाहन लूट लेते हैं और अक्सर बेखौफ तरीके से हत्या तक कर देते हैं। यहां तक कि जब हम भैंसें ले जाते हैं, जो पूरी तरह से कानूनी है, तब भी वे हम पर हमला करते हैं। और पुलिस उनका साथ देती है।”

समुदाय ने कई जानलेवा मामलों का हवाला दिया है:

● रफीक तंबोली की 2021 में पीट-पीटकर हत्या की गई;
● अफ्फान अंसारी 2024 में मारे गए;
● केवल वाशिम जिले में ही सात मौतें हुई हैं, जैसा कि एक रिपोर्ट में स्थानीय समुदाय नेता नबी कुरैशी ने बताया।

धीरे धीरे कई जिलों में स्लॉटरहाउस बंद कर दिए गए हैं या उन्हें पशु-चिकित्सकीय प्रमाणन नहीं दिया गया, जिससे कानूनी रूप से वध करना लगभग असंभव हो गया है। द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, नांदेड में कोई भी तालुका-स्तरीय पशु चिकित्सा अधिकारी सक्रिय नहीं हैं। इसके चलते कसाइयों को मजबूरन घरों में वध करना पड़ता है -जो कानून के तहत अवैध है -और इस कारण वे लगातार एफआईआर और छापों के खतरे के बीच रहते हैं। द वायर की रिपोर्ट में परभणी के एक कसाई ने कहा, "हमें जानबूझकर अवैधता की ओर धकेला जा रहा है और फिर सिर्फ जीवन यापन के लिए हमें गिरफ्तार किया जाता है।"

एचटी की रिपोर्ट के अनुसार, 15 जुलाई को कुरैशी समुदाय के एक प्रतिनिधिमंडल ने गृह राज्य मंत्री योगेश कदम और पुलिस महानिदेशक (DGP) रश्मि शुक्ला से मुलाकात की और सुरक्षा की लिखित गारंटी की मांग की। योगेश कदम ने लिखित आश्वासन देने से इनकार कर दिया और केवल मौखिक वादे पर ही बात की।

इस बीच, द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार का आधिकारिक रुख और सख्त हो गया। 14 जुलाई को मंत्री पंकज भोयर ने घोषणा की:

● बीफ तस्करी से निपटने के लिए नया कानून लाया जाएगा;
● सभी गौ रक्षकों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लिया जाएगा;
● मवेशी परिवहन करने वालों पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) लगाने की संभावनाएं हैं।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, जुनैद अतार जैसे कार्यकर्ताओं ने दस्तावेजो के जरिए यह दिखाया है कि किस तरह स्वयंभू गौ रक्षक समूह ज़िलों के बीच तालमेल बनाकर काम करते हैं, जैसे ही मवेशी गाड़ी पर सवार किया जाता है, वे एक-दूसरे को जानकारी देते हैं और पुलिस की मदद से गाड़ियों पर हमला करते हैं। "अब राज्य हमारे खिलाफ नौकरशाही को हथियार बना रहा है," ऐसा कहना है AIMIM के वकील कैज़र पटेल का, जिनका अनुमान है कि राज्य भर में 300 करोड़ रूपये का व्यापार रुक चुका है। उन्होंने कहा, "असल पीड़ित तो गरीब हैं- कुरैशी, किसान, ड्राइवर, मांस व्यापारी और यहां तक कि होटल उद्योग भी।”

ससून डॉक गतिरोध और तटीय अधिकारों की लड़ाई

तीसरा विरोध का मोर्चा मुंबई में ससून डॉक की जमीन और जल पर खुला जो एक ऐतिहासिक मछली बंदरगाह है और जहां से हजारों कोली मछुआरे, गोदाम संचालक, बर्फ विक्रेता और नाविक अपनी आजीविका चलाते हैं।

23 जुलाई को मुंबई पोर्ट प्राधिकरण (MbPA) की एक टीम पुलिस बल के साथ ससून डॉक पहुंची, ताकि गोदाम संचालकों को 2014 के सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के आधार पर बेदखल किया जा सके। MbPA का दावा है कि ये गोदाम संचालक अवैध उपपट्टाधारी (sub-lessees) हैं, और वास्तविक पट्टाधारी महाराष्ट्र मत्स्य विकास निगम (MFDC) है।

लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कोली समुदाय इस बेदखली को पूर्व में दिए गए आश्वासनों के साथ धोखा मानता है। 2015 में विधान भवन में हुई एक मंत्रीस्तरीय बैठक में नितिन गडकरी और एकनाथ खडसे ने यह आश्वासन दिया था कि:

● रैडी रेकनर किराया दरें लागू नहीं की जाएंगी और
● बिना परामर्श के कोई बेदखली नहीं की जाएगी।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शिव भारतीय पोर्ट सेना के अध्यक्ष कृष्णा पावले ने कहा, “अगर MbPA इसका विपरीत दावा करता है, तो उन्हें वह हमें लिखित में देना चाहिए।”
 
हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में मछिमार सर्वोदय सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष भास्कर तांडेल ने चेतावनी दी, “आज वे गोदामों के लिए आ रहे हैं। कल वे हमारी नावों के लिए आएंगे। हम यहां पोर्ट अथॉरिटी से भी पहले से हैं।”

इस बेदखली को 2,000 से ज्यादा लोगों के बड़े विरोध प्रदर्शन ने रोक दिया। कोली नेताओं ने चेतावनी दी है कि यदि बेदखली जारी रही तो मौसमी मछली पकड़ने पर लगी रोक के खत्म होने के बाद 1 अगस्त से 20,000 लोग ससून डॉक पर धरना देंगे।

कोली समुदाय के लिए यह केवल किरायेदारी का सवाल नहीं है। यह उनके पुश्तैनी अधिकारों, जीविका और तेजी से बदलते मुंबई में उनकी पहचान का भी मामला है।

निष्कर्ष: नीति के रूप में आपराधिककरण, जीवन यापन के लिए प्रतिरोध

इन तीनों विरोधों में एक स्पष्ट पैटर्न उभरता है:

● कानूनी ढांचे - चाहे वह MSPS अधिनियम हो, गौ रक्षा कानून हों, या किरायेदारी के नियम, इनका इस्तेमाल अवैध ठहराने, बेदखली करने या हिरासत में लेने के लिए किया जा रहा है।
● हाशिए पर पड़े समुदाय -मुसलमान, आदिवासी, बहुजन और पारंपरिक तटीय निवासी अपने आजीविका के लिए मजबूरन विरोध में उतर रहे हैं।
● और जब वे विरोध करते हैं, तो उन्हें नक्सली, तस्कर, या अतिक्रमणकारी करार दिया जाता है।
 
ये विरोध केवल राजनीतिक प्रतिक्रियाएं नहीं हैं। ये संवैधानिक अस्तित्व की रक्षा हैं जो अदालतों, सड़कों, बाजारों, डॉकों और अंबेडकर व शिवाजी की प्रतिमाओं के नीचे हो रही हैं। आज महाराष्ट्र में विरोध केवल असहमति नहीं बल्कि आत्मरक्षा है।

Related

 ‘गौ रक्षकों’ द्वारा वर्षों से प्रताड़ित महाराष्ट्र के मुस्लिम कुरैशी विरोध के तौर पर अब अपने कारोबार का बहिष्कार कर रहे

बाकी ख़बरें