यह फैसला निराशा में लिया गया है क्योंकि यह सीधे तौर पर उनके आजीविका पर असर डालता है, और संभवतः यह पहली बार है जब समुदाय के भीतर से इतनी संगठित और व्यापक स्तर पर हिंसा के खिलाफ विरोध देखने को मिल रहा है।

फोटो साभार : द वायर
पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से, मुस्लिम कुरैशी समुदाय के लोग महाराष्ट्र भर में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। पिछले एक दशक में कथित "गौरक्षकों" द्वारा हिंसक हमलों का सामना करने के बाद, समुदाय के सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि वे अनिश्चितकाल तक भैंस या अन्य गोवंश मवेशियों के मांस का व्यवसाय नहीं करेंगे।
यह निर्णय बेबस हालातों में लिया गया कदम है जो भले ही उनकी रोजी-रोटी पर सीधा असर डालता हो फिर भी समुदाय ने इस तरह का प्रदर्शन किया है। यह शायद पहली बार है जब इस तरह का संगठित और व्यापक विरोध समुदाय के भीतर से ही हिंसा के खिलाफ देखने को मिला है।
समुदाय के सदस्यों का कहना है कि उनकी स्थिति मार्च 2015 में महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम, 1976 में हुए संशोधन के बाद और भी बदतर हो गई। राज्य और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद इस अधिनियम को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली। इस संशोधन ने गोवंशीय पशुओं के वध पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। इसके तहत बैल, भैंस, और गोवंश के मांस के लिए वध को गैरकानूनी करार दिया गया। इस कानून में बदलाव के कुछ ही समय बाद, ‘गौरक्षक’ कहे जाने वाले हिंदुत्व समूहों द्वारा की जाने वाली हिंसा में भारी वृद्धि हुई।
‘समुदाय में लगभग हर किसी पर हमला हो चुका है’
बेबस और लगातार निशाना बनाए जा रहे कुरैशी (हाशिए पर रहने वाला मुस्लिम समुदाय) ने कुरैशी जमात के बैनर तले महाराष्ट्र के जिला और तालुका स्तर पर बैठकें आयोजित की हैं, जिनका उद्देश्य समुदाय को यह समझाना है कि वे इस पेशे को पूरी तरह से छोड़ दें।
नांदेड में कुरैशी जमात के प्रमुख अजीज कुरैशी ने कहा, “हमारी हालत पहले से ही बेहद खराब है। हमें यह कदम उठाना ही होगा, ताकि सरकार को यह दिखाया जा सके कि हमारे फैसले का असर सिर्फ हम पर नहीं, बल्कि राज्य के किसान समुदाय पर भी पड़ेगा।”
इस बहिष्कार अभियान की शुरुआत एक महीने पहले नागपुर से हुई थी और धीरे-धीरे यह पूरे महाराष्ट्र में फैल गया है। राज्य के विभिन्न जिलों में लगभग हर दिन एक या दो कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। साथ ही, समुदाय इस बात पर भी चर्चा कर रहा है कि इस बहिष्कार से होने वाले आर्थिक नुकसान से कैसे निपटा जाए।
इस सप्ताह की शुरुआत में नांदेड में मांस के व्यवसाय से जुड़े कई लोग जिला मुख्यालय पर इकट्ठा हुए। अजीज कुरैशी का कहना है, “लगभग हर किसी ने कभी न कभी पकड़े जाने, परेशान किए जाने या हिंसक हमले का सामना किया है और ये हमले हिंदुत्ववादी समूहों द्वारा किए जाते हैं।” वे बताते हैं कि ये हमले तब भी जारी हैं, जब नांदेड जिले के कसाइयों ने बीफ (गौमांस) का कारोबार काफी पहले ही बंद कर दिया है। “भैंसों का मांस प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन हमलावरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
उन्हें सिर्फ यह दिखता है कि कोई मुस्लिम मांस के कारोबार से जुड़ा है और बस, इतना ही हमले के लिए काफी होता है।” हमले में बुरी तरह पीटे गए इस समाज के सदस्य ने आरोप लगाया कि ज्यादातर हमले स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से होते हैं। उसने कहा, “हमले के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बावजूद, पुलिस ने मेरी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया।”
कानूनी प्रावधान
संशोधित कानून के तहत भैंस के वध पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं है, लेकिन कुछ सख्त शर्तें लागू की गई हैं। भैंस का वध करने से पहले, पशुपालक को एक पशु चिकित्सक से प्रमाण पत्र (फिटनेस सर्टिफिकेट) लेना अनिवार्य है, जिसमें यह पुष्टि होनी चाहिए कि, भैंस दूध देने योग्य नहीं है और गर्भवती नहीं है। केवल इस प्रमाण पत्र के मिलने के बाद ही भैंस को वध के लिए कत्लखाने भेजा जा सकता है।
खेती-बाड़ी और दुग्ध उत्पादन के लिए अपने पशुओं पर निर्भर रहने वाले किसान, जब उनके जानवर बूढ़े हो जाते हैं, तो उन्हें बेचने के लिए कुरैशी समुदाय पर निर्भर रहते हैं। यही एकमात्र तरीका है जिससे किसान बूढ़े पशुओं से कुछ आमदनी हासिल कर पाते हैं, ताकि वे नए, युवा भैंस खरीदने में निवेश कर सकें। लेकिन अब, जब कुरैशी समुदाय ने सामूहिक रूप से इस व्यवसाय को छोड़ने का निर्णय लिया है, इसका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा विशेष रूप से वे किसान जो सीमांत हैं और बहुजन समुदाय से आते हैं। यह संकट ऐसे समय में और गंभीर हो जाता है जब राज्य में किसान आत्महत्याओं की दर पहले से ही बेहद चिंताजनक है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से मार्च 2025 के बीच ही 767 किसानों ने आत्महत्या की है।
इस समुदाय के कई सदस्यों का आरोप है कि सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से तालुका स्तर पर स्लॉटरहाउस (कत्लखाने) बंद कर दिए हैं और उन इलाकों में पशु चिकित्सकों की नियुक्ति नहीं की गई है जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है। उदाहरण के तौर पर, नांदेड जिले में अजीज कुरैशी का कहना है कि पिछले 10 वर्षों से तालुका स्तर पर कोई भी पशु चिकित्सक नियुक्त नहीं किया गया है। पूरे जिले में केवल जिला मुख्यालय पर एक ही पशु चिकित्सा इकाई कार्यरत है। एक स्थानीय समुदाय नेता ने बताया, “जब न तो प्रमाणपत्र मिलते हैं और न ही स्लॉटरहाउस उपलब्ध हैं, तो मजबूरी में कई कसाइयों को अपने घरों में ही जानवरों को काटना पड़ रहा है।”
परभणी के एक अन्य व्यक्ति ने भी इसी मुद्दे को दोहराते हुए कहा कि कानूनी समस्याओं के साथ-साथ, रिहायशी इलाकों में जानवरों का वध करना खतरनाक स्वास्थ्य जोखिम भी पैदा करता है। उन्होंने कहा, “नगरपालिका अधिकारी इस स्थिति से वाकिफ हैं, लेकिन वे सफाई व्यवस्था में हमारी कोई मदद नहीं करते।” अपने घर में जानवरों का वध करना गैरकानूनी है और मराठवाड़ा क्षेत्र में कई कसाइयों पर सामूहिक रूप से एफआईआर दर्ज की गई हैं।
‘नजर बनाए रखना’
14 जुलाई को गृह राज्य मंत्री (ग्रामीण) पंकज भोयर ने विधान परिषद में घोषणा की कि राज्य सरकार गौमांस की तस्करी के खिलाफ एक नया कानून लाने जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार उन "गौरक्षकों" पर दर्ज मामलों को वापस लेगी, जिन्होंने बीफ परिवहन का "भंडाफोड़ करने में अग्रणी भूमिका निभाई है"। यह प्रस्तावित कानून राज्य में पहले से लागू गौवध प्रतिबंध कानून के अतिरिक्त होगा। सरकार इस पर भी विचार कर रही है कि बीफ तस्करी से जुड़े मामलों में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) जैसे कड़े कानून लागू किए जाएं।
इस नए कानून पर विचार-विमर्श की शुरुआत मार्च 2025 में लोनावला में दो कंटेनरों से 57,000 किलोग्राम मांस जब्त होने के बाद हुई। पुलिस ने दावा किया कि यह "बीफ" था जिसे निर्यात के लिए जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) ले जाया जा रहा था तभी इसे रास्ते में रोका गया। इस मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच टीम (SIT) का गठन किया गया है।
भाजपा नेतृत्व वाली सरकार की कथित बीफ जब्तियों पर प्रतिक्रिया, कुरैशी समुदाय को नियमित रूप से मिल रही धमकियों, वसूली और हिंसा की तुलना में असामान्य रूप से सख्त रही है। गौरक्षकों को "अवैध वध पर नजर रखने वाले" जरूरी निगरानी समूहों के रूप में महिमामंडित किया जाता है, जबकि कुरैशी समुदाय के खिलाफ होने वाली हिंसक घटनाओं पर तभी कार्रवाई होती है जब लोगों का दबाव पुलिस को मजबूर करता है।
मराठी मुसलमान के अनुसार, कुरैशी मुस्लिम पहचान को व्यवस्थित तरीके से अपराधी बनाया जा रहा है। राज्य में हुई हिंसक घटनाओं को करीब से ट्रैक करने के बाद, उन्होंने एक पैटर्न देखा है। अतार कहते है. “गौरक्षकों के समूह राज्यों में अच्छी तरह नेटवर्क बनाए हुए हैं। जैसे ही कोई ट्रांसपोर्टर एक इलाका छोड़ता है, विभिन्न नेटवर्क के जरिए गौरक्षकों को सूचना मिल जाती है। अक्सर वे पुलिस के साथ आते हैं।”
वह बताते हैं कि स्थानीय ट्रांसपोर्टर जो अक्सर सिर्फ ड्राइवर होते हैं और पशुपालक नहीं होते, उन पर भी हिंसक हमले होते हैं, जिन्हें हमेशा “गौरक्षा” के नाम पर सही ठहराया जाता है।
अतार बताते हैं कि हाल ही में लातूर में एक व्यक्ति को मवेशी ले जाते हुए पकड़ा गया। वे कहते हैं, “मवेशी वध के लिए नहीं ले जाए जा रहे थे बल्कि केवल स्थानांतरित किए जा रहे थे। लेकिन स्थानीय पुलिस ने ट्रांसपोर्ट रोक दिया और मवेशियों को स्थानीय गौरक्षा संगठन के हवाले कर दिया।” कुछ ही दिनों में, ये मवेशी बाजार में वध के लिए देखे गए। अतार कहते हैं, “स्थानीय कार्यकर्ताओं की मदद से उन्होंने पुलिस को मजबूर किया कि वे तथाकथित गौरक्षकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करें।” लेकिन ऐसे मामले बहुत कम और असामान्य हैं।
छत्रपति संभाजीनगर जिले के ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) पार्टी कार्यकर्ता और वकील कैजर पटेल कहते हैं कि इसका आर्थिक प्रभाव “राज्य की कल्पना से परे है।”
वे कहते हैं, “यह केवल कसाइयों का मामला नहीं है, पूरी अर्थव्यवस्था जो इस पर निर्भर है, प्रभावित होगी।” महाराष्ट्र भर के कुरैशी संगठनों से सलाह-मशविरा करने के बाद, उन्होंने अनुमान लगाया है कि प्रतिदिन लगभग 5,000 मवेशियों का वध होता है। वे कहते हैं, “अगर एक जानवर लगभग 20,000 रूपये में बेचा जाता है, तो मासिक बिक्री लगभग 300 करोड़ रूपये तक पहुंचती है।” पटेल ने बड़ी निजी कंपनियों का भी उल्लेख किया। वे बताते हैं, “सिर्फ छत्रपति संभाजीनगर में ही रोजाना 800 से ज्यादा भैंसें एक बड़ी निजी कंपनी को बेची जाती हैं, जहां प्रति भैंस 40,000 रूपये से ज्यादा की कीमत मिलती है। सिर्फ इस जिले का मासिक कारोबार 100 करोड़ रूपये तक का है।” पटेल के अनुसार, कुरैशी समुदाय और किसानों के अलावा, इस फैसले से परिवहन, कैटरिंग और होटल उद्योग से जुड़े लोग भी प्रभावित होंगे।
नोट : ये लेख मूलत: द वायर पर अंग्रेजी में प्रकाशित की गई
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फोटो साभार : द वायर
पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से, मुस्लिम कुरैशी समुदाय के लोग महाराष्ट्र भर में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। पिछले एक दशक में कथित "गौरक्षकों" द्वारा हिंसक हमलों का सामना करने के बाद, समुदाय के सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि वे अनिश्चितकाल तक भैंस या अन्य गोवंश मवेशियों के मांस का व्यवसाय नहीं करेंगे।
यह निर्णय बेबस हालातों में लिया गया कदम है जो भले ही उनकी रोजी-रोटी पर सीधा असर डालता हो फिर भी समुदाय ने इस तरह का प्रदर्शन किया है। यह शायद पहली बार है जब इस तरह का संगठित और व्यापक विरोध समुदाय के भीतर से ही हिंसा के खिलाफ देखने को मिला है।
समुदाय के सदस्यों का कहना है कि उनकी स्थिति मार्च 2015 में महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम, 1976 में हुए संशोधन के बाद और भी बदतर हो गई। राज्य और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद इस अधिनियम को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली। इस संशोधन ने गोवंशीय पशुओं के वध पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। इसके तहत बैल, भैंस, और गोवंश के मांस के लिए वध को गैरकानूनी करार दिया गया। इस कानून में बदलाव के कुछ ही समय बाद, ‘गौरक्षक’ कहे जाने वाले हिंदुत्व समूहों द्वारा की जाने वाली हिंसा में भारी वृद्धि हुई।
‘समुदाय में लगभग हर किसी पर हमला हो चुका है’
बेबस और लगातार निशाना बनाए जा रहे कुरैशी (हाशिए पर रहने वाला मुस्लिम समुदाय) ने कुरैशी जमात के बैनर तले महाराष्ट्र के जिला और तालुका स्तर पर बैठकें आयोजित की हैं, जिनका उद्देश्य समुदाय को यह समझाना है कि वे इस पेशे को पूरी तरह से छोड़ दें।
नांदेड में कुरैशी जमात के प्रमुख अजीज कुरैशी ने कहा, “हमारी हालत पहले से ही बेहद खराब है। हमें यह कदम उठाना ही होगा, ताकि सरकार को यह दिखाया जा सके कि हमारे फैसले का असर सिर्फ हम पर नहीं, बल्कि राज्य के किसान समुदाय पर भी पड़ेगा।”
इस बहिष्कार अभियान की शुरुआत एक महीने पहले नागपुर से हुई थी और धीरे-धीरे यह पूरे महाराष्ट्र में फैल गया है। राज्य के विभिन्न जिलों में लगभग हर दिन एक या दो कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। साथ ही, समुदाय इस बात पर भी चर्चा कर रहा है कि इस बहिष्कार से होने वाले आर्थिक नुकसान से कैसे निपटा जाए।
इस सप्ताह की शुरुआत में नांदेड में मांस के व्यवसाय से जुड़े कई लोग जिला मुख्यालय पर इकट्ठा हुए। अजीज कुरैशी का कहना है, “लगभग हर किसी ने कभी न कभी पकड़े जाने, परेशान किए जाने या हिंसक हमले का सामना किया है और ये हमले हिंदुत्ववादी समूहों द्वारा किए जाते हैं।” वे बताते हैं कि ये हमले तब भी जारी हैं, जब नांदेड जिले के कसाइयों ने बीफ (गौमांस) का कारोबार काफी पहले ही बंद कर दिया है। “भैंसों का मांस प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन हमलावरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
उन्हें सिर्फ यह दिखता है कि कोई मुस्लिम मांस के कारोबार से जुड़ा है और बस, इतना ही हमले के लिए काफी होता है।” हमले में बुरी तरह पीटे गए इस समाज के सदस्य ने आरोप लगाया कि ज्यादातर हमले स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से होते हैं। उसने कहा, “हमले के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बावजूद, पुलिस ने मेरी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया।”
कानूनी प्रावधान
संशोधित कानून के तहत भैंस के वध पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं है, लेकिन कुछ सख्त शर्तें लागू की गई हैं। भैंस का वध करने से पहले, पशुपालक को एक पशु चिकित्सक से प्रमाण पत्र (फिटनेस सर्टिफिकेट) लेना अनिवार्य है, जिसमें यह पुष्टि होनी चाहिए कि, भैंस दूध देने योग्य नहीं है और गर्भवती नहीं है। केवल इस प्रमाण पत्र के मिलने के बाद ही भैंस को वध के लिए कत्लखाने भेजा जा सकता है।
खेती-बाड़ी और दुग्ध उत्पादन के लिए अपने पशुओं पर निर्भर रहने वाले किसान, जब उनके जानवर बूढ़े हो जाते हैं, तो उन्हें बेचने के लिए कुरैशी समुदाय पर निर्भर रहते हैं। यही एकमात्र तरीका है जिससे किसान बूढ़े पशुओं से कुछ आमदनी हासिल कर पाते हैं, ताकि वे नए, युवा भैंस खरीदने में निवेश कर सकें। लेकिन अब, जब कुरैशी समुदाय ने सामूहिक रूप से इस व्यवसाय को छोड़ने का निर्णय लिया है, इसका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा विशेष रूप से वे किसान जो सीमांत हैं और बहुजन समुदाय से आते हैं। यह संकट ऐसे समय में और गंभीर हो जाता है जब राज्य में किसान आत्महत्याओं की दर पहले से ही बेहद चिंताजनक है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से मार्च 2025 के बीच ही 767 किसानों ने आत्महत्या की है।
इस समुदाय के कई सदस्यों का आरोप है कि सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से तालुका स्तर पर स्लॉटरहाउस (कत्लखाने) बंद कर दिए हैं और उन इलाकों में पशु चिकित्सकों की नियुक्ति नहीं की गई है जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है। उदाहरण के तौर पर, नांदेड जिले में अजीज कुरैशी का कहना है कि पिछले 10 वर्षों से तालुका स्तर पर कोई भी पशु चिकित्सक नियुक्त नहीं किया गया है। पूरे जिले में केवल जिला मुख्यालय पर एक ही पशु चिकित्सा इकाई कार्यरत है। एक स्थानीय समुदाय नेता ने बताया, “जब न तो प्रमाणपत्र मिलते हैं और न ही स्लॉटरहाउस उपलब्ध हैं, तो मजबूरी में कई कसाइयों को अपने घरों में ही जानवरों को काटना पड़ रहा है।”
परभणी के एक अन्य व्यक्ति ने भी इसी मुद्दे को दोहराते हुए कहा कि कानूनी समस्याओं के साथ-साथ, रिहायशी इलाकों में जानवरों का वध करना खतरनाक स्वास्थ्य जोखिम भी पैदा करता है। उन्होंने कहा, “नगरपालिका अधिकारी इस स्थिति से वाकिफ हैं, लेकिन वे सफाई व्यवस्था में हमारी कोई मदद नहीं करते।” अपने घर में जानवरों का वध करना गैरकानूनी है और मराठवाड़ा क्षेत्र में कई कसाइयों पर सामूहिक रूप से एफआईआर दर्ज की गई हैं।
‘नजर बनाए रखना’
14 जुलाई को गृह राज्य मंत्री (ग्रामीण) पंकज भोयर ने विधान परिषद में घोषणा की कि राज्य सरकार गौमांस की तस्करी के खिलाफ एक नया कानून लाने जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार उन "गौरक्षकों" पर दर्ज मामलों को वापस लेगी, जिन्होंने बीफ परिवहन का "भंडाफोड़ करने में अग्रणी भूमिका निभाई है"। यह प्रस्तावित कानून राज्य में पहले से लागू गौवध प्रतिबंध कानून के अतिरिक्त होगा। सरकार इस पर भी विचार कर रही है कि बीफ तस्करी से जुड़े मामलों में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) जैसे कड़े कानून लागू किए जाएं।
इस नए कानून पर विचार-विमर्श की शुरुआत मार्च 2025 में लोनावला में दो कंटेनरों से 57,000 किलोग्राम मांस जब्त होने के बाद हुई। पुलिस ने दावा किया कि यह "बीफ" था जिसे निर्यात के लिए जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) ले जाया जा रहा था तभी इसे रास्ते में रोका गया। इस मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच टीम (SIT) का गठन किया गया है।
भाजपा नेतृत्व वाली सरकार की कथित बीफ जब्तियों पर प्रतिक्रिया, कुरैशी समुदाय को नियमित रूप से मिल रही धमकियों, वसूली और हिंसा की तुलना में असामान्य रूप से सख्त रही है। गौरक्षकों को "अवैध वध पर नजर रखने वाले" जरूरी निगरानी समूहों के रूप में महिमामंडित किया जाता है, जबकि कुरैशी समुदाय के खिलाफ होने वाली हिंसक घटनाओं पर तभी कार्रवाई होती है जब लोगों का दबाव पुलिस को मजबूर करता है।
मराठी मुसलमान के अनुसार, कुरैशी मुस्लिम पहचान को व्यवस्थित तरीके से अपराधी बनाया जा रहा है। राज्य में हुई हिंसक घटनाओं को करीब से ट्रैक करने के बाद, उन्होंने एक पैटर्न देखा है। अतार कहते है. “गौरक्षकों के समूह राज्यों में अच्छी तरह नेटवर्क बनाए हुए हैं। जैसे ही कोई ट्रांसपोर्टर एक इलाका छोड़ता है, विभिन्न नेटवर्क के जरिए गौरक्षकों को सूचना मिल जाती है। अक्सर वे पुलिस के साथ आते हैं।”
वह बताते हैं कि स्थानीय ट्रांसपोर्टर जो अक्सर सिर्फ ड्राइवर होते हैं और पशुपालक नहीं होते, उन पर भी हिंसक हमले होते हैं, जिन्हें हमेशा “गौरक्षा” के नाम पर सही ठहराया जाता है।
अतार बताते हैं कि हाल ही में लातूर में एक व्यक्ति को मवेशी ले जाते हुए पकड़ा गया। वे कहते हैं, “मवेशी वध के लिए नहीं ले जाए जा रहे थे बल्कि केवल स्थानांतरित किए जा रहे थे। लेकिन स्थानीय पुलिस ने ट्रांसपोर्ट रोक दिया और मवेशियों को स्थानीय गौरक्षा संगठन के हवाले कर दिया।” कुछ ही दिनों में, ये मवेशी बाजार में वध के लिए देखे गए। अतार कहते हैं, “स्थानीय कार्यकर्ताओं की मदद से उन्होंने पुलिस को मजबूर किया कि वे तथाकथित गौरक्षकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करें।” लेकिन ऐसे मामले बहुत कम और असामान्य हैं।
छत्रपति संभाजीनगर जिले के ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) पार्टी कार्यकर्ता और वकील कैजर पटेल कहते हैं कि इसका आर्थिक प्रभाव “राज्य की कल्पना से परे है।”
वे कहते हैं, “यह केवल कसाइयों का मामला नहीं है, पूरी अर्थव्यवस्था जो इस पर निर्भर है, प्रभावित होगी।” महाराष्ट्र भर के कुरैशी संगठनों से सलाह-मशविरा करने के बाद, उन्होंने अनुमान लगाया है कि प्रतिदिन लगभग 5,000 मवेशियों का वध होता है। वे कहते हैं, “अगर एक जानवर लगभग 20,000 रूपये में बेचा जाता है, तो मासिक बिक्री लगभग 300 करोड़ रूपये तक पहुंचती है।” पटेल ने बड़ी निजी कंपनियों का भी उल्लेख किया। वे बताते हैं, “सिर्फ छत्रपति संभाजीनगर में ही रोजाना 800 से ज्यादा भैंसें एक बड़ी निजी कंपनी को बेची जाती हैं, जहां प्रति भैंस 40,000 रूपये से ज्यादा की कीमत मिलती है। सिर्फ इस जिले का मासिक कारोबार 100 करोड़ रूपये तक का है।” पटेल के अनुसार, कुरैशी समुदाय और किसानों के अलावा, इस फैसले से परिवहन, कैटरिंग और होटल उद्योग से जुड़े लोग भी प्रभावित होंगे।
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