‘अर्बन नक्सल’ एक काल्पनिक शब्द :  बिना ठोस सबूत के राजनीतिक खेल का हिस्सा

Written by | Published on: July 21, 2025
कई बार नेताओं की बातों में "अर्बन नक्सल" शब्द सुनने को मिलता है, लेकिन संसद में मिले दो जवाबों से साफ हो गया है कि केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय न तो इस शब्द की कोई साफ परिभाषा देता है और न ही ऐसे लोगों का कोई रिकॉर्ड रखता है।



पिछले कुछ सालों में "अर्बन नक्सल" शब्द भारतीय राजनीति में खूब इस्तेमाल होने लगा है। नेता, टीवी एंकर और यहां तक कि कुछ लीगल नैरेटिव में भी इसका खुलेआम इस्तेमाल होता रहा है, खासकर शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं और विरोध जताने वालों को निशाना बनाने के लिए। लेकिन संसद में सामने आई चौंकाने वाली जानकारियों से पता चला है कि ये शब्द महज़ एक राजनीतिक जुमला है। इसकी न तो कोई आधिकारिक परिभाषा है और न ही इसके पीछे कोई ठोस सबूत।

11 मार्च 2020 को राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद शांता छेत्री के सवाल (अतारांकित प्रश्न संख्या 1978) का जवाब देते हुए गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने साफ-साफ कहा:

"‘अर्बन नक्सल’ शब्द का इस्तेमाल भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा नहीं किया जाता है।”

उन्होंने आगे यह भी स्पष्ट किया कि सरकार की राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना वामपंथी उग्रवाद (LWE) के सभी रूपों, जिनमें शहरी गतिविधियां भी शामिल हैं, से निपटने के लिए बनी है। लेकिन “अर्बन नक्सल” शब्द के लिए भारतीय कानून या किसी नीति के तहत कोई आधिकारिक परिभाषा या श्रेणी मौजूद नहीं है।

नीचे इसका जवाब देखा जा सकता है।



दो साल बाद भी यह स्थिति जस की तस बनी रही। 20 दिसंबर 2022 को लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद अधिकारी दीपक द्वारा पूछे गए अतारांकित प्रश्न संख्या 2121 के जवाब में सरकार ने फिर से स्पष्ट किया कि उसके पास "अर्बन नक्सल" के रूप में गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति का केंद्रीय स्तर पर कोई डेटा मौजूद नहीं है।

"अवैध गतिविधियों के लिए हिरासत में मौजूद ‘अर्बन नक्सल’ का विवरण देने को कहा गया,

तो गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जवाब दिया, ‘वामपंथी उग्रवाद (LWE) से जुड़े और शहरी इलाकों में सक्रिय आतंकवादियों की हिरासत का विवरण केंद्रीय स्तर पर नहीं है।’"

उन्होंने दोहराया कि "कानून और व्यवस्था" राज्य का विषय है, इसलिए ये मंत्रालय शहरी इलाकों से जुड़े वामपंथी उग्रवाद (LWE) में कथित रूप से शामिल व्यक्तियों का डेटा केंद्रीय स्तर पर ट्रैक नहीं करता।

इस जवाब को नीचे देखा जा सकता है।



एक ऐसा राजनीतिक हथियार जिसका कोई कानूनी आधार नहीं है।

ये आधिकारिक जवाब सार्वजनिक बयानबाजी और प्रशासनिक हकीकत के बीच एक बड़ी खाई को उजागर करते हैं। जहां एक्टिविस्ट और विद्वानों को ढीलेढाले तरीके से इस्तेमाल किए जाने वाले "अर्बन नक्सल" टैग के तहत गिरफ्तार और बदनाम किया गया, वहीं सरकार ने दो बार स्पष्ट किया है कि वह न तो इस शब्द का इस्तेमाल करती है और न ही इसकी कोई परिभाषा तय करती है।

कई लोगों का तर्क है कि इस अस्पष्टता की वजह से इस शब्द का बिना किसी जवाबदेही के हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया है, जिसमें अक्सर वैचारिक विरोध को विद्रोह से जोड़ दिया जाता है। विद्वानों और एक्टिविस्टों के रक्षक को एक गैर-मौजूद श्रेणी के तहत ब्रांड करना, कानूनी आधार या सबूत की जांच के बिना उन्हें सार्वजनिक रूप से बदनाम करने की अनुमति देता है।

साथ ही, मंत्रालय के 2022 के उसी जवाब के आंकड़े बताते हैं कि वामपंथी उग्रवाद (LWE) में लगातार गिरावट आई है। 2010 से 2021 के बीच हिंसक घटनाएं 77% तक कम हुई हैं और इससे होने वाली मौतों में भी 85% की जबरदस्त कमी आई है। यह तथ्य वामपंथी उग्रवाद की परिभाषा को ढीलेढ़ाले "शहरी" इलाकों तक बढ़ाने के राजनीतिक तर्क को और कमजोर करता है।

निष्कर्ष :

"अर्बन नक्सल" का मिथक संसद में पूरी तरह उजागर हो चुका है। न तो इसकी कोई कानूनी परिभाषा है, न इसका कोई केंद्रीयकृत डेटा मौजूद है और न ही गृह मंत्रालय ने इसे मान्यता दी है। अब साफ हो चुका है कि यह शब्द राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे की कोई श्रेणी नहीं, बल्कि राजनीतिक सहूलियत के लिए बनाया गया एक डरावना बहाना है।

एक लोकतंत्र में, जहां कानून का शासन सार्वजनिक बातचीत और सरकारी कार्यवाही का आधार होना चाहिए, ऐसे बिना आधार वाले टैग्स का लगातार इस्तेमाल नागरिक स्वतंत्रताओं और सरकारी शक्तियों के दुरुपयोग को लेकर गहरी चिंता पैदा करता है।

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