‘‘हम मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते लेकिन प्रतीकात्मक तौर पर इसके महत्व को कम करके नहीं देखा जा सकता। हम अपने प्यारे, हीरो या गुरु की फोटो या प्रतिमा को अपने घरों में सजाते हैं, ये तस्वीरें या मूर्तिया हमारे अंदर प्रेरणा और उत्साह पैदा करती हैं। अगर मूर्तियों की कोई महत्वता न होती तो रूस में समाजवाद चले जाने के बाद व पूंजीवादी व्यवस्था के कायम होने पर महान् समाजवादी नेता लेनिन के बुत न तोडे़ जाते। महान् हस्तियों से जुड़ी यादों, स्थानों या प्रतिमाओं का अहम स्थान होता है। आज जब फासीवादी ताकतें सरदार पटेल को हिन्दुत्व का चेहरा बनाकर उनकी विशाल प्रतिमा स्थापित करने की तैयारी में हैं तो इस समय मेहनतकश अवाम द्वारा लगाया गया भगतसिंह की यह प्रतिमा फासीवाद के उल्ट इंकलाब का प्रतीक है।’’
ये बोल थे ‘शहीद भगत सिंह दिशा ट्रस्ट’ के अध्यक्ष कॉमरेड श्याम सुदंर के, मौका था 28 सिंतबर 2015, कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से मात्र 100 मीटर की दूरी पर शहीद भगत सिंह की विशाल कांस्य प्रतिमा के अनावरण का। करीब डेढ़ वर्ष बाद ऊपरोक्त बोल सच होते प्रतीत हो रहे हैं | पचास फुट ऊंचाई वाली शहीद-ए-आज़म की प्रतिमा देखने वालों के दिलों में इन्कलाबी चेतना का संचार करती है। रेल यात्री जब इसकी ओर देखते हैं तो खुद-ब-खुद मुंह से ‘इंकलाब जि़दाबाद’ का नारा बुलंद होता है। नौजवान शहीद की प्रतिमा के साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं और संस्था से शहीद भगत सिंह के विचारों बारे जानकारी हासिल करते हैं। संघर्षशील मेहनतकश लोगों को यह प्रतिमा जन-संघर्षों को और तीखा करने की प्रेरणा देती है।
देश का सबसे ऊंचा बस्ट (सीने तक का बुत) व विश्व में भगत सिंह की सबसे ऊंची प्रतिमा 32 फुट ऊंची व 20 फुट चौड़ी आधारशिला पर सुशोभित है। प्रतिमा की अपनी ऊंचाई 18 फुट, चौड़ाई 14 फुट व मोटाई 8 फुट है। कास्य की इस प्रतिमा का कुल वज़न करीब ढ़ाई टन है। प्रतिमा तक पहुंचने के लिए 38 सीढि़या बनाई गई हैं। ट्रस्ट के वित्त सचिव श्री सुरेश कुमार के अनुसार, ‘‘प्रतिमा व आधारशिला पर करीब 40 लाख खर्च हुआ है। इसमें कोई सरकारी मदद नहीं ली गई, बल्कि मेहनतकश लागों के सहयोग से ही यह प्रतिमा बनी है।’’ प्रतिमा पर लगभग 22लाख 55हजार रूपये खर्च हुए है व 32 फुट ऊंची आधारशिला पर करीब 18 लाख रूपये। प्रतिमा का अनावरण मेहनतकश लोगों के संघर्षशील प्रतिनिधि श्री फूल सिंह (प्रधान जन संघर्ष मंच हरियाणा) द्वारा किया गया।
यह पूछने पर कि प्रतिमा लगाने का विचार कैसे बना? कॉ- श्याम सुंदर कहते है, ‘‘जब हमने भगत सिंह का गंभीरता से अध्ययन करना शुरु किया तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भगत सिंह ही सही अर्थों में भारत की धरती पर पहले मार्क्सवादी चिंतक हैं। देश में एक कम्युनिस्ट पार्टी होने के बावजूद भगत सिंह का चिंतन ही इंकलाब का प्रोग्राम पेश करता है व मेहनतकश लोगों की मुक्ति इसी राह पर चलकर हो सकती है। हमारे संगठन ने फैसला किया कि भगत सिंह के विचारों को फैलाने के लिए एक सेंटर बनाया जाए। आकर्षण व प्रेरणा के लिए शहीद की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की जाए जो पूरी दुनिया के लोगों को दिखे। इसी उद्देश्य से हमने मेहनतकश लोगों के सहयोग से रेलवे स्टेशन कुरुक्षेत्र के पास जगह खरीदी व प्रतिमा की स्थापना की गई। हाल ही में शहीद भगत सिंह दिशा संस्थान में एक लाइब्रेरी भी खोली गई है।’’
अंतर्राष्ट्रीय सोच वाले विचारक शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी याद किया जाता है। यह प्रतिमा दिल्ली-अमृतसर रेलवे लाईन के साथ ही स्थित है, जो सीधे लाहौर जाती है। आज जब अपने निजी स्वार्थों के चलते दोनों मुल्कों की सरकारें नप़फ़रत की राजनीति कर रही हैं वहीं यह प्रतिमा दोनों मुल्कों के मेहनतकशों को उनके सांझे हितों की याद दिलाते हुए ‘लाल सुबह’ की प्राप्ति के लिए संघर्ष का आह्वान कर रही है।