बनारस में भगत सिंह की 117वीं जयंती पर उठी लोकतंत्र की नई लहर, संघर्ष की गूंज

Written by विजय विनीत | Published on: September 30, 2024
लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा ने अपने विचार साझा करते हुए "बुल्डोजर राज" की चर्चा की। बीजेपी सरकार को समाज को बांटने वाली सरकार करार देते हुए कहा कि 90 प्रतिशत घर मुसलमानों के गिराए जा रहे हैं। यह मुस्लिम समुदाय के भीतर भी शिया और सुन्नी के बीच भेदभाव कर रही है, और ब्राह्मण और ठाकुरों को भी बांटने का काम कर रही है।



बनारस, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और उत्तर प्रदेश का सबसे चर्चित शहर। 29 सितंबर 2023 को "लोकतंत्र की चुनौतियां एवं नए भारत का निर्माण" सेमिनार का गवाह बना। इस कार्यक्रम ने नागरिक समाज के संगठनों के सहयोग से लोकतंत्र की गहराईयों में फैले संकटों पर चर्चा की। लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा और पीयूसीएल की उत्तर प्रदेश अध्यक्ष सीमा आज़ाद ने मौजूदा राजनीतिक परिवेश की कठोर वास्तविकताओं को उजागर किया, जिसमें बुल्डोजर नीति और फासीवाद ने नागरिक अधिकारों को सीमित किया है। जनगीतकार युद्धेश के जोशीले गानों ने माहौल में जोश भर दिया, जबकि मुहम्मद आरिफ ने सम्मेलन का समापन करते हुए कहा कि हमें एकजुट होकर लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष करना होगा।

बनारस के मैदागिन स्थित पराड़कर भवन में नागरिक समाज के तत्वावधान में भगत सिंह की 117वीं जयंती पर आयोजित सेमिनार ने न केवल चुनौतियों को पहचानने का अवसर दिया, बल्कि बनारस में एक नई दिशा और चेतना का संचार भी किया। लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा ने अपने विचार साझा करते हुए "बुल्डोजर राज" की चर्चा की। बीजेपी सरकार को समाज को बांटने वाली सरकार करार देते हुए कहा कि 90 प्रतिशत घर मुसलमानों के गिराए जा रहे हैं। यह मुस्लिम समुदाय के भीतर भी शिया और सुन्नी के बीच भेदभाव कर रही है, और ब्राह्मण और ठाकुरों को भी बांटने का काम कर रही है।

रूप रेखा वर्मा ने बीएचयू में हुए आईआईटी बीएचयू के रेप मामले का जिक्र किया, जिसमें धरना प्रदर्शन करना सराहनीय था, लेकिन उसके बाद आंदोलनकारियों पर केस दर्ज किया गया और आरोपियों को बेल मिल गई। उन्होंने लोकतंत्र की आत्मा को परिभाषित करते हुए कहा कि, "उसमें जनता का केंद्र में होना जरूरी है। जनता को अपनी बात कहने का हक है, अपनी असहमति जाहिर करने का अधिकार है, और जब लोकतांत्रिक तरीकों का हनन होता है, तो वह धरना-प्रदर्शन भी कर सकती है।"

सरकार से मांगा जाए जवाब

"जनता को अपने हक़ों के प्रति जागरूक होना होगा और सरकार से जवाब मांगने की हिम्मत करनी होगी। यदि ये तीन शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो लोकतंत्र कभी मजबूत नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि 2014 से पहले भी लोकतंत्र कमजोर था, लेकिन उस समय हम बिना खतरे के उनकी आलोचना कर सकते थे, जो अब संभव नहीं है। आज देशद्रोह का इल्ज़ाम लगाने की प्रवृत्ति बढ़ गई है।"

रूप रेखा वर्मा ने यह भी कहा कि, "वर्तमान में लोकतंत्र आईसीयू में है। लोकतंत्र के सभी संस्थाएं और समाज बीमार हैं। फुटपाथ पर रेप की घटनाएं होती हैं और लोग केवल वीडियो बनाते हैं, जबकि दिल्ली में एसिड विक्टिम मदद के लिए दरवाजे खटखटाती है, लेकिन कोई उनकी मदद नहीं करता।"

पूर्व कुलपति ने कहा कि, "आज डर का माहौल है, लेकिन हमें सोचना होगा कि हम अपने बच्चों के लिए कैसी दुनिया छोड़कर जा रहे हैं। यह लोकतंत्र की चुनौतियां हैं, और इसके लिए हमें यह देखना होगा कि हम कितना खड़े होने के लिए तैयार हैं। बोलने वाले और अधिकार मांगने वालों को न केवल जेल में डाला जा रहा है, बल्कि अब उन्हें देशद्रोह के जाल में भी फंसाया जा रहा है।"

रूपरेखा वर्मा ने नए धर्मांतरण कानून को भी खतरनाक बताया और शरजील इमाम और गुलफिशा जैसे लोगों के सालों से जेल में होने का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, "सरकार खुलेआम चोरों और बलात्कारियों का समर्थन कर रही है। उन्होंने गुजरात सरकार का उदाहरण दिया, जिसने हाल में सुप्रीम कोर्ट में बिल्किस बानो के बलात्कारियों की रिहाई के लिए अपील की है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या किसी देश की सरकार खुद बलात्कारियों की तरफ से अपील दायर करती है? "

चूर-चूर हो गया है लोकतंत्र

न्यायपालिका के संदर्भ में उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र न्यायपालिका ने कहा था कि महिलाओं को मनुस्मृति पढ़नी चाहिए। उत्तर प्रदेश के हाई कोर्ट द्वारा भोले बाबा को महान कहा गया, और यह सब इस वजह से हुआ कि न्यायपालिका में बैठे लोग डरे हुए हैं और आगे बढ़ने की लालसा रखते हैं। उन्होंने यह भी कहा, "लोकतंत्र चूर-चूर हो चुका है; हमें इसे केवल बचाना नहीं, बल्कि पुनर्स्थापित करना है। उन्होंने कहा कि सिर्फ सेमिनार करने से काम नहीं चलेगा। हमें लगातार वंचित वर्गों के बीच जाकर उनके जीवन की समस्याओं के बारे में बात करनी होगी और उन्हें जागरूक करना होगा। तभी हम नया भारत बना पाएंगे। आज़ाद और हिंसा मुक्त समाज बनाने के लिए काम करना होगा। जो गलत इतिहास और नफरत हमारे मन में भरी गई है, उसके लिए हमें साधारण भाषा में लिखना होगा और लोगों के बीच जाना होगा।"

सेमिनार में पीयूसीएल की उत्तर प्रदेश अध्यक्ष सीमा आज़ाद ने अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा, "आज लोकतंत्र के सभी स्तंभों को नकार दिया गया है। न्यायपालिका, जो अब तक एक मजबूत स्तंभ थी, उसे भी अब ताक पर रखा जा रहा है। उन्होंने लखनऊ एनआईए कोर्ट के आदेशों की चर्चा की और बताया कि इनमें स्पष्ट रूप से मुस्लिम-विरोधी और जनता-विरोधी चरित्र देखा जा सकता है।

सीमा आज़ाद ने प्रोफेसर जी एन साईबाबा के मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके मामले में यह लिखा गया है कि उनकी वजह से विदेशी निवेशक भारत में नहीं आ रहे हैं, इसलिए उन्हें मौत की सजा देनी चाहिए, लेकिन अंततः उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। यह भी बताया कि, "मारुति सुजुकी वर्कर्स के मामले में भी इसी तरह के ऑर्डर देखे जा सकते हैं। गुंडों की भाषा अब कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तक फैली हुई है। फासीवाद लोकतंत्र के भीतर ही छिपा हुआ है। उन्होंने कहा कि देश में रेप की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जिसमें पुलिस और सरकार का हमेशा बलात्कारियों के पक्ष में रहना देखा जाता है, जैसे कि हाथरस और गोहरी के मामलों में।"



जनता के अधिकार छीन रही सरकार

अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर सीमान बताया कि, "लिंचिंग की घटनाएं अब रोज़ की बात हो गई हैं। इन्हें डराने के लिए कई गैरकानूनी काम किए जा रहे हैं, जैसे बुलडोजर चलाना। फासीवाद केवल सत्ता का एक रूप नहीं है, बल्कि यह समाज के एक हिस्से को दूसरे हिस्से के खिलाफ खड़ा करने का काम करता है।" कानून व्यवस्था के संदर्भ में सीमा ने कहा कि, "हाल ही में बनाए गए तीन नए कानून पूरी तरह से लोकतंत्र विरोधी हैं। इनमें एफआईआर का मौलिक अधिकार छीन लिया गया है और लिंचिंग पर नए कानून में धर्म के आधार पर हत्या करने की बात नहीं की गई है। ये कानून फासीवाद के क्रूर चेहरे को सामने लाते हैं।" 

सीमा आज़ाद ने अंत में कहा कि महिलाओं, आदिवासियों और किसानों को आपस में एकजुट होने की जरूरत है। जब तक यह एकजुटता नहीं होती, तब तक हम लोकतंत्र को सही मायने में स्थापित नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा, "जाति और धर्म जैसे बंटवारे दिखावटी हैं; असली बंटवारा उन लोगों के बीच है जो लोकतंत्र छीनने का काम कर रहे हैं और जो उसे बचाने के लिए लड़ रहे हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि चाहे कितनी भी कठिनाइयां आएं, लड़ने वाले हमेशा आगे आते रहेंगे। समाज को आगे बढ़ाने वाली शक्तियां ही अंततः जीतती हैं, इसलिए हमारी जीत निश्चित है।"प्राकृतिक संपदाओं का लूटना और आदिवासियों को जबरन हटाना अब आम बात हो गई है। एनआईए द्वारा सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को ओवरग्राउंड वर्कर और स्लीपिंग सेल जैसे शब्द देकर जनता को भ्रमित किया जा रहा है।" 

कार्यक्रम का संचालन विनय ने किया। इस मौके पर ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट वी सिंह ने कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में घरेलू कामगार महिलाओं, बीएचयू के प्रोफेसरों, बुनकर समाज, किसान नेताओं और ट्रेड यूनियन नेताओं सहित कई लोग शामिल हुए, जो बनारस का प्रतिनिधित्व करते हैं। वीके सिंह ने स्पष्ट किया कि यह देश और समय फासीवादियों का नहीं है; यह उन मेहनतकश लोगों का है, जो अपनी आवाज उठाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उन्होंने कहा कि भले ही फासीवाद कितना भी बढ़ जाए, आशा की किरण हमेशा बनी रहेगी।

सेमिनार में विनय ने अंत में सरकार के विकास मॉडल पर चर्चा की, जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरह से बनारस में बस्तियों और गांवों को उजाड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह बुल्डोजर नीति भी इसी का हिस्सा है, जो दर्शाती है कि यह विकास केवल सरकार और पूंजीपतियों का है, जबकि जनता को इस विकास में कोई स्थान नहीं दिया जा रहा है।

इसके बाद, कार्यक्रम में सवाल-जवाब का सत्र चला, जिसमें उपस्थित लोगों ने दोनों वक्ताओं से अपने सवाल पूछे। वक्ताओं ने भी खुलकर जवाब दिए, जिससे चर्चा और भी जीवंत हो गई। आखिर में, मुहम्मद आरिफ ने अध्यक्षता करते हुए अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने स्पष्ट किया कि नया भारत भाजपा-आरएसएस सरकार किस तरह का बनाना चाहती है, और हम लोग किस प्रकार का भारत चाहते हैं, इस बीच का फर्क समझना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में लोक की भूमिका को खत्म करने की कोशिश की जा रही है, और वैज्ञानिक चेतना को समाप्त किया जा रहा है।

नई शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से भी इस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कानून केवल सत्ता पर कब्ज़ा करने वालों के लिए हैं और जनता को दबाने के लिए बनाए गए हैं। आरिफ ने कहा, "लोकतंत्र को बचाने के लिए हमें सड़कों पर उतरना होगा। यह लड़ाई अब सरकार और जनता के बीच की है, और इसको लेकर हमें अपनी स्थिति तय करनी होगी। उन्होंने सभी से अपील की कि एक कॉमन प्लेटफार्म पर आकर सबको एकजुट होना होगा। उनका संकल्प था कि हम मिलकर लड़ेंगे, जीतेंगे, और लोकतंत्र को बचाएंगे।"

सेमिनार का समापन एक सकारात्मक और संघर्षशील भावना के साथ हुआ। सेमिनार की शुरुआत जनगीतकार युद्धेश के जोशीले गानों से हुई। उन्होंने "मिल जुल गड़े चला नया हिंदुस्तान" और "ये ताना बाना बदलेगा" जैसे गानों से एक उत्साही माहौल बनाया। इसके बाद प्रज्ञा ने पितृसत्ता पर एक शानदार नाटक प्रस्तुत किया, जो सबका ध्यान खींचने में सफल रहा।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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