23 मार्च (शहीद दिवस) के मौके पर अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन ने नागरिक अधिकार मंच आदि जन-संगठनों के साथ मिलकर सहारनपुर, सोनभद्र और चित्रकूट में कार्यक्रम आयोजित कर, आजादी और शहादत का साझा जश्न मनाया। सहारनपुर में नागरिक अधिकार मंच के बैनर तले आयोजित गोष्ठी में शहीद भगत सिंह के विचारों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया तो सोनभद्र व चित्रकूट में आदिवासी और वनाश्रित समुदाय के लोगों ने जल, जंगल ज़मीन पर अधिकारों की बहाली के साथ शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जाति व वर्गविहीन शोषण-मुक्त समाज के निर्माण की हुंकार भरी। इस दौरान सोनभद्र व मानिकपुर के 21 गांवों के वनाश्रित समुदाय के लोगों ने वनाधिकार कानून-2006 के तहत वनभूमि पर अपने सामुदायिक दावे दाखिल किए।
खास है कि 91 साल पहले 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ने लाहौर सेंट्रल जेल में देश की आजादी के लिये संघर्ष करते हुए शहादत प्राप्त की थी। अमर शहीदों की इस कुर्बानी को शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं। कुर्बानी का यही जज्बा है जिसने देश के लाखों करोड़ों नौजवान, किसान, मजदूर एवं महिलाओं को राष्ट्रीय आजादी प्राप्त करने के साथ-साथ, एक शोषण मुक्त समाज की स्थापना हेतु संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
सहारनपुर रोटरी हॉल में "मौजूदा दौर में क्रांतिकारी (शहीदों की) विचारधारा की प्रासंगिकता" विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में वरिष्ठ कॉमरेड व ट्रेड यूनियन लीडर तिलकराज भाटिया ने कहा कि आज का दिन भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए खास महत्व रखता है। भगत सिंह ने फांसी पर झूलने से पहले जो कहा था आज 90 साल बाद वही सब सच हो रहा है। गोरे अंग्रेज चले गए और काले अंग्रेज उसी 'फूट डालो राज करो' की नीति पर शासन चला रहे हैं। यही कारण है कि जिस तरीके से देश, किसान, मजदूर और नौजवान को आगे बढ़ना चाहिए था वो नहीं बढ़ सके है और न ही बढ़ पा रहे हैं। भगत सिंह कैसा समाज बनाना चाहते हैं, आज हमें उस पर सोचना होगा। उनके आदर्शों पर चलना होगा। कॉमरेड रविंदर ने कहा कि आज भगत सिंह के विचारों को स्थापित करने की जरूरत हैं। कॉमरेड सुरेंद्र ने कहा कि भगत सिंह एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचारधारा का नाम है। भगत सिंह शोषण रहित व्यवस्था की बात करते थे उनके आदर्शों पर चलकर, असली वैज्ञानिक समाजवाद कायम करना होगा लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि आज का पूंजीवादी मीडिया शहीद-ए-आजम की विचारधारा को भी तोड़ मरोड़ कर पेश कर रही है। अरशद कुरैशी ने कहा कि शर्म की बात है कि आजादी के 75 साल बाद हम देश में एक लाभार्थी वर्ग तैयार करने को बतौर उपलब्धि गिनाते नहीं थक रहे हैं।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी ने कहा कि शहीद भगत सिंह अंग्रेजों के ही खिलाफ नहीं थे वो साम्राज्यवाद, सामंतवाद, शोषण और छुआछुत के भी खिलाफ थे। भगत सिंह के विचार ही उनकी ताकत है जो आज पूरी दुनिया उनके विचारों को मान रही है। दूसरा, भगत सिंह की छवि को किसी भूगोल के दायरे में नहीं बांधा जा सकता है और ना ही किसी जाति या समुदाय का घेरा उस पर डाला जा सकता है। यही कारण है कि सिर्फ़ भारत ही नहीं, सरहद पार के देशों में भी आज के दिन लोग, भगत सिंह को याद करते हैं। उन्हें याद करने के लिए वहां ख़ास कार्यक्रमों का आयोजन होता है जिसमें समाज के अलग अलग वर्गों के लोग शामिल होते हैं। भारत के साथ पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड सभी देशों में उनकी विचारधारा को लोग मानते है। चौधरी ने कहा कि आज के दौर में सांप्रदायिकता और घोर पूंजीवाद जैसे ताकतवर दुश्मन को ध्वस्त करने के लिए, भगत सिंह का बताया इंकलाब का रास्ता ही एकमात्र कारगर हथियार है जिसके लिए मेहनतकश आवाम को एकजुट होना होगा।
कहा भगत सिंह ने असेंबली बम कांड की सुनवाई के वक्त कोर्ट में कहा था कि बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है। उन्होंने कहा कि इंसान की मौत लाजिमी है लेकिन विचार हमेशा जिंदा रहते है। इसलिए भगत सिंह की शहादत, आज भी उनके विचारों के रूप में लोगों में ऊर्जा का संचार कर रही है। आईटीसी वर्कर यूनियन के शकील अहमद व कॉमरेड जनेश्वर प्रसाद ने नागरिक अधिकार मंच के गठन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। सीपीएम ज़िला सचिव कॉमरेड राव दाउद ने कहा कि शहीद भगत सिंह एक क्रांति का नाम है। देश को सही दिशा में ले जाने के लिए भगत सिंह को पढना और उनके आदर्शो को जीवन में अपनाना जरूरी है।
दूसरी ओर, शहादत दिवस पर अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के नेतृत्व में दुद्धी सोनभद्र व मानिकपुर चित्रकूट में आदिवासी और वनाश्रित समुदायों द्वारा वनाधिकार कानून, 2006 के तहत सामुदायिक दावें दाखिल किये गये। इस दौरान आदिवासी व वनाश्रित समुदाय के लोगों ने अमर शहीदों के बताए रास्ते पर चलते हुए अपने संवैधानिक अधिकारों की बहाली व एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए प्रतिबद्धता के साथ संघर्ष का आह्वान किया, जो तर्कशील, जातिविहीन, वर्गविहीन, शोषण-अन्याय मुक्त, साम्राज्यवाद व पूंजीवाद के साथ गुलाम मानसिकता से मुक्त हो। एक ऐसे ही राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना आजादी के दौरान तत्कालीन आजादी के नेताओं ने की थी।
शहीद दिवस पर अमर शहीदों को याद करते हुए वनाश्रित समुदाय के हजारों महिला-पुरुष अपने जल, जंगल, जमीन से जुड़े नारे जैसे 'जल, जंगल और जमीन हो जनता के अधीन", "जो जमीन सरकारी है वह जमीन हमारी है", "जंगल हमारा आपका नहीं किसी के बाप का", "वन विभाग मुक्त हो जंगल हमारा"आदि नारे लगाते हुए तहसील प्रांगण में जमा हुए। समुदाय के लोगों ने वन संसाधनों (जल, जंगल और जमीन) पर अपने परंपरागत प्रकृत्ति प्रदत्त अधिकारों की संवैधानिक बहाली हेतु वनाधिकार कानून 2006 के तहत दावे दाखिल किए। सोनभद्र के दुद्धी तहसील से 9 गांव बिरसा नगर, मझौली, देवनगर, कादल, भारती नगर, सरडीहा, धुमा, मोहड़ा, सपहवा, करचा मधुवन, शिवपुर, मुरता, लिलासी, घाटपिंडारी दुम्हान शामिल हैं जबकि चित्रकूट जिले के मानिकपुर तहसील के 12 गाँवों से जारौमाफी, नागर, बंधाभीतर, महुलिहा, कोलकालोनी, भौरी, कैलहा, औदर, निही, नयाखेर, सेहकट, करौहा गांव के लोगों ने सामुदायिक अधिकार को दावे दाखिल किए।
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के उपाध्यक्ष मातादयाल बताते हैं कि ये सभी वनाश्रित समुदाय के लोग वनाधिकार कानून 2006 के तहत वनभूमि और वन संसाधनों पर कानून द्वारा प्रदत्त अधिकारों की प्राप्ति से वंचित है। वनाधिकार कानून 2006 व इसकी नियमावली के तहत पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए उपरोक्त सभी गांवों से वन भूमि और वन संसाधनों पर अपने परंपरागत अधिकारों की मान्यता के लिए ग्राम वनाधिकार समिति में सामुदायिक दावे किए थे, जिसे ग्राम वनाधिकार समिति द्वारा पारित किया जा चुका है। अतः गांवों की वनाधिकार समितियों द्वारा पारित सभी दावों को वनाधिकार कानून 2006 की नियमावली के तहत अग्रिम कार्यवाही के लिए आज शहीद दिवस के दिन 23 मार्च 2022 को सोनभद्र के दुद्धी तहसील व चित्रकूट जिले के मानिकपुर तहसील में उपजिलाधिकारी कार्यालय में जमा किया गया। 8 गांव के दावे 2021 में इसी दिन (शहीद दिवस पर) दाखिल किए गए थे।
सामुदायिक अधिकार के दावों को जमा करते हुए अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुकालो गोंड ने हजारों की संख्या में वनाश्रित समुदाय की महिलाओं के साथ भागीदारी की। सुकालो गोंड ने कहा कि वनाधिकार कानून को लागू हुए 16 वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकार और प्रशासन इस कानून के प्रति पूरी तरह से उदासीन बना है। सरकार कानून/नियमावली के तहत कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रही है, जिसके कारण देश में आज भी करोड़ों आदिवासी और वनाश्रित समुदाय अपने परंपरागत अधिकारो से वंचित है और वनविभाग प्रशासन द्वारा उत्पीड़न का शिकार हो रहे है। अतः जल, जंगल, जमीन पर अपने परंपरागत अधिकारों की पुनः बहाली की जिम्मेदारी वनाश्रित समुदाय खुद लेगा।
राष्ट्रीय महासचिव रोमा ने बताया कि वनाश्रित समुदाय के लोग संवैधानिक और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जंगल पर अपने अधिकारों की बहाली तक संघर्ष करेंगे, जिसका नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर पर अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन कर रहा है। कहा अधिकारों से वंचित समुदायों के हकों की लड़ाई को जारी रखना ही सही अर्थों में, शहीदों को भी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। यही कारण है कि आदिवासी और वनाश्रित समुदाय के लोगों ने शहीद दिवस पर आजादी और शहादत का जश्न मनाते हुए, दावे दाखिल किए। कार्यक्रम का नेतृत्व सोनभद्र जिले से मुन्नर, राजकुमारी, दौलत व चित्रकूट में रानी आदि के द्वारा किया गया।
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खास है कि 91 साल पहले 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव ने लाहौर सेंट्रल जेल में देश की आजादी के लिये संघर्ष करते हुए शहादत प्राप्त की थी। अमर शहीदों की इस कुर्बानी को शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं। कुर्बानी का यही जज्बा है जिसने देश के लाखों करोड़ों नौजवान, किसान, मजदूर एवं महिलाओं को राष्ट्रीय आजादी प्राप्त करने के साथ-साथ, एक शोषण मुक्त समाज की स्थापना हेतु संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
सहारनपुर रोटरी हॉल में "मौजूदा दौर में क्रांतिकारी (शहीदों की) विचारधारा की प्रासंगिकता" विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में वरिष्ठ कॉमरेड व ट्रेड यूनियन लीडर तिलकराज भाटिया ने कहा कि आज का दिन भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए खास महत्व रखता है। भगत सिंह ने फांसी पर झूलने से पहले जो कहा था आज 90 साल बाद वही सब सच हो रहा है। गोरे अंग्रेज चले गए और काले अंग्रेज उसी 'फूट डालो राज करो' की नीति पर शासन चला रहे हैं। यही कारण है कि जिस तरीके से देश, किसान, मजदूर और नौजवान को आगे बढ़ना चाहिए था वो नहीं बढ़ सके है और न ही बढ़ पा रहे हैं। भगत सिंह कैसा समाज बनाना चाहते हैं, आज हमें उस पर सोचना होगा। उनके आदर्शों पर चलना होगा। कॉमरेड रविंदर ने कहा कि आज भगत सिंह के विचारों को स्थापित करने की जरूरत हैं। कॉमरेड सुरेंद्र ने कहा कि भगत सिंह एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचारधारा का नाम है। भगत सिंह शोषण रहित व्यवस्था की बात करते थे उनके आदर्शों पर चलकर, असली वैज्ञानिक समाजवाद कायम करना होगा लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि आज का पूंजीवादी मीडिया शहीद-ए-आजम की विचारधारा को भी तोड़ मरोड़ कर पेश कर रही है। अरशद कुरैशी ने कहा कि शर्म की बात है कि आजादी के 75 साल बाद हम देश में एक लाभार्थी वर्ग तैयार करने को बतौर उपलब्धि गिनाते नहीं थक रहे हैं।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी ने कहा कि शहीद भगत सिंह अंग्रेजों के ही खिलाफ नहीं थे वो साम्राज्यवाद, सामंतवाद, शोषण और छुआछुत के भी खिलाफ थे। भगत सिंह के विचार ही उनकी ताकत है जो आज पूरी दुनिया उनके विचारों को मान रही है। दूसरा, भगत सिंह की छवि को किसी भूगोल के दायरे में नहीं बांधा जा सकता है और ना ही किसी जाति या समुदाय का घेरा उस पर डाला जा सकता है। यही कारण है कि सिर्फ़ भारत ही नहीं, सरहद पार के देशों में भी आज के दिन लोग, भगत सिंह को याद करते हैं। उन्हें याद करने के लिए वहां ख़ास कार्यक्रमों का आयोजन होता है जिसमें समाज के अलग अलग वर्गों के लोग शामिल होते हैं। भारत के साथ पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड सभी देशों में उनकी विचारधारा को लोग मानते है। चौधरी ने कहा कि आज के दौर में सांप्रदायिकता और घोर पूंजीवाद जैसे ताकतवर दुश्मन को ध्वस्त करने के लिए, भगत सिंह का बताया इंकलाब का रास्ता ही एकमात्र कारगर हथियार है जिसके लिए मेहनतकश आवाम को एकजुट होना होगा।
कहा भगत सिंह ने असेंबली बम कांड की सुनवाई के वक्त कोर्ट में कहा था कि बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है। उन्होंने कहा कि इंसान की मौत लाजिमी है लेकिन विचार हमेशा जिंदा रहते है। इसलिए भगत सिंह की शहादत, आज भी उनके विचारों के रूप में लोगों में ऊर्जा का संचार कर रही है। आईटीसी वर्कर यूनियन के शकील अहमद व कॉमरेड जनेश्वर प्रसाद ने नागरिक अधिकार मंच के गठन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। सीपीएम ज़िला सचिव कॉमरेड राव दाउद ने कहा कि शहीद भगत सिंह एक क्रांति का नाम है। देश को सही दिशा में ले जाने के लिए भगत सिंह को पढना और उनके आदर्शो को जीवन में अपनाना जरूरी है।
दूसरी ओर, शहादत दिवस पर अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के नेतृत्व में दुद्धी सोनभद्र व मानिकपुर चित्रकूट में आदिवासी और वनाश्रित समुदायों द्वारा वनाधिकार कानून, 2006 के तहत सामुदायिक दावें दाखिल किये गये। इस दौरान आदिवासी व वनाश्रित समुदाय के लोगों ने अमर शहीदों के बताए रास्ते पर चलते हुए अपने संवैधानिक अधिकारों की बहाली व एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए प्रतिबद्धता के साथ संघर्ष का आह्वान किया, जो तर्कशील, जातिविहीन, वर्गविहीन, शोषण-अन्याय मुक्त, साम्राज्यवाद व पूंजीवाद के साथ गुलाम मानसिकता से मुक्त हो। एक ऐसे ही राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना आजादी के दौरान तत्कालीन आजादी के नेताओं ने की थी।
शहीद दिवस पर अमर शहीदों को याद करते हुए वनाश्रित समुदाय के हजारों महिला-पुरुष अपने जल, जंगल, जमीन से जुड़े नारे जैसे 'जल, जंगल और जमीन हो जनता के अधीन", "जो जमीन सरकारी है वह जमीन हमारी है", "जंगल हमारा आपका नहीं किसी के बाप का", "वन विभाग मुक्त हो जंगल हमारा"आदि नारे लगाते हुए तहसील प्रांगण में जमा हुए। समुदाय के लोगों ने वन संसाधनों (जल, जंगल और जमीन) पर अपने परंपरागत प्रकृत्ति प्रदत्त अधिकारों की संवैधानिक बहाली हेतु वनाधिकार कानून 2006 के तहत दावे दाखिल किए। सोनभद्र के दुद्धी तहसील से 9 गांव बिरसा नगर, मझौली, देवनगर, कादल, भारती नगर, सरडीहा, धुमा, मोहड़ा, सपहवा, करचा मधुवन, शिवपुर, मुरता, लिलासी, घाटपिंडारी दुम्हान शामिल हैं जबकि चित्रकूट जिले के मानिकपुर तहसील के 12 गाँवों से जारौमाफी, नागर, बंधाभीतर, महुलिहा, कोलकालोनी, भौरी, कैलहा, औदर, निही, नयाखेर, सेहकट, करौहा गांव के लोगों ने सामुदायिक अधिकार को दावे दाखिल किए।
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के उपाध्यक्ष मातादयाल बताते हैं कि ये सभी वनाश्रित समुदाय के लोग वनाधिकार कानून 2006 के तहत वनभूमि और वन संसाधनों पर कानून द्वारा प्रदत्त अधिकारों की प्राप्ति से वंचित है। वनाधिकार कानून 2006 व इसकी नियमावली के तहत पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए उपरोक्त सभी गांवों से वन भूमि और वन संसाधनों पर अपने परंपरागत अधिकारों की मान्यता के लिए ग्राम वनाधिकार समिति में सामुदायिक दावे किए थे, जिसे ग्राम वनाधिकार समिति द्वारा पारित किया जा चुका है। अतः गांवों की वनाधिकार समितियों द्वारा पारित सभी दावों को वनाधिकार कानून 2006 की नियमावली के तहत अग्रिम कार्यवाही के लिए आज शहीद दिवस के दिन 23 मार्च 2022 को सोनभद्र के दुद्धी तहसील व चित्रकूट जिले के मानिकपुर तहसील में उपजिलाधिकारी कार्यालय में जमा किया गया। 8 गांव के दावे 2021 में इसी दिन (शहीद दिवस पर) दाखिल किए गए थे।
सामुदायिक अधिकार के दावों को जमा करते हुए अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुकालो गोंड ने हजारों की संख्या में वनाश्रित समुदाय की महिलाओं के साथ भागीदारी की। सुकालो गोंड ने कहा कि वनाधिकार कानून को लागू हुए 16 वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकार और प्रशासन इस कानून के प्रति पूरी तरह से उदासीन बना है। सरकार कानून/नियमावली के तहत कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रही है, जिसके कारण देश में आज भी करोड़ों आदिवासी और वनाश्रित समुदाय अपने परंपरागत अधिकारो से वंचित है और वनविभाग प्रशासन द्वारा उत्पीड़न का शिकार हो रहे है। अतः जल, जंगल, जमीन पर अपने परंपरागत अधिकारों की पुनः बहाली की जिम्मेदारी वनाश्रित समुदाय खुद लेगा।
राष्ट्रीय महासचिव रोमा ने बताया कि वनाश्रित समुदाय के लोग संवैधानिक और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जंगल पर अपने अधिकारों की बहाली तक संघर्ष करेंगे, जिसका नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर पर अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन कर रहा है। कहा अधिकारों से वंचित समुदायों के हकों की लड़ाई को जारी रखना ही सही अर्थों में, शहीदों को भी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। यही कारण है कि आदिवासी और वनाश्रित समुदाय के लोगों ने शहीद दिवस पर आजादी और शहादत का जश्न मनाते हुए, दावे दाखिल किए। कार्यक्रम का नेतृत्व सोनभद्र जिले से मुन्नर, राजकुमारी, दौलत व चित्रकूट में रानी आदि के द्वारा किया गया।
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