भारत चीन सीमा के अंतिम गांव के 'विकास' से निकला कीचड़ तुरंत हटवाए उत्तराखंड सरकार

Written by विद्या भूषण रावत | Published on: December 3, 2021
उत्तराखंड के रहने वाले लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता व स्वतंत्र पत्रकार विद्या भूषण रावत ने अपने एक साथी अतुल सती के साथ गमशाला से नीति घाटी की तरफ यात्रा की। इस दौरान उन्होंने विकास के नाम पर किए जा रहे अंधाधुंध विनाश को देखा। इस विनाशगाथा का उन्होंने शब्दों के जरिए बयान किया है, पढ़ें...



उत्तराखंड सरकार को चमोली जिले के जोशीमठ कस्बे से करीब 90 किलोमीटर दूर ग्राम नीति से करीब दो किलोमीटर आगे और गमसाली गांव से करीब एक किलोमीटर दूर धौली गंगा नदी का रास्ता साफ करने के लिए तेजी से कार्य करना चाहिए. कीचड़ और कचरा फेंकने से कृत्रिम झील का निर्माण एक भयावह स्थिति पैदा कर सकता है जैसे कि 7 फरवरी, 2021 को हुआ था। ये गांव भारत चीन सीमा पर स्थित अंतिम गांव है जो सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण गांव दूसरे स्थानों के लिए पलायन कर जाते है।

कल नीति घाटी की बेहद कठिन यात्रा की और धौली गंगा की खूबसूरत घाटी में पहाड़ों पे बेतरतीब खुदाई ओर बड़े बड़े यांत्रिक वाहनों, ड्रिलिंग मशीनों के काम देखे और नदी में गिरा मलवा भी देखा। सब विकास चाहते हैं लेकिन हमारी संस्कृति की वाहक इन पवित्र प्रेरणा दायी नदियों की कीमत पर कतई नहीं। आखिर हमारे इस अनियंत्रित और ऊपर से लादे गए विकास के बोझ तले हमारी संस्कृति क्यों रौंदी जा रही है? 



कल जब मैं औऱ हमारे मित्र श्री अतुल सती जी गमशाली से आगे नीति की और जा रहे थे तो डेढ किलोमीटर आगे पारे और बर्फ़ के चलते हमें रुकना पड़ा क्योंकि बहुत खतरनाक स्थिति थी। ऊपर से पत्थर या समूचे पहाड़ के गिरने का ख़तरा और नीचे तेज बहाव वाली धौली गंगा। हमने देखा नदी में भी बर्फ जम रही थी। कुछ समय बाद हम वापस आ रहे थे कि दो लोग जो शायद बीआरओ से थे, ने हमें कहा कि हम खूबसूरत झील को देखें। एक क्षण लगा कि देख लिया जाए औऱ मैं सती जी के साथ दोबारा उस खतरनाक रास्ते पर पैदल चल पड़ा। जब वहां पहंचे तो झील देखकर अप्रतिम ख़ुशी मिली क्योंकि इतना नीला पानी मैंने कभी नहीं देखा था। मैं दंग रह गया औऱ मुझे थ्री ईडियट की वो झील याद आयी जहां आमिर खान गए। खैर, थोड़ी देर में ये समझ आया कि यह तो अप्राकृतिक झील है जो मलवे, कचरे के गिरने से बनी है। हालाँकि इसने धौली गंगा का पानी पूरी तरह से नहीं रोका लेकिन बर्फ जमने या पत्थर गिरने अथवा भूस्खलन होने से ऐसी स्थिति आ सकती है जो फरवरी की ऋषी गंगा वाली आपदा से ज्यादा भयावह हो सकती है।

तपोवन और रैनी गाँव में ऋषिगंगा धौली गंगा त्रासदी जिसमें 200 से अधिक लोगों की जान चली गई

आज भी मैं रैणी गांव गया औऱ लोगों से मुलाकात की। मैंने रैनी में ग्रामीणों की पीड़ा देखी, जहां गौरा देवी ने लकड़ी माफिया के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी और चिपको आंदोलन को जन्म दिया और उत्तराखंड और उसके सामाजिक आंदोलनों को सम्मान दिया। आज रैनी के ग्रामीण अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं और उत्तराखंड की पहचान बने गांव को बचाने और पुनर्स्थापित करने के लिए सरकार को कोई मतलब नहीं है। रैनी का संकट वास्तव में उन लोगों द्वारा अपनाए जा रहे विकास मॉडल द्वारा लाया गया है जो सोचते हैं कि पहाड़ी अपनी जरूरतों के बारे में बहुत कम जानते हैं। यह उत्तराखंड के लोगों और पर्यावरण की सांस्कृतिक संवेदनशीलता के प्रति पूर्णतया उदासीन औऱ तथाकथित विशेषज्ञों द्वारा ऊपर से  थोपा गया मॉडल है।

इन खूबसूरत नदियों में लगातार मलबा, बड़े-बड़े पत्थर, कंक्रीट आदि फेंकना न केवल उनके लिए खतरा है, बल्कि यह इस क्षेत्र में इस साल फरवरी की शुरुआत में हुई बड़ी आपदा भी ला सकता है।

सरकार को आपदाओं के होने का इंतजार नहीं करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बड़ी कॉर्पोरेट लॉबी जो अपने वाणिज्यिक लाभ के लिए उत्तराखंड के विशाल संसाधनों का दोहन करके निजी लाभ हासिल करना चाहती है, उसे सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए और उत्तराखंड के सुंदर भौगोलिक सांस्कृतिक वातावरण का सम्मान करना चाहिए। पहाड़ औऱ नदिया उत्तराखंड की पहचान औऱ संस्कृति है जिनके बिना एक भी दिन जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

भागीरथी घाटी और अब अलकनंदा घाटी और धौली गंगा घाटी दोनों की यात्रा के दौरान मैंने जो देखा वह उत्तराखंड में पर्यावरण और यहां की सांस्कृतिक अस्मिता की चिंता करने वाले किसी भी व्यक्ति को पीड़ा देगी। नदियों और पहाड़ों के बिना उत्तराखंड नहीं हो सकता। यदि राज्य सरकार या केंद्र सरकार वास्तविक अर्थों में इसकी देखभाल करता है तो उसे इन विकासात्मक परियोजनाओं की उचित निगरानी करने की आवश्यकता है। पर्यावरण मानदंडों और दिशानिर्देशों के उल्लंघन के लिए यहाँ काम कर रही कंपनियों को दंडित करें। जिस तरह से हमारे खूबसूरत क्षेत्र साथ दुर्व्यवहार किया गया है, वह बस विनाशकारी है। चारधाम राष्ट्रीय राजमार्ग अभी अधूरा है और कई जगह सड़कें बिल्कुल खतरनाक हैं। सरकार को इन सड़कों की स्थिति के बारे में अपडेट करना चाहिए ताकि लोगों को पहले से पता चल सके और उचित निर्णय लिया जा सके। बिना तैयारी के चारधाम यात्रा को शुरू करना बेहद खतरनाक है और ये लोगों के जीवन के साथ खेलना है। जरूरत इस बात की है कि केंद्र और राज्य के मंत्रीगण इन क्षेत्रों में यदि कार से दौरा करें तो उन्हें सड़कों की स्थिति का सही पता चलेगा और तभी वे जान सकेंगे कि कार्य से निकला मलवा कहां जा रहा है और तथाकथित डम्पिंग जोन्स की क्या स्थिति है। यात्रा से पहले यात्रियों की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है इसलिये कोई भी निर्णय पूरी जाँच पड़ताल के बाद लिये जायें तो बेहतर होगा।

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