उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कानून व्यवस्था बनाए रखने में विफलता के लिए पुलिस और प्राधिकरण की आलोचना की

Written by sabrang india | Published on: May 5, 2025
"आपकी अक्षमता इन सभी समस्याओं का कारण बन रही है।" उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बलात्कार की घटना के बाद कानून व्यवस्था बनाए रखने में विफलता के लिए पुलिस की आलोचना की। न्यायालय ने आरोपी के घर को अवैध रूप से ध्वस्त करने का प्रयास करने के लिए नगर निगम को फटकार लगाते हुए कहा, "आप सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकते। यह आदेश बहुत पहले पारित नहीं हुआ था..." अवमानना कार्यवाही के मद्देनज़र, प्राधिकरण ने ध्वस्तीकरण नोटिस वापस ले लिया और बिना शर्त माफ़ी मांगी।



उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 2 मई को एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी मुस्लिम व्यक्ति मुहम्मद उस्मान की गिरफ्तारी के बाद नैनीताल में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के मद्देनज़र राज्य पुलिस और स्थानीय नगर निगम की तीखी आलोचना की। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी की पीठ ने भीड़ द्वारा हिंसा और अल्पसंख्यक समुदाय के स्वामित्व वाली दुकानों की तोड़फोड़ को रोकने में कानून प्रवर्तन की विफलता के साथ-साथ आरोपी के परिवार को जारी नगर निगम के तीन दिनों की ध्वस्तीकरण नोटिस की वैधता पर गंभीर चिंता जताई।

ध्वस्तीकरण नोटिस के खिलाफ आरोपी की पत्नी द्वारा दायर याचिका

अदालत, आरोपी की पत्नी हुसन बेगम द्वारा दायर 'हुसन बेगम बनाम उत्तराखंड राज्य' [WPCRL/419/2025] नामक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उन्होंने स्थानीय नगर निगम द्वारा उनके पारिवारिक घर के लिए जारी तीन दिनों की ध्वस्तीकरण नोटिस को चुनौती दी, जिसमें उन्होंने कहा कि वे 20 वर्षों से अधिक समय से वहां रह रही हैं और इससे पहले उन्हें कभी भी अतिक्रमण का कोई नोटिस नहीं मिला है।

उनकी याचिका में चल रही सांप्रदायिक हिंसा और उनके परिवार को मिल रही धमकियों पर भी चिंता जताई गई, जिसमें अस्थिर माहौल में पुलिस सुरक्षा की तत्काल आवश्यकता का हवाला दिया गया। उन्होंने कहा कि नोटिस की कम अवधि के कारण जवाब देना असंभव था, खासकर तब जब घर से संबंधित सभी दस्तावेज़ उनके पति के पास थे। पति फिलहाल हिरासत में हैं।

हाईकोर्ट ने ध्वस्तीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के उल्लंघन की ओर इशारा किया

हाईकोर्ट ने ध्वस्तीकरण नोटिस जारी करने पर गंभीर चिंता व्यक्त की। इसे आरोपी व्यक्तियों से संबंधित संपत्तियों के अवैध तोड़फोड़ को रोकने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का सीधा उल्लंघन माना। नवंबर 2024 के एक ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि कारण बताओ नोटिस पहले जारी किए बिना कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए। ये नोटिस स्थानीय कानूनों के अनुसार या 15 दिनों के भीतर होना चाहिए। इनमें से जो भी बाद में हो, उसे लागू किया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट ने सख्त चेतावनी देते हुए कहा, "हम अवमानना जारी कर रहे हैं और हम इसे गंभीरता से ले रहे हैं। आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकते। यह बहुत पहले पारित नहीं हुआ था... सुप्रीम कोर्ट बहुत स्पष्ट रहा है: यदि आप किसी घर को ध्वस्त करना चाहते हैं, तो प्रक्रिया क्या है..." बार एंड बेंच ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।

कानून-व्यवस्था बनाए रखने में प्रशासनिक विफलता और पुलिस की अक्षमता

बेंच ने उस्मान के कार्यालय वाले बाजार क्षेत्र में भीड़ के हमलों और तोड़फोड़ को रोकने में विफल रहने के लिए जिला प्रशासन और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) पीएस मीना की आलोचना की। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायाधीशों ने संपत्ति के नुकसान पर चिंता जाहिर की। बिमला देवी नामक महिला की संपत्ति भी शामिल थी, जिनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। कोर्ट ने स्थिति को नियंत्रित करने में पुलिस की स्पष्ट अक्षमता पर सवाल उठाया।

“आपकी अक्षमता इन सभी समस्याओं का कारण बन रही है और आप इसे छिपाना चाहते हैं। बिमला देवी सहित अन्य लोगों की दुकानों में तोड़फोड़ क्यों की गई?” न्यायालय ने कानून प्रवर्तन तंत्र की प्रणालीगत विफलता पर जोर देते हुए स्पष्ट रूप से पूछा।

भीड़ की हिंसा के बीच तोड़फोड़: कानूनी और नैतिक उल्लंघन

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, “परेशान करने वाली” इन घटनाओं का संज्ञान लेते हुए पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करने के लिए नगर परिषद की आलोचना की। न्यायालय ने टिप्पणी की, “हमें बताएं कि हमें आपके खिलाफ स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना क्यों शुरू नहीं करनी चाहिए?… सर्वोच्च न्यायालय ने इन सभी प्रकार के मुद्दों पर विचार किया है, विशेष रूप से इस पृष्ठभूमि में, और आप सभी इस तरह से उत्पात मचाते हैं, यह क्या है?… हम अवमानना को गंभीरता से लेंगे।”

नगर निकाय के वकील ने बिना शर्त माफ़ी मांगते हुए जवाब दिया और न्यायालय को आश्वासन दिया कि ध्वस्तीकरण नोटिस वापस ले लिया जाएगा। वकील ने कहा, "तुरंत, सभी नोटिस वापस ले लिए जाएंगे। हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार ही आगे बढ़ सकते हैं।"

76 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोप के बाद सांप्रदायिक हिंसा

सबरंग इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 1 मई को सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। एक दिन पहले पुलिस ने मुहम्मद उस्मान द्वारा 12 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की थी। दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारियों ने त्वरित कार्रवाई की मांग करते हुए सड़कों पर प्रदर्शन किए, जो जल्द ही लक्षित हमलों और नैनीताल में संपत्ति के नुकसान में बदल गए। इसके बाद आरोपी की पत्नी ने न केवल विध्वंस नोटिस को चुनौती देने के लिए बल्कि अपने परिवार को धमकियों के बीच पुलिस सुरक्षा की मांग करने के लिए भी अदालत का दरवाजा खटखटाया।

कोर्ट को यह भी बताया गया कि जब आरोपी को ट्रायल कोर्ट में पेश किया गया, तो उस दौरान वहां कहासुनी हो गई, जिसमें उसके वकील को दखलअंदाज़ी का सामना करना पड़ा। न्यायाधीशों ने इस घटना की निंदा की। “वकील किसी को किसी का प्रतिनिधित्व करने से कैसे रोक सकते हैं…” उन्होंने कहा कि अगर पुलिस ने सतर्कता बरती होती, तो पूरी स्थिति टाली जा सकती थी और पूछा, “आपने आगजनी करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की है?”

प्रशासन से भावनाओं में आए बिना, कानून के दायरे में कार्रवाई करने की अपील

पीठ ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद की स्थिति का परोक्ष रूप से ज़िक्र किया, खासतौर पर शहीद नौसेना लेफ्टिनेंट विनय नारवाल की पत्नी हिमांशी नारवाल द्वारा दिखाए गए संयम और गरिमा की सराहना की। उन्होंने मुसलमानों और कश्मीरियों के खिलाफ नफरत को सार्वजनिक रूप से खारिज कर दिया था और सिर्फ शांति की अपील की थी।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, उनका हवाला देते हुए न्यायालय ने टिप्पणी की, “क्या कोई टाइम्स ऑफ इंडिया देख सकता है… मारे गए नौसेना अधिकारी की पत्नी, कृपया उनका बयान पढ़ें… कृपया उस बयान को पढ़ें… नौसेना अधिकारी, जो मारे गए… देखिए जनता भावुक हो सकती है, क्या प्रशासन भावुक हो सकता है?”

न्यायालय ने सरकारी वकील को सलाह दी कि वे भावनाओं में बहकर कार्य न करें, बल्कि कानून के अनुसार ही कार्य करें। जन आक्रोश के दबाव में कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता।

याचिकाकर्ता हुसन बेगम की ओर से अधिवक्ता डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता पेश हुए। मामले की अगली सुनवाई 6 मई को होनी है। न्यायालय ने दोहराया कि अधिकारियों की कार्रवाइयों की जांच जारी रहेगी, विशेषकर सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों और भावनात्मक रूप से प्रेरित प्रशासनिक निर्णयों से कानून के शासन को होने वाले खतरे के मद्देनज़र।

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