UP चुनाव: सीएम योगी पर अब कोई केस नहीं लेकिन भाजपा के आधे से ज्यादा उम्मीदवार दागी: एडीआर

Written by Navnish Kumar | Published on: February 4, 2022
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर अब कोई आपराधिक केस नहीं है। शुक्रवार को गोरखपुर शहर सीट से उन्होंने अपना नामांकन दाखिल किया जिसमें दिए हलफनामे के अनुसार, सीएम योगी आदित्यनाथ पर अब कोई केस नहीं है। हालांकि एडीआर रिपोर्ट की मानें तो भाजपा में आधे से ज्यादा उम्मीदवार अभी भी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले ही हैं। इससे भी खास यह है कि सीएम योगी करोड़पति हैं और उनके शपथ पत्र के मुताबिक, बीते 5 सालों में उनकी संपत्ति में 60 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है। एमएलसी चुने जाने के समय सीएम योगी आदित्यनाथ की कुल संपत्ति 95.98 लाख रुपये थी जो अब बढ़कर 1 करोड़ 54 लाख, 94 हजार 54 रुपए हो गई है। इस प्रकार योगी की संपत्ति में 5 सालों में करीब 60 लाख रुपये का इजाफा हुआ है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सीएम बनने के बाद योगी 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़े थे। हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ की संपत्ति 72 लाख 17 हजार रुपए ही थी। 



यूपी चुनाव में हिन्दू मुस्लिम कार्ड के बीच भाजपा, यूपी को अपराधमुक्त करने का दावा कर रही है और यूपी सरकार के 'ठोक दो' नीति को पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह व सीएम योगी आदित्यनाथ लगातार अपनी सभाओं और वर्चुअल रैलियों में दोहरा रहे हैं। सीएम योगी तो धमकी देने तक पर उतर आये हैं और यहां तक कह रहे हैं कि 5 साल तक जो अपने बिलों में छुपे रहे हैं वो चुनाव आते ही गर्मी दिखाने लगे हैं। 10 मार्च के बाद इनकी गर्मी शांत कर देंगे। लेकिन यूपी को अपराधमुक्त करने के दावे का एक और ढोंग सामने आ गया है। अब भले सीएम योगी ने अपने खुद के मुकदमे वापस ले लिए हो लेकिन चुनाव सुधार के लिए काम करने वाला संगठन एडीआर यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के आंकड़े तो कुछ और ही कह रहे हैं। एडीआर रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा के आधे से ज्यादा प्रत्याशी दागदार है। हालांकि सपा व रालोद में भी दागियों की भरमार है लेकिन सवाल है कि क्या दागी (आपराधिक) पृष्ठभूमि वाले लोगों को उम्मीदवार बनाने वाली बीजेपी, राज्य को अपराधमुक्त करने के अपने दावे को पूरा कर पाएगी?

एडीआर यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार यूपी में पहले चरण के चुनाव में 615 उम्मीदवारों में से 156 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसका मतलब है कि 25 फ़ीसदी ऐसे उम्मीदवार हैं जिनका कोई न कोई आपराधिक रिकॉर्ड है। इनमें से 121 उम्मीदवारों पर तो गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। यानी क़रीब 20 फ़ीसदी उम्मीदवार ऐसे हैं। पहले चरण में सबसे अधिक आपराधिक छवि वाले उम्मीदवार भाजपा, सपा व रालोद में ही है। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे आधे से ज्यादा उम्मीदवार दागी हैं। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, बसपा और चौथे नंबर पर रालोद है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एडीआर कोआर्डिनेटर अनिल शर्मा ने बताया कि पहले चरण में 623 प्रत्याशी मैदान में हैं। इसमें से 615 प्रत्याशियों के हलफनामे का विश्लेषण किया गया है। इसमें एक चौथाई यानी 156 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 156 में से 121 ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं। पहले चरण में 58 सीटों पर चुनाव होना है। इस चरण के लिए प्रत्याशियों द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे के मुताबिक भाजपा के 57 प्रत्याशियों में से 29 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। जबकि सपा के 28 में से 21 पर रालोद के 29 में से 17 प्रत्याशी आपराधिक छवि के हैं। कांग्रेस के 58 में 21 प्रत्याशी, बसपा के 56 में 19 प्रत्याशी और आम आदमी पार्टी के 52 में से 8 प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 

संख्या की बात करें तो सबसे अधिक 32 मुकदमे मेरठ की हस्तिनापुर सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार योगेश वर्मा पर हैं। इसमें 71 धाराएं गंभीर अपराध की हैं। इसमें हत्या के प्रयास की धाराएं भी शामिल हैं। दूसरे नंबर पर भाजपा के मेरठ सिवालखास सीट से उम्मीदवार मनिंदर पाल हैं। उनके खिलाफ कुल 18 मुकदमे दर्ज हैं इसमें 36 धाराएं गंभीर अपराध की हैं। सरधना से सपा उम्मीदवार अतुल प्रधान के खिलाफ 38 मामले दर्ज हैं। इसमें 26 धाराएं गंभीर अपराध की हैं। 12 ऐसे प्रत्याशी हैं जिन पर महिला संबंधी अपराधिक मामले दर्ज हैं। इसमें इसमें बुलंदशहर से रालोद प्रत्याशी मोहम्मद युनुस पर दुष्कर्म का मामला शामिल है। इसके अलावा जो प्रमुख प्रत्याशी मैदान में हैं उन पर भी आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसमें गन्ना मंत्री और भाजपा से थानाभवन शामली से प्रत्याशी सुरेश राणा पर तीन मामले दर्ज हैं। एक और मंत्री कपिल देव अग्रवाल के खिलाफ भी सात मामले दर्ज हैं। कपिल देव मुजफ्फरनगर से किस्मत आजमा रहे हैं। मेरठ की सरधना सीट से किस्मत आजमा रहे भाजपा विधायक संगीत सोम के खिलाफ भी आपराधिक मामले दर्ज हैं। सपा सरकार में मंत्री रहे मेरठ की किठौर सीट से शाहिद मंजूर पर भी दो मुकदमे दर्ज हैं।

इसी तरह करोड़पति उम्मीदवारों की सूची में भाजपा पहले नंबर पर है। एडीआर रिपोर्ट के अनुसार, पहले चरण में 280 प्रत्याशी करोड़पति हैं। सबसे अधिक करोड़पति उम्मीदवारों के मामले में भी बीजेपी अव्वल है। बीजेपी के 57 में से 55 प्रत्याशियों ने अपनी संपत्ति एक करोड़ या इससे अधिक बतायी है। बसपा के 50, कांग्रेस के 32, सपा के 23 उम्मीदवार और आरएलडी के 28 उम्मीदवार करोड़पति हैं। आम आदमी पार्टी के भी 52 में से 22 उम्मीदवार करोड़पति हैं। पहले चरण के उम्मीदवारों में बड़ी संख्या में पढ़े लिखे उम्मीदवार मैदान में हैं। 615 में से 304 उम्मीदवार ऐसे हैं जिनकी शैक्षिक योग्यता स्नातक या उससे अधिक है। 239 प्रत्याशी ऐसे हैं जिनकी शैक्षिक योग्यता 5वीं पास से लेकर 12वीं पास तक है। 7 प्रत्याशी डिप्लोमा धारी हैं। 38 उम्मीदवार साक्षर और 15 उम्मीदवार ने खुद को निरक्षर बताया है। पहले चरण में कुल 74 महिला उम्मीदवार मैदान में हैं। इसमें कांग्रेस ने सबसे अधिक 16 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा और आम आदमी पार्टी ने सात-सात महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। बसपा ने चार, सपा और रालोद ने दो-दो महिला प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। पहले चरण में आधे से अधिक उम्मीदवार 50 साल से कम उम्र के हैं। इसमें 25 से 30 साल की उम्र के 61, 31 से 40 साल उम्र के 153 और 41 से 50 साल की उम्र के 189 उम्मीदवार हैं। 51 से 60 साल उम्र के 139, 61 से 70 साल उम्र के 68 और इससे अधिक उम्र के 5 प्रत्याशी मैदान में हैं।

खास यह है कि आधे से ज़्यादा भाजपा उम्मीदवारों पर आपराधिक रिकॉर्ड के मामले तब आए हैं जब भाजपा यूपी के चुनाव में विपक्षी दल समाजवादी पार्टी पर अपराध को लेकर निशाना साध रही है। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनावी भाषणों में बार-बार 5 साल पहले की सरकार की याद दिला रहे हैं और उसे गुंडों की सरकार के तौर पर पेश कर रहे हैं। देश के गृहमंत्री अमित शाह भी कह रहे हैं कि यूपी में 5 साल पहले तक गुंडों की चलती थी, लेकिन अब रात में भी महिलाएं बेखौफ होकर बाहर निकल सकती हैं। भाजपा दावा कर रही है कि राज्य में वह ईमानदार सरकार ला सकती है। जबकि हकीकत यह है कि पिछले चुनाव में भी भाजपा के सौ से अधिक दागी प्रत्याशी विधायक बने थे।

पिछले चुनाव 2017 में सबसे ज्यादा 38 फीसदी दागी उम्मीदवार बसपा में थे। उसके बाद 37 फीसदी समाजवादी पार्टी और 36 फीसदी भाजपा में थे। इसके अलावा 32 फीसदी कांग्रेस और 20 फीसदी राष्ट्रीय लोकदल ने ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया था। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक इस बार 45 विधायक ऐसे हैं, जिन पर आपराधिक केस इतने बड़े हैं, जिन पर चुनाव लड़ने के भी संकट है। इनमें भाजपा के 32 विधायक, समाजवादी पार्टी के 5 विधायक, बहुजन समाज पार्टी और अपना दल के 3-3 विधायक और कांग्रेस के एक विधायक शामिल है। इन पर आपराधिक मामले लंबित रहने के औसत समय 13 साल है।

यही नहीं, माननीय के खिलाफ करीब 5000 आपराधिक मामले पेंडिंग हैं। देखें तो यूपी, पंजाब सहित 5 राज्यों में चुनावी हलचल के बीच सांसदों और विधायकों पर दर्ज आपराधिक मामलों का जो आंकड़ा सामने आया है, वह काफी चौंकाने वाला है। सुप्रीम कोर्ट को गुरुवार को बताया गया कि सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के खिलाफ कुल 4,984 मामले लंबित हैं, जिनमें 1,899 मामले पांच वर्ष से अधिक पुराने हैं। न्यायमित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में उच्चतम न्यायालय को बताया कि दिसंबर 2018 तक कुल लंबित मामले 4,110 थे और अक्टूबर 2020 तक ये 4,859 थे। अधिवक्ता स्नेहा कलिता द्वारा दाखिल रिपोर्ट में कहा गया है, ‘चार दिसंबर 2018 के बाद 2,775 मामलों के निस्तारण के बावजूद सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामले 4,122 से बढ़ कर 4984 हो गये। इससे प्रदर्शित होता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिक से अधिक लोग संसद और राज्य विधानसभाओं में पहुंच रहे हैं। यह अत्यधिक आवश्यक है कि लंबित आपराधिक मामलों के तेजी से निस्तारण को तत्काल और कठोर कदम उठाए जाएं।

सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के जल्द फैसले के लिए विशेष अदालतों के गठन पर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। ताजा आंकड़े इसी मामले पर सुनवाई के दौरान सामने आए। अदालत को दी गई एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि एक तरफ तो मामले पर सुनवाई चलती जा रही है और दूसरी तरफ इस तरह के लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है।

रिपोर्ट इस मामले में एमिकस क्यूरे के रूप में अदालत को सलाह दे रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने पेश की है। रिपोर्ट में बताया गया कि दिसंबर 2018 में इस तरह के 4,110 मामले लंबित थे, अक्टूबर 2020 में यह संख्या बढ़ कर 4,859 हो गई और अब यह संख्या बढ़ कर 4,984 हो गई है। इनमें से 1,899 मामले तो 5 साल से भी ज्यादा पुराने हैं और 1,475 मामले दो साल से 5 साल तक पुराने हैं। यह हाल तब है जब अदालत लगातार इन मामलों की निगरानी कर रही है और इस विषय में कई निर्देश पारित कर चुकी है। दिसंबर 2018 से लेकर अभी तक 2,775 मामलों  का निपटारा भी हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद लंबित मामलों की संख्या बढ़ गई है।

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