2020 का पहला भारत बंद: अपने हक- हुकूक के लिए सड़क पर उतरे छत्तीसगढ़ के ग्रामीण

Written by Anuj Shrivastava | Published on: January 9, 2020
वर्ष 2020 की शुरुआत देश भर में विराट भागीदारी वाले जनसंघर्षों के साथ हो रही है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन सहित अनेक साझा मंचों से जुड़े देश के 228 किसान संगठनों ने मिलकर 8 जनवरी को देशव्यापी ग्रामीण भारत बंद का आह्वान किया, इसका पूरे देश मे व्यापक असर देखने को मिल रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में छत्तीसगढ़ में भी किसानों और दलित-आदिवासियों से जुड़े 25 से ज्यादा संगठन इस बंद में शामिल हुए। ग्रामीण इलाकों में किसानो ने खेती से जुड़े सारे कामों को एक दिन के लिए बंद कर दिया। सब्जी, दूध, अंडा, मछली जैसे अपने कृषि उत्पादों को न बेचा न ही कहीं से कोई सामान ख़रीदा। कृषि उपज मंडियों में भी बंद का सीधा असर दिखा। जगह-जगह रास्ता रोको आंदोलन और धरना-प्रदर्शन-रैली की गईं। केंद्र की मोदी सरकार की कृषि व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ के लाखों लोगों ने अपनी आवाज़ बुलंद की।



प्रदेश के कई इलाकों मे बारिश और कड़ाके की ठंड पड़ रही है लेकिन खराब मौसम के बावजूद छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के खिलाफ़ जमकर रैलियाँ निकलीं। महिलाएं बड़ी संख्या मे इसका हिस्सा बनीं। युवाओं ने भी किसानों और मजदूरों के साथ इन रैलियों में भाग लिया।

ग्रामीण भारत बंद की मुख्य मांगें
ग्रामीण भारत बंद की मुख्य मांगों में मोदी सरकार द्वारा खेती और कृषि उत्पादन तथा विपणन में देशी-विदेशी कारपोरेट कंपनियों की घुसपैठ का विरोध, किसान आत्महत्याओं की जिम्मेदार नीतियों की वापसी, खाद-बीज-कीटनाशकों के क्षेत्र में मिलावट, मुनाफाखोरी और ठगी तथा उपज के लाभकारी दामों से जुडी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर अमल की मांगे शामिल हैं। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य सरकार से किसानों को मासिक पेंशन देने, कानून बनाकर किसानों को कर्जमुक्त करने, पिछले दो वर्षों का बकाया बोनस देने और धान के काटे गए रकबे को पुनः जोड़ने, फसल बीमा में नुकसानी का आंकलन व्यक्तिगत आधार पर करने, विकास के नाम पर किसानों की जमीन छीनकर उन्हें विस्थापित करने पर रोक लगाने और अनुपयोगी पड़ी अधिग्रहित जमीन को वापस करने, वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने, मनरेगा में हर परिवार को 250 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, मंडियों में समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने, सोसाइटियों में किसानों को लूटे जाने पर रोक लगाने, जल-जंगल-जमीन के मुद्दे हल करने और सारकेगुड़ा कांड के दोषियों पर हत्या का मुकदमा कायम करने की मांग कर रहे हैं। ये सभी किसान संगठन नागरिकता कानून को रद्द करने और एनआरसी-एनपीआर की प्रक्रिया पर विराम लगाने की भी मांग कर रहे है।



राजनांदगांव, अभनपुर, अम्बिकापुर, रायगढ़ में विशाल मजदूर-किसान रैलियां निकाली गईं, तो धमतरी में मंडी बंद रखकर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के साथ बड़ी संख्या में किसान बंद मे शामिल हुए। दुर्ग में गांधी प्रतिमा पर,  रायपुर के तिल्दा ब्लॉक में बंगोली धान खरीदी केंद्र पर, सरगुजा जिले के सखौली और लुण्ड्रा जनपद कार्यालय पर, सूरजपुर जिले के कल्याणपुर और पलमा में, कोरबा में कलेक्टोरेट पर, चांपा में एसडीएम कार्यालय पर, महासमुंद में, रायगढ़ के सरिया में विशाल किसान धरने आयोजित किए गए। दसियों जगहों पर प्रशासन को ज्ञापन सौंपे गए।  

उल्लेखनीय है कि आजाद भारत के इतिहास में यह पहला मौक़ा है, जब किसानो और ग्रामीणों ने इस तरह के आंदोलन का आव्हान किया है।



देशभर के ये श्रमिक-कर्मचारी संगठन शामिल रहे
आज के इस भारत बंद में देशभर के लगभग सभी ट्रेड यूनियन(श्रमिक-कर्मचारी) भी शामिल हुए। छत्तीसगढ़ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहकारिता संघ, छत्तीसगढ़ तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ, छत्तीसगढ़ बैंक एम्प्लोइज़ एसेसिएशन, अखिल भारतीय राजी कर्मचारी संघ, छत्तीसगढ़ किसान सभा, ट्रेड यूनियन काउंसिल बिलासपुर, रेल मजदूर यूनियन, छत्तीसगढ़ बिजली कर्मचारी संघ, एलआईसी कर्मचारी संघ, छत्तीसगढ़ एम आर यूनियन, छत्तीसगढ़ मुक्तिमोर्चा, ज़िला किसान संघ, किसानी प्रतिष्ठा मंच, छत्तीसगढ़ प्रगतिशेल कैसा संगठन, आभा क्रांतिकारी किसान सभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति, छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच, दलित आदिवासी मंच, आदिवासी एकता महासभा, किसान जागरम मंच, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ आंगनबाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स आदि शामिल रहे।

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