घटना के बाद गांव में बुलाई गई पंचायत में आरोपियों ने अन्य ग्रामीणों को उकसाकर भगालू चौहान समेत चार और दलित परिवारों को गांव से बाहर निकालने का फैसला करवाया।

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के पुसौर थाना क्षेत्र के ग्राम ठाकुरपाली में दलित परिवारों के खिलाफ जातिगत हमले, सामाजिक बहिष्कार और पुलिस की निष्क्रियता का एक गंभीर मामला सामने आया है। यह घटना न केवल भारतीय संविधान में निहित समानता और न्याय के मूल सिद्धांतों को कठघरे में खड़ा करती है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि क्या आज भी ग्रामीण भारत जातिगत भेदभाव का शिकार है?
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, गांव के निवासी भगालू चौहान मोटरसाइकिल मरम्मत का कार्य कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। उनके बेटे महेश चौहान और गांव के ही एक युवक दिलीप प्रधान के बीच किसी व्यक्तिगत विवाद ने अचानक जातिगत रंग ले लिया। भगालू चौहान ने पुलिस अधीक्षक रायगढ़ को दिए आवेदन में बताया कि ऊंची जाति के प्रभावशाली मनबढ़ लोगों ने इस विवाद को बहाना बनाकर उनके घर पर हमला कर दिया और पूरे दलित समुदाय को निशाना बनाना शुरू कर दिया।
पुलिस में दर्ज शिकायत के अनुसार, 13 मई 2025 की रात लगभग 10:30 बजे प्रधान परिवार के सदस्य और अन्य लोग हथियारों से लैस होकर भगालू चौहान के घर में जबरन घुस आए। यह हमला पूरी तरह सुनियोजित था। उन्होंने घर में तोड़फोड़ की, कथित तौर पर जातिसूचक गालियां दीं और मारपीट की। हमले के दौरान भगालू की वृद्ध मां तुलसी बाई के साथ भी अभद्रता की गई। 14 मई को इस संबंध में पुलिस में शिकायत दर्ज की गई और एफआईआर भी हुई, लेकिन अब तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की गई है।
पीड़ित भगालू चौहान ने बताया कि आरोपी लगातार उन्हें खुलेआम धमका रहे हैं। चौहान के अनुसार, आरोपियों ने कहा, 'जब तक पुलिस गांव में आना जाना कर रही है, तब तक तुम लोग सुरक्षित हो। लेकिन जैसे ही पुलिस हटेगी, हम तुम्हें गांव से बाहर निकाल देंगे।
इस घटना के चलते गांव के अन्य दलित परिवारों के बीच भी डर और असुरक्षा का माहौल बना हुआ है। लगातार मिल रही धमकियों और सामाजिक बहिष्कार के कारण उनका जीवन बेहद कठिन और असहनीय हो गया है।
इस घटना के बाद गांव में एक पंचायत की गई, जिसमें आरोपियों ने अन्य ग्रामीणों को भड़काकर भगालू चौहान के साथ-साथ चार अन्य दलित परिवारों को भी गांव से निकालने का फैसला करवाया। इस निष्कासन की इस सूची में अरुण चौहान, राहुल यादव, विपिन यादव, वीरू, रजनी बेबी चौहान और पाणिग्रही चौहान जैसे लोग शामिल हैं, जिनका मूल विवाद से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था।
पीड़ितों का आरोप है कि एफआईआर दर्ज होने के बाद गांव के दबंगों ने उन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वे अपनी पुलिस शिकायत वापस ले लें, नहीं तो सामाजिक बहिष्कार के लिए तैयार रहें। एक पंचायत बैठक में खुले तौर पर कहा गया।
पीड़ित ने बताया, "अगर गांव में रहना है तो केस वापस लो। नहीं तो सामाजिक बहिष्कार झेलो।"
उधर एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अब तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। आरोपियों को खुलेआम घूमने और पीड़ितों को धमकाने की छूट मिली हुई है। पीड़ितों का आरोप है कि पुलिस आरोपियों पर कार्रवाई करने के बजाय मामले को दबाने की कोशिश कर रही है। इस संबंध में द मूकनायक ने पुलिस का पक्ष जानने के लिए रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक दिव्यांग पटेल से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी।
मानवधिकार कार्यकर्ता डिग्री प्रसाद चौहान ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, 'इस क्षेत्र में जातिगत अत्याचार अब एक आम बात हो गई है। कुछ महीने पहले भी पंचायत चुनाव के दौरान ऊंची जाति के प्रभावशाली लोगों के खिलाफ मतदान करने के कारण दलित बस्ती पर हमला किया गया था। उस समय भी पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था, उल्टा पीड़ितों को ही काउंटर केस की धमकी दी गई थी।”
उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार से मांग की है कि पुसौर थाना क्षेत्र और विशेष रूप से गोतमा ग्राम पंचायत को ‘जातीय अत्याचार बहुल क्षेत्र’ घोषित किया जाए, ताकि अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अंतर्गत पीड़ितों को प्रभावी सुरक्षा एवं न्याय प्रदान किया जा सके।
कानून की बात करें तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अनुसार, धारा 3(1)(आर): जातिसूचक शब्दों का सार्वजनिक प्रयोग दंडनीय अपराध, धारा 3(1)(एस): अनुसूचित जाति व्यक्ति को सामाजिक बहिष्कार की धमकी देना अपराध, धारा 3(2)(वी): यदि अपराध जातीय कारणों से किया गया हो तो कठोर सजा का प्रावधान और सजा 6 महीने से लेकर आजीवन कारावास तक किया जा सकता है।
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छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के पुसौर थाना क्षेत्र के ग्राम ठाकुरपाली में दलित परिवारों के खिलाफ जातिगत हमले, सामाजिक बहिष्कार और पुलिस की निष्क्रियता का एक गंभीर मामला सामने आया है। यह घटना न केवल भारतीय संविधान में निहित समानता और न्याय के मूल सिद्धांतों को कठघरे में खड़ा करती है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि क्या आज भी ग्रामीण भारत जातिगत भेदभाव का शिकार है?
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, गांव के निवासी भगालू चौहान मोटरसाइकिल मरम्मत का कार्य कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। उनके बेटे महेश चौहान और गांव के ही एक युवक दिलीप प्रधान के बीच किसी व्यक्तिगत विवाद ने अचानक जातिगत रंग ले लिया। भगालू चौहान ने पुलिस अधीक्षक रायगढ़ को दिए आवेदन में बताया कि ऊंची जाति के प्रभावशाली मनबढ़ लोगों ने इस विवाद को बहाना बनाकर उनके घर पर हमला कर दिया और पूरे दलित समुदाय को निशाना बनाना शुरू कर दिया।
पुलिस में दर्ज शिकायत के अनुसार, 13 मई 2025 की रात लगभग 10:30 बजे प्रधान परिवार के सदस्य और अन्य लोग हथियारों से लैस होकर भगालू चौहान के घर में जबरन घुस आए। यह हमला पूरी तरह सुनियोजित था। उन्होंने घर में तोड़फोड़ की, कथित तौर पर जातिसूचक गालियां दीं और मारपीट की। हमले के दौरान भगालू की वृद्ध मां तुलसी बाई के साथ भी अभद्रता की गई। 14 मई को इस संबंध में पुलिस में शिकायत दर्ज की गई और एफआईआर भी हुई, लेकिन अब तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की गई है।
पीड़ित भगालू चौहान ने बताया कि आरोपी लगातार उन्हें खुलेआम धमका रहे हैं। चौहान के अनुसार, आरोपियों ने कहा, 'जब तक पुलिस गांव में आना जाना कर रही है, तब तक तुम लोग सुरक्षित हो। लेकिन जैसे ही पुलिस हटेगी, हम तुम्हें गांव से बाहर निकाल देंगे।
इस घटना के चलते गांव के अन्य दलित परिवारों के बीच भी डर और असुरक्षा का माहौल बना हुआ है। लगातार मिल रही धमकियों और सामाजिक बहिष्कार के कारण उनका जीवन बेहद कठिन और असहनीय हो गया है।
इस घटना के बाद गांव में एक पंचायत की गई, जिसमें आरोपियों ने अन्य ग्रामीणों को भड़काकर भगालू चौहान के साथ-साथ चार अन्य दलित परिवारों को भी गांव से निकालने का फैसला करवाया। इस निष्कासन की इस सूची में अरुण चौहान, राहुल यादव, विपिन यादव, वीरू, रजनी बेबी चौहान और पाणिग्रही चौहान जैसे लोग शामिल हैं, जिनका मूल विवाद से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था।
पीड़ितों का आरोप है कि एफआईआर दर्ज होने के बाद गांव के दबंगों ने उन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वे अपनी पुलिस शिकायत वापस ले लें, नहीं तो सामाजिक बहिष्कार के लिए तैयार रहें। एक पंचायत बैठक में खुले तौर पर कहा गया।
पीड़ित ने बताया, "अगर गांव में रहना है तो केस वापस लो। नहीं तो सामाजिक बहिष्कार झेलो।"
उधर एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अब तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। आरोपियों को खुलेआम घूमने और पीड़ितों को धमकाने की छूट मिली हुई है। पीड़ितों का आरोप है कि पुलिस आरोपियों पर कार्रवाई करने के बजाय मामले को दबाने की कोशिश कर रही है। इस संबंध में द मूकनायक ने पुलिस का पक्ष जानने के लिए रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक दिव्यांग पटेल से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी।
मानवधिकार कार्यकर्ता डिग्री प्रसाद चौहान ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, 'इस क्षेत्र में जातिगत अत्याचार अब एक आम बात हो गई है। कुछ महीने पहले भी पंचायत चुनाव के दौरान ऊंची जाति के प्रभावशाली लोगों के खिलाफ मतदान करने के कारण दलित बस्ती पर हमला किया गया था। उस समय भी पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था, उल्टा पीड़ितों को ही काउंटर केस की धमकी दी गई थी।”
उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार से मांग की है कि पुसौर थाना क्षेत्र और विशेष रूप से गोतमा ग्राम पंचायत को ‘जातीय अत्याचार बहुल क्षेत्र’ घोषित किया जाए, ताकि अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अंतर्गत पीड़ितों को प्रभावी सुरक्षा एवं न्याय प्रदान किया जा सके।
कानून की बात करें तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अनुसार, धारा 3(1)(आर): जातिसूचक शब्दों का सार्वजनिक प्रयोग दंडनीय अपराध, धारा 3(1)(एस): अनुसूचित जाति व्यक्ति को सामाजिक बहिष्कार की धमकी देना अपराध, धारा 3(2)(वी): यदि अपराध जातीय कारणों से किया गया हो तो कठोर सजा का प्रावधान और सजा 6 महीने से लेकर आजीवन कारावास तक किया जा सकता है।
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