त्योहारों पर आटा, दाल-चावल के साथ चीनी भी कड़वी
प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार- आज तक
"सब्जियों और मसालों के बाद आटा, दाल-चावल और चीनी के दाम उच्चतर स्तर पर जा पहुंचे हैं। अब भले सरकार और उसके मंत्री महंगाई घटाने के उपाय करने और जल्द राहत मिलने के दावे करते न थक रहे हों लेकिन जिस तरह डॉलर के आगे रुपया पस्त होता जा रहा है और कच्चे तेल के दाम चढ़ने लगे हैं, उसे देखकर साफ है कि महंगाई अभी और बढ़ेगी! त्योहारी सीजन के ठीक पहले डॉलर के बरक्स कमजोर हुए रुपये का सीधा असर, आयात निर्यात पर पड़ने के चलते, महंगाई बढ़ने का खतरा साफ देखा जा सकता है।"
जी हां, डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी का सिलसिला जारी है। बुधवार 6 सितंबर 2023 को डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर 83.09 के लेवल पर जा लुढ़का। वैसे बीते एक महीने से लगातार रुपये के मुकाबले डॉलर में मजबूती देखी गई है। 2 अगस्त, 2023 के बाद से रुपया 38 पैसे रुपया कमजोर हो चुका है। वहीं इसी अवधि में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में करीब 10 फीसदी से ज्यादा का उछाल देखने को मिला है। रुपये में कमजोरी और महंगे कच्चे तेल ने भारत की मुसीबत बढ़ा दी है और आगे और बढ़ाएगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बाजार के जानकारों का मानना है कि रुपये में कमजोरी की बड़ी वजह डॉलर में मजबूती और कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी है जो अभी 90 डॉलर प्रति बैरल के पार जा पहुंचा है। भारत से निवेशकों के अपने पैसे की निकासी के चलते भी रुपया कमजोर हुआ है। चीन की करेंसी यूआन में कमजोरी ने भी रुपये समेत सभी एशियाई करेंसी पर दबाव बढ़ा दिया है जिससे रुपये में भी कमजोरी नजर आ रही है। रूपये की कमजोरी का असर सभी चीजों पर पड़ता दिख रहा है। मसलन...
दाल-एडिबल आयल आयात होगा महंगा
भारत में वैसे ही खाद्य महंगाई 11.51 फीसदी पर जुलाई महीने में जा पहुंची है। दाल की कीमतों में तेजी है। सरकार गेहूं आयात करने पर विचार कर रही है। ऐसे में डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट के बाद खाद्य वस्तुओं का आयात महंगा हो सकता है।
महंगा होगा कच्चा तेल खरीदना
भारत अपने खपत का 80 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है। एक तरफ कच्चा तेल 90 डॉलर प्रति बैरल के पार जा पहुंचा है तो उस पर से डॉलर की मजबूती के बाद भारत के लिए कच्चा तेल खरीदना महंगा हो जाएगा। सरकारी तेल कंपनियां डॉलर में भुगतान कर कच्चा तेल खरीदती हैं। अब डॉलर हासिल करने के लिए उन्हें ज्यादा रुपये खर्च करने होंगे। वहीं, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आएगी। रुपये में कमजोरी को रोकने के लिए आरबीआई ने डॉलर की बिकवाली की है जिसके बाद विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर के नीचेजा लुढ़का है। और रुपया और कमजोर हुआ और निवेशकों की बिकवाली जारी रही तो विदेशी मुद्रा भंडार में और कमी आ सकती है।
महंगा होगा सोना खरीदना!
भारत सोने के बड़े आयातक देशों में एक है। त्योहारों का सीजन आ चुका है। गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, से लेकर धनतरेस दिवाली पर लोग सोने की खरीदारी करते हैं। डॉलर की मजबूती के चलते सोने का आयात महंगा हुआ तो देश में सोने की कीमतों में उछाल देखने को मिल सकता है। ऐसे में त्योहारी सीजन में सोने की खरीदारी करने पर जेब कटने वाली है। यही नहीं, बाहर से आयात होने वाले सभी चीजे महंगी हो जाएगी। मसलन कारें महंगी हो सकती है! क्योंकि ऑटोमोबाइल कंपनियां गाड़ियों के पार्ट्स आयात करती हैं। डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने से इन पार्ट्स के आयात महंगा हो सकता है। कमजोर रुपये और डॉलर की मजबूती के चलते ऑटमोबाइल कंपनियों की लागत बढ़ी तो वे गाड़ियों की कीमतों में त्योहारों के दौरान इजाफा कर सकते हैं।
कच्चे तेल के दामों में और लग सकती है आग
गिरते रूपये के साथ ही आने वाले दिनों में कच्चे तेल के दामों में और आग लग सकती है। कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल को पार करते हुए 107 डॉलर प्रति डॉलर जा सकती है। गोल्डमन सैक्स (Goldman Sachs) का मानना है कि रूस और सऊदी अरब ने कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने के अपने फैसले को बरकरार रखा तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 107 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गोल्डमन सैक्स ने कहा कि ओपेक+ (OPEC+) देश 2024 में कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती के फैसले को वापस नहीं लेते हैं तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 107 डॉलर प्रति के लेवल तक जा सकता है। मंगलवार 5 सितंबर 2023 को सऊदी अरब ने दिसंबर तक एक मिलियन बैरल कच्चे तेल में कटौती करने का फैसला लिया है। वहीं सऊदी अरब ने कहा कि वो इस बात की समीक्षा करेगा कि और कटौती कि आवश्यकता है या नहीं। रूस ने भी दिसंबर तक 3 लाख बैरल कच्चे तेल के एक्सपोर्ट में कटौती करने का फैसला किया है। दोनों ही देशों के इस फैसले के बाद कच्चा तेल 90 डॉलर प्रति बैरल के पार जाते हुए 91 डॉलर प्रति बैरल के लेवल पर जा पहुंचा है।
कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी और 107 डॉलर प्रति बैरल तक जाने की गोल्डमन सैक्स की भविष्यवाणी सच साबित हुई तो भारत की मुसीबतें बढ़ सकती है। भारत में कच्चे तेल के दामों में उछाल से महंगाई बढ़ने का खतरा है। सरकारी तेल कंपनियों पर पेट्रोल डीजल की कीमत बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा। वहीं उनके मुनाफे में कमी आएगी। सरकार के लिए विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले पेट्रोल डीजल सस्ता करने के प्रयासों को झटका लगेगा। रुपया भी डॉलर के मुकाबले कमजोर होगा।
इससे पहले रूस के यूक्रेन पर फरवरी 2022 में हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में तेज उछाल देखने को मिली थी और कीमतें 139 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंची थी। हालांकि इसके बाद कीमतों में गिरावट आ गई थी। जून 2008 में दुनिया भर में फाइनेंशियल क्राइसिस के दस्तक देने से पहले कच्चा तेल 147 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंचा था।
महंगाई की मार: लोगों की थाली से दाल भी हुई गायब
त्योहारों से पहले दलहनों के दामों में भी अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की जा रही है। खुदरा बाजार में तुअर दाल 200 रुपए और चना दाल 100 रुपए किलो की दर तक जा पहुंची है। पिछले 2 माह के आंकड़े देखे जाए तो तुअर दाल में 70 रुपए और चना दाल में 46 रुपए प्रति किलो तक बढ़ोतरी दर्ज की गई। व्यापारियों के अनुसार पिछले 40 साल में इस तरह की तेजी मंदी नहीं देखी। चना और तुअर के दाम 1 दिन में 300 से 500 रुपए प्रति क्विंटल तक घट-बढ़ रहे हैं। चना और तुअर की फसल आने में अभी 4 से 6 माह का वक्त है और ऐसे में भाव अभी से 100 और 200 रुपए किलो पहुंचना चिंता की बात है। यह स्थिति केवल तुअर और दलहनों में नहीं है, बल्कि अन्य दालों के भी यही हाल हैं। सरकार यदि जल्द से जल्द दाम पर नियंत्रण लाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती है, तो स्थिति और भी भयानक हो जाएगी।
जीरे के बाद, मूंग में भी भारी उछाल, पहली बार 11 हजारी हुआ मूंग
इस साल जीरा के बाद मूंग के भावों में भी जबरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह पहली बार है कि मूंग 11 हजारी हो गया है। इससे पहले कभी मूंग के भावों में बड़ा उछाल देखने को नहीं मिला। हाल ही में नागौर मंडी में मूंग 11,450 रुपए क्विंटल तक बिका। आमतौर पर मूंग मंडियों में 7,000 रुपए से ऊपर नहीं बिकता था, लेकिन इस बार अधिकांश मंडियों में मूंग के भाव अपने सामान्य भाव 7,000 रुपए से ऊपर बने हुए हैं।
यह पहला मौका है कि मूंग का भाव 11,000 रुपए के स्तर को पार कर गया। ऐसे में जिन किसानों ने ग्रीष्म कालीन मूंग फसल लगाई है, उनके लिए यह खबर काफी खुशी देने वाली है। हालांकि मंडी में प्रतिदिन भाव में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहती है। फिर भी ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि मूंग के भाव एकदम से इतने ऊपर जाकर धड़ाम से गिर जाएंगे। फिलहाल मंडियों में मूंग की आवक कम हो रही है जिससे इसके भावों में तेजी का रूख दिखाई दे रहा है। बाजार एक्सपर्ट्स की मानें तो उनका कहना है कि अभी फिलहाल मूंग के भावों में तेजी दिखाई दे रही है और यह तेजी आगे भी देखी जा सकती है। जब तक मंडी में मूंग की पर्याप्त आवक शुरू नहीं हो जाती है। अभी मंडी में मूंग की आवक कम है। बहुत कम किसान अपनी मूंग की फसल बेचने आ रहे हैं। ऐसे में इसके भावों में उछाल आना स्वाभाविक है।
ट्रैक्टर जंक्शन की एक रिपोर्ट के अनुसार बात करें तो चार दिन पहले मंगलवार को नागौर की विशिष्ट मंडी में मूंग का भाव 11,450 रुपए प्रति क्विंटल रहा। ऐसे में जिन किसानों ने ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती की है उन किसानों को अच्छा लाभ मिल रहा है जिससे किसान खुश है। मूंग के साथ ही देखे तो चना 8,000 रुपये और अरहर 16,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को पार कर गया है। यही नहीं, मूंग से पहले नागौर की मंडी में जीरा भी सबसे ऊंचे भाव में बिका जिससे किसानों को अच्छे भाव मिले। नागौर मंडी में जीरे का अधिकतम भाव प्रति क्विंटल 56,750 रुपए और न्यूनतम भाव 45,000 रुपए चल रहा है।
गेहूं-चावल में भी तेजी के आसार
दलहनों के साथ ही गेहूं और चावल के दाम में भी तेजी के आसार दिखाई दे रहे हैं। कम उत्पादन के कारण पहले ही गेहूं के दाम काफी बढ़े हुए हैं। यदि भविष्य में ऐसे ही दाम बढ़ते रहे तो आम जनता के लिए जीना काफी मुश्किल हो जाएगा। फिलहाल आटा 30 से 35 रूपये किलो तक बिक रहा है।
चावल के वैश्विक दाम 15 साल के उच्च स्तर पर, अल-नीनो के चलते चीनी 34 फीसदी हुई महंगी
भारत द्वारा गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के चलते वैश्विक बाजार में अगस्त में चावल के दाम 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। जबकि अल-नीनो के असर के चलते थाइलैंड में चीनी उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने से चीनी की कीमत पिछले एक साल के मुकाबले इस साल अगस्त में 34.1 फीसदी अधिक रही है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा शुक्रवार को जारी फूड इंडेक्स में यह जानकारी दी गई है।
भारत द्वारा गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के चलते वैश्विक बाजार में अगस्त में चावल के दाम 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। जबकि अल-नीनो के असर के चलते थाइलैंड में चीनी उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने से चीनी की कीमत पिछले एक साल के मुकाबले इस साल अगस्त में 34.1 फीसदी अधिक रही है। रूरल वाइस की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा शुक्रवार को जारी फूड इंडेक्स में यह जानकारी दी गई है। इन दोनों उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी के पीछे भारत मुख्य वजह है क्योंकि भारत ने अप्रैल में चीनी निर्यात भी बंद कर दिया था। जबकि पिछले कई साल से भारत बड़े चीनी निर्यातक के रूप में उभरा था।
हालांकि, एफएओ फूड प्राइस इंडेक्स जुलाई के मुकाबले अगस्त में 2.1 फीसदी घटकर 121.3 अंकों पर आ गया जो मार्च, 2022 के उच्चतम स्तर के मुकाबले 24 फीसदी कम है। एफएओ की ओर जारी बयान में कहा गया है कि खाद्य तेलों और चावल को छोड़कर अधिकांश खाद्यान्नों की कीमतों में कमी आई है जिसकी वजह आपूर्ति का बेहतर रहना है। मगर इनके उलट एफएओ ऑल राइस प्राइस इंडेक्स जुलाई के मुकाबले अगस्त में 9.8 फीसदी बढ़ गया जिसकी वजह चावल की कीमतों के 15 साल के उच्च स्तर पर पहुंचना है। इस वृद्धि की वजह विश्व के सबसे बड़े चावल निर्यातक भारत द्वारा इंडिका व्हाइट राइस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जाना है। यह प्रतिबंध कब तक जारी रहेगा इसको लेकर अनिश्चितता कायम रहने से स्टॉक, कांट्रैक्ट्स पर दोबारा समझौता, बातचीत और नए सौदों की कीमतों को लेकर अनिश्चितता और सौदों के आकार भी छोटे हो गए हैं।
वहीं अल-नीनो के प्रभाव के चलते दुनिया के सबसे चीनी निर्यातकों में शुमार थाइलैंड में चीनी उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने से चीनी की कीमतें पिछले साल के मुकाबले इस साल अगस्त में 34.1 फीसदी अधिक रही है। जुलाई के मुकाबले अगस्त में एफएओ शुगर प्राइस इंडेक्स में 1.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
त्योहारी सीजन को कड़वा कर सकती है चीनी
टमाटर, प्याजा, दाल चावल और गेहूं के बाद अब चीनी महंगाई बढ़ाने की तैयारी में है। त्योहारों के शुरू होने के साथ ही चीनी महंगी होने लगी है। एक आंकड़े मुताबिक फिलहाल चीनी के दाम अपने 6 सालों के उच्च स्तर पर जा पहुंचा है। बाजार के जानकारों की मानें तो आने वाले दिनों में इसकी कीमत में और भी तेजी देखी जा सकती है। दरअसल इस साल मानसून में कम बारिश के चलते गन्ने के उत्पादन पर असर पड़ा है। जिसके कारण चीनी के उत्पादन में कमी और कीमतों पर अभी से असर पड़ने लगा है। जिसके कारण चीनी के दामों में तेजी देखने को मिल रही है। अगर चीनी की कीमत में बढ़ोतरी का ये दौर जारी रहा तो आने वाले त्योहारों में महंगी चीनी मिठाईयों के मिठास को कम यानी फीकी कर सकती है।
चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी का दौर जारी
एक आंकड़े के मुताबिक खुदरा बाजार में एक जनवरी 2023 को चीनी का रेट 41.45 रुपये किलो हुआ करती थी जो एक जुलाई को बढ़कर 42.98 रुपये किलो हो गई। वहीं अब औसतन 43.42 रुपये किलो की दर से बिक रही है। चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी का ये दौर जारी रहा तो आने वाले दिनों में मिठाई समेत कई अन्य चीजों के दाम बढ़ सकते हैं।
पिछले 15 दिन के अंदर चीनी की कीमत में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बीते मंगलवार को चीनी की कीमतें बढ़कर 37,760 रुपये ($454.80) प्रति टन हो गईं, जो अक्टूबर 2017 के बाद यानी 6 साल में सबसे अधिक है। खास है कि केंद्र सरकार ने चीनी मिलों को चालू सीजन में 30 सितंबर तक 6.1 मिलियन मीट्रिक टन चीनी निर्यात करने की अनुमति दी है। जबकि, पिछले साल उन्हें रिकॉर्ड तोड़ 11.1 मिलियन मीट्रिक टन चीनी बेचने की अनुमति दी गई थी। अगर इस साल गन्ने के प्रोडक्शन में गिरावट आती है, तो चीनी और महंगी हो सकती है।
चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी आने के बाद व्यापारियों और उत्पादकों ने चिंता जताई है। व्यापारियों और उत्पादकों का कहना है कि देश के मुख्य चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और कर्नाटक में इस साल अभी तक औसत से कम बारिश हुई है, जिसका असर गन्ने के प्रोडक्शन पर पड़ सकता है। अगर फसल सीजन 2023- 24 में गन्ने के प्रोडक्शन में गिरावट आती है, तो चीनी और महंगी हो सकती है। वहीं, जानकारों का कहना है कि चीनी की कीमत में उछाल आने से खुदरा महंगाई दर बढ़ सकती है। इससे खाने-पीने की चीजें महंगी हो जाएंगी।
महंगाई की मार झेलनी पड़ेगी
बता दें कि 1 अक्टूबर से नया चीनी सीजन शुरू होने वाला है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि कम बारिश की वजह से चीनी के उत्पादन में 3.3% तक गिरावट आ सकती है। इससे चीनी का प्रोडक्शन गिरकर 31.7 मिलियन मीट्रिक टन पर पहुंच सकता है। ऐसे में आम जनता को एक बार फिर से महंगाई की मार झेलनी पड़ेगी। चीनी उत्पादन में कमी की चिंताओं के चलते देश में चीनी की कीमतों में भारी उछाल दर्ज किया है। व्यापारियों और इंडस्ट्री अधिकारियों ने कहा कि चीनी की कीमतें एक पखवाड़े में 3% से अधिक बढ़कर छह साल में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। वहीं, आने वाले महीनों में कीमतों और उछाल की आशंका जताई गई है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार- आज तक
"सब्जियों और मसालों के बाद आटा, दाल-चावल और चीनी के दाम उच्चतर स्तर पर जा पहुंचे हैं। अब भले सरकार और उसके मंत्री महंगाई घटाने के उपाय करने और जल्द राहत मिलने के दावे करते न थक रहे हों लेकिन जिस तरह डॉलर के आगे रुपया पस्त होता जा रहा है और कच्चे तेल के दाम चढ़ने लगे हैं, उसे देखकर साफ है कि महंगाई अभी और बढ़ेगी! त्योहारी सीजन के ठीक पहले डॉलर के बरक्स कमजोर हुए रुपये का सीधा असर, आयात निर्यात पर पड़ने के चलते, महंगाई बढ़ने का खतरा साफ देखा जा सकता है।"
जी हां, डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी का सिलसिला जारी है। बुधवार 6 सितंबर 2023 को डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर 83.09 के लेवल पर जा लुढ़का। वैसे बीते एक महीने से लगातार रुपये के मुकाबले डॉलर में मजबूती देखी गई है। 2 अगस्त, 2023 के बाद से रुपया 38 पैसे रुपया कमजोर हो चुका है। वहीं इसी अवधि में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में करीब 10 फीसदी से ज्यादा का उछाल देखने को मिला है। रुपये में कमजोरी और महंगे कच्चे तेल ने भारत की मुसीबत बढ़ा दी है और आगे और बढ़ाएगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बाजार के जानकारों का मानना है कि रुपये में कमजोरी की बड़ी वजह डॉलर में मजबूती और कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी है जो अभी 90 डॉलर प्रति बैरल के पार जा पहुंचा है। भारत से निवेशकों के अपने पैसे की निकासी के चलते भी रुपया कमजोर हुआ है। चीन की करेंसी यूआन में कमजोरी ने भी रुपये समेत सभी एशियाई करेंसी पर दबाव बढ़ा दिया है जिससे रुपये में भी कमजोरी नजर आ रही है। रूपये की कमजोरी का असर सभी चीजों पर पड़ता दिख रहा है। मसलन...
दाल-एडिबल आयल आयात होगा महंगा
भारत में वैसे ही खाद्य महंगाई 11.51 फीसदी पर जुलाई महीने में जा पहुंची है। दाल की कीमतों में तेजी है। सरकार गेहूं आयात करने पर विचार कर रही है। ऐसे में डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट के बाद खाद्य वस्तुओं का आयात महंगा हो सकता है।
महंगा होगा कच्चा तेल खरीदना
भारत अपने खपत का 80 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है। एक तरफ कच्चा तेल 90 डॉलर प्रति बैरल के पार जा पहुंचा है तो उस पर से डॉलर की मजबूती के बाद भारत के लिए कच्चा तेल खरीदना महंगा हो जाएगा। सरकारी तेल कंपनियां डॉलर में भुगतान कर कच्चा तेल खरीदती हैं। अब डॉलर हासिल करने के लिए उन्हें ज्यादा रुपये खर्च करने होंगे। वहीं, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आएगी। रुपये में कमजोरी को रोकने के लिए आरबीआई ने डॉलर की बिकवाली की है जिसके बाद विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर के नीचेजा लुढ़का है। और रुपया और कमजोर हुआ और निवेशकों की बिकवाली जारी रही तो विदेशी मुद्रा भंडार में और कमी आ सकती है।
महंगा होगा सोना खरीदना!
भारत सोने के बड़े आयातक देशों में एक है। त्योहारों का सीजन आ चुका है। गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, से लेकर धनतरेस दिवाली पर लोग सोने की खरीदारी करते हैं। डॉलर की मजबूती के चलते सोने का आयात महंगा हुआ तो देश में सोने की कीमतों में उछाल देखने को मिल सकता है। ऐसे में त्योहारी सीजन में सोने की खरीदारी करने पर जेब कटने वाली है। यही नहीं, बाहर से आयात होने वाले सभी चीजे महंगी हो जाएगी। मसलन कारें महंगी हो सकती है! क्योंकि ऑटोमोबाइल कंपनियां गाड़ियों के पार्ट्स आयात करती हैं। डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने से इन पार्ट्स के आयात महंगा हो सकता है। कमजोर रुपये और डॉलर की मजबूती के चलते ऑटमोबाइल कंपनियों की लागत बढ़ी तो वे गाड़ियों की कीमतों में त्योहारों के दौरान इजाफा कर सकते हैं।
कच्चे तेल के दामों में और लग सकती है आग
गिरते रूपये के साथ ही आने वाले दिनों में कच्चे तेल के दामों में और आग लग सकती है। कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल को पार करते हुए 107 डॉलर प्रति डॉलर जा सकती है। गोल्डमन सैक्स (Goldman Sachs) का मानना है कि रूस और सऊदी अरब ने कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने के अपने फैसले को बरकरार रखा तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 107 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गोल्डमन सैक्स ने कहा कि ओपेक+ (OPEC+) देश 2024 में कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती के फैसले को वापस नहीं लेते हैं तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 107 डॉलर प्रति के लेवल तक जा सकता है। मंगलवार 5 सितंबर 2023 को सऊदी अरब ने दिसंबर तक एक मिलियन बैरल कच्चे तेल में कटौती करने का फैसला लिया है। वहीं सऊदी अरब ने कहा कि वो इस बात की समीक्षा करेगा कि और कटौती कि आवश्यकता है या नहीं। रूस ने भी दिसंबर तक 3 लाख बैरल कच्चे तेल के एक्सपोर्ट में कटौती करने का फैसला किया है। दोनों ही देशों के इस फैसले के बाद कच्चा तेल 90 डॉलर प्रति बैरल के पार जाते हुए 91 डॉलर प्रति बैरल के लेवल पर जा पहुंचा है।
कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी और 107 डॉलर प्रति बैरल तक जाने की गोल्डमन सैक्स की भविष्यवाणी सच साबित हुई तो भारत की मुसीबतें बढ़ सकती है। भारत में कच्चे तेल के दामों में उछाल से महंगाई बढ़ने का खतरा है। सरकारी तेल कंपनियों पर पेट्रोल डीजल की कीमत बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा। वहीं उनके मुनाफे में कमी आएगी। सरकार के लिए विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले पेट्रोल डीजल सस्ता करने के प्रयासों को झटका लगेगा। रुपया भी डॉलर के मुकाबले कमजोर होगा।
इससे पहले रूस के यूक्रेन पर फरवरी 2022 में हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में तेज उछाल देखने को मिली थी और कीमतें 139 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंची थी। हालांकि इसके बाद कीमतों में गिरावट आ गई थी। जून 2008 में दुनिया भर में फाइनेंशियल क्राइसिस के दस्तक देने से पहले कच्चा तेल 147 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंचा था।
महंगाई की मार: लोगों की थाली से दाल भी हुई गायब
त्योहारों से पहले दलहनों के दामों में भी अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की जा रही है। खुदरा बाजार में तुअर दाल 200 रुपए और चना दाल 100 रुपए किलो की दर तक जा पहुंची है। पिछले 2 माह के आंकड़े देखे जाए तो तुअर दाल में 70 रुपए और चना दाल में 46 रुपए प्रति किलो तक बढ़ोतरी दर्ज की गई। व्यापारियों के अनुसार पिछले 40 साल में इस तरह की तेजी मंदी नहीं देखी। चना और तुअर के दाम 1 दिन में 300 से 500 रुपए प्रति क्विंटल तक घट-बढ़ रहे हैं। चना और तुअर की फसल आने में अभी 4 से 6 माह का वक्त है और ऐसे में भाव अभी से 100 और 200 रुपए किलो पहुंचना चिंता की बात है। यह स्थिति केवल तुअर और दलहनों में नहीं है, बल्कि अन्य दालों के भी यही हाल हैं। सरकार यदि जल्द से जल्द दाम पर नियंत्रण लाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती है, तो स्थिति और भी भयानक हो जाएगी।
जीरे के बाद, मूंग में भी भारी उछाल, पहली बार 11 हजारी हुआ मूंग
इस साल जीरा के बाद मूंग के भावों में भी जबरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह पहली बार है कि मूंग 11 हजारी हो गया है। इससे पहले कभी मूंग के भावों में बड़ा उछाल देखने को नहीं मिला। हाल ही में नागौर मंडी में मूंग 11,450 रुपए क्विंटल तक बिका। आमतौर पर मूंग मंडियों में 7,000 रुपए से ऊपर नहीं बिकता था, लेकिन इस बार अधिकांश मंडियों में मूंग के भाव अपने सामान्य भाव 7,000 रुपए से ऊपर बने हुए हैं।
यह पहला मौका है कि मूंग का भाव 11,000 रुपए के स्तर को पार कर गया। ऐसे में जिन किसानों ने ग्रीष्म कालीन मूंग फसल लगाई है, उनके लिए यह खबर काफी खुशी देने वाली है। हालांकि मंडी में प्रतिदिन भाव में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहती है। फिर भी ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि मूंग के भाव एकदम से इतने ऊपर जाकर धड़ाम से गिर जाएंगे। फिलहाल मंडियों में मूंग की आवक कम हो रही है जिससे इसके भावों में तेजी का रूख दिखाई दे रहा है। बाजार एक्सपर्ट्स की मानें तो उनका कहना है कि अभी फिलहाल मूंग के भावों में तेजी दिखाई दे रही है और यह तेजी आगे भी देखी जा सकती है। जब तक मंडी में मूंग की पर्याप्त आवक शुरू नहीं हो जाती है। अभी मंडी में मूंग की आवक कम है। बहुत कम किसान अपनी मूंग की फसल बेचने आ रहे हैं। ऐसे में इसके भावों में उछाल आना स्वाभाविक है।
ट्रैक्टर जंक्शन की एक रिपोर्ट के अनुसार बात करें तो चार दिन पहले मंगलवार को नागौर की विशिष्ट मंडी में मूंग का भाव 11,450 रुपए प्रति क्विंटल रहा। ऐसे में जिन किसानों ने ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती की है उन किसानों को अच्छा लाभ मिल रहा है जिससे किसान खुश है। मूंग के साथ ही देखे तो चना 8,000 रुपये और अरहर 16,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को पार कर गया है। यही नहीं, मूंग से पहले नागौर की मंडी में जीरा भी सबसे ऊंचे भाव में बिका जिससे किसानों को अच्छे भाव मिले। नागौर मंडी में जीरे का अधिकतम भाव प्रति क्विंटल 56,750 रुपए और न्यूनतम भाव 45,000 रुपए चल रहा है।
गेहूं-चावल में भी तेजी के आसार
दलहनों के साथ ही गेहूं और चावल के दाम में भी तेजी के आसार दिखाई दे रहे हैं। कम उत्पादन के कारण पहले ही गेहूं के दाम काफी बढ़े हुए हैं। यदि भविष्य में ऐसे ही दाम बढ़ते रहे तो आम जनता के लिए जीना काफी मुश्किल हो जाएगा। फिलहाल आटा 30 से 35 रूपये किलो तक बिक रहा है।
चावल के वैश्विक दाम 15 साल के उच्च स्तर पर, अल-नीनो के चलते चीनी 34 फीसदी हुई महंगी
भारत द्वारा गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के चलते वैश्विक बाजार में अगस्त में चावल के दाम 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। जबकि अल-नीनो के असर के चलते थाइलैंड में चीनी उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने से चीनी की कीमत पिछले एक साल के मुकाबले इस साल अगस्त में 34.1 फीसदी अधिक रही है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा शुक्रवार को जारी फूड इंडेक्स में यह जानकारी दी गई है।
भारत द्वारा गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के चलते वैश्विक बाजार में अगस्त में चावल के दाम 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। जबकि अल-नीनो के असर के चलते थाइलैंड में चीनी उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने से चीनी की कीमत पिछले एक साल के मुकाबले इस साल अगस्त में 34.1 फीसदी अधिक रही है। रूरल वाइस की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा शुक्रवार को जारी फूड इंडेक्स में यह जानकारी दी गई है। इन दोनों उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी के पीछे भारत मुख्य वजह है क्योंकि भारत ने अप्रैल में चीनी निर्यात भी बंद कर दिया था। जबकि पिछले कई साल से भारत बड़े चीनी निर्यातक के रूप में उभरा था।
हालांकि, एफएओ फूड प्राइस इंडेक्स जुलाई के मुकाबले अगस्त में 2.1 फीसदी घटकर 121.3 अंकों पर आ गया जो मार्च, 2022 के उच्चतम स्तर के मुकाबले 24 फीसदी कम है। एफएओ की ओर जारी बयान में कहा गया है कि खाद्य तेलों और चावल को छोड़कर अधिकांश खाद्यान्नों की कीमतों में कमी आई है जिसकी वजह आपूर्ति का बेहतर रहना है। मगर इनके उलट एफएओ ऑल राइस प्राइस इंडेक्स जुलाई के मुकाबले अगस्त में 9.8 फीसदी बढ़ गया जिसकी वजह चावल की कीमतों के 15 साल के उच्च स्तर पर पहुंचना है। इस वृद्धि की वजह विश्व के सबसे बड़े चावल निर्यातक भारत द्वारा इंडिका व्हाइट राइस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जाना है। यह प्रतिबंध कब तक जारी रहेगा इसको लेकर अनिश्चितता कायम रहने से स्टॉक, कांट्रैक्ट्स पर दोबारा समझौता, बातचीत और नए सौदों की कीमतों को लेकर अनिश्चितता और सौदों के आकार भी छोटे हो गए हैं।
वहीं अल-नीनो के प्रभाव के चलते दुनिया के सबसे चीनी निर्यातकों में शुमार थाइलैंड में चीनी उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने से चीनी की कीमतें पिछले साल के मुकाबले इस साल अगस्त में 34.1 फीसदी अधिक रही है। जुलाई के मुकाबले अगस्त में एफएओ शुगर प्राइस इंडेक्स में 1.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
त्योहारी सीजन को कड़वा कर सकती है चीनी
टमाटर, प्याजा, दाल चावल और गेहूं के बाद अब चीनी महंगाई बढ़ाने की तैयारी में है। त्योहारों के शुरू होने के साथ ही चीनी महंगी होने लगी है। एक आंकड़े मुताबिक फिलहाल चीनी के दाम अपने 6 सालों के उच्च स्तर पर जा पहुंचा है। बाजार के जानकारों की मानें तो आने वाले दिनों में इसकी कीमत में और भी तेजी देखी जा सकती है। दरअसल इस साल मानसून में कम बारिश के चलते गन्ने के उत्पादन पर असर पड़ा है। जिसके कारण चीनी के उत्पादन में कमी और कीमतों पर अभी से असर पड़ने लगा है। जिसके कारण चीनी के दामों में तेजी देखने को मिल रही है। अगर चीनी की कीमत में बढ़ोतरी का ये दौर जारी रहा तो आने वाले त्योहारों में महंगी चीनी मिठाईयों के मिठास को कम यानी फीकी कर सकती है।
चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी का दौर जारी
एक आंकड़े के मुताबिक खुदरा बाजार में एक जनवरी 2023 को चीनी का रेट 41.45 रुपये किलो हुआ करती थी जो एक जुलाई को बढ़कर 42.98 रुपये किलो हो गई। वहीं अब औसतन 43.42 रुपये किलो की दर से बिक रही है। चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी का ये दौर जारी रहा तो आने वाले दिनों में मिठाई समेत कई अन्य चीजों के दाम बढ़ सकते हैं।
पिछले 15 दिन के अंदर चीनी की कीमत में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बीते मंगलवार को चीनी की कीमतें बढ़कर 37,760 रुपये ($454.80) प्रति टन हो गईं, जो अक्टूबर 2017 के बाद यानी 6 साल में सबसे अधिक है। खास है कि केंद्र सरकार ने चीनी मिलों को चालू सीजन में 30 सितंबर तक 6.1 मिलियन मीट्रिक टन चीनी निर्यात करने की अनुमति दी है। जबकि, पिछले साल उन्हें रिकॉर्ड तोड़ 11.1 मिलियन मीट्रिक टन चीनी बेचने की अनुमति दी गई थी। अगर इस साल गन्ने के प्रोडक्शन में गिरावट आती है, तो चीनी और महंगी हो सकती है।
चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी आने के बाद व्यापारियों और उत्पादकों ने चिंता जताई है। व्यापारियों और उत्पादकों का कहना है कि देश के मुख्य चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और कर्नाटक में इस साल अभी तक औसत से कम बारिश हुई है, जिसका असर गन्ने के प्रोडक्शन पर पड़ सकता है। अगर फसल सीजन 2023- 24 में गन्ने के प्रोडक्शन में गिरावट आती है, तो चीनी और महंगी हो सकती है। वहीं, जानकारों का कहना है कि चीनी की कीमत में उछाल आने से खुदरा महंगाई दर बढ़ सकती है। इससे खाने-पीने की चीजें महंगी हो जाएंगी।
महंगाई की मार झेलनी पड़ेगी
बता दें कि 1 अक्टूबर से नया चीनी सीजन शुरू होने वाला है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि कम बारिश की वजह से चीनी के उत्पादन में 3.3% तक गिरावट आ सकती है। इससे चीनी का प्रोडक्शन गिरकर 31.7 मिलियन मीट्रिक टन पर पहुंच सकता है। ऐसे में आम जनता को एक बार फिर से महंगाई की मार झेलनी पड़ेगी। चीनी उत्पादन में कमी की चिंताओं के चलते देश में चीनी की कीमतों में भारी उछाल दर्ज किया है। व्यापारियों और इंडस्ट्री अधिकारियों ने कहा कि चीनी की कीमतें एक पखवाड़े में 3% से अधिक बढ़कर छह साल में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। वहीं, आने वाले महीनों में कीमतों और उछाल की आशंका जताई गई है।
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