ईवीएम पर भरोसा हो तो कैसे?

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: February 10, 2020
ईवीएम गड़बड़ होने की शिकायत जीतने वाली पार्टी नहीं करती, भाजपा हारे तो वह भी नहीं करती है। इक्का दुक्का मामले अलग है। वैसे, ईवीएम के खिलाफ भाजपा ने ही ठोस शिकायत की थी। उसके नेताओं ने किताबें लिखीं पर सत्ता में आने के बाद से भाजपा को इससे शिकायत नहीं है। भाजपा का यू टर्न कई मामलों में जगजाहिर है इसलिए इसपर भी हो तो कोई खास बात नहीं है। पर दिल्ली का चुनाव कल (आठ फरवरी को) खत्म होने के बाद आज इतवार और कल सोमवार को मतगणना नहीं होना और तीन दिन बाद इसका कार्यक्रम रखा जाना गौरतलब है। और जगह तो माना जा सकता है कि मतपेटियां पहुंचने में समय लगता है पर दिल्ली में ऐसा नहीं है। फिर भी मतगणना दो दिन बाद होने के अपने मायने हैं। यह अलग बात है कि चुनाव लड़ने वालों को पता है और उनकी सहमति भी होगी ही।



इस बीच, दिल्ली में एक्जिट पोल के नतीजे में आम आदमी पार्टी के जीतने और भाजपा के हारने की साफ घोषणा के बावजूद भाजपाइयों का जीतने का दावा और चुनाव आयोग द्वारा दिल्ली में मतदान का प्रतिशत घोषित नहीं करना कम उलझाने वाला नहीं है। अरविन्द केजरीवाल ने इसे बेहद चौंकाने वाला कहा है। यह आंकड़ा अमूमन चुनाव के बाद उसी शाम या रात घोषित कर दिया जाता रहा है। ज़ी टीवी ने मतदान कम होने के लिए दिल्ली की जनता को दोषी ठहरा दिया है। पर 22:17 बजे 61.43 प्रतिशत मतदान का आखिरीआंकड़ा ट्वीट किए जाने के बाद इसे साढ़े बासठ से 63 प्रतिशत होने का अनुमान है। यह पिछली बार से साढ़े चार-पांच प्रतिशत कम होगा। लेकिन अंतिम आंकड़ा मिलने से पहले ही मतदाताओं को स्वार्थी कहने का करतब भी जारी है। आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा नहीं होना और केजरीवाल का ट्वीट चिन्ताजनक है। जीतने हारने के लिए नहीं -- ईवीएम की विश्वसनीयता के लिए। ईवीएम से छेड़छाड़ की शिकायत भी है। पर चुनाव आयोग ने इससे इनकार किया है।

अब इसके साथ यह भी तथ्य है कि (Girish Malviya की पोस्ट से) 29 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में नौ राज्यों की 72 लोकसभा सीटों पर वोट डाले गए और रात 9:39 तक 63.16 फ़ीसदी मतदान दर्ज किया गया था। लेकिन जब अगले दिन इलेक्शन कमीशन की वोटर टर्नआउट ऐप' पर डेटा अपडेट हुआ तो सिर्फ दो राज्यों, में तस्वीरे पूरी तरह से बदल चुकी थी। ये राज्य हैं उड़ीसा ओर पश्चिम बंगाल। इन दोनों राज्यों में मतदान का प्रतिशत अचानक लगभग 7 से 8 प्रतिशत बढ़ गया। ओडिशा में यह 64.24%से बढ़कर सीधे 72.89% हो गया और पश्चिम बंगाल में 76.72% से सीधा बढ़कर 82.77% हो गया। बाकी राज्यों में भी थोड़ी घट बढ़ हुई थी जैसे महाराष्ट्र में 55.86% से 56.61% हुआ है, राजस्थान में 67.91% से 68.16% हुआ। लेकिन इन दो राज्यों में जहाँ बीजेपी की स्थिति सबसे कमजोर थी और सारी ताकत उसने इन्ही दो राज्यों पर लगा रखी थी उन्हीं दो राज्यों के मतदान के आंकड़ों में इतना बड़ा अंतर आ गया। जब 2019 में लोकसभा चुनाव के परिणाम आए तब इन राज्यों में बीजेपी को 2014 की तुलना में काफी अधिक सीट मिली।

एक और तथ्य यह है कि ईवीएम के खिलाफ शिकायतों के मद्देनजर उनमें वीवीपैट लगाने का निर्णय हुआ और चुनाव आयोग ने कहा है कि रैंडम सैंपलिंग के जरिये हर विधानसभा क्षेत्र के एक पोलिंग बूथ की वीवीपैट की पर्चियों के मिलान का तरीका सबसे उपयुक्त है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वीवीपैट की 50% पर्चियों के ईवीएम नतीजों से मिलान करने से लोकसभा चुनाव के नतीजों में काफी देरी हो सकती है। विपक्षी दलों ने में डाले गए मतों की गणना में कम से कम 50 फीसदी वीवीपैट पर्चियों के ईवीएम से मिलाने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी।

चुनाव आयोग की यह दलील लोकसभा चुनाव के लिए थी लेकिन विधानसभा चुनाव के मामले में स्थिति क्या है और 50 प्रतिशत नहीं तो सिर्फ एक बूथ से ज्यादा की पर्चियां क्यों नहीं गिनी जानी चाहिए इसपर क्या फैसला है, मैं नहीं जानता। और अभी उससे महत्वपूर्ण सूचना यह है कि लोकसभा चुनाव की पर्चियां नियमानुसार एक साल बाद नष्ट की जानी चाहिए थी फिर भी चार महीने बाद ही नष्ट कर दी गईं।

यह सब क्यों हुआ – यह अखबार और टेलीविजन वाले बताते पर वो बता रहे हैं कि दिल्ली की जनता को राष्ट्रीय मुद्दों से मतलब नहीं है। वोट देने नहीं निकलती जबकि उस समय तक आधिकारिक आंकड़ा आया ही नहीं था। अभी भी नहीं आया है।

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