दिल्ली चुनाव के लिए माहौल बनाते भाजपा के भोले भक्त

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: November 19, 2019
जैसे-जैसे दिल्ली में चुनाव करीब आ रहे हैं देश की राजनीति का अश्लील और बेशर्म चेहरा उजागर होता जा रहा है। कल दिल्ली में पीने के पानी के 11 नमूनों के आधार पर उसे जहरीला घोषित करने का मामला सामने आया। उससे पहले दीवाली के आस-पास पटाखों और पराली जलाने के साथ मौसम ठंडा होने धुधं और हवा में प्रदूषण ज्यादा होने के मामले को ऐसे पेश किया गया जैसे प्रदूषण सिर्फ दिल्ली में हो और उसके लिए अकेले दिल्ली सरकार जिम्मेदार है। उस मामले में कोशिश चाहे जो हुई हो, प्रदूषण पर बैठक में कौन नहीं आया और जो आए वो कौन थे जानने के बाद आपको शायद नहीं पता हो कि कल रात भी दिल्ली के आस-पास पराली जल रही थी। इसके साथ, नई चिन्ता पीने के पानी के जहरीले होने की जताई गई। ऐसा नहीं है कि यह चिन्ता की बात नहीं है। मुझे तो यह खुशी हो रही है कि अब चुनाव से पहले पीने के पानी की गुणवत्ता पर बात हो रही है। पर इसका श्रेय आम आदमी पार्टी को जाता है। हालत यह है कि दिल्ली में अस्पताल सूचकांक पर भी चर्चा होने लगी है जबकि बिहार यूपी में सरकारी अस्पतालों के बारे में शायद ही कभी कुछ छपता हो।



दिल्ली में चुनावी माहौल बनाने की कोशिश में दिल्ली में कल जेएनयू के छात्रों पर लाठी चार्ज की खबर पहले पन्ने पर वैसे नहीं है जैसे होना चाहिए था। और सोशल मीडिया में मामले को कमजोर करने के लिए एक भक्त मित्र ने शक जताया है कि जेएनयू के गरीब छात्र अपनी आय कम या गलत बताते हैं। निश्चित रूप से यह संभव है और इसकी जांच कर आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए। पर समस्या यह कि भक्तों को मोदियाबिन्द हुआ है और वे वही जानते और देखते हैं जो चाहते हैं। एक पुरानी खबर के अनुसार, पिछली लोकसभा के सात सांसदों और खबर लिखने तक देश की भिन्न विधानसभाओं के 200 सदस्यों ने अपने पैन कार्ड विवरण नहीं दिए थे। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) की इस रिपोर्ट को 542 लोकसभा सांसदों और 4,086 विधायकों के स्थायी खाता संख्या (पैन) के विवरण के विश्लेषण के बाद तैयार किया गया था। पर कार्रवाई का पता नहीं चला। मेरा मानना है कि इस मामले में कार्रवाई होती तो माना जा सकता था कि आय के गलत विवरण देना संभव ही नहीं है और इस संबंध में कानून सख्ती से लागू है।



वास्तविक स्थिति यह है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ नहीं बोलने वाले गरीब छात्रों की पढ़ाई की उपलब्ध सुविधा के खिलाफ बोल रहे हैं। उनकी आय साल में कुछ हजार रुपए ज्यादा होना बता रहे हैं जितना देश में कई लोग एक या कुछ घंटे में कमा लेते हैं। सरकार के ये भक्त कैसे राष्ट्रवादी हैं, समझना मुश्किल नहीं है। यही लोग अब दिल्ली में पानी के नमूने पर बोल रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पानी खराब हो तो बोलना गलत है पर देश भर में कितने शहरों में लोगों को पीने का पानी सरकारी स्तर पर मुहैया कराया जाता है और उसपर बोलना भी हो तो संसद में आरोप और उसी आधार पर टेलीविजन चर्चा वह भी एनडीटीवी पर (रवीश का शो नहीं था) विषय की कमी या खासियत के लिहाज से साधारण नहीं है। इसमें आम आदमी के प्रतिनिधि ने पूछा कि रिपोर्ट किसकी है, सार्वजनिक रूप पर उपलब्ध क्यों नहीं है तो जवाब मिला कि राम विलास पासवान जैसे “पुराने, बुजुर्ग और दलित नेता” ने आरोप लगाया है, गूगल कीजिए मिल जाएगा। संसद में लगा आरोप सार्वजनिक है। जैसे जवाब मिले।

यही नहीं, टीवी पर ऐसी महान जानकारी देने वाले ये भाजपा नेता बार-बार कह रहे थे कि वे दिल्ली (भाजपा) के लिए बोलने आए हैं और इसलिए दिल्ली पर ही बोलेंगे। उनसे ये नहीं पूछा जाए कि दूसरे राज्यों में भाजपा क्या कर रही है। मैं प्रोग्राम नहीं झेल पाया। कहने की जरूरत नहीं है भाजपा के “बुजुर्ग और दलित नेता” ने संसद में आरोप लगाया है तो उस मान लेना चाहिए और दिल्ली में सत्तारूढ़ दल को जवाब देना चाहिए। दूसरे राज्यों के लिए जवाब देना जरूरी नहीं है क्योंकि आरोप लगाने वाले नेता दूसरे राज्यों में सत्तारूढ़ दल के हैं या वहां चुनाव नहीं है। दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव करीब हैं। इसलिए, छोटे-छोटे मुद्दे तो उठाए जा रहे हैं और भक्त मित्रों को चिन्ता है कि 13,000 सालाना पारिवारिक आय वाले छात्र ने जेएनयू में पढ़ने के लिए अपनी आय 12,000 तो नहीं लिख दी।

ऐसे भक्तों को नेताओं द्वारा गलत पैन विवरण देने से कोई परेशानी नहीं है।
ऊपर मैंने जिस मामले का जिक्र किया है वह चुनावी हलफनामे में पैन से संबंधित विवरण नहीं देने का है और इसके अनुसार, ‘पैन विवरण घोषित नहीं करने वाले सबसे अधिक 51 विधायक कांग्रेस के है। इसके बाद भाजपा के 42 विधायक, माकपा के 25 विधायक हैं।’ राज्यवार सबसे अधिक संख्या (33) केरल से है। इसके बाद मिजोरम (28) और मध्य प्रदेश (19) हैं। दिलचस्प बात यह है कि मिजोरम राज्य विधानसभा में विधायकों की संख्या 40 हैं जिसमें से 28 विधायकों ने अपना पैन विवरण नहीं दिया है।

गलत पैन विवरण से संबंधित कोबरा पोस्ट के एक खुलासे से पता चला था कि 194 नेताओं ने चुनाव आयोग को चुनाव लड़ने के लिए दी गई जानकारी में गलत पैन नंबर दिया है। तब मैंने इसपर bhadas4media.com में लिखा था (लिंक कमेंट बॉक्स में)। इसके अनुसार, ..... दो बार चुनाव लड़ने वाले 194 नेताओं द्वारा दो पैन नंबर दिए जाने का पता चला है। इनमें कई नामी गिरामी नेता हैं। इनके दो पैन नंबर में एक ठीक है जबकि दूसरा गलत और दिलचस्प यह है कि ज्यादातर मामलों में गलती अंकों को आगे पीछे करने या उनमें मामूली फेर-बदल करने की है। कोबरा पोस्ट ने लिखा है कि इन कुछ गलतियां गैर इरादतन की गई हो सकती हैं पर इतनी सारी गलतियां गैर इरादतन कैसे हो सकती हैं और गलती में समानता होना तो अपने आप में चौंकाने वाला है।

ऐसा करने वाले नेताओं में (उस समय की स्थिति के अनुसार) भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी , जेडीयू, एनसीपी और हिन्दुस्तान अवामी मोर्चा शामिल है। पार्टी प्रमुखों में अभी मोर्चा के जीतन राम माझी का ही नाम आया है। इन नेताओं में छह पूर्व मुख्यमंत्री, 10 कैबिनेट मंत्री, आठ पूर्व मंत्री, 54 मौजूदा विधायक, 102 पूर्व विधायक, एक पूर्व डिप्टी स्पीकर, एक पूर्व स्पीकर, एक पूर्व सांसद और एक उप मुख्यमंत्री शामिल हैं। ये नेता देश की 29 छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हैं। भाजपा के 41 नेता हैं। इनमें 13 विधायक, 15 पूर्व विधायक, 9 मंत्री, एक पूर्व स्पीकर, एक पूर्व मंत्री, एक पूर्व मुख्यमंत्री और एक गवरनर शामिल हैं। कांग्रेस के कुल 72 नेता हैं। इनमें 13 विधायक, 48 पूर्व विधायक, एक मंत्री, पांच पूर्व मंत्री, चार पूर्व मुख्यमंत्री और एक पूर्व डिप्टी स्पीकर हैं।

कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें आम आदमी पार्टी के नेताओं का नाम नहीं है। आम आदमी पार्टी के नेताओं का नाम होने पर कार्रवाई अलग और गंभीर होती आई है और अब यह कोई दबी-छिपी बात नहीं रही। यहां तक कि फर्जी डिग्री और बंद कमरे में सेक्स (संभवतः सहमति से) के आरोप में आम आदमी पार्टी के नेता और दूसरों के मामलों में हुई कार्रवाई और मीडिया की प्रतिक्रिया में अंतर साफ दिखता रहा है। इसलिए यह मानना पड़ेगा कि आम आदमी पार्टी ने कम से कम दिल्ली की राजनीति बदल दी है और इसका श्रेय अकेले उसे है। दूसरे दल इसे बदलने की बजाय पुराने ढर्रे पर ही बनाए रखने में लगे हुए हैं और कांग्रेस अलग नहीं है।

इसके बाद, इस साल जुलाई में दैनिक हिन्दुस्तान ने खबर छापी कि, लेन-देन में गलत आधार दिया तो 10 हजार रुपए दंड लगेगा। इसपर मैंने लिखा था, अनाम सूत्रों के हवाले से हिन्दुस्तान की यह खबर बताती कम उलझाती ज्यादा है। इसमें मैंने लिखा था, .... लगभग 20 हजार रुपए महीने का कारोबार करने वालों के लिए और कारोबार या दूसरे धंधों से इतना ही कमाने वालों के लिए पैन कार्ड होना जरूरी है। यही नहीं, साल में 30 हजार रुपए से ज्यादा का भुगतान (एक ही पार्टी से) मिलने पर नियम है कि स्रोत पर कर काटकर भुगतान किया जाए और अगर आपकी कुल आय कर योग्य सीमा से कम है तो आपको ये पैसे वापस मिल जाएंगे – बशर्ते आप आयकर रिटर्न दाखिल करें और भुगतान करने वाले को आपने पैन नंबर दिया हो। इस तरह नियम पहले ही काफी सख्त हैं और बचने या गड़बड़ी करने पर 10,000 रुपए के दंड का प्रावधान भले न हो – सरकारी बाबू लोग जो नाच नचाएंगे वो कौन नहीं जानता है। ऐसे में इस कानून की क्या जरूरत है यह बताए बिना इसकी सूचना देना – सख्त और बेजरूरत कानून को जायज ठहराने के लिए माहौल बनाने के सिवा और कुछ नहीं है।
 

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