थैंक यू प्रधानमंत्री जी, आपने एक बार फिर मुझे सही साबित कर दिया...

Written by Shashi Shekhar | Published on: February 4, 2020
"लेकिन, याद रखिए, किताब के पन्नों से इतर एक इतिहास जनता के मन में भी अंकित होता है. वहाँ किसी हेरफेर की गुंजाइश नहीं होती."



वाकई, ये कोई संयोग नहीं कि हर बार जो मैंने सोचा, जो मैंने बोला, वो सच साबित हुआ. आपके बारे में मेरी धारणा उसी दिन पुष्ट हो गयी थी, जिस दिन आप पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर आधा पानी, आधा हवा से भरे गिलास का उदाहरण दिल्ली के एक कॉलेज में दे रहे थे. मैं उसी दिन समझ गया था, आपसे नहीं हो पाएगा. आप 60 साल में भी ग्लास का आधा पानी चुराने वालो की न पहचान कर पाएंगे न उनके खिलाफ एक्शन ले पाएंगे, और इन 6 सालों में मैं बार-बार सही साबित होता रहा.

3 और 4 फरवरी को फिर से आपने दिल्ली विधान सभा चुनाव में जो बाते बोली है, उससे मेरी धारणा और दृढ़ हुई है.

आप कैसे मजबूत पीएम है, जिसे दिल्ली जैसे एक आधे-अधूरे स्टेट का सीएम शहर का एक रास्ता तक खाली नहीं करने देता. दिल्ली जैसे एक 50-100 किलोमीटर के रेडियस में फ़ैली पार्टी का मुखिया आपको दिल्ली के गरीबों के लिए काम नहीं करने देता. सचमुच? क्या सच में ऐसा है? हाँ, तो फिर आपकी ताकत पर , आपकी नीयत पर मुझे संदेह तो पहले भी था, अब वो संदेह और पुख्ता हो रहा है.

आपने कहा भाजपा को वोट दो वरना देश में और ऐसे रास्ते बंद होंगे. ये धमकी मतदाताओं के लिए है या उनके लिए जो आवाज उठाना जानते है, जो ज़िंदा कौम है, जो अपनी आवाज को सत्ता तक पहुंचाने के लिए 5 साल का इंतज़ार नहीं करती. फिर चाहे वो अल्पसंख्यक मुसलमान हो, देश का दलित हो, पिछड़ा वर्ग हो या फिर किसान-मजदूर.

आप तो विकास-विकास-विकास, सबका साथ-सबका विकास की बात करते थे. लेकिन आप सिर्फ बात करते है. काम तो आपके फ़ॉलोअर करते है. अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा. जनता को गोली चलाने के लिए उकसाते है, विपक्षी नेता को आतंकवादी बताते है और आप चुप रह जाते है. कम से कम इतना बोल देते, “कभी मन से माफ़ नहीं कर पाऊंगा.”

उस पर कमाल ये कि दिल्ली विधान सभा चुनाव के रण में उतरते ही आप भी कमोबेश वैसी ही बातें करते है, थोड़े-बहुत शाब्दिक फेरबदल के साथ. शब्द का अन्तर, मंशा-नीयत वही. बिजली-पानी-शिक्षा-सड़क-स्वास्थ्य-रोजगार-अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर बोलने को कुछ नहीं है तो एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राईक की याद दिलाते है, पाकिस्तान और मुसलमान का कल्पित भय दिखाते है. आखिर कब तक करेंगे ये सब...? करिए, जब तक मन हो.

लेकिन, याद रखिए, किताब के पन्नों से इतर एक इतिहास जनता के मन में भी अंकित होता है. वहाँ किसी हेरफेर की गुंजाइश नहीं होती.
 

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