शाहीन बाग का आंदोलन स्वतंत्र भारत ही नहीं पूरे भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा "अहिंसक आंदोलन" है, फिर भी उच्चतम न्यायालय, पूरी सरकार और पूरी मीडिया इसके पीछे पड़ी है।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिंसा हुई, काकोरी, चौरीचौरा जैसें हिंसक कांड हुए, असेंबली में बम फेंके गये, "तुम मुझे खून दो" जैसे हिंसा को बढ़ावा देते नारे लगे पर 70 वें दिन में प्रवेश कर रहे शाहीनबाग और शाहीनबाग की आत्मा से जीवित देशभर के 2500 शाहीनबागों में एक कंकड़ भी कहीं नहीं चला, ना कहीं हिंसक बातें हुईं।
हाँ जालियाँवालाबाग की तर्ज पर जामिया, एएमयू और उत्तर प्रदेश में सरकार प्रायोजित हिंसा हुई पर देश के 2500 शाहीनबाग शांतिपुर्ण लोकतांत्रिक तरीके से चलते रहे फिर भी देश की सारी व्यवस्थाओं को शाहीनबाग से समस्या है। उसे खत्म करने के हर तरफ से प्रयास किए जा रहे हैं, अफसोस तो यह है कि इस प्रयास में उच्चतम न्यायालय भी शामिल है।
स्वतंत्रत भारत में हज़ारों आंदोलन हुए हैं, जेपी आंदोलन हुआ है, 25 जून 1975 की रात में देश में आपातकाल लगा, जय प्रकाश के नेतृत्व में इसके खिलाफ़ आंदोलन हुए। भीड़ द्वारा इंडियन नेशन-आर्यावर्त में आग लगाने का प्रयास हुआ एक कांग्रेसी मंत्री के सुजाता होटल में भी आग लगाई गई।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
फिर इसी देश में मंडल आयोग की रिपोर्ट्स को लागू करने के खिलाफ आंदोलन हुए, जिसमें बड़े पैमाने पर हिंसा "राजीव गोस्वामी" के आत्मदाह करने से शुरू हुई। देश के सभी विश्वविद्यालयों, सड़कों पर हिंसा का तांडव हुआ।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
फिर इस देश में मंडल आयोग के विरोधियों को भगवा चोला पहना कर इसी देश में एक और आंदोलन चलाया गया, "राम मंदिर आंदोलन"।
यह स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन था, भारतीय इतिहास का सबसे हिंसक आंदोलन था जिसमें दंगे थे, बर्बादी थी, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार था, आडवाणी की रथयात्रा जिधर जिधर से गुज़री दंगे उस क्षेत्र को अपनी चपेट में लेते चले गये, कत्लेआम हुए, एक धर्म की इबादतगाह तोड़ दी गयी, उसे गैरकानूनी तरीके से संविधान, उच्चतम न्यायालय और संसद के मान सम्मान को ध्वस्त करके विद्वंस कर दिया गया।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
भरतपुर के बयाना में 21 मई 2015 को गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला(अब भाजपा मे) के नेतृत्व में गुर्जरों ने महापंचायत की और सरकार को मात्र एक घंटे में वार्ता शुरू करने का अल्टीमेटम दिया। इसके बाद वे पैदल मार्च निकालकर पटरियों तक पहुंचे और पटरियों पर बैठकर आंदोलन करने लगे।
गुर्जर आंदोलन के कारण केवल रेल विभाग को ही 100 करोड़ रूपयों से ज्यादा का नुकसान हुआ, 21 तारीख से केवल रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट, आईआरसीटीसी पर ही लाखों की संख्या में यात्रियों के टिकट रद्द हुए और सैकड़ों ट्रेने रद्द हुईं।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
हरियाणा में चले जाट आरक्षण आंदोलन से सरकारी आँकड़ों के अनुसार ₹34,000 करोड़ का नुकसान और 18 जानें गयीं, कुल 1000 ट्रेनें प्रभावित हुईं और 10 लाख से भी ज्यादा पैसेंजर परेशान हुए।
एक पूरे शहर रोहतक को जलाकर खाक कर दिया गया, कारों के शोरूम हज़ारों कारों समेत जलाकर खाक कर दिये गये।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
बाबा रामपाल, बाबा राम रहीम के अनुयायियों का आंदोलन याद करिए, पूरा का पूरा शहर हिंसा की चपेट में रहा, तमाम लोग मारे गये।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
पाटिदार आंदोलन को याद कर लीजिए, पूरा अहमदाबाद, बड़ौदा, सूरत बंधक बना रहा, तमाम लोग मारे गये, बड़े पैमाने पर हिंसा हुई।
ये इस देश में हुए हज़ारों आंदोलनों का एक चरित्र है।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
फिर भी शाहीनबाग के 150 मीटर के एकतरफ की रोडब्लाक से इतनी समस्या कि यह राष्ट्रीय समस्या हो गयी ? और उच्चतम न्यायालय, पूरी सरकार और पूरी भाँड मीडिया इसके पीछे पड़ी है।
उच्चतम न्यायालय की नियुक्त मध्यस्थ साधना रामचंद्रन जिस तरह शाहीनबाग में मंच से बैठ कर धमकी पर धमकी, डाँटना, चिल्लाना कर रहीं थीं, आंदोलनकारियों को वहाँ से बाहर कर रहीं थीं, फिर भी वह सम्मान पाती रहीं तो शाहीनबाग का चरित्र समझिए और सोचिए कि यही मध्यस्थ उपरोक्त आंदोलन में जा कर यही व्यवहार करते तो इनका क्या होता ?
और फिर तुर्रा यह कि हम हिंसक होते हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिंसा हुई, काकोरी, चौरीचौरा जैसें हिंसक कांड हुए, असेंबली में बम फेंके गये, "तुम मुझे खून दो" जैसे हिंसा को बढ़ावा देते नारे लगे पर 70 वें दिन में प्रवेश कर रहे शाहीनबाग और शाहीनबाग की आत्मा से जीवित देशभर के 2500 शाहीनबागों में एक कंकड़ भी कहीं नहीं चला, ना कहीं हिंसक बातें हुईं।
हाँ जालियाँवालाबाग की तर्ज पर जामिया, एएमयू और उत्तर प्रदेश में सरकार प्रायोजित हिंसा हुई पर देश के 2500 शाहीनबाग शांतिपुर्ण लोकतांत्रिक तरीके से चलते रहे फिर भी देश की सारी व्यवस्थाओं को शाहीनबाग से समस्या है। उसे खत्म करने के हर तरफ से प्रयास किए जा रहे हैं, अफसोस तो यह है कि इस प्रयास में उच्चतम न्यायालय भी शामिल है।
स्वतंत्रत भारत में हज़ारों आंदोलन हुए हैं, जेपी आंदोलन हुआ है, 25 जून 1975 की रात में देश में आपातकाल लगा, जय प्रकाश के नेतृत्व में इसके खिलाफ़ आंदोलन हुए। भीड़ द्वारा इंडियन नेशन-आर्यावर्त में आग लगाने का प्रयास हुआ एक कांग्रेसी मंत्री के सुजाता होटल में भी आग लगाई गई।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
फिर इसी देश में मंडल आयोग की रिपोर्ट्स को लागू करने के खिलाफ आंदोलन हुए, जिसमें बड़े पैमाने पर हिंसा "राजीव गोस्वामी" के आत्मदाह करने से शुरू हुई। देश के सभी विश्वविद्यालयों, सड़कों पर हिंसा का तांडव हुआ।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
फिर इस देश में मंडल आयोग के विरोधियों को भगवा चोला पहना कर इसी देश में एक और आंदोलन चलाया गया, "राम मंदिर आंदोलन"।
यह स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन था, भारतीय इतिहास का सबसे हिंसक आंदोलन था जिसमें दंगे थे, बर्बादी थी, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार था, आडवाणी की रथयात्रा जिधर जिधर से गुज़री दंगे उस क्षेत्र को अपनी चपेट में लेते चले गये, कत्लेआम हुए, एक धर्म की इबादतगाह तोड़ दी गयी, उसे गैरकानूनी तरीके से संविधान, उच्चतम न्यायालय और संसद के मान सम्मान को ध्वस्त करके विद्वंस कर दिया गया।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
भरतपुर के बयाना में 21 मई 2015 को गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला(अब भाजपा मे) के नेतृत्व में गुर्जरों ने महापंचायत की और सरकार को मात्र एक घंटे में वार्ता शुरू करने का अल्टीमेटम दिया। इसके बाद वे पैदल मार्च निकालकर पटरियों तक पहुंचे और पटरियों पर बैठकर आंदोलन करने लगे।
गुर्जर आंदोलन के कारण केवल रेल विभाग को ही 100 करोड़ रूपयों से ज्यादा का नुकसान हुआ, 21 तारीख से केवल रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट, आईआरसीटीसी पर ही लाखों की संख्या में यात्रियों के टिकट रद्द हुए और सैकड़ों ट्रेने रद्द हुईं।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
हरियाणा में चले जाट आरक्षण आंदोलन से सरकारी आँकड़ों के अनुसार ₹34,000 करोड़ का नुकसान और 18 जानें गयीं, कुल 1000 ट्रेनें प्रभावित हुईं और 10 लाख से भी ज्यादा पैसेंजर परेशान हुए।
एक पूरे शहर रोहतक को जलाकर खाक कर दिया गया, कारों के शोरूम हज़ारों कारों समेत जलाकर खाक कर दिये गये।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
बाबा रामपाल, बाबा राम रहीम के अनुयायियों का आंदोलन याद करिए, पूरा का पूरा शहर हिंसा की चपेट में रहा, तमाम लोग मारे गये।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
पाटिदार आंदोलन को याद कर लीजिए, पूरा अहमदाबाद, बड़ौदा, सूरत बंधक बना रहा, तमाम लोग मारे गये, बड़े पैमाने पर हिंसा हुई।
ये इस देश में हुए हज़ारों आंदोलनों का एक चरित्र है।
पर शाहीनबागों ने ऐसा कुछ नहीं किया "तिरंगा सीने से लगाए संविधान की प्रस्तावना पढ़ते रहे"।
फिर भी शाहीनबाग के 150 मीटर के एकतरफ की रोडब्लाक से इतनी समस्या कि यह राष्ट्रीय समस्या हो गयी ? और उच्चतम न्यायालय, पूरी सरकार और पूरी भाँड मीडिया इसके पीछे पड़ी है।
उच्चतम न्यायालय की नियुक्त मध्यस्थ साधना रामचंद्रन जिस तरह शाहीनबाग में मंच से बैठ कर धमकी पर धमकी, डाँटना, चिल्लाना कर रहीं थीं, आंदोलनकारियों को वहाँ से बाहर कर रहीं थीं, फिर भी वह सम्मान पाती रहीं तो शाहीनबाग का चरित्र समझिए और सोचिए कि यही मध्यस्थ उपरोक्त आंदोलन में जा कर यही व्यवहार करते तो इनका क्या होता ?
और फिर तुर्रा यह कि हम हिंसक होते हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)