उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति व अन्य परंपरागत वनवासी समुदाय के पट्टाधारकों को भी मिलेगा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वनवासी (ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट डवैलर्स) समुदाय के पट्टाधारकों को भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में लाभार्थी के रूप में शामिल किया जाएगा। प्रदेश के अपर मुख्य सचिव कृषि डॉ देवेश चतुर्वेदी द्वारा इस संबध में समस्त जिलाधिकारियों को भेजे गए परिपत्र में कहा गया है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान योजना) के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत पट्टाधारी वनवासियों को योजना का लाभ देने का निर्णय लिया गया है।
परिपत्र में कहा गया है कि योजना की गाइडलाइन के अनुसार, पात्रता शर्तों को पूर्ण करने पर अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत पट्टाधारी वनवासियों को योजना में शामिल किया जाए। यह भी निर्देशित किया गया है कि भारत सरकार द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों एवं योजना की गाइड लाइन के अनुसार पात्रता की श्रेणी में आने पर अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वनवासियों (रिकग्नीशन आफ फॉरेस्ट राइट एक्ट-2006) को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ निर्धारित नियम एवं प्रक्रिया के अनुसार दिलाया जाये।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि भारत सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक योजना है जो छोटे और सीमान्त किसान जिनके पास 2 हेक्टेयर (करीब 5 एकड़) से कम भूमि है उनको आर्थिक सहायता प्रदान करती है।
हालांकि योजना की नई अपडेट यह है कि अब इस योजना में सभी किसानों को शामिल कर लिया गया है। पहले सिर्फ 2 हेक्टेयर या उससे कम भूमि वाले किसानों को ही शामिल किया गया था। खास है कि अब तक किसानों को 2 हजार रुपये की अगस्त तक छह किस्तें मिल चुकी हैं। योजना में जो नए किसान जुड़े हैं उन्हें नवम्बर में पैसे मिल सकते हैं। हालांकि अभी करोड़ों की बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं जिन्हें अभी सभी 6 किस्तों का लाभ नहीं मिल सका है। किसी को एक ही क़िस्त मिली है तो कुछ को 2, 3, 4 या 5 क़िस्त ही मिल सकी हैं।
योजना के तहत सभी किसानों को न्यूनतम आय सहायता के रूप में प्रति वर्ष 6 हजार रूपया मिल रहा है. यह 1 दिसम्बर 2018 से लागू यह योजना किसानों के लिए कृषि निवेश जुटाने में सहायक साबित हो रही है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत ₹ 6,000 प्रति वर्ष प्रत्येक पात्र किसान को तीन किश्तों में भुगतान किया जाता है और सहायता राशि सीधे उनके बैंक खातों में जमा हो जाती है। जिसमें प्रत्येक 4 माह के बाद किसान को 2 हजार की सहायता राशी दी जाती है। योजना की शुरुआत वर्ष 2018 के रबी सीजन में की गई थी।
योजना की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक ऐसे भूमि धारकों को इस स्कीम का लाभ नहीं मिलेगा। जो संवैधानिक पद पर पूर्व या वर्तमान में आसीन हैं। जैसे वर्तमान या पूर्व मंत्री, वर्तमान या पूर्व सांसद, वर्तमान या पूर्व विधायक और विधान पार्षद, किसी नगर निगम के वर्तमान या पूर्व मेयर, जिला पंचायत के वर्तमान या पूर्व चेयरमैन। वहीं मल्टी टास्किंग या ग्रुप-4 या ग्रुप-डी कर्मचारियों को छोड़कर सभी कार्यरत या सेवामुक्त हो चुके केंद्र या राज्य सरकार या केंद्र या राज्य पीएसई के कर्मचारी। मल्टी टास्किंग या ग्रुप-4 या ग्रुप-डी को छोड़कर 10,000 रुपये से अधिक की मासिक पेंशन प्राप्त करने वाले सभी पेंशनर को योजना से बाहर रखा गया है। पिछले आकलन वर्ष में इनकम टैक्स भरने वाले किसान भी पात्र नहीं हैं। वहीं डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, सीए और आर्किटेक्ट जैसे प्रोफेशनल अगर खेती करते हैं तो भी उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा।
अगर आपका खेत आपके पिता या दादा के नाम पर है तो भी आपको हर साल 6,000 रुपये की सीधी आर्थिक सहायता नहीं मिलेगी। पीएम किसान योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए जमीन आपके नाम पर होनी चाहिए। अगर आप किराए पर दूसरे की जमीन लेकर खेती करते हैं तो आपको इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा। अगर आपने रजिस्ट्रेशन फॉर्म में जानबूझकर कोई गलत जानकारी दी है तो आपको इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा।
कृषि अधिकारियों के अनुसार जल्द ही अभियान चलाकर अनुसूचित जनजाति और वनवासी (टोंगिया आदि) समुदाय जिन्हें वनाधिकार कानून 2006 के तहत जमीन का पट्टा मिला है, योजना का लाभ दिया जाएगा। उधर, वनाश्रित समुदाय पहले उनके वनाधिकार को सुनिश्चित किए जाने की मांग कर रहे हैं।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव अशोक चौधरी कहते हैं कि उप्र सरकार, पहले वनाधिकार कानून का अनुपालन सुनिश्चित कराए और समुदाय के वनाधिकार को मान्यता प्रदान करने का काम करे। उन्होंने कहा कि उप्र में बड़े पैमाने पर लाखों की संख्या में वनाश्रित समुदायों के दावे प्रपत्र लंबित पड़े हुए हैं। सरकार को पहले अभियान चलाकर वनाश्रित समुदाय के दावे प्रपत्रों को मान्यता प्रदान करने का काम करना चाहिए, उसके बाद ही आगे की बात की जानी चाहिए। वनाधिकार मिलने से पहले इस तरह की बातों या योजनाओं के कोई मायने नहीं हैं और न ही कोई लाभ हैं।
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वनवासी (ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट डवैलर्स) समुदाय के पट्टाधारकों को भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में लाभार्थी के रूप में शामिल किया जाएगा। प्रदेश के अपर मुख्य सचिव कृषि डॉ देवेश चतुर्वेदी द्वारा इस संबध में समस्त जिलाधिकारियों को भेजे गए परिपत्र में कहा गया है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान योजना) के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत पट्टाधारी वनवासियों को योजना का लाभ देने का निर्णय लिया गया है।
परिपत्र में कहा गया है कि योजना की गाइडलाइन के अनुसार, पात्रता शर्तों को पूर्ण करने पर अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत पट्टाधारी वनवासियों को योजना में शामिल किया जाए। यह भी निर्देशित किया गया है कि भारत सरकार द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों एवं योजना की गाइड लाइन के अनुसार पात्रता की श्रेणी में आने पर अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वनवासियों (रिकग्नीशन आफ फॉरेस्ट राइट एक्ट-2006) को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ निर्धारित नियम एवं प्रक्रिया के अनुसार दिलाया जाये।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि भारत सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक योजना है जो छोटे और सीमान्त किसान जिनके पास 2 हेक्टेयर (करीब 5 एकड़) से कम भूमि है उनको आर्थिक सहायता प्रदान करती है।
हालांकि योजना की नई अपडेट यह है कि अब इस योजना में सभी किसानों को शामिल कर लिया गया है। पहले सिर्फ 2 हेक्टेयर या उससे कम भूमि वाले किसानों को ही शामिल किया गया था। खास है कि अब तक किसानों को 2 हजार रुपये की अगस्त तक छह किस्तें मिल चुकी हैं। योजना में जो नए किसान जुड़े हैं उन्हें नवम्बर में पैसे मिल सकते हैं। हालांकि अभी करोड़ों की बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं जिन्हें अभी सभी 6 किस्तों का लाभ नहीं मिल सका है। किसी को एक ही क़िस्त मिली है तो कुछ को 2, 3, 4 या 5 क़िस्त ही मिल सकी हैं।
योजना के तहत सभी किसानों को न्यूनतम आय सहायता के रूप में प्रति वर्ष 6 हजार रूपया मिल रहा है. यह 1 दिसम्बर 2018 से लागू यह योजना किसानों के लिए कृषि निवेश जुटाने में सहायक साबित हो रही है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत ₹ 6,000 प्रति वर्ष प्रत्येक पात्र किसान को तीन किश्तों में भुगतान किया जाता है और सहायता राशि सीधे उनके बैंक खातों में जमा हो जाती है। जिसमें प्रत्येक 4 माह के बाद किसान को 2 हजार की सहायता राशी दी जाती है। योजना की शुरुआत वर्ष 2018 के रबी सीजन में की गई थी।
योजना की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक ऐसे भूमि धारकों को इस स्कीम का लाभ नहीं मिलेगा। जो संवैधानिक पद पर पूर्व या वर्तमान में आसीन हैं। जैसे वर्तमान या पूर्व मंत्री, वर्तमान या पूर्व सांसद, वर्तमान या पूर्व विधायक और विधान पार्षद, किसी नगर निगम के वर्तमान या पूर्व मेयर, जिला पंचायत के वर्तमान या पूर्व चेयरमैन। वहीं मल्टी टास्किंग या ग्रुप-4 या ग्रुप-डी कर्मचारियों को छोड़कर सभी कार्यरत या सेवामुक्त हो चुके केंद्र या राज्य सरकार या केंद्र या राज्य पीएसई के कर्मचारी। मल्टी टास्किंग या ग्रुप-4 या ग्रुप-डी को छोड़कर 10,000 रुपये से अधिक की मासिक पेंशन प्राप्त करने वाले सभी पेंशनर को योजना से बाहर रखा गया है। पिछले आकलन वर्ष में इनकम टैक्स भरने वाले किसान भी पात्र नहीं हैं। वहीं डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, सीए और आर्किटेक्ट जैसे प्रोफेशनल अगर खेती करते हैं तो भी उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा।
अगर आपका खेत आपके पिता या दादा के नाम पर है तो भी आपको हर साल 6,000 रुपये की सीधी आर्थिक सहायता नहीं मिलेगी। पीएम किसान योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए जमीन आपके नाम पर होनी चाहिए। अगर आप किराए पर दूसरे की जमीन लेकर खेती करते हैं तो आपको इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा। अगर आपने रजिस्ट्रेशन फॉर्म में जानबूझकर कोई गलत जानकारी दी है तो आपको इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा।
कृषि अधिकारियों के अनुसार जल्द ही अभियान चलाकर अनुसूचित जनजाति और वनवासी (टोंगिया आदि) समुदाय जिन्हें वनाधिकार कानून 2006 के तहत जमीन का पट्टा मिला है, योजना का लाभ दिया जाएगा। उधर, वनाश्रित समुदाय पहले उनके वनाधिकार को सुनिश्चित किए जाने की मांग कर रहे हैं।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव अशोक चौधरी कहते हैं कि उप्र सरकार, पहले वनाधिकार कानून का अनुपालन सुनिश्चित कराए और समुदाय के वनाधिकार को मान्यता प्रदान करने का काम करे। उन्होंने कहा कि उप्र में बड़े पैमाने पर लाखों की संख्या में वनाश्रित समुदायों के दावे प्रपत्र लंबित पड़े हुए हैं। सरकार को पहले अभियान चलाकर वनाश्रित समुदाय के दावे प्रपत्रों को मान्यता प्रदान करने का काम करना चाहिए, उसके बाद ही आगे की बात की जानी चाहिए। वनाधिकार मिलने से पहले इस तरह की बातों या योजनाओं के कोई मायने नहीं हैं और न ही कोई लाभ हैं।