UP: बारिश से फसल बर्बाद होने पर किसान ने की आत्महत्या, बेरोजगारी ले रही युवाओं की जान

Written by Navnish Kumar | Published on: February 14, 2022
भारी बारिश के चलते फसल को हुए नुकसान के बाद यूपी के फिरोजाबाद जिले के जटाऊ गांव में 27 वर्षीय किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। किसान सत्येंद्र ने अपनी 3 बीघा जमीन पर मिर्ची बोई थी और 20 बीघा किराए पर ली थी। बारिश के कारण फसल बर्बाद हो गई। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तीन दिन पहले उसका शव घर के एक कमरे में पंखे से लटकता मिला। फिरोजाबाद जिला प्रशासन ने परिवार को मदद का भरोसा दिया है। उसके भाई यतेंद्र व ग्रामीणों के मुताबिक, सत्येंद्र फसल बर्बाद होने के बाद सदमे की स्थिति में था। उन्होंने कहा कि वह भारी कर्ज में था और उसे चुकाने के लिए दबाव में था। वह अपने पीछे दो छोटे बच्चे छोड़ गया हैं।


प्रतीकात्मक तस्वीर

पिछले माह फिरोजाबाद के ही नरखी प्रखंड में 42 वर्षीय किसान की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी, जब बारिश और ओलावृष्टि से उसकी गेहूं व सरसों की फसल नष्ट हो गई थी। रामेश्वर जिनका शव 18 जनवरी को एक खेत में मिला था, उन्होंने 10 बीघा जमीन पर आलू बोया था और 15 बीघा किराए पर लिया था। 

एक ओर कर्ज और आर्थिक तंगी के चलते किसानों की आत्महत्या बढ़ रही है तो दूसरी ओर, बढ़ती बेरोजगारी युवाओं की जान ले रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की मानें तो पिछले 3-4 सालों में आत्महत्याओं में तेजी आई है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट कर बीजेपी पर अहंकार के आरोप लगाते हुए बढ़ती आत्महत्याओं को राष्ट्रीय चिंता, बेचैनी व आक्रोश को बढ़ाने वाला बताया है। साथ ही कहा कि किसानों के साथ युवाओं द्वारा आत्महत्या करने की खबरें विचलित करती है।

बसपा प्रमुख मायावती अपने ट्वीट में लिखती हैं "कर्ज में डूबी घुटन का जीवन जीने को मजबूर किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरें विचलित करती हैं, किन्तु अब बेरोजगार युवाओं द्वारा भी आत्महत्या करने की विवशता ने राष्ट्रीय चिन्ता, बेचैनी व आक्रोश को और बढ़ा दिया है। फिर भी विकास व इण्डिया शाइनिंग आदि जैसा भाजपा का दावा कितना उचित?" साथ ही, भाजपा द्वारा संसद में भी बेरोजगारी की ज्वलन्त राष्ट्रीय समस्या से इंकार करना इनकी यह गलत व अहंकारी सोच नहीं है तो और क्या है? कौन युवा बेरोजगारी का ताना व अपमान सहना चाहता है? भाजपा के लोग अपनी संकीर्ण सोच व मानसिकता को त्यागें तभी देश का कुछ भला संभव।

एनसीआरबी के ताजा आंकड़े कहते हैं कि तीन साल में कर्ज, आर्थिक तंगी और बेरोजगारी ने 25,000 जान लील ली है। सरकार ने पिछले 3 सालों में बेरोजगार होने वाले और आर्थिक तंगी से दिवालिया होकर आत्महत्या करने वालों का एनसीआरबी का आंकड़ा संसद को बताया है। सरकार ने बताया कि 2020 में बेरोजगारी के कारण 3,548 लोगों ने खुदकुशी की। गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बीते बुधवार राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि 2020 में बेरोजगारी के कारण 3,548 लोगों ने आत्महत्या की। जबकि 2018 से 2020 के बीच 16,000 से अधिक लोगों ने दिवालिया होने या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या की है। इस तीन साल की अवधि में बेरोजगारी के चलते 9,140 लोगों ने अपनी जान ले ली। गृह राज्यमंत्री ने कहा कि 2020 में 3548 लोगों ने जबकि 2019 में 2851 लोगों ने बेरोजगारी के चलते खुदकुशी की। 

एनसीआरबी आंकड़ों के अनुसार, 2020 में कर्नाटक (720) में बेरोजगारों ने सबसे अधिक आत्महत्याएं कीं, इसके बाद महाराष्ट्र (625), तमिलनाडु (336), असम (234), और उत्तर प्रदेश (227) का स्थान रहा। 2020 में दिवालियापन या कर्ज नहीं चुका पाने के कारण आत्महत्याओं में महाराष्ट्र पहले स्थान पर रहा। यह प्रदेश किसानों की सबसे अधिक आत्महत्याओं की रिपोर्ट करता है। महाराष्ट्र में 2020 में 1,341 आत्महत्या हुईं। इसके बाद कर्नाटक (1,025), तेलंगाना (947), आंध्र प्रदेश (782) और तमिलनाडु (524) का स्थान है। तमिलनाडु को छोड़कर अन्य राज्यों में आमतौर पर सबसे अधिक किसान आत्महत्याएं करते हैं।

दरअसल, भारत में कोरोना महामारी के बाद से रोजगार के क्षेत्र में जहां नौकरी ढूंढने वालों की संख्या कई गुना बढ़ी है। वहीं महामारी ने कारोबार भी चौपट कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि दिसंबर में 5.2 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार थे और नौकरियां खोज रहे थे। इनमें वे लोग शामिल नहीं हैं जो अब नौकरियां खोज ही नहीं रहे हैं। भारत में नौकरी के योग्य यानी 15 से 64 वर्ष आयु के लोगों की संख्या एक अरब मानी जाती है। सीएमआईई के मुताबिक इनमें से सिर्फ 40.3 करोड़ ही नौकरी वाले हैं। 2016 में नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी लागू होने के बाद से आत्महत्या की घटना तेजी से बढ़ी हैं। 

आत्महत्या के मामलों में तेजी के पीछे जानकर, सरकार द्वारा जनता पर अपनी गलत नीतियां थोपने को मान रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (ncrb) के आकड़ो में भी साफ़ है। 2016 अंत में मोदी जी ने रातों-रात नोटबंदी का फैसला लिया और फिर उसके कुछ ही दिन के बाद जीएसटी लागू कर दिया। जिससे छोटे-मोटे व्यापारी, उद्योग, रेडी, ठेले और दुकानदार के व्यापार पर बहुत बुरा असर पड़ा। आत्महत्या में तेजी का सिलसिला भी तभी से शुरू हुआ है।

एनसीआरबी आंकड़े बताते हैं कि पिछले 4 सालों में आत्महत्या के मामले बहुत तेज़ी से बढ़े है। देश में 2017 में 1.3 लाख लोगों ने आत्महत्या की थी। वही 2018 में 1.34 लाख लोगों ने आत्महत्या की, 2019 में 1.39 लाख लोगों ने आत्महत्या की; जबकि 2020 में 1.53 लाख लोगों ने आत्महत्या की।

2020 में आत्महत्या के मामलों में 10 फ़ीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। इस वृद्धि का कारण यह है कि लोगों को कोरोना काल में लॉकडाउन के चलते कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। इस दौरान सरकार से जिस तरह की आर्थिक मदद लोगों को मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल पाई, जिससे आत्महत्या की दर बढ़ी है। बेरोज़गारी दूसरा बड़ा मुद्दा है जिससे करोड़ों युवा परेशान है। आलम यह है कि कुछ सरकारी पदों की भर्ती के लिए करोड़ों आवेदन आ जाते हैं। इससे भी बुरा यह है कि सालों तक परीक्षाएं नहीं हो पाती हैं, और फिर ना जाने कितने युवा ओवर ऐज के चलते बाहर हो जाते हैं। जिससे कई युवा हताशाओं से भर जाते हैं और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। जैसा कि एनसीआरबी के आकड़े बताते हैं, देश में 2017 में 12,241 बेरोजग़ार लोगों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2020 में 10 फ़ीसदी ज्यादा यानी 15,652 बेरोजग़ार लोगों ने आत्महत्या की है।

यही नहीं, कृषि से जुड़े किसानो और मजदूरों ने 2017 में 10,655 आत्महत्या की थी, जबकि 2020 में क़रीब 10,677 किसानों और मजदूरों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या के आकड़ो में सबसे ज्यादा डराने वाला आंकड़ा दिहाड़ी मजदूरों का है, 2017 में 28,741 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की जबकि 2020 में क़रीब 25 फ़ीसदी यानी 37,666 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की है। साथ ही स्व-रोज़गार से जुड़े 13,789 लोगों ने 2017 में आत्महत्या की थी, जबकि 2020 में 17,332 लोगों ने आत्महत्या की है।

एनसीआरबी, आंकड़ों के साथ आत्महत्या के कारणों का भी रिकॉर्ड रखता है। किसी भी व्यक्ति के आत्महत्या करने के बाद, आत्महत्या का कारण अलग-अलग हिस्सों में बट जाता है। जैसा कि एनसीआरबी के आकड़े बताते है, 2020 में 1.53 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जिनमे से 51,477 लोगों ने आत्महत्या पारिवारिक समस्या के कारण की है। जाहिर सी बात है, माध्यम वर्ग के परिवारों में ज़्यादातर समस्याएं आर्थिक होती है जोकि नई-नई समस्याओं के रूप में उभरकर सामने आती है और जब कोई आत्महत्या का कदम उठता लेता है तो आत्महत्या का मूल कारण छिप जाता है। जैसा कि एनसीआरबी के आकड़े बताते हैं कि 2020 में 1.53 लाख लोगों में से 96,810 उन लोगों ने आत्महत्या की है, जिनकी सालाना आमदनी 1 लाख से कम है।

वहीं दिवालियापन या ऋण से ग्रस्त 5,151 लोगों ने 2017 में आत्महत्या की थी जबकि 2020 में 5,213 ऋण से ग्रस्त लोगों ने आत्महत्या की है। ग़रीबी के कारण 2017 में 1,198 लोगों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2020 में 1,901 लोगों ने आत्महत्या की है, और बेरोजगारी के कारण 2017 में 2,404 लोगों ने आत्महत्या की जबकि 2020 में 3,548 लोगों ने आत्महत्या की।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एनसीआरबी ने जो आत्महत्या के कारण दिए है, उनमे एक में एक अज़ीब बात यह है की 2020 में 30,978 ऐसे लोगों ने आत्महत्या की है, जिनका या तो कारण पता नहीं है और कारण परिभाषित नहीं है। लेकिन जब हम देश में हुई आत्महत्याओं की आर्थिक स्थिति देखते है तो आत्महत्या का कारण साफ़ नजर आता है। देश में सबसे ज़्यादा उन लोगों ने आत्महत्या की है, जिनकी सालाना आमदनी 1 लाख से कम है। 2020 में 1.53 लाख लोगों ने आत्महत्या की है, जिनमें से 63 फ़ीसदी यानी 96,810 उन लोगों ने आत्महत्या की जिनकी सालाना आमदनी एक लाख से कम है। वही 32 फ़ीसदी यानी 49,270 उन लोगों ने आत्महत्या की, जिनकी सालाना आमदनी 1 लाख से ज्यादा और 5 लाख से कम है, क़रीब 4 फ़ीसदी यानी 5,745 उन लोगों ने आत्महत्या की जिनकी सालाना आमदनी 5 लाख से ज़्यादा और 10 लाख से कम है। 0.80 फ़ीसदी यानी 1,227 लोगों ने आत्महत्या की जिनकी सालाना आमदनी 10 लाख से ज़्यादा है। 
                                     
एनसीआरबी के आंकड़े साफ बताते हैं कि देश के हालात बहुत ही नाजुक हैं। सरकार को अपनी वाह-वाही बटोरने से ज़्यादा जनता की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने की तरफ़ घ्यान देना चाहिए। सरकार, युवाओं के लिए रोज़गार के संसाधन उपलब्ध कराए। दिहाड़ी मजदूर को काम मिले। किसानों को उनकी फसल का उचित दाम मिले। यह सरकार की प्रथम भूमिका होनी चाहिए। लेकिन सरकार अभी भी मुफ्त वैक्सीन, मुफ्त राशन का कार्ड बनवाने और लोगों का घ्यान असल मुद्दों से भटकाने में लगी हुई है, जोकि देश को ओर भी गर्त में लेकर जा रहा है।

उधर, किसानों की खुदकुशी का मामला सीधे-सीधे उनकी दुर्दशा से जुड़ा है। सरकारें किसानों और किसानी की दशा सुधारने का दम तो खूब भरती हैं, मगर हकीकत यह है कि कृषि क्षेत्र की हालत दिन पर दिन दयनीय होती गई है। लोकसभा में एक प्रश्न का लिखित जवाब देते हुए गृह राज्यमंत्री ने बताया कि पिछले तीन सालों में सत्रह हजार किसानों ने खुदकुशी की। यह आंकड़ा राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा दर्ज किया गया है। सरकार किसानों को उबारने को अनेक योजनाएं चलाने का दावा करती है। जिनमें फसल बीमा, आसान शर्तों पर कृषि कर्ज मुहैया कराना है मगर उनका भी कोई लाभ नजर नहीं आया। हालांकि कई साल से किसानों की खुदकुशी से जुड़े आंकड़े उजागर नहीं हो रहे थे, इसलिए कई लोगों को भ्रम था कि अब किसानों की आत्महत्या का सिलसिला रुक गया है। 

मगर हकीकत इसके उलट है। बहुत सारे किसान कर्ज लेकर नगदी फसलों की बुआई करते हैं, मगर मौसम की मार की वजह से जब फसल चौपट हो जाती है, तो न तो फसल बीमा योजना से उसकी भरपाई हो पाती है और न उनके पास वह कर्ज उतारने का कोई अन्य साधन होता है। इस तरह कर्ज का बोझ बढ़ने से वे एक दिन जिंदगी से ही हार बैठते हैं। फिरोजाबाद का सत्येंद्र इसका ताजा उदाहरण है। अब अगर देश में एक भी किसान को खेती में घाटे की वजह से खुदकुशी का रास्ता अख्तियार करना पड़ता है, तो यह सरकारों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। मगर सरकारों के माथे पर शिकन नजर नहीं आती।

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