नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने 2019-20 के बजट को लेकर खुद ही पीठ थपथपा ली है। न्यूज चैनल इस बात की गिनती करने में मगशूल रहे कि मोदी ने कितनी बार तालियां बजाईं। इस बीच बजट के बाद से ही देश के बहीखाते का हिसाब किताब लगना शुरू हो गया है। मोदी सरकार ने इस बार के बजट में गंगा सफाई योजना के लिए आवंटित की जाने वाली राशि में कटौती कर दी है।
द हिंदू के अनुसार, राष्ट्रीय गंगा परियोजना एवं घाट निर्माण कार्य के लिए सरकार ने 2019-20 के बजट में 750 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। वहीं, पिछले साल के बजट में इसके लिए 2250 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। साल 2018-19 के लिए संशोधित अनुमान के मुताबिक, पिछले साल सरकार केवल 750 करोड़ रुपये खर्च कर पाई थी।
इस साल की मई की द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2015 में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के बाद जिन 100 सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का गठन हुआ था उनमें से एनडीए सरकार केवल 10 परियोजनाएं पूरी कर सकी। वहीं, जो 10 परियोजनाएं पूरी हुईं वे भी पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान शुरू हुई थीं।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत गठित की गईं अधिकांश परियोजनाएं उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड के सबसे प्रदूषित शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और सीवर लाइन बिछाने के बारे में थीं। इस मिशन के लिए जारी होने वाली राशि में से करीब 1200 करोड़ रुपये रिवर फ्रंट के विकास, घाटों की सफाई और नदी से कचरा हटाने के लिए हैं।
इस साल मई तक उपलब्ध ताजा आंकड़ों के मुताबिक विभिन्न परियोजनाओं के लिए 28451 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई लेकिन उनमें से केवल 25 फीसदी राशि (6966 करोड़ रुपये) ही खर्च की जा सकी। वहीं, 298 परियोजनाओं में से केवल 99 ही पूरी हो सकीं।
राज्य एवं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी रिपोर्ट्स के अनुसार, जिन शहरों से गंगा गुजरती उनमें से किसी में भी पानी न तो नहाने और न ही पीने के लिए सही है।
द हिंदू के अनुसार, राष्ट्रीय गंगा परियोजना एवं घाट निर्माण कार्य के लिए सरकार ने 2019-20 के बजट में 750 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। वहीं, पिछले साल के बजट में इसके लिए 2250 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। साल 2018-19 के लिए संशोधित अनुमान के मुताबिक, पिछले साल सरकार केवल 750 करोड़ रुपये खर्च कर पाई थी।
इस साल की मई की द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2015 में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के बाद जिन 100 सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का गठन हुआ था उनमें से एनडीए सरकार केवल 10 परियोजनाएं पूरी कर सकी। वहीं, जो 10 परियोजनाएं पूरी हुईं वे भी पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान शुरू हुई थीं।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत गठित की गईं अधिकांश परियोजनाएं उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड के सबसे प्रदूषित शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और सीवर लाइन बिछाने के बारे में थीं। इस मिशन के लिए जारी होने वाली राशि में से करीब 1200 करोड़ रुपये रिवर फ्रंट के विकास, घाटों की सफाई और नदी से कचरा हटाने के लिए हैं।
इस साल मई तक उपलब्ध ताजा आंकड़ों के मुताबिक विभिन्न परियोजनाओं के लिए 28451 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई लेकिन उनमें से केवल 25 फीसदी राशि (6966 करोड़ रुपये) ही खर्च की जा सकी। वहीं, 298 परियोजनाओं में से केवल 99 ही पूरी हो सकीं।
राज्य एवं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी रिपोर्ट्स के अनुसार, जिन शहरों से गंगा गुजरती उनमें से किसी में भी पानी न तो नहाने और न ही पीने के लिए सही है।